उद्योग किसी भी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था की रीढ़ होते हैं। औद्योगिक प्रगति से न सिर्फ किसी देश की आर्थिक स्थिति का पता चलता है वरन् उद्योग लाखों लोगों की आजीविका के साधन भी होते हैं। मालिक, कामगार एवं अन्य स्टाफ की समृद्धि उद्योग की उन्नति पर निर्भर करता है। किसी उद्योग का परफाॅर्मेंस मालिक, शेयर होल्डर एवं कामगारों को समान रूप से प्रभावित करते हैं। अतः किसी फैक्ट्री के ले आउट की योजना सावधानी पूर्वक बनाना आवश्यक है।
वास्तु औद्योगिक प्रक्रिया तथा प्रवाह के बीच तालमेल एवं लय स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। वास्तु का प्रमुख उ्देश्य पंचतत्वों के बीच संतुलन स्थापित करके हमारे बाह्य एवं आंतरिक वातावरण को बेहतर एवं सामंजस्यपूर्ण बनाना है। वास्तुनुरूप बनाए गए औद्योगिक प्रतिष्ठान एवं फैक्ट्री निःसंदेह सफल एवं मुनाफा कमाने वाले होते हैं।
वास्तुनुरूप व्यवस्था वातावरण में सकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करता है तथा कार्य प्रणाली, गुणवत्ता, उत्पादन तथा मुनाफे में आशातीत वृद्धि करता है। वास्तुसम्मत प्रतिष्ठानों में यदि छोटी-मोटी समस्याएं आती भी हैं तो उनका हल आसानी से मिल जाता है। आइए देखें कि वास्तुनुरूप औद्योगिक प्रतिष्ठानों एवं फैक्ट्री के निर्माण के लिए क्या-क्या करना आवश्यक है।
सुनियोजित अभिन्यास (ले आउट) औद्योगिक प्रतिष्ठान एवं फैक्ट्री निर्माण के लिए अभिन्यास के समय इस बात का ख्याल रखना आवश्यक है कि आस-पास के क्षेत्र साफ-सुथरे, सड़कों एवं स्ट्रीट लाइट की आंतरिक एवं बाह्य व्यवस्था उचित हो। औद्योगिक कचरे, रसायन एवं कूडे़ के निष्कासन की अच्छी व्यवस्था आवश्यक है।
औद्योगिक क्षेत्र का सफाईकरण एवं सौंदर्यीकरण कर्मचारियों के स्वास्थ्य एवं समृद्धि को बेहतर दिशा प्रदान करता है। भूखंड का चयन औद्योगिक प्रतिष्ठान एवं फैक्ट्री हेतु भूखंड चयन में सावधानी बरतनी आवश्यक है। भूखंड हर हाल में वर्गाकार अथवा आयताकार ही होना चाहिए। आयताकार होने की स्थिति में भी लंबाई-चैड़ाई का अनुपात 1ः1.5 से अधिक नहीं होना चाहिए।
यदि किसी दिशा में कटाव या वृद्धि है तो उसे ठीक कर लेना आवश्यक है। भूखंड की ढलान उत्तर या पूर्व की ओर होनी चाहिए तथा पश्चिम एवं दक्षिण की ओर भूखंड थोड़ा ऊंचा होना चाहिए। यदि किसी प्रकार की विसंगति है तो उसे ठीक कर लेना आवश्यक है। दक्षिण एवं पश्चिम की ओर ढलान होने से उत्पादन, वृद्धि एवं उन्नति में निरंतर कमी आती है तथा अनावश्यक खर्च बढ़ जाते हैं। मशीनें अर्द्धव्यवहृत रह जाती हैं तथा धन एवं श्रमिकों की कमी हो जाती है।
भूखंड के दक्षिण, पश्चिम एवं दक्षिण-पश्चिम में गड्ढा, ढलान, कुआं, तालाब इत्यादि अत्यधिक अशुभ माने जाते हैं। यदि दो बड़े भूखंडों के बीच कोई छोटा भूखंड हो तो उसे कदापि न खरीदें। साथ ही यदि आपके भूखंड से लगा दक्षिण दिशा में कोई भूखंड हो तो उसे भी न खरीदें। यह नुकसान एवं दुर्भाग्य लाता है। निर्माण से पूर्व ही चहारदीवारी यानि कंपाउंड वाॅल का निर्माण कर लेना चाहिए।
दक्षिण एवं पश्चिम की दीवारें ऊंची तथा मोटी तो उत्तर एवं पूर्व की दीवारें अपेक्षाकृत नीची एवं पतली होनी चाहिए। प्रवेश द्वार 81 ग्रिड वास्तु के अनुसार उपयुक्त स्थान पर ही होना चाहिए यानि प्रवेश द्वार उत्तर-पूर्व के उत्तर, उत्तर-पूर्व के पूर्व, दक्षिण-पूर्व के दक्षिण अथवा दक्षिण-पश्चिम के पश्चिम रखना चाहिए। प्रवेश द्वार कदापि दक्षिण-पश्चिम, उत्तर-पश्चिम के उत्तर अथवा दक्षिण-पूर्व के पूर्व दिशा में न बनायें।
कुआं एवं बोरवेल वास्तु के सभी शास्त्रीय ग्रंथों में कुआं, बोरवेल तथा अंडरग्राउंड वाटर टैंक, तालाब, स्विमिंग पूल आदि जल स्रोत भूखंड के उत्तर-पूर्व में बनाने की सलाह दी गई है। इसका वैज्ञानिक कारण यह है कि सूर्य से सुबह में निकलकर पृथ्वी पर आने वाली पराबैंगनी किरणें (अल्ट्रावायलट रे) लाभदायक होती हैं और ये हानिकारक कीटाणुओं एवं जीवाणुओं को नष्ट करती हैं।
ये किरणें उत्तर-पूर्व दिशा से ही आती हैं तथा जल स्रोत इन्हें अवशोषित कर लेते हैं। इन लाभदायक किरणों का पूर्ण लाभ लेने के लिए उत्तर-पूर्व को यथासंभव खुला रखना चाहिए तथा जलस्रोत इसी दिशा में होनी चाहिए।
दूसरी ओर दक्षिण-पश्चिम दिशा में अवरक्त किरणें (इन्फ्रारेड रे) सूर्य से आती हैं और अति हानिकारक हैं। इसीलिए दक्षिण-पश्चिम में दीवारें ऊँंची रखने तथा पेड़-पौधे लगाने की सलाह दी जाती है। ब्रह्म स्थान 81 ग्रिड वास्तु के मध्य के 9 ग्रिड ब्रह्म स्थान कहे जाते हैं। परमशायिका मंडल अथवा भूखंड के ठीक मध्य का क्षेत्र ब्रह्म स्थान है। ब्रह्म स्थान वास्तु पुरूष का नाभि क्षेत्र है। इस 9 ग्रिड क्षेत्र को बिल्कुल हल्का एवं निर्माण से मुक्त रखना चाहिए।
साथ ही किसी भी प्रकार का खंभा, पिलर अथवा दीवार का निर्माण ब्रह्म स्थान के ऊर्जा रेखा पर नहीं होना चाहिए। यह क्षेत्र बिल्कुल खुला रखें तो बेहतर है। यदि इस क्षेत्र का इस्तेमाल करना आवश्यक ही हो तो यहां आंगननुमा लाॅन अथवा कर्मचारियों के लिए छोटा मंदिर निर्मित करवा सकते हैं। बिल्डिंग योजना एवं निर्माण निर्देश औद्योगिक प्रतिष्ठान एवं फैक्ट्री का मुख्य भवन अधिकांशतः भूखंड के दक्षिण-पश्चिम हिस्से में निर्मित किया जाना चाहिए तथा उत्तर एवं पूर्व में अधिकाधिक खुली जगह छोड़नी चाहिए। निर्माण के समय निम्नांकित बातों का ध्यान रखना आवश्यक है:
1. भवन की दक्षिणी दीवारें हमेशा उत्तर से ऊंची होनी चाहिए। इससे स्वास्थ्य उत्तम बना रहता है तथा समृद्धि बढ़ती रहती है।
2. पश्चिमी दीवारें पूर्वी दीवारों की अपेक्षा अधिक ऊंची होनी चाहिए। यह अनुकूल वृद्धि एवं उन्नति के लिए आवश्यक है।
3. दक्षिण-पश्चिम की दीवारें उत्तर-पश्चिम की दीवारों से ऊंची होनी चाहिए। इससे चहुंमुखी विकास का मार्ग प्रशस्त होता है तथा स्वास्थ्य भी बेहतर रहता है।
4. उत्तर एवं पूर्व दक्षिण एवं पश्चिम की तुलना में खुला एवं हल्का रहना चाहिए।
5. प्रशासकीय कार्यालय का भवन उत्तर या पूर्व की ओर औद्योगिक भवन अथवा फैक्ट्री भवन से नीची होनी चाहिए।
6. किसी भी परिस्थिति में उत्तर-पूर्व कोना बंद अथवा कटा हुआ नहीं होना चाहिए।
7. स्टाफ क्वार्टर दक्षिण-पूर्व अथवा दक्षिण-पश्चिम में बनवाया जा सकता है।
8. टाॅयलेट ब्लाॅक भूखंड के उत्तर-पश्चिम अथवा दक्षिण-पूर्व में बनाया जा सकता है। टाॅयलेट कभी भी मध्य क्षेत्र, उत्तर-पूर्व अथवा दक्षिण-पश्चिम में नहीं बनाना चाहिए।
9. कुआं, बोरवेल, सम्प अथवा अंडरग्राउंड वाटर टैंक भूखंड के उत्तर-पूर्व क्षेत्र में ही बनाना आवश्यक है।
ओवरहेड पानी की टंकी जल भंडारण के उद्देश्य से पानी की टंकी औद्योगिक अथवा फैक्ट्री भवन के दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र अथवा पश्चिम क्षेत्र में बनवाना चाहिए। इसकी स्थापना दक्षिण-पश्चिम अथवा उत्तर-पूर्व अक्ष पर नहीं किया जाना चाहिए। छत के ऊपर पानी की टंकी एक प्लैटफाॅर्म बनाकर उस पर रखना चाहिए।
इस बात का ध्यान रखें कि दक्षिण-पश्चिम में रखा गया ओवरहेड टैंक ओवरफ्लो अथवा लीक नहीं करे। यह नुकसान एवं अनावश्यक खर्च का द्योतक है। सेप्टिक टैंक सेप्टिक टैंक उत्तर-पश्चिम के उत्तर अथवा उत्तर-पश्चिम के पश्चिम में बनवाया जाना चाहिए। सेप्टिक टैंक कंपाउंड अथवा भवन की दीवारों से थोड़ी दूरी पर होनी चाहिए। सेप्टिक टंैक की ऊंचाई सतह तक नहीं रखनी चाहिए तथा किसी भी हालत में इसकी ऊंचाई प्लिन्थ लेवल तक नहीं होनी चाहिए। सेप्टिक टैंक की पूर्व-पश्चिम की लंबाई अधिक तथा उत्तर-दक्षिण की छोटी रखनी चाहिए।
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