प्रत्येक मनुष्य सुख-दुख के चक्र से दो-चार होता है, यह सबों की नियति है। किंतु सुख के दौर हमें क्षणिक प्रतीत होते हैं तथा ये कब आते तथा कब जाते हैं, पता ही नहीं चलता। इसके उलट दुःख के दौर काफी कष्टकारक प्रतीत होते हैं तथा इसका अहसास काफी देर तक महसूस होता है। विधाता ने विभिन्न प्रकार की पीड़ा से निजात के लिए विविध उपाय करने के भी संकेत दिए जिसस े कि पीडा़ का े कमतर किया जा सके। साधकों ने इन विविध उपायों को परिष्कृत तथा सरलीकृत कर उसे आम जनों के सम्मुख प्रस्तुत किया जिससे कि इनका प्रयोग सहजता से करके लाभ प्राप्त किया जा सके तथा वर्तमान कष्ट एवं आसन्न संकटों से अपनी तथा अपने प्रियजनों की रक्षा की जा सके। कष्ट के भी विविध रूप एवं आयाम हैं। कोई संतान न होने के कारण दुःखी है तो कोई रोगग्रस्त होने के कारण तो कोई निर्धनता के कारण।
वर्तमान आधुनिक भौतिकवादी परिवेश में हर व्यक्ति को सुख का उपभोग करने की लालसा एवं उत्कंठा होती है। हर प्रकार के सुख के उपभोग के लिए यह आवश्यक है कि पर्याप्त मात्रा में धनागमन हो किंतु सब ऐसे भाग्यशाली नहीं होते। लोगों की इन्हीं सब मनोवांछित ईच्छाओं एवं लिप्साओं की पूर्ति के लिए पद्मावती यंत्र की साधना वरदान साबित होती है, ऐसा हमारे मनीषियों से साबित कर दिखाया है। श्रद्धापूर्वक इस यंत्र की साधना एवं पूजा करने से लोगों को धन-धान्य एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस यंत्र की स्थापना अपने पूजा स्थल में करके इसकी नियमित पूजा करने से मां लक्ष्मी अति प्रसन्न होती हैं तथा हर तरह की बाधाओं, संकटों एवं व्यापार में आये प्रतिरोधों का हरण करती हैं तथा हर प्रकार की मनोकामना पूर्ण करती हैं। पद्मावती यंत्र एक अंक यंत्र है तथा इसके माहात्म्य की व्याख्या तथा इसका विश्लेषण एवं चित्रण हमारे धर्मशास्त्रों में प्रमुखता के साथ किया गया है। इस यंत्र का निर्माण नौ कोष्ठकों में 1 से 9 तक के अंकों का प्रयोग करके किया जाता है। यह यंत्र देवी पद्मावती को समर्पित है। देवी पद्मावती की साधना मुख्य रूप से धन-संपत्ति की प्राप्ति करने तथा धन की देवी लक्ष्मी को आकृष्ट करने के उद्देश्य से किया जाता है।
किंतु ऐसा प्रमाणित हो चुका है कि यदि किसी की नौकरी नहीं लग रही है अथवा किसी के विवाह में बाधाएं एवं अड़चन उपस्थित हो रहे हैं अथवा कोई ऋणग्रस्त अथवा रोगग्रस्त है तो उसे भी इस यंत्र की विधिवत साधना अथवा नियमित पूजा से तथा पद्मावती मंत्र के उच्चारण से अभीष्ट लाभ प्राप्त हुआ है। शास्त्रों में ऐसा उल्लेख है कि एक बार पार्वती जी ने कैलाश पर्वत पर विराजमान शिवजी से पद्मावती यंत्र का विधान लोकहित की दृष्टि से पूछा तो भगवान शिव ने उन्हें विस्तार से बताया कि हे देवी ! जो कोई भी इस यंत्र की विधिवत साधना एवं पूजा करता है उसकी हर प्रकार की अभिलाषा पूर्ण होती है तथा वह इस नश्वर संसार से अपनी आयु पूर्ण करने के पश्चात पूर्ण तृप्त होकर स्वर्गलोक को जाता है। यह यंत्र हर प्रकार की ईच्छा पूर्ण करता है तथा संकटों से मुक्ति प्रदान करता है।
इनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं:
1. इसकी साधना एवं पूजा से चतुर्वर्ग फल यानि धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति होती है।
2. बंधन से मुक्ति एवं स्वामी की प्रसन्नता प्राप्त होती है।
3. दरिद्रता का नाश होता है।
4. इसकी साधना एवं पूजा से साधक की हर प्रकार की कामनाएं, ईच्छाएं पूर्ण होती हैं तथा वह हर प्रकार के सुख का उपभोग कर इंद्र के समान यशस्वी होता है।
5. इस यंत्र की साधना एवं पूजा से वाणी सिद्ध हो जाती है।
6. इस यंत्र की साधना एवं पूजा से शत्रुओं का नाश होता है, चाहे शत्रु कितने भी शक्तिशाली क्यों न हों।
7. इस यंत्र की साधना एवं पूजा से कोर्ट, कचहरी तथा अन्य केस एवं विवाद में विजय प्राप्त होती है।
शिवजी ने आगे पार्वती जी से कहा - हे देवी ! इतना ही नहीं इसकी विधिवत एवं नियमित साधना से खोया हुआ राज्य भी वापस मिल जाता है। साधना विधि: शुभ मुहूर्त का चयन करके साधना प्रारंभ करें। स्वच्छ स्थान में, स्नानादि से निवृत्त होकर आसनादि तथा आचमन विधि संपन्न करें। लाल आसन पर लाल वस्त्र पहनकर लाल रंग की माला से जप करें। हाथ में जल लेकर संकल्प लें तथा उसमें अपने अभीष्ट कार्य का भी उल्लेख करें। इसके उपरांत निम्नलिखित मंत्र का जाप यथा संभव करें। ऊँ पद्मावती पद्मानेत्रो पद्मासने लक्ष्मीदायिनी वाछापूर्णि )(सिजय जय जय कुरू कुरू स्वाहा।।