वक्री शनि- केजरीवाल व मोदी के लिए आफत ।। वक्रा क्रूरा महाक्रूराः, वक्रा शुभा महाशुभाः।। जब क्रूर ग्रह वक्री होते हैं तो वे अति क्रूर अर्थात् महापापी हो जाते हैं। इसी प्रकार यदि शुभ ग्रह वक्री हो जाएं तो वे महाशुभ होकर विशेष शुभ फलदायी हो जाते हैं। वक्री शनि 2 मार्च से 21 जुलाई 2014 14 मार्च से 2 अगस्त 2015 वक्री गुरु 7 नवंबर 13 से 6 मार्च 2014 9 दिसंबर 2014 से 8 अप्रैल 2015 8 जनवरी 2016 से 9 मई 2016 गुरु का राशि प्रवेश मिथुन 3 मई 2013 कर्क 19 जून 2014 सिंह 14 जुलाई 2015 कन्या 11 अगस्त 2016 तुला 12 सितंबर 2017 शनि का राशि प्रवेश वृश्चिक 2 नवंबर 2014 धनु 26 जनवरी 2017 वृश्चिक 21 जून 2017 धनु 26 अक्तूबर 2017 राजनीतिज्ञों के लिए शनि की साढ़ेसाती विशेष लाभदायक सिद्ध होते हुए देखी गयी है परंतु साढ़ेसाती के समय चंद्रमा के एकदम ऊपर शनि के आ जाने से इसका शुभ प्रभाव कम हो जाता है। यदि शनि चंद्रमा के पीछे है और वक्री है तो शुभफलदायक होता है। यदि शनि चंद्रमा के आगे है और वक्री है तो अशुभ फलदायक होता है।
गोचर के मार्गी शनि की जन्मराशि पर दृष्टि हो तो शुभ परिणाम मिलते हैं और वक्री शनि की दृष्टि से अशुभ परिणाम मिलते हैं। केजरीवाल के लिए छठे भाव में शनि व राहु के गोचर ने 2014 के चुनाव में जीत दिलाकर इन्हें मुख्यमंत्री बनाया। 14 फरवरी 2014 को इन्होंने मुख्यमंत्री के पद से त्यागपत्र दे दिया। 2 मार्च 2014 से 21 जुलाई 2014 तक शनि के वक्री होने पर राजनीति के क्षेत्र में इनकी पकड़ कमजोर हुई और इनकी इमेज को धक्का लगा परंतु 2 नवंबर 2014 को जैसे ही शनि वृश्चिक राशि में आया तो इस मार्गी शनि की जन्मकालीन चंद्रमा पर दृष्टि पड़ने से इन्हें चुनावी समर में श्रेष्ठतम सफलता मिली। 14 मार्च से 2 अगस्त 2015 तक शनि वक्री होकर जन्मकालीन चंद्रमा पर दृष्टि डालेगा और यह समय इनके लिए कठिनाइयों से भरा हुआ होगा। गुरु के वक्री होने से केजरीवाल को विशेष लाभ मिलता है। 7 नवंबर 2013 से 6 मार्च 2014 के समय में वक्री गुरु के चलते इन्हें सत्ता प्राप्त हुई।
पुनः 9 दिसंबर 2014 से 8 अप्रैल 2015 में वक्री गुरु के चलते ये पुनः सत्तारूढ़ हुये। इनकी जन्मपत्री में नीच के मंगल की व नीच के शनि की छठे भाव पर दृष्टि तथा राहु की छठे से छठे भाव में स्थिति के फलस्वरूप इन्हें अपने शत्रुओं को नष्ट करके जनता के चतुर्थ भाव पर चतुर्थेश के साथ शुभ ग्रहों का जमावड़ा अपार जन समर्थन जुटाने में सहायक होता है। इसी कारण छठे भाव पर मार्गी शनि, राहु व गुरु के संयुक्त गोचरीय प्रभाव से ये 2014 के चुनावी समर में विजयी होकर सत्तारूढ हो पाये। तत्पश्चात वक्री गुरु व मार्गी शनि से इन्हें 2015 में पुनः सत्ता प्राप्त हुई। 8 अप्रैल 2015 के बाद जब गुरु वक्री नहीं होगा और शनि 14 मार्च से वक्री होने जा रहा है इसलिए आगामी समय कठिनाइयों से भरा हुआ होगा। इनकी कुंडली में जनता का चतुर्थ भाव विशेष बली है इसलिए चैथे भाव पर गुरु का गोचर इन्हें 2 अगस्त 2015 के पश्चात् शनि के मार्गी होने की स्थिति में इनकी राष्ट्रीय स्तर पर श्रेष्ठतम पहचान बनेगी और ये एक राष्ट्रीय नेता के रूप में उभरेंगे।
नरेंद्र दामोदर दास मोदी के केस में शनि के 2 मार्च से 21 जुलाई 2014 तक वक्री होने की स्थिति में इन्हें सत्ता व विशेष सम्मान मिला क्योंकि साढ़ेसाती के समय गोचरस्थ शनि जन्मकालीन चंद्रमा से पीछे था व पीछे की ओर ही जा रहा था। परंतु 2 नवंबर 2014 के बाद शनि के चंद्रमा के एकदम ऊपर आने पर मोदी का राजनीतिक क्षेत्र में एकाएक पतन हो गया और उनका विजय रथ रूक गया। इस समय यह गोचर जन्म राशिस्थ चंद्र व मंगल दोनों के ऊपर होने से घातक हुआ। मंगल की डिग्री 0 होने से इस स्थिति में यह शनि मंगल को पूरा प्रभावित करते हुए चंद्रमा को और अधिक नकारात्मक प्रभाव देने लगा। अभी स्थिति जस की तस बनी हुई है। 14 मार्च 2015 से 2 अगस्त 2015 तक शनि के वक्री रहने पर मोदी के लिए यह निरंतर आफत करता ही रहेगा। अब ये चंद्रमा को पुनः पार करेगा तत्पश्चात् मार्गी होने के बाद अक्तूबर में पुनः पार करेगा अर्थात् शनि साढ़ेसाती के दौरान तीन बार इनके जन्मकालीन चंद्रमा को पार करता रहेगा जिसके परिणामस्वरूप 10 अक्तूबर 2015 तक इनकी परेशानियां चरम पर रहेंगी और राष्ट्रीय नेता के रूप में इनकी इमेज को निरंतर क्षति होती रहेगी।
यह स्पष्ट कर दें कि 2014 में वक्री शनि मोदी जी के लिए शुभ था क्योंकि वह चंद्रमा से दूर जा रहा था। अब 2015 में वक्री शनि कष्टकारक है क्योंकि चह चंद्रमा के ऊपर है व उसके आस-पास ही घूम रहा है। 10 अक्तूबर 2015 के पश्चात जन्मकालीन चंद्रमा व गोचरस्थ शनि में साढ़ेसाती के दौरान दूरी लगातार बढ़ती जायेगी और ये अपने खोये हुए गौरव को पुनः प्राप्त करने में सक्षम होंगे। इस समय गुरु व शनि का संयुक्त गोचरीय प्रभाव राज मान के दशम भाव पर भी पड़ेगा। शनि तो मार्गी होगा ही साथ ही 8 जनवरी 2016 से 9 मई 2016 तक गुरु के वक्री रहने पर निश्चित रूप से ये अपने कार्यों के कारण देश को प्रगति के पथ पर डाल पायेंगे। नरेंद्र मोदी की तरह किरण बेदी की भी वृश्चिक राशि होने से साढ़ेसाती चल रही है और 2 नवंबर 2014 के बाद गोचरस्थ शनि चंद्रमा के ठीक ऊपर आ जाने से इनकी साढ़ेसाती ने इन्हंे राजनीतिक सत्ता तो दिखाई लेकिन शनि की चंद्रमा से अति समीपता के कारण विपरीत फल मिला और परिणाम स्वरूप सत्ता इनके हाथों से फिसल गई।
आगामी समय में शनि के वक्री होने से न केवल राजनीतिक क्षेत्र में मोदी को नुकसान होगा साथ ही इनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। केजरीवाल के लिए मार्च का महीना स्वास्थ्य की दृष्टि से प्रतिकूल ही रहेगा। परंतु गुरु का गोचर चतुर्थ भाव में होने से इनके स्वास्थ्य में सुधार होगा व इनका शूगर लेवल भी नियंत्रित रहेगा। केजरीवाल की कुंडली में अक्तूबर 2017 में जब शनि वक्री होने के बाद मार्गी होकर पुनः धनु राशि में प्रवेश करेगा तो अष्टम भाव में अष्टम ढैय्या तथा गोचरस्थ गुरु के लग्न व चंद्र से छठे भाव में होने से इनके स्वास्थ्य में जबरदस्त गिरावट आएगी और उस समय इन्हें अपने स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना होगा।