अस्तग्रहों के बारे में कहा गया है -‘त्रीणि अस्ते भवे जड़वत’ अर्थात किसी जन्म चक्र में तीन ग्रहों के अस्त हो जाने पर व्यक्ति जड़ पदार्थ के समान हो जाता है। ऐसा व्यक्ति स्थिर बना रहना चाहता है, उसके शरीर, मन और वचन सभी में शिथिलता आ जाती है। कहा जाता है कि ग्रहों के निर्बल होने में उनकी अस्तंगतता सबसे बड़ा दोष होता है। अस्त ग्रह अपने नैसर्गिक गुणों को खो देते हैं, बलहीन हो जाते हैं और यदि वह मूल त्रिकोण या उच्च राशि में भी हों तो भी अच्छे परिणाम देने में असमर्थ रहते हैं। ज्योतिष शास्त्र में एक अस्त ग्रह की वही स्थिति बन जाती है जो एक बीमार, बलहीन और अस्वस्थ राजा की होती है। यदि कोई अस्त ग्रह नीच राशि, दुःस्थान, बालत्व दोष या वृद्ध दोष, शत्रु राशि या अशुभ ग्रहों के प्रभाव में हो तो ऐसा अस्त ग्रह कोढ़ में खाज का काम करने लगता है।
उसके फल और भी निकृष्ट मिलने लगते हैं। अतः किसी कुंडली के फल निरूपण में अस्त ग्रह का विश्लेषण अवश्य कर लेना चाहिए। अस्त ग्रह की दशान्तर्दशा में कोई गंभीर दुर्घटना, दुःख या बीमारी आदि हो जाती है। जब किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में कोई शुभ ग्रह यथा बृहस्पति, शुक्र, चंद्र, बुध आदि अस्त होते हैं तो अस्तंगतता के परिणाम और भी गंभीर रूप से मिलने लगते हैं। कई कुंडलियों में तो देखने को मिलता है कि किसी एक शुभ ग्रह के पूर्ण अस्त हो जाने मात्र से व्यक्ति का संपूर्ण जीवन ही अभावग्रस्त हो जाता है और परिणाम किसी भी रूप में आ सकते हैं जैसे किसी प्रियजन की मृत्यु हो जाना, किसी के पैतृक संपत्ति का नष्ट हो जाना, शरीर का कोई अंग भंग हो जाना या किसी परियोजना में भारी हानि होने के कारण भारी धनाभाव हो जाना आदि।
यह भी देखा जाता है कि यदि कोई ग्रह अस्त हो परंतु वह शुभ भाव में स्थित हो जाए अथवा उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो अस्त ग्रह के दुष्परिणामों में कमी आ जाती है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में लग्नेश अस्त हो और इस अस्त ग्रह पर से कोई पाप ग्रह संचार करे तो फल अत्यंत प्रतिकूल मिलते हैं। यदि कोई ग्रह अस्त हो और वह पाप प्रभाव में भी हो तो ऐसे ग्रह के दुष्परिणामों से बचने के लिए दान करना श्रेष्ठ उपाय होता है। किसी ग्रह के अस्त होने पर ऐसे ग्रह की दशा अंतर्दशा में अनावश्यक विलंब, किसी कार्य को करने से मना करना अथवा अन्य प्रकार के दुःखों का सामना करना पड़ता है। यदि व्यक्ति की कुंडली में कोई ग्रह सूर्य के निकटतम होकर अस्त हो जाता है तो ऐसा ग्रह बलहीन हो जाता है। अब हम ग्रहों के अस्त होने पर उनके सामान्य फलों पर विचार करते हैं कि किसी ग्रह विशेष के अस्त हो जाने पर उनकी अंतर्दशा में कैसे परिणाम प्राप्त होते हैं:- चंद्रमा: यदि कुंडली में चंद्रमा अस्त हो तो उसकी अंतर्दशा में मानसिक अशांति, मां का अस्वस्थ होना, पैतृक संपत्ति का नष्ट होना, जन सहयोग का अभाव, व्यक्ति का अशांत हो जाना, दौरे आना, मिर्गी होना, फेफड़ों में रोग होना आदि घटनाएं होती हैं। यदि अस्त चंद्रमा अष्टमेश के पाप प्रभाव में हो तो व्यक्ति दीर्घकाल तक अवसादग्रस्त रहता है, इसी प्रकार द्वादशेश के प्रभाव में आने पर व्यक्ति नशे का आदी हो जाता है अथवा किसी बीमारी की निरंतर दवा खाता है।
मंगल: किसी व्यक्ति की कुंडली में मंगल के अस्त होने पर उसकी अंतर्दशा में व्यक्ति क्रोधी, नसों में दर्द, रक्त का दूषित हो जाना, उच्च अवसाद ग्रस्तता आदि कष्ट हो जाते हैं। यदि अस्त मंगल पर राहु/केतु का प्रभाव हो तो व्यक्ति दुर्घटना, मुकदमेबाजी या कैंसर का शिकार हो जाता है। यदि मंगल षष्ठेश के पाप प्रभाव में हो तो अस्वस्थ, दूषित रक्त, कैंसर या विवाद में चोटग्रस्त हो जाता है। इसी प्रकार अष्टमेश के पाप प्रभाव में होने पर व्यक्ति घोटालेबाज हो जाता है, भ्रष्टाचार में लिप्त रहता है। द्वादशेश के पाप प्रभाव में होने पर व्यक्ति किसी नशीले पदार्थ का सेवन करने लगता है। बुध: अस्त बुध की अंतर्दशा में व्यक्ति भ्रमित, संवेदनशील निर्णय लेने में विलंब करता है। अति विश्वास या न्यून विश्वास का शिकार होकर तनावग्रस्त हो जाता है, अशांत रहता है। उसके शरीर में लकवा/ऐंठन, श्वांस रोग अथवा चर्म रोग हो जाते हैं। यदि अस्त बुध षष्ठेश के पाप प्रभाव में हो तो व्यक्ति तनाव/चर्म रोग या लकवाग्रस्त होकर अस्वस्थ रहता है। यदि बुध अष्टमेश के पाप प्रभाव में हो तो व्यक्ति दमा रोग से ग्रसित, मानसिक अवसाद अथवा किसी प्रियजन की मृत्यु का शोक भोगता है। यदि बुध द्वादशेश के पाप प्रभाव में हो तो व्यक्ति किसी नशे का शिकार या रोग ग्रस्त रहता है। बृहस्पति: यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में बृहस्पति अस्त हो और बृहस्पति की अंतर्दशा आ जाए तो व्यक्ति लीवर की बीमारी और ज्वर से ग्रसित रहता है।
वह अध्ययन से कट जाता है। उसकी आध्यात्मिक रूचि क्षीण हो जाती है। वह स्वार्थी हो जाता है। यदि अस्त बृहस्पति पर अन्य दूषित प्रभाव हों तो वह पुरुष संतान से वंचित हो सकता है। बृहस्पति के षष्ठेश के पाप प्रभाव में होने पर उच्च ज्वर, टायफाइड, मधुमेह तथा मुकदमे में फंसना, अष्टमेश के पाप प्रभाव में होने पर प्रतिष्ठा में हानि, किसी प्रियजन का वियोग अथवा किसी बुजुर्ग की मृत्यु हो जाना। इसी प्रकार द्वादशेश के पाप प्रभाव में होने पर व्यक्ति के विवाहेत्तर संबंध बन जाते हैं और वह किसी व्यसन से ग्रसित हो जाता है। शुक्र: जब किसी व्यक्ति की कुंडली में शुक्र अस्त हो और उसकी अंतर्दशा आ जाए तो व्यक्ति की पत्नी रोग ग्रस्त हो जाती है अथवा उसके गर्भाशय या बच्चेदानी में समस्या हो जाती है। व्यक्ति नेत्र रोग, चर्म रोग से भी ग्रसित हो जाता है। अस्त शुक्र के राहु-केतु के प्रभाव में आने पर व्यक्ति की प्रतिष्ठा नष्ट हो जाती है। वह किडनी विकार या मधुमेह का शिकार हो जाता है। यदि अस्त शुक्र षष्ठेश के दुष्प्रभाव में हो तो मूत्राशय रोग, यौनांगों में विकार अथवा चर्म रोग से ग्रसित होता है।
अष्टमेश के दुष्प्रभाव में होने पर दांपत्य जीवन में कटुता, किसी प्रियजन की मृत्यु का दुख तथा द्वादशेश के दुष्प्रभाव में होने पर व्यक्ति यौन संक्रमण रोग और नशे का आदी हो जाता है। शनि: यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि अस्त हो और उसकी दशा अंतर्दशा आ जाये तो वह अस्थि भंग होने, टांगों या पैरों में दर्द, रीढ़ की हड्डी में दर्द आदि से पीड़ित रहता है। उसे कठोर परिश्रम करना पड़ता है। उसका कार्य व्यवहार नीच प्रकृति के लोगों से रहता है। उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा समाप्त होने लगती है। शनि के राहु-केतु से प्रभावित होने पर जोड़ों में दर्द रहता है। अस्त शनि के षष्ठेश के पाप प्रभाव में होने पर रीढ़ की हड्डी में दर्द, जोड़ों में दर्द, शरीर में जकड़न रहने लगती है। मुकदमों का सामना करना पड़ता है। अस्त शनि के अष्टमेश के पाप प्रभाव में होने पर अस्थि टूट जाने, रोजगार में समस्या अथवा किसी प्रियजन का अभाव हो जाना होता है। शनि के द्वादशेश के पाप प्रभाव में होने पर व्यक्ति किसी बीमारी से ग्रस्त रहने लगता है अथवा व्यसन में डूब जाता है।