अक्षय तृतीया को नर-नारायण, परशुराम और हयग्रीव अवतार हुए थे। इसलिए इस दिन उनकी जयंती मनायी जाती है तथा इसी दिन त्रेता युग भी आरंभ हुआ था। अतः इसे मध्याह्नव्यापिनी ग्रहण करना चाहिए। परंतु परशुराम जी प्रदोष काल में प्रकट हुए थे, इसलिए द्वितीया को मध्याह्न से पहले तृतीया आ जाए, तो उस दिन अक्षय तृतीया, नर-नारायण जयंती, परशुराम जंयती, और हयग्रीव जयंती सब संपन्न की जा सकती हैं और यदि द्वितीया अधिक हो, तो परशुराम जयंती दूसरे दिन होती है।
यदि इस दिन गौरी व्रत भी हो, तो ‘गौरी विनायकोपेता’ के अनुसार गौरी पुत्र गणेश की तिथि चतुर्थी का सहयोग अधिक शुभ होता है। अक्षय तृतीया बड़ी पवित्र और महान फल देने वाली है। इसलिए इस दिन सफलता की आशा से व्रतोत्सवादि के अतिरिक्त वस्त्र, शस्त्र और आभूषणादि बनवाये अथवा धारण किये जाते हैं। नवीन स्थान, संख्या एवं समाज आदि का स्थापन या उद्घाटन भी किया जाता है। ज्योतिषी बंधु आगामी वर्ष की तेजी-मंदी जानने के लिए इस दिन अन्न, वस्त्र आदि व्यावहारिक वस्तुओं और व्यक्ति विशेष के नामों को तौल कर एक सुपूजित स्थान में रखते हैं और दूसरे दिन फिर तौल कर उनकी न्यूनाधिकता से भविष्य का शुभाशुभ फल मालूम करते हैं।
अक्षय तृतीया में तृतीया तिथि, सोमवार, रोहिणी नक्षत्र ये तीनों हों, तो बहुत श्रेष्ठ माना जाता है। किसान भाई उस दिन चंद्रमा के अस्त होते समय रोहिणी का आगे जाना अच्छा और पीछे रह जाना बुरा मानते हैं। इस दिन स्वर्गीय आत्माओं की प्रसन्नता के लिए जल कलश, पंखा, खड़ाऊं, छाता, सत्तू, ककड़ी, खरबूजा आदि फल, शक्कर तथा मिष्टान्न, घृतादि पदार्थ ब्राह्मण को दान करने चाहिए। इसी दिन चारों धामों में उल्लेखनीय बद्री नारायण के दरवाजे खुलते हैं। इस दिन भक्तजनों को श्री बद्री नारायण जी का चित्र सिंहासन पर विराजमान कर मिस्री तथा भीगी चने की दाल से भोग लगाना चाहिए।
इस दिन गंगा स्नान तथा भगवान कृष्ण को चंदन चटाने का विशेष माहात्म्य है। इस दिन तीनों जयंतियां एक साथ होने से व्रती को चाहिए कि वह प्रातः स्नानादि से निवृत्त हो कर, तिथि, नक्षत्र, करण योग एवं नाम, गोत्र वंशादि का उच्चारण करते हुए, संकल्प सहित, भगवान का यथाविधि षोडशोपचार पूजन करे। उन्हें पंचामृत से स्नान करावे, सुगंधित पुष्प माला पहनायंे और नैवेद्य में नर-नारायण के निमित्त सेंके हुए गेहूं या जौ का सत्तू, परशुराम के निमित्त कोमल ककड़ी और हयग्रीव के निमित्त भीगी हुई चने की दाल अर्पण करें। हो सके तो भक्तजन उपवास तथा समुद्र स्नान करें। कथा: एक बार महाराजा युधिष्ठिर को अक्षय तृतीया के बारे में जानने की उत्कट अभिलाषा हुई।
तब उन्होंने सिंहासनारूढ़ देवकीनंदन पुराण पुरुषोत्तम भगवान श्री कृष्ण के चरणों में मस्तक झुका कर प्रणाम कर भगवान श्री कृष्ण से इसके बारे में पूछा। तब लीलाधारी नंद नंदन ने कहा कि हे राजन! धार्मिक दृष्टि से यह तिथि अत्यंत ही पुण्यदायिनी है। इसके संबंध में एक दिव्य कथा है: हे नरशार्दूल युधिष्ठिर! प्राचीन काल में ‘महोदय’ नामक बहुत ही निर्धन, आस्तिक तथा गौ, ब्राह्मण पूजक एक वैश्य था। उसने किसी ब्राह्मण के द्वारा इसका माहात्म्य श्रवण किया। तब उसी दिन गंगा स्नान और पितृ तर्पण श्राद्धादि कर, सुंदर पात्रों में सत्तू, अन्न, नमक, चावल, गुड़, स्वर्ण, वस्त्र, छाता आदि दान करने से उसका पुण्य शाश्वत हो गया।
आगे चल कर वही वैश्य कुशवती नामक नगरी का राजा हुआ। अपनी इस अक्षय संपत्ति को देख कर राजा को महान आश्चर्य हुआ। तब राजा ने ब्राह्मणों से इसका कारण पूछा। राजपंडितों ने जब अक्षय तृतीया का माहात्म्य बताना प्रारंभ किया, तभी उसे अपने पूर्व सुकृत की स्मृति हो आयी। उसी दिन से इसका नाम अक्षय तृतीया है। यह मनुष्य को संकटों और गरीबी से उबारने वाली तथा दैहिक, दैविक, भौतिक तापों से शांति दिलाने वाली है।