कैसे बनाया नीच ग्रहों ने अकबर को ‘महान’
कैसे बनाया नीच ग्रहों ने अकबर को ‘महान’

कैसे बनाया नीच ग्रहों ने अकबर को ‘महान’  

संजय बुद्धिराजा
व्यूस : 14730 | अप्रैल 2015

जलालुद्दीन अकबर की कुंडली को यदि एक नजर देखा जाये तो कह सकते हैं कि कंुडली में ग्रह स्थिति अच्छी नहीं है। कालसर्प योग और दो-दो नीच ग्रहों की कुंडली में चंद्र भी पीड़ित है। अतः जातक को जीवन में अशुभ फलों की प्राप्ति अधिक होनी चाहिये थी, लेकिन इन्हीं नीच ग्रहों की दशाओं में अकबर ने चहोन्मुख उन्नति की, अपने साम्राज्य का विस्तार किया, कई धार्मिक व सामाजिक सुधार किये और ‘अकबर महान’ के नाम से जाने गये। आईये देखते हैं कि नीच ग्रहों की दशा में अकबर के साथ क्या-क्या हुआ? नीच ग्रहों के संबंध में हम पहले यह जान लेते हैं कि यहां अकबर की कुंडली में दोनों नीच ग्रहों (सूर्य व शुक्र) का नीच भंग हो रहा है। सूर्य तुला राशि में है तथा शनि यहीं पर उच्च का होकर सूर्य का नीच भंग कर रहा है। शुक्र अपनी नीच राशि कन्या में तो है पर कन्या राशि का स्वामी बुध यहां कुंडली में चंद्रमा से केंद्र में होकर शुक्र का नीच भंग कर रहा है। दूसरा यह कहा गया है कि 3,6,11 भावों में यदि नीच के ग्रह हांे या 3,6,11 भावों के स्वामी नीच के ग्रह हों तो वे राजयोग देते हैं।

यहां अकबर की कुंडली में तीसरे भाव में नीच के सूर्य स्थित हैं और शुक्र तीसरे भाव का स्वामी है।

1. अकबर को जन्म से ही नीच ग्रह सूर्य की महादशा मिली। सूर्य (लग्नेश) में शुक्र की दशा अक्तूबर 1544 से अक्तूबर 1545 तक चली जिसमें बालक अकबर को उसके चाचा असकरी अपने साथ ले गये थे। उन्होंने बालक अकबर को सारे ऐशो आराम दिये जो अकबर के पिता हुमायूं नहीं दे पा रहे थे। विलासिता के ग्रह नीच के शुक्र (नवांश में जाकर शुक्र उच्च के हो गये हैं) के कारण ही बालक अकबर को राजकुमारों सा जीवन मिला। मतलब बचपन से ही नीच ग्रहों का सहयोग अकबर को मिलने लगा था। आईये आगे देखते हैं:

2. 1555 (चंद्रमा में शुक्र) में अकबर ने अपने जीवन का प्रथम युद्ध (हुमायूं व सिंकदर शाह सूरी के बीच) लड़ा। इस युद्ध में अकबर ने अपनी वीरता व साहस का परिचय दिया व बहुत नाम कमाया। यहां अंतर्दशानाथ शुक्र तृतीयेश (साहस/पराक्रम) व दशमेश (कर्म) होकर वर्गोतम गुरु से युत है। शुक्र का नक्षत्रेश सूर्य है व राशीश बुध है जो उच्च के षष्ठेश (युद्ध) शनि के साथ पुनः तृतीय भाव में ही बैठे हैं। हुमायूं व शेरशाह सूरी के बीच लड़े गये युद्ध में हुमायूं की जीत हुई थी। अकबर को उसकी वीरता के कारण पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया गया था। यहां शुक्र दशम भाव (सिंहासन) का स्वामी होकर अष्टमेश (विरासत) गुरु के साथ द्वितीय भाव (धन) में स्थित है और गुरु की नवम भाग्यशाली दृष्टि भी सिंहासन के दशम भाव पर पड़ रही है।

3. फरवरी 1561 में अकबर अत्यधिक बीमार हुआ तब मंगल में नीच के शुक्र की दशा चल रही थी। नीच ग्रह के बारे में कहा गया है कि जब जब नीच ग्रह की दशा/अंतर्दशा आती है तो व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता कम होते जाने का योग बनता है। यहां शुक्र की अंतर्दशा नीच ग्रह की दशा थी और शुक्र के साथ अष्टमेश (अस्वास्थ्य) गुरु भी है। शुक्र का राशीश बुध भी तृतीय भाव (अष्टम से अष्टम) में है व षष्ठेश (रोग) शनि के साथ है। ये सभी योग बीमारी की ओर ही इशारा कर रहे हंै। लेकिन अकबर ने अपनी बीमारी पर विजय पाई और अपनी प्रजा के लिये निःशुल्क ईलाज भी उपलब्घ करवाया। यहां शुक्र की युति करने वाला गुरु अष्टमेश होने के साथ साथ त्रिकोणेश (शुभ) या पंचमेश भी है। शुक्र का राशीश बुध एकादशेश (विजय) भी है जो ‘उच्च’ के शनि के साथ है।

4. जनवरी 1562 में (मंगल में सूर्य) अकबर में ख्वाजा के गीतों को सुन अजमेर शरीफ के प्रति भक्ति जागी और उसने अजमेर शरीफ की प्रथम यात्रा की। अंतर्दशानाथ नीच का सूर्य तृतीय भाव में स्थित होकर नवम भाव (तीर्थ यात्रा) को दृष्ट कर रहा है। सूर्य का राशीश शुक्र (संगीत) है जो पंचमेश व अष्टमेश गुरु (पूर्व पुण्य व भक्ति) के साथ है जिस कारण अकबर में पूर्व पुण्यों के प्रभाव से अचानक संगीत की वजह से भक्ति जगी और उसके स्वभाव को भक्ति व धर्म का अहसास भी दिया।

5. फरवरी 1562 में जब मंगल में सूर्य की दशा चल रही थी तो अजमेर से वापिस लौटते समय आमेर के राजा की पुत्री जोधाबाई से विवाह किया जिसने अकबर के जीवन में अन्य धर्मों के प्रति उसका रुख नरम व लचीला किया। यहां अंतर्दशानाथ सूर्य के साथ उच्च का शनि (सप्तमेश) स्थित है। सूर्य का नक्षत्रेश राहु है जो सप्तम भाव में स्थित होकर परम्परा के विरुद्ध विवाह दर्शा रहा है। इसी दशा में ही अकबर के दरबार में कुछ प्रतिभाशाली दरबारी जैसे कि मानसिंह, तानसेन व रहीम का आगमन हुआ जिस कारण अकबर के नाम को और चार चांद लग गये। यहां पंचम भाव दरबारियों का भाव कहा जाता है जिसका स्वामी गुरु है जो नीच के सूर्य के राशीश शुक्र के साथ युत है। मार्च 1562 में इसी दशा में ही अकबर ने कैदियों को दास बनाने की प्रथा का भी अंत किया। ये काम भी सूर्य के नक्षत्रेश राहु के कारण हुआ जिसने परंपरा से हटकर अपने मित्र शनि (दास) जो सूर्य के साथ युति में है, के लिये कुछ करने को सचेत किया।

6. सितंबर 1575 में अकबर ने बंगाल पर कब्जा किया और जून 1576 में उसने हल्दी घाटी युद्ध जीता। इस दौरान अकबर पर राहु में शुक्र की दशा चल रही थी। यहां अंतर्दशानाथ शुक्र नीच का तो है पर पराक्रमेश व कर्मेश भी है। वैसे भी तृतीयेश अगर नीच का हो तो राजयोग कारक बन जाता है। शुक्र का नक्षत्रेश सूर्य व राशीश बुध है जो तृतीय पराक्रम भाव में ही उच्च के शनि से युत होकर युद्ध में विजय दर्शा रहे हैं। इस दशा में अकबर ने अपना साम्राज्य मालवा, सूरत, अहमदाबाद, बिहार व दक्षिणी भारत तक बढ़ा लिया था। इसी कारण नई संस्कृति व परंपरा से परिचित होने के कारण अकबर का रुझान दूसरे धर्मों के प्रति भी बढ़ता गया। इसका कारण पंचमेश व अष्टमेश (अध्यात्म) वर्गोत्तम गुरु (धर्म) जिसकी नवम दृष्टि नवम धर्म भाव पर भी है, का शुक्र से युत होना रहा और शुक्र से नवमेश भी स्वयं शुक्र ही है।

7. मई 1577 से मार्च 1578 तक अकबर ने अपने राजनैतिक संबंधों को मजबूत करने के लिये व अपने साम्राज्य विस्तार के लिये राजपूत कन्याओं से विवाह किये। इस दौरान राहु में सूर्य की दशा चल रही थी। यहां अंतर्दशानाथ सूर्य स्वयं लग्नेश है जो उच्च के शनि (सप्तमेश) के साथ स्थित है। सूर्य का नक्षत्रेश राहु है जो सप्तम भाव में स्थित होकर परम्परा के विरुद्ध विवाह दर्शा रहा है।

8. गुरु में शुक्र की दशा जो अगस्त 1588 से अप्रैल 1591 तक चली, में अकबर का रुझान पूरी तरह से धर्म के मूल्यों व नैतिकता को समझने में था। उसने इस दौरान कई धार्मिक और सामाजिक सुधारों पर भी जोर दिया जैसे विधवा विवाह को मंजूरी दी, दास प्रथा पर रोक लगाई, धर्म परिवर्तन की जबरदस्ती समाप्त की। इसका कारण अंतर्दशानाथ शुक्र था जो महादशानाथ तथा पंचमेश व अष्टमेश (अध्यात्म) वर्गोत्तम गुरु (धर्म) से युत है और गुरु की नवम दृष्टि नवम धर्म भाव पर भी है। शुक्र स्वयं से भी नवमेश है।

9. 1591-92 में जब अकबर पर गुरु में सूर्य की दशा चल रही थी तो अकबर ने दूसरे धर्मों के कुछ साहित्यों व ग्रंथों का भी फारसी में अनुवाद करवाया व खूब प्रसिद्धि पाई। जैसे पंचतंत्र का, रामायण का, तुजुक बाबरी का, तारीखे कश्मीर का व नजात उल रशीद का। यहां अंतर्दशानाथ सूर्य (राजा) तृतीय भाव (लेखनी) में उच्च के शनि (प्रजा में प्रसिद्ध) व बुध (पुस्तक लेखन) के साथ स्थित है। सूर्य का राशीश शुक्र (अनुवाद) है तथा शुक्र द्वितीय भाव में पंचमेश गुरु (साहित्य) के साथ युति कर रहा है। उपरोक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि किसी जन्म कुंडली में नीच ग्रहों को केवल देख भर लेने से ही अशुभ फल नहीं कह देना चाहिये बल्कि संपूर्ण पहलुओं पर विचार करके ही फल की व्याख्या करनी चाहिये।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.