वक्री ग्रहों के संबंध में ज्योतिष प्रकाशतत्व में कहा गया है कि-“क्रूरा वक्रा महाक्रूराः सौम्या वक्रा महाशुभा।।” अर्थात क्रूर ग्रह वक्री होने पर अतिक्रूर फल देते हैं तथा सौम्य ग्रह वक्री होने पर अति शुभफल देते हैं। जातक तत्व और सारावली के अनुसार यदि शुभग्रह वक्री हो तो मनुष्य को राज्य, धन, वैभव की प्राप्ति होती है किंतु यदि पापग्रह वक्री हो तो धन, यश, प्रतिष्ठा की हानि होकर प्रतिकूल फल की संभावना रहती है।
जन्म समय में वक्री ग्रह जब गोचरवश वक्री होता है तो वह शुभफल प्रदान करता है बशर्ते ऐसे जातक की शुभ दशांतर्दशा चल रही हो। क्या हैं वक्री ग्रह: फलित ज्योतिष के अनुसार जब कोई ग्रह किसी राशि में गतिशील रहते हुए अपने स्वाभाविक परिक्रमा पथ पर आगे को न बढ़कर पीछे की ओर (उल्टा) गति करता है तो वह वक्री कहा जाता है। जो ग्रह अपने परिक्रमा पथ पर आगे को गति करता है तो वह मार्गी कहा जाता है। वक्री ग्रह कुंडली में जातक विशेष के चरित्र-निर्माण की क्रिया में सहायक होते हैं। जिस भाव और राशि में वे वक्री होते हैं उस राशि और भाव संबंधी फलादेश में काफी कुछ परिवर्तन आ जाता है। सूर्य एवं चंद्र मार्गी ग्रह हैं, ये कभी भी वक्री नहीं होते हैं।
वक्री होने पर शुभाशुभ परिवर्तन: भारतीय ज्योतिष के अनुसार बृहस्पति जिस भाव में स्थित होकर वक्री होता है, उस भाव के फलादेशों में अनुकूल व सुखद परिवर्तन आते हैं। आमतौर पर बृहस्पति के वक्री होने पर व्यक्ति अपने परिवार-कुटुंब, देश, संतान, जिम्मेदारियों, धर्म व कत्र्तव्य के प्रति ज्यादा चितिंत हो जाता है। जन्म कुंडली के दूसरे स्थान में आकर जब बृहस्पति वक्री होता है, तब अपनी दशा-अन्तर्दशा में अपार धन-दौलत देता है। नवम भाव में वक्री होने पर जातक के भाग्य द्वार खोल देता है एवं द्वादश स्थान में वक्री होने पर जातक को जन्मभूमि की ओर ले जाता है। मकर राशि में भले ही नीच का गुरु विराजमान हो परंतु यदि वह वक्री हो तो उच्च की तरह ही शुभ फल प्रदान करेगा। वक्री गुरु का प्रभाव: गुरु विद्या-बुद्धि और धर्म-कर्म का स्थाई कारक ग्रह है। मनुष्य के विकास के लिए यह अति महत्वपूर्ण ग्रह है।
गुरु का मनुष्य के आंतरिक, मानसिक, मनोवैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक जीवन पर समुचित प्रभाव पड़ता है। गोचरवश गुरु के वक्री रहते हुए धैर्य व गम्भीरता से कार्य की पकड़ कर नई योजना व नए कार्यों को गति देनी चाहिए। जिन जातकों के जन्म समय में गुरु वक्री हो, उनको गोचर भ्रमणवश वक्री होने पर अटके कार्यों में गति एवं सफलता मिलेगी और शुभ फलों की प्राप्ति होगी। बृहस्पति और अन्य राशिगत प्रभाव: वर्तमान में कर्क राशि में गोचर भ्रमणवश पहले, चैथे, आठवें, बारहवें गुरु के अशुभ प्रभाव से प्रभावित कर्क, मेष, धनु एवं सिंह राशि के व्यक्तियों को राहत मिलेगी, जब बृहस्पति वक्री होता है तो ऐसे व्यक्तियों के भाग्य में परिवर्तन आता है। कर्क राशि में गतिशील वक्री गुरु अपनी पंचम पूर्ण दृष्टि से वृश्चिक राशि में गतिशील नैसर्गिक रूप से पापग्रह शनि को देखेगा। जब कोई शुभ ग्रह वक्री होकर किसी अशुभ ग्रह से दृष्टि संबंध बनाता है तो उसके अशुभ फलों में कमी आकर शुभत्व में वृद्धि होती है।
अतः इस दौरान शनि की ढैया से पीड़ित मेष व सिंह राशि के जातक एवं साढ़ेसाती से प्रभावित तुला, वृश्चिक व धनु राशि के व्यक्तियों को राहत मिलेगी, उनके बिगडे़ और अटके काम बनने लगेंगे। वक्री गुरु के प्रभाव से अन्य समस्त राशियां भी प्रभावित होंगी। कब होते हैं गुरु वक्री: बृहस्पति अपनी धुरी पर 9 घंटा 55 मिनट में पूरी तरह घूम लेता है। यह एक सेकेंड में 8 मील चलता है तथा सूर्य की परिक्रमा 4332 दिन 35 घटी 5 पल में पूरी करता है। स्थूल मान से गुरु एक राशि पर 12 या 13 महीने रहता है। एक नक्षत्र पर 160 दिन व एक चरण पर 43 दिन रहता है।
बृहस्पति ग्रह अस्त होने के 30 दिन बाद उदय होता है। उदय के 128 दिन बाद वक्री होता है। वक्री के 120 दिन बाद मार्गी होता है तथा 128 दिन बाद पुनः अस्त हो जाता है। कर्क राशि में वक्री गुरु के गोचर भ्रमण से पहले, चैथे, आठवें, बारहवें बृहस्पति के अशुभ प्रभाव से प्रभावित कर्क, मेष, धनु एवं सिंह राशि के जातकों को राहत मिलेगी। साथ ही शनि पर वक्री गुरु की कृपा दृष्टि से मेष, सिंह राशि पर गतिशील शनि की ढैया एवं तुला, वृश्चिक, धनु राशि के जातकों को शनि की साढे़साती के अशुभ प्रभाव से मुक्ति मिलेगी। गुरु की दशा लगने पर बड़ों का आदर सम्मान करें। अपने बुजुर्गों का आशीर्वाद लें तथा गुरुवार का व्रत करने से गुरु के शुभ फलों में वृद्धि हो जाती है जबकि अशुभ फलों में कमी आती है। वक्री गुरु की दशा होने पर गुरु से संबंधित वस्तुओं यथा केसर, हल्दी, पीले कपड़े, फूल, सोना, पीतल आदि का दान देना भी शुभ फल देता है।