सोया भाव और सोया ग्रह
सोया भाव और सोया ग्रह

सोया भाव और सोया ग्रह  

उमेश शर्मा
व्यूस : 40816 | जुलाई 2011

सोया भाव और सोया ग्रह लाल-किताब के फलादेश का अन्य एक महत्वपूर्ण नियम है। किस ग्रह या भाव का उपाय करना है यह निश्चित करने के लिए इस सूत्र का गंभीरता से अध्ययन अत्यन्त आवश्यक है।

1. सोया भाव:

जिस भाव में कोई ग्रह न हो या भाव पर किसी ग्रह की दृष्टि न हो तो वह भाव सोया हुआ कहलायेगा। ऐसी स्थिति में भाव से संबंधित कारक वस्तुओं एवं संबंधियों से जातक को कोई लाभ न मिलेगा।

सोया ग्रह:

जब पहले भावों (प्रथम भाव से छठे भाव तक) में कोई ग्रह न हो तो बाद के भावों (सप्तम भाव से द्वादश भाव) के ग्रह सोये हुए माने जाते हैं। सोये ग्रह से मतलब यह है कि उसका शुभ या अशुभ प्रभाव सिर्फ उसी भाव में होगा जिस भाव में वह बैठा यानी कि स्थित है।

2. अगर ग्रह अपने पक्के घर में स्थित हो जैसे सूर्य प्रथम भाव में, मंगल तीसरे भाव में आदि या ग्रह अपनी राशि में हों तो उस ग्रह को हम हमेशा पूरी तरह जागता हुआ मानेगें यानी कि वह ग्रह अपने प्रभाव से दूसरे भाव या ग्रह को प्रभावित करने में पूर्ण समर्थ होगा।

3. जब पहले भावों में कोई ग्रह न हो तो बाद के भावों के ग्रह सोये हुए माने जाते हैं। ऐसी स्थिति में ग्रह को जगाने वाले ग्रह की आवश्यकता होगी जिससे बाद के घरों में बैठे ग्रहों के प्रभाव को जगाया जा सके। ग्रह अपने आप कब जागेगा यह निम्न तालिका से जाना जा सकता है।

कौन सा ग्रह कब अपने आप जागेगा:-

  • बृहस्पति: अगर बृहस्पति सोया हुआ हो तो 16 से 21 वर्ष की आयु के मध्य जब जातक अपना व्यापार या नौकरी करनी शुरु कर दे तो बृहस्पति स्वयं जाग जायेगा।
  • चन्द्र: 24वें वर्ष के उपरान्त अगर जातक दुबारा पढ़ाई शुरु करता है तो चन्द्रमा स्वयं जाग जायेगा।
  • शुक्र: विवाह के बाद जागेगा अगर विवाह 25वें वर्ष के पश्चात् हो।
  • मंगल: 28वें वर्ष के पश्चात् विवाह या किसी भी प्रकार से किसी औरत से संबंध हो जाये।
  • बुध: 34वें वर्ष के पश्चात्, जब व्यक्ति अपना व्यापार प्रारम्भ करे या बहन अथवा बेटी की शादी करे।
  • शनि: 36वें वर्ष के पश्चात् जब व्यक्ति अपना मकान बनाए।
  • राहु: 42वें वर्ष के पश्चात्, ससुराल से गहरे संबंध होने पर।
  • केतु: संतान के जन्म के पश्चात्, विशेषकर 48वें वर्ष के पश्चात्।
  • उपरोक्त स्थिति होने पर ग्रह अपने आप जाग जायेगा अर्थात उस ग्रह से संबंधित शुभ या अशुभ फलों का अनुभव होने लगेगा।

  • अगर पहले भावों में ग्रह स्थित हो और बाद के भाव ख़ाली हो तो वह भाव जिसमें ग्रह स्थित है सोया हुआ होगा, जिसके लिए अब उसे यानी भाव को जगाने वाले ग्रह की आवश्यकता होगी। कौन सा भाव किस ग्रह से जागेगा यह निम्न तालिका से स्पष्ट हो जायेगा।

विशेष नोट: भाव 10 में कोई ग्रह न हो तो भाव 2 के ग्रह सोये होंगें। भाव 2 में कोई ग्रह न हो तो भाव 9 व 10 के ग्रह सोये होंगे।

लाल-किताब पद्धति का यह नियम फलादेश करने में अत्यधिक महत्व रखता है। जातक के कुंडली में दूसरे भाव में यदि कोई ग्रह स्थित है तो वह धन स्थान के फल को बहुत अच्छा करेगा। यदि दसवें भाव में भी कोई ग्रह स्थित हो तो अगर दसवें भाव में कोई ग्रह न हो तो दूसरे भाव में स्थित ग्रह सोया हुआ कहलायेगा तथा अपना शुभ फल देने में असमर्थ होगा। इसी प्रकार दसवें भाव में कोई ग्रह हो और दूसरा भाव खाली हो तो भी यही स्थिति होगी अर्थात दसवें भाव का ग्रह सोया हुआ होगा और अपना अच्छा फल देने में असमर्थ होगा। अगर कुंडली में दोनो भाव खाली हों तो पहले घर यानी लग्न के ग्रहों का फल भी पूर्ण रुप से नहीं मिल पाता। दोनों भावों के ग्रह आपस में शत्रु हों तो अच्छे ग्रह-योग होने के उपरांत भी जातक के जीवन में संघर्ष बना रहता है तथा सफलता कठिनाई से मिलती है। इसके विपरीत स्थिति में अशुभ ग्रह योग होने के उपरांत भी सफलता आसानी से मिल जाती है।

इसी प्रकार अगर वर्षफल में यह स्थिति हो तो जातक का वह वर्ष अन्य कारणों के बावजूद भी अच्छा/बुरा गुजरेगा।

उदाहरण: उपरोक्त उदाहरण के कुण्डली 1 में सूर्य, बुध एवं मंगल की दृष्टि में कोई ग्रह न होने से यह तीनों ग्रह सोये हुए माने जायेगें अर्थात जातक को इन ग्रहों से संबंधित कारक फलों में कमी रहेगी

1. जातक ने परिवार से दूर रहकर शिक्षा प्राप्त की एवं शिक्षा से कोई लाभ नहीं उठा पाया। कई व्यवसाय किये परन्तु असफल रहा जिसके कारण परिवार एवं समाज मे कई बार अपमान भी झेलना पड़ा।(बुध चतुर्थ भाव दशम भाव खाली)

2. विवाह के 15 वर्ष बाद संतान सुख प्राप्त हुआ एवं एक बार राजदण्ड भी भोगना पड़ा। (सूर्य पंचम भाव में नवम भाव खाली)

3. छोटे भाई हंै परन्तु हमेश उनसे पारिवारिक मतभेद रहा। मामा नहीं है (मंगल षष्ठ भाव में, द्वादश भाव खाली)

इसी प्रकार कुण्डली 2 में दशम, एकादश व द्वादश भाव में स्थित ग्रहों की दृष्टि में कोई ग्रह न होने से ये भाव सोये हुए माने जायेगें।

सात वर्ष की छोटी आयु में पारिवारिक कलह के कारण माता जातक को छोड़कर चली गयी व इन्ही परिस्थितियों के कारण जातक को बचपन में कई कठिनाईयों का सामना करना पड़ा और फलस्वरुप जातक अपनी शिक्षा पूरी न कर सका। (चन्द्र आदि ग्रह)



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