लाल किताब के सिद्धांत एवं उपाय
लाल किताब के सिद्धांत एवं उपाय

लाल किताब के सिद्धांत एवं उपाय  

उमेश शर्मा
व्यूस : 12317 | मार्च 2011

किताब के कुछ अपने सिद्धांत है जो प्रचलित वैदिक ज्योतिष से भिन्न हैं। जैसे इस पद्धति में कालपुरुष कुंडली की प्रधानता, कुंडली की किस्में, दृष्टियां, ग्रह का प्रभाव आदि कई सिद्धांत है जिनको प्रयोग में लाकर सटीक भविष्यफल व अशुभ ग्रहों के प्रभाव को बदला जा सकता है।

वर्तमान समय के ज्योतिष जगत में आज सबसे ज्यादा चर्चित नाम लाल किताब का है। सामान्यतः इसे सरल व साधारण उपायों के लिए जाना जाता है। परंतु यह सत्य नहीं है वास्तव में यह एक पूर्ण ज्योतिष पद्धति है।

इन सब सिद्धांतों में से एक महत्वपूर्ण सिद्धांत (ग्रह का प्रभाव) है जिसका वर्णन निम्नप्रकार हैः-

(ग्रह का प्रभाव)

  • हर ग्रह के लिए उसकी ऊंच-नीच हालत, उसका पक्का घर व उसकी अपनी राशि का स्वामित्व सदा के लिए निश्चित है चाहे वह किसी और ग्रह की राशि में ही क्यों न बैठा हो।

उदाहरण : जैसे कि मंगल की ऊँच राशि मकर है और नीच राशि कर्क है तथा वह एक व आठ नं. की राशियों का स्वामी है एवं उसका पक्का घर तीसरा है। अब कुंडली में मंगल किसी भी खाना या राशि में हो उसका अपनी राशि आदि से स्वामित्व न हटेगा।

  • इसी प्रकार प्रत्येक ग्रह अपनी निश्चित राशि में शुभ फल ही करेगा चाहे वह राशि किसी दूसरे ग्रह का पक्का घर हो गयी हो।

उदाहरण : शुक्र स्वामी है खाना नं. 2 और 7 का, परंतु खाना नं. 2 पक्का घर है बृहस्पति का। शुक्र खाना नं. 2 में बैठा होने पर शुभ फल ही देगा। और खाना नं. 7 पक्का घर है बुध और शुक्र का अतः शुक्र का फल तो शुभ होगा और बुध का अपना फल शुभ होने के साथ साथ वह दूसरों को भी मदद देगा।

  • इसी प्रकार अन्य ग्रहो को लेगें। जैसे बुध खाना नं. 3 और 6 का स्वामी है और खाना नं. 3 पक्का घर है मंगल का। अब अगर कुंडली में मंगल शुभ फल का हो तो बुध का फल भी शुभ होगा। खाना नं. 6 के स्वामी बुध और केतु दोनो है। परंत ु खाना न.ं 6 पक्का घर ह ै कते ु का। अतः बुध का उत्तम मगर केतु का अपनी स्वयं की वस्तुओं पर अशुभ मगर दूसरों पर अच्छा प्रभाव होगा।

खाना नं. 5 राशि है सूर्य की परंतु पक्का घर है बृहस्पति का और इसमें सूर्य का शुभ प्रभाव होगा। खाना नं. 8 का स्वामी है मंगल और पक्का घर है मंगलबद् व शनि का तथा चन्द्र व शनि का। इस खाना में ये तीनों ग्रह अगर अलग अलग बैठे तो इनके फल शुभ होगें परन्तु एक साथ बैठे होने पर इनका फल अशुभ हो जायेगा। खाना नं. 11 का मालिक है शनि परंतु पक्का घर है बृहस्पति का, इसमें शनि का फल शुभ होगा।

  • ग्रह बैठा होने वाले भाव में ग्रह की कारक वस्तुएं स्थित होने से उस ग्रह का प्रभाव बढ़ता है। जैसे केतु नं. 9 में हो तो जद्दी यानि अपने पैतृक मकान में कुत्ता रखने से, अपने दोहते की सेवा करने आदि से केतु के शुभ प्रभाव में वृद्धि होगी।
  • कुंडली में ग्रह जिस प्रभाव का होता है वह अपना प्रभाव (अच्छा-बुरा, ऊॅंच-नीच वगैरा) केवल उसी वर्ष में देगा जिस वर्ष कि वह वर्षफल में उस बैठा होने वाले प्रभाव के लिए निश्चित की हुई राशि या पक्के घर में आ जाये। उदाहरण के तौर पर माना कि कुंडली में बृहस्पति भाव नं. 4 में बैठा है तो बृहस्पति ऊॅंच का फल सिर्फ उस वर्ष होगा जिस वर्ष वह वर्षफल में अपने नेक होने के खाना नं. 4 या 2 वगैरा में आ जाये। जन्म से ऊॅंच तो है मगर वास्तव में ऊॅंचपन केवल निर्धारित वर्ष और राशि या खाना नं. या पक्के घर में आने पर ही प्रत्यक्ष होगा। इसी तरह ही सब ग्रहों का और सब तरह से होगा न हमेशा शुभ और न हमेशा अशुभ होगा।

    वर्षफल के अनुसार कुंडली में लग्न अर्थात भाव नं.1 में आया हुआ ग्रह सबसे पहले उस खाना पर अपना प्रभाव (अच्छा या बुरा) प्रकट करेगा जहां कि वह कुंडली में बैठा है। उसके बाद अपने दुश्मन ग्रहों पर चाहे वह उसी घर में ही क्यों न हों जिसमें कि वह स्वयं बैठा था।

    अगर एक ही घर में कई दोस्त या दुश्मन ग्रह स्थित हों तो ग्रह क्रमवार (बृहस्पति के बाद सूर्य के बाद चन्द्र्र वगैरा) प्रभाव करेगा। अगर कुंडली के खानों में मित्र और दुश्मन ग्रह अलग-अलग भावों में हों तो क्रमवार भावों (खाना नं. 1 के बाद, खाना नं. 2 के बाद खाना नं. 3 आदि) पर प्रभाव डालेगा।

    प्रत्येक ग्रह अपना शुभ प्रभाव खाना के लिए निर्धारित फलों के अनुसार करता है परन्तु स्वयं निर्धारित फलों के विपरीत कार्य करने पर उनके प्रभाव में बदलाव हो जायेगा। उदाहरणार्थः- अगर कुंडली में राहु खाना नं. 4 में हो तो जातक को नई छत, विशेषकर पाखाने की छत नहीं, बदलनी चाहिए, ऐसे व्यक्ति से व्यापारिक साझेदारी नहीं करनी चाहिए जिसके लड़का न हो। छत पर कच्चे कोयलों की बोरियां नही रखनी चाहिए परंतु ऐसा करने पर राहु शुभ की अपेक्षा अशुभ प्रभाव देना प्रारम्भ कर देगा।

    कुंडली में बृहस्पति भाव नं0 4 जिसमें वह ऊॅंच माना जाता है हो और जातक बृहस्पति से सम्बन्धित वस्तुएं जैसे पीपल का वृक्ष कटवाने, बुजुर्गों का अपमान करने व साधु-संतों का अपमान करने से बृहस्पति का सोना मिट्टी हो जायेगा अर्थात बृहस्पति के शुभ फल नष्ट हो जायेंगे।

    प्रत्येक ग्रह अपना प्रभाव अपने भाव से सम्बन्धित वस्तुओं व रिश्तेदारों द्वारा प्रदर्शित करेगा।

    वर्षफल के सूर्य के हिसाब से महावारी चक्कर पर जब ग्रह अपने इच्छित घर में आने पर अपना प्रभाव प्रकट करेगा।

    यदि कोई ग्रह अपने मित्र/शत्रु ग्रह के घर में स्थित हो तो उस ग्रह की समयावधि में मित्र/शत्रु ग्रह जिसके घर में ग्रह स्थित है की समयावधि का योग करके दो से विभाजित कर दें जो भागफल आयेगा उस वर्ष में ग्रह के शुभ/अशुभ फल अवश्य प्राप्त होंगें।

    उदाहरण : जैसे किसी जातक की कुंडली में सूर्य खाना नं. 9 में बैठा हो तो सूर्य के 22वर्ष और बृहस्पति के 16 वर्ष के जोड़ 38 को 2 से भाग देने पर उत्तर 19 आया अर्थात 19 वें वर्ष में जातक को अवश्य सूर्य के शुभ फलों की प्राप्ति होगी। इसी प्रकार सूर्य अगर अशुभ होकर शनि के खाना नं. 10 या 11 में बैठा हो तो सूर्य के 22 और शनि के 36 वर्ष कुल जोड़ 58 वर्ष को 2 से भाग देने से 29 वें वर्ष अवश्य अपना अशुभ फल देगा।

लाल किताब के उपायों को मुखय रूप से हम चार श्रेणियों में बांट सकते हैं-

1. आम उपाय - मदद के लिए यह उपाय कोई भी कर सकता है जैसे :-

1. सांसारिक सुखों के लिए गाय, कुत्ते एवं कौवे को अपने भोजन में से हिस्सा देना।

2. परेशानी से बचने के लिए सूखा नारियल जल प्रवाह करना।

3. बीमारी से बचने के लिए कभी कभी पका हुआ पीला कद्दू मंदिर में दान करना आदि।

2. दूसरे किस्म के उपाय वह हैं जो कुछ घंटों के अंदर-अंदर फैसले के लिए करते हैं। जैसे- सूर्य के लिये गुड़ बहाना। मंगल के लिये रेवड़ियां बहाना। बुध के लिए ताबें का पैसा बहाना आदि।

3. तीसरे किस्म के उपाय कुंडली में अशुभ ग्रहों की स्थिति के अनुसार हैं। इसमें देखना होगा कि कौन सा ग्रह अशुभ है और किस घर में यह प्रभाव कर रहा है। उसी के अनुसार ग्रह का उपाय होगा। जैसे खाना नं. 8 में राहु के होने पर सिक्का बहाना चाहिए। मंगल के खाना नं. 8 में होने पर रेवड़ियां जल प्रवाह करना या किसी बेवा का आर्शीवाद लेना। आदि।

4. चौथे किस्म में पितृ ऋण के उपाय आते हैं। ऋण पित्री का अर्थ है अपने बुजुर्गों द्वारा किये गये पाप के गुप्त प्रभाव का होना। जो ग्रह खाना नं. 9 में बैठा हो उस ग्रह की जड़ में बुध बैठ जाये या किसी भी ग्रह की जड़ में उसका शत्रु ग्रह बैठ जाये और वह स्वयं भी मंदे घर में बैठ जाये या मंदा हो रहा हो तो कुंडली वाले पर बुजुर्गों के द्वारा किये गये पाप का बोझ होगा। जिसका उपाय अलग अलग हालत में अलग अलग होगा। करे कोई और भुगते कोई। मगर भुगतेगा पाप करने वाले का करीबी ही। पित्री ऋण का उपाय परिवार के सभी सदस्यों को साथ लेकर करना पड़ेगा। साधारणतः उपाय की अवधि लगातार 40 दिन और ज्यादा से ज्यादा 43 दिन होती है मगर पित्री ऋण का उपाय लगातार की अपेक्षा 40 से 43 सप्ताह का होगा

लाल किताब के फरमान नं. 6 के अनुसार शक्की हालत के ग्रह के बुरे प्रभाव से बचने के लिए शक का लाभ लिया जा सकता है परन्तु पक्की हालत के ग्रह का प्रभाव हमेशा के लिये होगा और उसके बुरे प्रभाव को बदलना इंसानी ताकत से बाहर होगा। केवल दैवीय ताकत रखने वाली हस्तियां ही उस बुरे प्रभाव को बदल सकती हैं मगर यह भी ''अदले का बदला'' ही होगा अर्थात वह बुरा प्रभाव जो जातक पर हो रहा था अब वह उसको बदलने की कोशिश करने वाले पर होगा।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.