पृथ्वी और ग्रह दोनों ही अपनी-अपनी गति से सूर्य के चारांे ओर चक्कर लगाते हैं। जब ग्रह और पृथ्वी दोनों ही सूर्य के एक ओर आ जाते हैं, तो, पृथ्वी की गति ग्रह की गति से अधिक होने के कारण, ग्रह पृथ्वी से स्थिर प्रतीत होते हैं। मान लीजिए, शनि ग्रह एक स्थान पर स्थित है एवं पृथ्वी । स्थान पर। पृथ्वी से शनि 180° से अधिक अंश पर स्थित नजर आता है।
जब पृथ्वी ठ स्थान पर आती है, तब पृथ्वी से शनि 180° पर नजर आता है एवं जब पृथ्वी ब् स्थान पर पहुंचती है, तो शनि 180° से कम अंश पर दृश्य होता है। इस प्रकार पृथ्वी के आगे जाने पर, अर्थात् समय के आगे जाने पर शनि के अंश कम होते हुए नजर आते हैं, अर्थात शनि की वक्र गति दिखाई देती है।
यदि पृथ्वी ब् से क् स्थान पर जाती है, तो शनि की स्थिति 180°अंश पर आ जाती है और फिर पृथ्वी के क् से । पर आ जाने पर शनि के अंश 180° से अधिक हो जाते हैं। इस प्रकार शनि मार्गी नजर आता है। पृथ्वी के कक्ष के अंदर के ग्रह बुध और शुक्र पृथ्वी से अधिक गति से चलते हैं। अतः यदि पृथ्वी को स्थिर मान लिया जाए और बुध ग्रह । से ठए ब्ए क् आदि स्थितियों पर भ्रमण करता हुआ माना जाए, तो । बिंदु पर बुध पृथ्वी से न्यून अंशों पर स्थित है। ठ बिंदु पर यह शून्य अंश पर हो जाता है और ब् बिंदु पर और कम अंशों पर हो जाता है। क् पर पुनः शून्य पर हो जाता है। इस प्रकार बुध । से ब् बिंदु तक वक्री एवं ब् से । तक मार्गी नजर आता है।
एक ग्रह वर्ष में कितनी बार वक्री होता है, यह एक साधारण सूत्र से जाना जा सकता है: n-1/n n= ग्रह कितने वर्ष में सूर्य का चक्कर पूरा करता है। शनि को सूर्य का एक चक्कर लगाने में 29.46 वर्ष लगते हैं, तो यह .966, अर्थात् शनि एक वर्ष में .966 बार वक्री होगा। यानी शनि 378 दिनों में एक बार वक्री होगा।
इसी प्रकार बुध, जो 88 दिनों में अर्थात .24 वर्ष में सूर्य का एक चक्कर लगाता है, एक वर्ष में 3 से अधिक बार वक्री होता है एवं 365/3.5, लगभग 115 दिनों में एक बार वक्री होता है। वक्री ग्रह आकाश में भी क्या वक्री दिखाई देते हैं? आंखो द्वारा देखने से रात में तो ग्रह केवल एक स्थिर तारे के रूप में दिखाई देते हैं।
इनकी गति को जानने के लिए आवश्यक है कि हम प्रतिदिन रात को आकाश की स्थिति का चित्र खींचकर रखें। नक्षत्र एवं राशियों के परिप्रेक्ष्य में ग्रह इन चित्रों में आगे-पीछे चलते नजर आएंगे, जो उनकी मार्गी या वक्री गति को दर्शाएंगे।
वक्री शनि का मनुष्य के जीवन पर भी कुछ असर है क्या? अवश्य। जब भी वक्री ग्रह जातक के ग्रहों के ऊपर भ्रमण करते हैं, तो वे ग्रह अति फलदायी हो जाते हैं; अच्छा या बुरा, यह कुंडली में उनकी स्थिति पर निर्भर करता है। यदि योगकारक ग्रह के ऊपर से वक्री ग्रह भ्रमण करता है, तो शुभ फल मिलेंगे और यदि मारक ग्रह के ऊपर भ्रमण करेगा, तो अशुभ फल मिलेंगे।
ग्रह |
सूर्य का चक्कर कितने वर्ष में |
वर्ष मे कितनी बार वक्री |
कितने दिनों में पुनः वक्री |
बुध |
0.24 |
3.2 |
115 |
शुक्र |
0.61 |
0.64 |
571 |
मंगल |
1.88 |
0.47 |
780 |
गुरु |
11.86 |
0.92 |
399 |
शनि |
29.46 |
0.97 |
378 |
यूरेनस |
84.02 |
0.99 |
370 |
नेप्च्यून |
164.77 |
0.99 |
368 |
प्लूटो |
248.42 |
0.99 |
367 |
ग्रह वक्री या मार्गी होने से पहले कुछ समय के लिए लगभग स्थिर हो जाता है। यदि गोचरीय ग्रह जातक के ग्रह के ठीक अंशों पर स्थिर होता है, तो यह फल और भी कई गुणा अधिक हो जाता है। इस प्रकार की स्थिति में ग्रह फल अक्सर जिंदगी की यादगार बन जाते हैं। वक्री या स्थिर ग्रह का फल क्यों अधिक होता है?
इसको समझने के लिए ग्रह को एक चलती हुई गाड़ी समझे़ं, जिसमें से पानी बह रहा हो। जब तक गाड़ी सीधी चलती रहेगी, मार्ग पर पानी की एक रेखा सी बनती जाएगी। लेकिन जहां गाड़ी रुकेगी, वहां पानी का तालाब सा बन जाएगा। जहां वह गाड़ी उल्टी चलेगी, वहां, धीमी गति होने के कारण, पानी की धारा की मोटी रेखा सी बन जाएगी। ग्रह भी ऐसी ही गाड़ी है, जो अपनी किरण बखेरता हुआ चलता जा रहा है।