द्वादशांश से अनिष्ट का सटीक निर्धारण
द्वादशांश से अनिष्ट का सटीक निर्धारण

द्वादशांश से अनिष्ट का सटीक निर्धारण  

मनोज कुमार
व्यूस : 9483 | जुलाई 2013

सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी ने जब से इस संसार की रचना की है तभी से जीवन में प्रत्येक नश्वर आगमों को चाहे वे सजीव हों अथवा निर्जीव, उन्हें विभिन्न अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है। जीवन की इस यात्रा में सबों को अच्छे एवं बुरे समय का स्वाद चखना पड़ता है तथा दोनों परिस्थितियों से होकर गुजरना पड़ता है। यदि हमारा अध्यात्म एवं पराविद्याओं में विश्वास है तो इनके अनुसार जन्म से मृत्युपर्यन्त मनुष्य के जीवन की हर घटना ग्रहों, नक्षत्रों एवं दशाओं आदि द्वारा पूर्णरूपेण निर्देशित होती है। इनके सम्मिलित प्रभाव जीवन में घटित होने वाली हर घटना को प्रभावित करते हैं। आधुनिक भौतिकवादी विश्व में प्रत्येक मनुष्य धनी, सुखी एवं हर प्रकार से संपन्न जीवन जीने की कल्पना करता है तथा उसकी यह आकांक्षा होती है कि उसे वे सभी विलासितापूर्ण सुख-सुविधाएं प्राप्त हों जिनकी उसे आकांक्षा है। किंतु यह हमारे हाथ में नहीं है।

हम सिर्फ कर्म कर सकते हैं, फल का निर्धारण हमारी जन्म कुंडली में स्थित ग्रह करते हैं जो हमारे जन्म लेने के साथ हमारी कुंडली में अवतरित होते हैं। जन्म लेने के उपरांत यह अवश्यंभावी हो जाता है कि हमें निरंतर सुख एवं दुख के चक्र से गुजरना है। अब किसके भाग्य में विधाता ने क्या सुख अथवा दुख लिखे हैं इसका विवेचन ज्योतिषी अपने दैवीय ज्ञान, ज्योतिष के गहन एव गूढ़ सिद्धांतों के ज्ञान के आधार पर करते हैं तथा लोगों को परामर्श देकर उनका मार्गदर्शन करते हैं कि उसके जीवन का अमुक समय सुख का है अथवा आने वाला समय दुख का होगा, अतः भावी परेशानियों अथवा आसन्न संकट के प्रति सावधान हो जायें। यदि बुरे समय का ज्ञान पूर्व में ही हो जाय तथा समुचित मार्गदर्शन मिल जाय तो व्यक्ति आने वाले बुरे समय के प्रति सचेत हो सकता है, मानसिक रूप से तैयार हो सकता है अथवा दैवीय उपायों द्वारा तथा अपने कृत्यों द्वारा ईश्वर प्रदत्त इस पीड़ा को कमतर करने में, इसकी तीव्रता एवं विभीषिका को न्यून करने में अवश्य सफल हो सकता है।

यद्यपि कि ज्योतिष में अनिष्ट के निर्धारण एवं उनकी भविष्यवाणी के अनेक ज्ञात एवं अज्ञात सूत्र मौजूद हैं, किंतु एक अति महत्वपूर्ण, व्यवहृत एवं सिद्ध तकनीक द्वादशांश चक्र के द्वारा अनिष्ट के निर्धारण का है जिसमें राहु का गोचर देखकर काफी सटीक भविष्यवाणी की जा सकती है। यह तकनीक वर्षों के शोध एवं पर्यवेक्षण के परिणामस्वरूप प्रकाश में आयी है तथा शत-प्रतिशत सही फल देने में सक्षम है। नियम 1:

चरण 1: लग्न कुंडली का अष्टमेश देखें।

चरण 2: लग्न कुंडली के अष्टमेश की द्वादशांश में स्थिति देखें।

चरण 3: राहु का गोचर देखें। जब भी द्वादशांश में लग्न कुंडली के अष्टमेश को राहु गोचर द्वारा प्रभावित करेगा, वह समय काफी घातक अथवा समस्या देने वाला होगा।

नियम 2: यदि लग्न कुंडली का अष्टमेश शनि हो तो वैसी स्थिति में नियम में थोड़ा सा परिवर्तन है। ऐसी स्थिति में देखें कि द्वादशांश में शनि कहां अवस्थित है। जब कभी भी राहु की स्थिति गोचर में शनि से तृतीय अथवा दशम भाव में होगी, वह समय जातक के लिए बुरा, कष्टदायक अथवा घातक होगा। निम्नांकित उदाहरण इस सिद्धांत की सत्यता के परिचायक एवं इसकी विश्वसनीयता को सिद्ध करने में सहायक होंगे। लेकिन ज्योतिर्विदों को यह ध्यान रखना अति आवश्यक है कि इस सिद्धांत के अनुसार राहु हर साढ़े सात वर्ष के उपरांत संवेदनशील बिंदु पर गोचर करेगा। अतः फलकथन करते वक्त हमेशा इसे दृष्टिगत रखकर सावधानी बरतनी आवश्यक है। हमेशा ही यह मृत्यु देने वाला तथा अतिघातक नहीं होगा। किंतु इतना तो है कि जातक को बुरी परिस्थितियों का सामना अवश्य करना ही पड़ेगा चाहे इसकी मात्रा कम या अधिक हो।

उदाहरण 1: इंदिरा गांधी 19-11-1917, 23:11,इलाहाबाद मृत्यु: 31-10-1984 उदाहरण कुंडली 1 इंदिरा गांधी की है। इस कुंडली में नियम 2 लागू होता है। क्योंकि इनकी लग्न कुंडली का अष्टमेश शनि है। द्वादशांश कुंडली में शनि मीन राशि में अवस्थित है। दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति में इनकी हत्या 31-10-1984 को कर दी गयी। इस समय इनका राहु वृष राशि में गोचर कर रहा था जो कि द्वादशांश के मीन राशि से तृतीय भाव है जहां शनि अवस्थित है। उदाहरण 2: मोरारजी देसाई 29-2-1896, 13:38, भदेली (गुजरात) मृत्यु: 10-4-1995 उदाहरण कुंडली 2 मोरारजी देसाई की है। इनकी कुंडली में भी नियम 2 ही लागू होता है क्योंकि इनकी लग्नकुंडली का अष्टमेश भी शनि ही है। इनकी द्वादशांश कुंडली में शनि सिंह राशि में अवस्थित है।

मोरारजी देसाई की मृत्यु 10 अप्रैल 1995 को हुई। इस दिन राहु तुला राशि में गोचर कर रहा था जो कि द्वादशांश में अवस्थित शनि की राशि सिंह से तृतीय है। उदाहरण 3: बी. वी. रमन 8-8-1912, 19:40, बंगलूरू मृत्यु: 20-12-1998 उदाहरण कुंडली 3 विख्यात ज्योतिषी डा. बी. वी. रमन की है। इनकी लग्न कुंडली के अष्टमेश बुध हैं। द्वादशांश में बुध मकर राशि में अवस्थित है। इनकी मृत्यु के दिन 20 दिसंबर 1998 को राहु कर्क राशि में गोचर कर रहा था तथा द्वादशांश में मकर राशि में स्थित बुध पर उसकी पूर्ण दृष्टि थी। उदाहरण 4: स्टीव जाब्स 24 फरवरी 1955, 16:15, सैन फ्रांसिस्को मृत्यु: 5-10-2011 उदाहरण कुंडली 4 एप्पल के संस्थापक एवं सी. ई. ओ. स्टीव जाॅब्स की है। इनकी लग्न कुंडली के अष्टमेश भी शनि हैं अतः यहां भी नियम 2 ही लागू होगा। इनकी द्वादशांश कुंडली में शनि कन्या राशि में स्थित है। 5 अक्तूबर 2011 को जिस दिन इनकी मृत्यु हुई, राहु वृश्चिक राशि में गोचर कर रहा था जो उनके द्वादशांश में स्थित शनि से तृतीय भाव है। उदाहरण 5: अमिताभ बच्चन 11-10-1942, 16:00, इलाहाबाद गंभीर रूप से घायल- 26-7-1982 उदाहरण कुंडली 5 अमिताभ बच्चन की है।

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि ‘कुली’ फिल्म की शूटिंग के दौरान 26 जुलाई 1982 को ये अत्यंत गंभीर रूप से घायल हो गये थे। इनकी लग्नकुंडली का अष्टमेश बुध है जो द्वादशांश कुंडली में मिथुन राशि में स्थित है। इस दुर्घटना के दिन राहु मिथुन राशि में ही गोचर कर रहा था जहां द्वादशांश में लग्न कुंडली का अष्टमेश अवस्थित है। उदाहरण 6: राजीव गांधी 20-8-1944, 8:11, मुंबई मृत्यु: 21-5-1991 उदाहरण कुंडली 6 भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की है। इनका लग्न सिंह एवं लग्न कुंडली का अष्टमेश बृहस्पति है। द्वादशांश में बृहस्पति धनु राशि में स्थित है। इनकी नृसंश हत्या 21 मई 1991 को मानव बम के द्वारा कर दी गई। इस दिन राहु धनु राशि में गोचर कर रहा था तथा द्वादशांश में स्थित बृहस्पति को पूर्ण रूप से प्रभावित कर रहा था जो कि लग्न कुंडली का अष्टमेश है। उदाहरण 7: अदिति सिंह 22-11-1975, 1:10, बरेली मृत्यु: 27-8-2012 उदाहरण कुंडली 7 एक महिला जातिका की है जो बिल्कुल स्वस्थ थीं तथा अचानक इनकी हृदयाघात के कारण मृत्यु हो गई। इनकी लग्न कुंडली के अष्टमेश गुरु हैं जो द्वादशांश में वृश्चिक राशि में स्थित हैं। 27 अगस्त 2012 यानि इनकी मृत्यु के दिन राहु वृश्चिक राशि में ही गोचर कर रहा था और द्वादशांश में वृश्चिक राशि में स्थित बृहस्पति को पूर्णरूपेण प्रभावित कर रहा था।

इस प्रकार हम पाते हैं कि ये नियम हर उदाहरण कुंडली पर शत प्रतिशत लागू होते हैं। किंतु अब प्रश्न यह उठता है कि चूंकि राहु हर साढ़े सात वर्ष में इन संवेदनशील बिंदुओं से गोचर करता है तो क्या यही परिणाम हमेशा देखने को मिलेंगे। उत्तर है नहीं। किंतु इतना तो निश्चित है कि जातक को इस डेढ़ वर्ष की अवधि में बुरे समय से दो-चार होना पड़ेगा चाहे पीड़ा की तीव्रता कम हो या अधिक। स्थिति की गंभीरता कुंडली में अवस्थित अन्य ग्रहों एवं योगों पर भी बहुत कुछ निर्भर करते हैं। अतः पाठकों एवं ज्योतिष बंधुओं से यह निवेदन है कि इन नियमों का अंधानुकरण न करें तथा फलकथन में हमेशा मृत्यु अथवा मृत्युतुल्य कष्ट की भविष्यवाणी बिना तथ्यों को अच्छी तरह परखे बगैर न करें। इस विषय पर आगे और शोध की आवश्यकता है। अतः आप स्वयं इन नियमों को अन्य कुंडलियों में भी आजमा कर देखें तथा अपनी सकारात्मक अथवा नकारात्मक प्रतिक्रिया से हमें अवगत कराएं।



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