वास्तु निर्माण: काल पुरुष ज्योतिषीय योग
वास्तु निर्माण: काल पुरुष ज्योतिषीय योग

वास्तु निर्माण: काल पुरुष ज्योतिषीय योग  

बाबुलाल शास्त्री
व्यूस : 7141 | दिसम्बर 2016

वास्तु पुरूष - वास्तुपुरूष का महत्व भवन निर्माण करते समय भूखंड पर निर्माण योजना से है। वास्तु पुरूष को भवन निर्माण की योजना बनाते समय विभिन्न प्रकार से परिकल्पित किया जाता है। वास्तुपुरूष का विभाजन भवन विशेष की योजनानुसार परिकल्पित किया जाता है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार काल पुरूष का निर्धारण करने पर मेष-सिर, वृष-मुख, मिथुन-भुजा व कंधे, कर्क-छाती हृदय, सिंह-पेट दिल, कन्या-गुर्दे, तुला-नाभि व गुप्तांग, वृष्चिक-लिंग व गुदा, धनु-जंघायंे, मकर-घुटने, कुंभ-पिण्डलियां, मीन- चरण।

वास्तु पुरूष ईषान कोण में सिर करके अधोमुख होकर स्थित है जिसका सिर षिखि में, बायां नेत्र दिति में, दायां नेत्र पर्जन्य मंे, मुख आप में, बायां कान अदिति में, दायां कान जयन्त में, बायां कंधा भुजंग में, दायां कंधा इन्द्र में, बायीं भुजा सोम, भल्लाट, मुख नाग और रोग में तथा दायीं भुजा सूर्य सत्य भृष अंतरिक्ष और अनिल में है, बायां मणिबंध पापयक्ष्मा में, दायां मणिबंध ऊषा में, बायां हाथ रूद्र और राजयक्ष्मा में, दायां हाथ सावित्र और सविता में है, छाती वक्ष में, बायां स्तन पृथ्वीधर में, दायां स्तन अर्यमा में है, हृदय ब्रह्मा में, पेट मित्र तथा विवस्वान में, बायीं बगल शोष तथा असुर में, दायीं बगल वितथ तथा बृहत्क्षत में, बायां घुटना वरूण तथा पुष्पदंत में, दायां घुटना यम तथा गंधर्व में, बायीं जंघा सुग्रीव में, दायीं जंघा भृगराज में, लिंग इन्द्र तथा जय में, बायां नितंब दोवारिक में, दाया नितंब मृग में तथा पैर पिता में है।

अतः काल पुरूष वास्तु पुरूष अनुसार पुरूषांगों की कल्पना स्वतः ही हो जाती है। वास्तु पुरूष के किस अंग (अवयव) पर कौन सा निवेष निर्माण निहित या अविहित है यह ज्ञात होना आवष्यक है। सिर, मुख, हृदय, दोनांे स्तन और लिंग ये वास्तु पुरूष के मर्म स्थान हैं, इन स्थानों में कोई शल्य हो अथवा कील, खंभा पोल आदि गाड़ दिया जाये तो गृहस्वामी के अंग में पीड़ा या रोग उत्पन्न हो जाता है।

भूखंड में कौन सा भाग किस देवता विशेष के पद पर विन्यास है यह सब ज्ञान वास्तुपुरूष के चित्र से स्पष्ट हो जाता है। उदाहरणार्थ जिस स्थान पर वास्तुपुरूष का सिर (मस्तक) है वहां जूते खोलने का स्थान है या शौचालय हो तो उसका दुष्परिणाम गृहस्वामी के साथ-साथ घर में रहने वाले सभी प्राणियों को भोगना पड़ता है। उस घर मंे कपूत सन्तानंे पैदा होंगी।

घर का मुख्य प्रवेश द्वार जहां से अतिथि और हम स्वयं घर मंे प्रवेश करते हैं अनुकुल वास्तु का प्राणाधार है। घर का मुख्य द्वार भूखंड की आकृति राजमार्ग पर आधारित होती है तथा किसी भी दिशा में हो सकती है परन्तु मुख्य द्वार की स्थापना योजना पूर्वक होनी चाहिए जिससे घर में लक्ष्मी आवक अच्छी रहे एवं घर मंे रहने वाले सभी प्राणी स्वस्थ व प्रसन्न रहें। मुख्य द्वार एक प्रकार से स्वस्थ मन की तिजोरी की चाबी है जिसके माध्यम से घर मंे प्राकृतिक वायु, प्रकाश एवं अनुकूल रश्मियों का प्रवेश होता है।

मकान के दायीं तरफ की खिड़कियांे का प्रतिनिधि ग्रह सूर्य है। सूर्य पुत्र संतान का प्रतिनिधि है, यदि मकान के दायीं ओर की खिड़कियां कमजोर व टूटी-फूटी हंै तो परिवार में पुरूष संतति कष्ट में होगी। यदि दायीं खिड़की पर दरार है तो परिवार में पुरूषांे पर संकट रहेगा क्योंकि दरार राहु-केतु का प्रतिनिधित्व करती है जो कि सूर्य के शत्रु कहे गये हैं।

यदि दायीं ओर की मुख्य खिड़की रसोई में खुलती है तो परिवार के पुरूष वर्ग गुस्सैल होंगे क्योंकि सूर्य खिड़की का प्रतिनिधि, शुक्र रसोई का एवं मंगल अग्नि का कारक है। यदि दायीं ओर की खिड़की किसी गोदाम में खुलती है तो ऐसे घर में पिता-पुत्र लडे़ंगे, गृह स्वामी का पुत्र तमोगुणी होगा। यदि घर में सूर्य का प्रकाष नहीं पहुंच रहा हो, मकान के पूर्व में कोई खिड़की न हो, मकान के भीतर दिन में अंधेरा रहता हो, खाने पीने की वस्तुओं पर प्रकाष की किरण नहीं पहुंचती हो तो वहां पर सूर्य-षनि की युति का प्रभाव होने से मकान के स्वामी एवं निवासियांे को बेचैनी, नींद न आने की बीमारी, थकान आदि होगी ।

घर में बायीं खिड़की का प्रतिनिधित्व चंद्रमा करता है। चंद्रमा ज्योतिष में स्त्री ग्रह एवं जगतमाता का रूप है। यदि घर की बायीं ओर वाली खिड़कियां ठीक हंै, उसमें से सही प्रकाष व हवा यदि घर में आ रही है तो घर की स्त्रियां सुखी एवं संपन्न होंगी। इसके विपरीत होने पर स्त्रियां आलसी तथा मानसिक रूप से विकृत होंगी।

चंद्रमा मस्तिष्क है और घर के बायीं ओर का अंत पाप ग्रह केतु से प्रताड़ित होता है। यदि बायीं खिड़की के पास दरार हो या बायीं खिड़की घर के धान्य संग्रह स्थल में खुलती हो तो घर की स्त्रियों को अस्थमा/ दमा की षिकायत रहती है। ऐसे घर पर चंद्रमा, शनि, केतु का प्रभाव होता है। यदि घर की बायीं खिड़की के सामने कूड़ादान हो तो घर की स्त्रियां बीमार रहंेगी, शादी विवाह मांगलिक कार्यों में परेषानियां आयेंगी। घर की खिड़कियां चाहे बायीं हों या दायीं हों अगर बंद है, विकृत है तो परिवार की सम्पन्नता व ऐष्वर्य धीरे-धीरे नष्ट हो जायेगा।

वास्तु शास्त्र के अनुसार स्नान गृह में चंद्रमा का वास होता है तथा शौचालय में राहु का। अतः किसी भवन में स्नान गृह एवं शौचालय एक साथ अटैच हो तो चंद्रमा को राहु से ग्रहण लग जाता है क्योंकि चंद्रमा मन का एवं जल का कारक है एवं राहु विष का कारक है।

अतः दोनांे की युति होने से जल विषयुक्त हो जाता है। राहु पृथकतावादी ग्रह है अतः इसका कुप्रभाव जब जातक के मन पर पडे़गा तब दुष्प्रवृत्तियां जन्म लेती हैं। राहु को सर्प एवं चंद्रमा को सोम (अमृत) कहा गया है। अतः विष अमृत दोनों का साथ रहना जीवन के लिये कष्टकारी है जिसका विपरीत प्रभाव उसमें निवास करने वाले व्यक्तियों के मन एवं शरीर पर पड़ता है जिससे हीन विचार एवं अनेक व्याध्ंिायां व शारीरिक रोग उत्पन्न होते हैं। ईषान कोण का स्वामी पतिकारक गुरु, षिव का स्थान है। षिव आदि पुरूष हैं।

अग्नि कोण का स्वामी पत्नी कारक शुक्र शक्ति का स्थान है और शक्ति आदि नारी हंै। षिव ने शक्ति के स्थान मंे तथा शक्ति ने षिव के स्थान मंे सतुंलन बनाया है तथा समस्त ब्रह्मांड में सृष्टि की रचना की है। आग्नेय एवं ईषान कोण में दोष हो तो दाम्पत्य जीवन में बाधा आती है। आग्नेय कोण में शयन कक्ष होने से तलाक, अलगाव, दहेज के आरोप व मुकद्दमा आदि की स्थिति पैदा होती है। ईषान कोण में पति-पत्नी को शयन नहीं करना चाहिये क्योंकि रोग पैदा होने की संभावना रहती है।

अतः स्पष्ट है कि वास्तु सही रूप से जीवन जीने की एक कला है। वास्तु विज्ञान सम्मत तो है ही साथ ही धर्म से संबंधित भी है। यदि वास्तु धर्म से संबधित नहीं होता तो पुराणांे में वास्तु देव पूजा कहाँ से आती। वास्तु के सभी नियमों का पालन कर निर्माण करवाना संभव नहीं, जो हो गया उसी का रोना रोते रहना भी गलत है। मात्र अकेला वास्तु ही कोई दुष्प्रभाव नहीं दिखला सकता, जब ग्रह दशा भी विपरीत हो तभी अपना प्रभाव दिखलाता है ।

साधारण मानव द्वारा अपनी दैनिक दिनचर्या में थोड़ा परिवर्तन कर वास्तु दोष निवारण के सरल उपाय कर सफल एवं सुखद जीवन जीने की आकांक्षा जगा सकता है। प्रातः सूर्योदय से पूर्व उठने के बाद पृथ्वी माता को नतमस्तक होकर प्रणाम करें एवं आषीर्वाद लंे। पूजा पाठ, ध्यान, विद्या अध्ययन आदि शुभ कार्य पूर्व अथवा उत्तर दिषा की ओर मुख करके करना चाहिये। दीपक का मुंह पूर्व की ओर करके रखा जाये तो आयु की वृद्धि होती है।

उत्तर की ओर धन की प्राप्ति होती है। पष्चिम की ओर रखा जाये तो दुख तथा दक्षिण की ओर रखा जाये तो हानि होती है। दीपक की जगह बल्ब, ट्यूबलाइट समझना चाहिए। पूर्व की तरफ सिर करके सोने से विद्या की प्राप्ति, दक्षिण की तरफ सिर करके सोने से धन तथा आयु की वृद्धि होती है, पष्चिम की तरफ सिर करके सोने से प्रबल चिंता तथा उत्तर की तरफ करके सोने से हानि तथा आयु क्षीण होती है। शास्त्रानुसार अपने घर में पूर्व की तरफ सिर करके, ससुराल में दक्षिण की तरफ सिर करके तथा परदेष में पष्चिम की तरफ सिर करके सोयें किंतु उत्तर की तरफ कभी सिर करके नहीं सोयें, गृहस्थ के शयन कक्ष अन्न भंडार, गोशाला, गुरू स्थान, रसोई तथा मंदिर के ऊपर नहीं होना चाहिये।

दिन में उत्तर की ओर तथा रात्रि में दक्षिण की ओर मुख करके मल-मूत्र का त्याग नहीं करना चाहिये। पूर्व की ओर मुख करके भोजन करने से आयु बढ़ती है। दक्षिण की ओर मुख करके खाने से पे्रतत्व की प्राप्ति होती है। पष्चिम की ओर मुख करके खाने से मनुष्य रोगी होता है। उत्तर की ओर मुख करके खाने से आयु तथा धन की प्राप्ति होती है।

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