मन्नत प्राप्ति का जाग्रत केंद्र: भगवती स्थान
मन्नत प्राप्ति का जाग्रत केंद्र: भगवती स्थान

मन्नत प्राप्ति का जाग्रत केंद्र: भगवती स्थान  

राकेश कुमार सिन्हा ‘रवि’
व्यूस : 5125 | दिसम्बर 2016

सुंदर प्रकृति के मध्य नैसर्गिक सौंदर्य की लीला भूमि झारखंड प्रदेश का छोटानागपुर पठार के पश्चिम में युगों-युगों से आबाद पलामू चेरे (चेर) नामक आदिवासियों का मुख्य गढ़ रहा है जिसे पुराने जमाने में पालामऊ के नाम से अभिहित किया गया है। झारखंड के इसी पलामू प्रक्षेत्र का मुख्यालय डाॅल्टनगंज उत्तरी कोइल नदी के किनारे विराजमान है जो 1862 ई. में कर्नल डाॅल्टन के कार्यकाल में भारत के मानचित्र पर स्थापित हुआ और इसे 1892 ई. में जिले का दर्जा दे दिया गया।

आज का डाॅल्टनगंज झारखंड प्रांत का एक विकसित शहर है जहां नगर के अंदर कितने ही प्राचीन मठ, मंदिर, चर्च, मस्जिद व गुरुद्वारे विराजमान हैं। इनमें रेडमा चैक के सन्निकट विराजित भगवती स्थान की माता काली की महिमा अपरम्पार है। मां की कृपा से भक्तों के समस्त कार्य सहज व सरल रूप से पूर्ण होने के कारण यहां साल के सभी दिन खासकर दोनों नवरात्र व प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को भक्तों के आगमन से मेला लग जाता है। ऐतिहासिक परिचय ऐतिहासिक विवरण बताते हैं

कि 1641 ई. में शाइस्ता खां ने चेरांे पर आक्रमण कर दिया पर विजय प्राप्त नहीं कर सका। आगे 1660 ई. में दाऊद खां ने पूरे परिक्षेत्र पर कब्जा जमा लिया। 1771 ई. में चेर राजाओं व अंग्रेजी सेना के मध्य भीषण युद्ध हुआ जिसका नेतृत्व कैप्टन कामेक ने किया। इसी के बाद इस भू-क्षेत्र में अंग्रेजी राज ने अपने पांव पसारे फिर डाॅल्टन गंज को मुख्यालय बनने के बाद इस क्षेत्र में कितने ही देव स्थलों का स्थापन और विकास हुआ। इसमें भगवती स्थान भवन का निर्माण भले ही सत्तर वर्ष प्राचीन है पर यह स्थान इस क्षेत्र में सर्वाधिक प्राचीन पूजित बताया जाता है।

विवरण है कि महाकाली के इस बेहद छोटे तीर्थ को पास के छठू राम चंद्रवंशी की धर्मपत्नी ने वर्ष 1964 में निर्माण करवाकर 1965 ई. में यहां मां भगवती की प्राण-प्रतिष्ठा करवाई। बाद में 1978 ई. में इस मंदिर को स्थानीय पप्पू साहनी व भक्तों की कृपा से नवशृंगार प्रदान किया गया। तब से आज तक यह मंदिर डाॅल्टनगंज के नगरीय व ग्रामीण क्षेत्रों में आस्था व विश्वास का प्रधान केंद्र बना हुआ है। किंवदन्ती कहते हैं एक फक्कड़ साधू उस समय यहां निवासरत् थे जो माता काली के परम भक्त थे। मंदिर मंे प्रारंभिक साधना व पूजन का क्रम स्थापित कर बाद में वे कालीपीठ चले गए। करीब सात एकड़ से अधिक भूभाग में विस्तृत इस मंदिर के पुजारी पं. शिबुल त्रिपाठी बताते हैं


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कि चंद्रवंशी घराने की मातृकृपा का प्रतिफल यह मंदिर बड़ा ही फलप्रद है जहां से बंगाल प्रदेश के कितने ही भक्तों व साधकों का तार जुड़ा हुआ है। मुख्य राज मार्ग से करीब सात सीढ़ी उतर कर ठीक सामने के कक्ष के गर्भगृह में विराजित भगवती काली प्रत्येक आने-जाने वालों को निमंत्रण देते प्रतीत होती हैं जो ऊंचे पाठ पीठ पर चांदी के छत्र के नीचे शोभित हैं और ऊपर के शिखर का भाग अर्द्धगोलाकार है। काले रंग के कसौटी पत्थर की माता रानी चतुर्मुखी तत्व को समाहित किए चतुर्भुजी हैं जिनके मुखमंडल से भक्तिरस का सदा संचार होता रहता है। मंदिर के ठीक सामने बाएं तरफ शीतला माता व भैरव जी का छोटा देवालय स्थापित है

तो दाहिने तरफ बाल कृष्ण का मनोहारी रूप दर्शनीय है। यहां के कृष्ण की मूर्ति बड़ी आकर्षक है जहां श्री कृष्णाष्टमी को विशेष पूजन का आयोजन किया जाता है। द्वादश ज्योतिर्लिंग के लघु रूप आगे बगल में द्वादश ज्योतिर्लिंग का स्थान है जहां बारह विभिन्न आकार-प्रकार के शिवलिंग पूजित हैं। इस कक्ष के अंदर कुल 24 शिवलिंग व इतने ही त्रिशूल से किया गया शृंगार मंदिर को अन्य शिव मंदिरों से अलग करता है। जिस प्रकार द्वादश ज्योतिर्लिंग क्षेत्र में शिवलिंग विराजमान हैं कुछ वैसा ही रूप स्वरूप देने का प्रयास यहां किया गया है, जो रूचिकर व आकर्षक है। इसके ठीक बगल में आयताकार कक्ष के आगे ब्रह्म देव का स्थान पीपल पेड़ के नीचे है। पास में ही हवन कुंड देखा जा सकता है।

नवरात्रों में जुटती है भीड़ अपार किसी भी पर्व त्योहार में खासकर नवरात्र व देवी काली पूजा (दीपावली) पर इनका शृंगार देखने लोग दूर-दूर से आते हैं। इस मंदिर से यहां के लोगों की अपार निष्ठा व अटूट आस्था जुड़ी है। यही कारण है कि किसी भी शुभ कार्य में लोग सपरिवार यहां आकर देवी मां को भोग अर्पित करते हैं। कुछ बाहर के मिष्टान्न तो प्रायः घर में बने पूआ-पकवान व खीर से माता का भोग लगाते हैं। कैसे आएं झारखंड का नगर डाॅल्टनगंज सड़क व रेल दोनों मार्ग से जुड़ा है। यहां नई दिल्ली, हावड़ा, रांची, वाराणसी, गया, हजारीबाग, अंबिकापुर आदि से जाना एकदम सहज है।

यहां आने वाले भक्त पलामू राष्ट्रीय उद्यान बेतला जरूर जाना चाहते हैं जो यहां से 25 किमी. दूरी पर वन्य प्राणी अभ्यारण्य के रूप में पूरे देश में चर्चित है। वैसे यहां का मेदिनीराज का विशाल राज भवन, स्पन्नपुरी, संगमतीर्थ व नए जमाने का बना नेचर इंटरप्रिटेशन सेंटर और ‘फाॅरेस्ट म्यूजियम’ के साथ कितने ही जानवरों का प्रत्यक्ष साक्षात्कार का अपना अलग आनंद है। इसके साथ ही सुगा बांध जल प्रपात, मारू मांड़, कैड आदि के दर्शन भी यात्री अवश्य करते हैं जो प्रकृति का सुंदरतम् नजारा अहर्निश प्रस्तुत करता रहता है।

अद्भुत साधना कंेद्र भगवती स्थान मंदिर के बाहर ही पूजन सामग्री, हवन सामग्री व शृंगार प्रसाधन की छोटी-बड़ी दुकान हैं जहां से आप पूजा-पाठ से जुड़े समस्त चीज क्रय कर सकते हैं। मंदिर की दूसरी तरफ ‘उद्यान भवन’ है। यहां साधक बैठकर अपनी साधना व तपश्चर्या पूर्ण करते हैं।

निकट के अन्य पूजनीय स्थल इस प्रसिद्धि प्राप्त देवालय के साथ-साथ डाॅल्टनगंज नगर में उत्तरी कोइल के किनारे का प्राचीन शिव मंदिर, राम जानकी मंदिर, हीरा मंदिर, गायत्री मंदिर, 101 वर्ष पुराना दुर्गाबाड़ी व दुर्गा मंडल, 1936 ई. का श्री विष्णु मंदिर, छः रास्ते का देवी काली मां, सती मंदिर, शनि मंदिर, दुर्गा मंदिर व नव स्थापित सूर्य नारायण मंदिर आदि यहां के वार्षिक क्षितिज को शृंगारित करने में दमदार भूमिका का निर्वहन कर रहा है। अस्तु ! पलामू क्षेत्र में माता की प्रसिद्धि चहुंओर है। यह माता भगवती की कृपा का ही सुप्रभाव है कि यहां आने वाला सदा-सर्वदा के लिए माता जी का भक्त बन जाता है।


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