अकबर
अकबर

अकबर  

शरद त्रिपाठी
व्यूस : 5319 | दिसम्बर 2016

‘‘जैसे कवियों के बीच शेक्सपीयर का कोई सानी नहीं, वैसे ही राजाओं के बीच अकबर अतुलनीय हैं।’’ विसेंट ई. स्मिथ आज हम बात कर रहे हैं, हमीदा बानू और हुमायूं के बेटे जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर की। अकबर का जन्म अमरकोट (सिंध) के राणा वीरसाल के महल में हुआ था। उस समय उन्होंने अकबर की हिंदू पद्धति से कुंडली बनवाई थी। बड़े होने पर भी अकबर हिंदू रीति से बनी अपनी जन्मकुंडली पर विश्वास करता रहा। अकबर की कुंडली कर्क लग्न की है।

लग्नेश चंद्रमा धनेश सूर्य के नक्षत्र और भाग्येश तथा षष्ठेश बृहस्पति के उपनक्षत्र में होकर सप्तम भावस्थ है। नवांश कुंडली में लग्नेश शनि अपनी नीचस्थ राशि मेष में तृतीयस्थ है।

‘‘यस्मिन्त्राशै वर्तते खेचरस्तद्राशीनेन प्रेक्षितश्चेत्सः खेटः।

क्षोणेपालमं कीर्तिमन्तं विट्ध्यात् सुस्थानश्चेत्किं पुनः पार्थिवेन्द्र।।

फलदीपिका, सप्तम अध्याय, 27 श्लोक ग्रह जिस राशि में नीच का हो यदि उस नीच राशि का स्वामी नीच ग्रह को पूर्ण दृष्टि से देखे तो नीचभंग राजयोग होता है।

शनि मंगल की मेष राशि में तृतीयस्थ है और नवम भाव से मंगल की पूर्ण दृष्टि पड़ रही है जिस कारण उत्तम नीचभंग राजयोग बन रहा है। जन्म लग्नेश चंद्रमा धनेश व भाग्येश का शुभ प्रभाव लेकर लग्न को पूर्ण दृष्टि से देख रहे हैं और नवांश लग्नेश नीचभंग राजयोग को निर्मित करके कुंडली को बलवान बना रहे हैं। धनेश है सूर्य जो कि अपनी नीच राशि तुला में बैठे हैं।

‘‘यद्येको नीचगतस्तद्राश्यीदा पस्त दुचचप केन्द्रे।

यस्य स तु चक्रवर्ती समस्त भूपाल वन्धांध्रिः।। 27 ।।

फलदीपिका, सप्तम अध्याय, श्लोक 27 यदि ग्रह का नीचनाथ और उच्चनाथ दोनों परस्पर केंद्र में हों तो नीचभंग राजयोग निर्मित होता है। सूर्य के नीचनाथ शुक्र तृतीय भाव में और उच्चनाथ मंगल षष्ठ भाव में हैं। दोनों ही परस्पर केंद्र में हैं, जिस कारण नीच भंग राजयोग बन रहा है। अकबर का जन्म सूर्य की महादशा में हुआ और उसका उन्हें पूर्ण शुभ फल प्राप्त हुआ। उसके बाद प्रारंभ हुई लग्नेश चंद्रमा की महादशा।

चंद्रमा बैठे हैं धनेश सूर्य के नक्षत्र और भाग्येश बृहस्पति के उप नक्षत्र में। चंद्रमा पर भाग्येश बृहस्पति की पूर्ण दृष्टि भी है। लग्नेश पर भाग्येश की, वो भी बृहस्पति की दृष्टि का ही प्रभाव था कि अकबर धार्मिक गुणों से युक्त थे किंतु धार्मिक कट्टरता के विरोधी थे। अकबर ने मुस्लिम धर्म के साथ ही हिंदू व अन्य धर्मों को समान महत्व दिया। चंद्रमा सप्तम भाव में विराजमान है।

शायद यही कारण था कि अकबर का प्रथम विवाह मात्र नौ वर्ष की आयु में चंद्र दशा में हुआ। अकबर की कुंडली में एक विशेष बात है तृतीयेश व चतुर्थेश का स्थान परिवर्तन योग। चतुर्थ भाव माता का व तृतीय भाव चतुर्थ का व्यय भाव कहा जाता है। इसी कारण अकबर को मां जैसा दूध पर्याप्त मात्रा में न मिल सका। इसलिए धाय माताओं का प्रबंध किया गया था। सामान्यतया जन्म देने वाली मां ही अपने बच्चे को दूध पिलाती है और हर प्रकार से उसकी देखभाल करती है।


For Immediate Problem Solving and Queries, Talk to Astrologer Now


शायद चतुर्थेश व तृतीयेश के 2/12 के संबंध का ही प्रभाव था कि अकबर के जीवन में उनकी मां का पद लेने के अवसर कई महिलाओं को मिले। इन्हीं महिलाओं में एक नाम है माहम अनगा का जिन्होंने अकबर की बचपन से ही बहुत सेवा की और अकबर ने भी माहम अनगा को बहुत सम्मान दिया। चतुर्थेश शुक्र उत्तम नीच भंग राजयोग बना रहे हैं।

नीचेतिष्ठति यस्तदाश्रितगृहाधीशे विलग्नाद्यदा

चन्द्रादा यदि नीचगस्य विहगस्योच्यक्र्ष नायोऽथवा।

केन्द्रे तिष्ठति चेत्प्रपूर्ण विभवः स्याच्यक्रवर्ती नृपो।

धर्मिष्ठोऽन्यमहेश बन्दितपदस्ते जोदशोभाग्यवान।। 20।।

फलदीपिका, सप्तम अध्याय, श्लोक 29 यदि कोई ग्रह नीच राशि में हो तो

(क) इस नीचस्थ राशि का स्वामी अथवा

(ख) इस नीचस्थ ग्रह का उच्चनाथ दोनों में से एक भी चंद्र लग्न या जन्म लग्न से केंद्र में हो तो नीच भंग राजयोग होता है।

शुक्र के नीचनाथ बुध चतुर्थ भाव में हैं और चंद्रमा सप्तम भाव में है। अतः बुध लग्न व चंद्र दोनों से ही केंद्र में है। इस प्रकार लाभेश व सुखेश के नीच भंग राजयोग ने अकबर को भाग्येश बृहस्पति से युत होकर मुगल सल्तनत का बेताज बादशाह बना दिया। किंतु सुखेश का व्यय भाव में बैठना सभी सुखों के उपलब्ध होने पर भी जातक को सुख से वंचित रखता है। वैसा ही कुछ अकबर के साथ भी हुआ। उनका बचपन काफी उथल-पुथल से भरा हुआ था। चंद्रमा के बाद प्रारंभ हुई मंगल की महादशा।

मंगल की महादशा अकबर के पिता हुमायूं के लिए शुभ नहीं हुई। मंगल दशमेश व पंचमेश है। दशम भाव, नवम पितृ भाव का मारक भाव है। हुमायूं की एक दुर्घटना में असमय मृत्यु हो गई और मात्र 13 वर्ष की आयु में अकबर का राज्याभिषेक करके उन्हें शहंशाह बना दिया गया। उस समय उनके प्रधानमंत्री बने बैरम खां।

अल्पायु होने के कारण अकबर के व्यक्तित्व में जो अभाव था उसकी पूर्ति उसके संरक्षक ने पूरी कर दी। बैरम खां ने अपनी स्वामिभक्ति का पूर्ण उत्तरदायित्व निभाया। मंगल की 7 वर्ष की महादशा में अकबर ने बैरमखां के संरक्षण में दिल्ली और आगरा पर अधिकार कर लिया और अपने विजयी अभियान में प्रगति की। कर्मेश व पंचमेश मंगल कर्क लग्न में योगकारक होते हैं। मंगल दशम से नवम भाव में षष्ठस्थ हैं।

मंगल शुक्र जो कि लाभेश व सुखेश हैं, के नक्षत्र में और सप्तमेश व अष्टमेश शनि के उपनक्षत्र में हैं साथ ही मंगल, षड्बल में सर्वाधिक बली ग्रह भी है साथ ही उच्चाभिलाषी भी है। अकबर ने शत्रुओं को परास्त करके अपने साम्राज्य का बखूबी विस्तार किया। मंगल के बाद राहु की महादशा प्रारंभ हुई। राहु अपने ही नक्षत्र और सप्तमेश शनि के उपनक्षत्र में अष्टमस्थ है। सप्तमेश शनि पर राहु की पूर्ण दृष्टि है।

इस अवधि में अकबर के कई विवाह संपन्न हुए। अष्टम भाव ससुराल पक्ष का भाव है। राहु विजातीय विवाह के कारक हैं। अष्टमस्थ राहु का ही प्रभाव था कि अकबर ने इस समयावधि मंे अनेक हिंदू राजाओं की कन्याओं से विवाह किया।

अकबर की कई संतानंे असमय काल कवलित हो गई। पंचमेश मंगल अपने से द्वितीय मारक भाव में बैठे हैं और व्ययेश शुक्र के नक्षत्र और शनि के उपनक्षत्र में हैं। किंतु मंगल उच्चाभिलाषी और षड्बल में सर्वाधिक बली भी है जिसके परिणामस्वरूप 30 अगस्त 1569 को रानी हरखा बाई से एक पुत्र प्राप्ति हुई जिसका नाम सलीम रखा गया। एक अन्य रानी से पुत्री खानम का जन्म हुआ। उसके बाद 7 जून 1570 को शाहमुराद और 9 सितंबर 1572 को दनियाल ने मुगल वंश की अभिवृद्धि की। शाहमुराद और दनियाल की अल्पायु में अत्यधिक मदिरापान के कारण मृत्यु हो गई।


अपनी कुंडली में राजयोगों की जानकारी पाएं बृहत कुंडली रिपोर्ट में


मंगल राहु के बाद बृहस्पति की महादशा में अकबर ने मुगल साम्राज्य का खूब विस्तार किया। बृहस्पति कर्मेश मंगल के नक्षत्र और अपने ही उप नक्षत्र में है। बृहस्पति के बाद शनि की महादशा लगभग 1587 में प्रारंभ हुई। शनि अपनी उच्च राशि में चतुर्थ भाव में बैठे हैं और शश नामक महापुरूष योग बना रहे हैं। शनि भाग्येश बृहस्पति के नक्षत्र और अपने ही उपनक्षत्र में है। शनि की पूर्ण दृष्टि दशम भाव पर है और शनि व गुरु के नक्षत्रीय संबंधों का पूर्ण प्रभाव अकबर के विचारों पर भी पड़ा।

युवावस्था से ही अकबर को ईश्वर और मनुष्य के आपसी रहस्यात्मक संबंधों में दिलचस्पी थी। शनि की महादशा में अकबर ने कई अनसुलझे प्रश्नों के उत्तर ढूंढे़। अकबर ने विभिन्न धर्मों के विशेषज्ञों को राजमहल में बुलाकर धार्मिक चर्चा की जिससे उसके ज्ञान कोष में वृद्धि हुई। उसका दृष्टिकोण व्यापक व उदार हो गया। अकबर ने सभी धर्मों से उदारता की बातें ग्रहण की और संकीर्णता से प्रेरित बातों को त्याग दिया।

इसी ज्ञान के परिणामस्वरूप अकबर ने एक गोष्ठी गठित की जिसका नाम पड़ा ‘‘दीन-ए-इलाही’’। 16-10-1605 ई. को अकबर ने सदा के लिए आंखें मूंद लीं। दशा थी शनि/बृहस्पति। शनि सप्तमेश व अष्टमेश तथा बृहस्पति षष्ठेश हैं। बृहस्पति अष्टम से अष्टम तृतीय भाव में षष्ठ से षष्ठेश शुक्र से युत होकर विराजमान हैं।

गोचर में लग्नेश चंद्रमा वृश्चिक में नीच राशिस्थ, महादशा नाथ शनि धनु में षष्ठस्थ तथा अंतर्दशा नाथ बृहस्पति मकर राशि में सप्तमस्थ थे। शुक्र, सूर्य, बुध तुला में तथा मंगल सिंह में, केतु मीन व राहु कन्या में थे। अकबर ने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच का भेद कम करना चाहा था। वर्तमान युग को अकबर के उस सौहार्द की सबसे अधिक दरकार है।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.