पूर्व दिशा: इस दिशा का स्वामी ग्रह सूर्य है। पूर्व दिशा में दोष होने पर पिता व पुत्र के संबंध अच्छे नहीं रहते हैं। घर में किसी सदस्य की अल्पायु में मृत्यु होती है तो पूर्व दिशा में ही दोष है। सरकारी नौकरी व पद में परेशानी भी इसी दिशा में दोष के कारण होती है। परिवार के सदस्यों को नेत्र रोग, सिर दर्द, हृदय रोग, चर्म रोग व पीलिया जैसे रोग भी पूर्व दिशा में दोष के कारण होते हैं।
उपाय:
1. सूर्य को जल दें।
2. पूर्व दिशा में सूर्य यंत्र की स्थापना करें।
3. भारी अलमारी इस दिशा में न रखें। पश्चिम दिशा इस दिशा का स्वामी शनि ग्रह है। पश्चिम दिशा पूर्व से नीची हो, तो इस प्रकार के दोष पाये जाते हैं। पश्चिम दिशा में दोष होने से नौकरों से परेशानी व क्लेश रहता है। घर के टेलीफोन, टी. वी., रेफ्रिजरेटर या अन्य उपकरण बार-बार खराब हो जाते हैं। परिवार के सदस्यों को वायु-विकार, लकवा, चेचक, रीढ़ की हड्डी व पैरों में कष्ट हो सकते हैं।
उपाय:
1. शनि यंत्र की स्थापना पश्चिम दिशा में करें।
2. वरुण देवता की पूजा करें।
3. भारी अलमारी इस दिशा में रखें। उत्तर दिशा: इस दिशा का स्वामी बुध ग्रह है। अगर उत्तर दिशा दक्षिण दिशा से ऊंची हो तो लक्ष्मी अस्थिर रहती है। आय से अधिक व्यय होगा। व्यवसाय में हानि होगी। परिवार के सदस्यों को नींद ठीक नहीं आयेगी, गले के रोग हो सकते हैं, मिर्गी व नाक के रोग हो सकते हैं। वाणी भी दूषित हो सकती है।
उपाय:
1. श्री यंत्र या बुध यंत्र की उत्तर दिशा में स्थापना करें।
2. तुलसी को जल दें।
3. उत्तर दिशा को स्वच्छ रखें। दक्षिण दिशा: इस दिशा का स्वामी मंगल है। इस दिशा में दोष के कारण परिवार के सदस्य किसी भी कोर्ट कचहरी के मामलों में फंसे रहते हैं। भाईयों से परिवार के संबंध ठीक नहीं रहते हैं। परिवार के सदस्यों को रक्त विकार या कुष्ठ रोग हो सकता है। यदि दक्षिण दिशा उत्तर दिशा की तुलना में अधिक खुली हो तो उपरोक्त दोष हो सकते हैं।
उपाय:
1. दक्षिण दिशा में मंगल या हनुमान यंत्र लगायें।
2. इस दिशा को भारी रखें।
3. घर में अलमारी इस दिशा में रखें। उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) ईशान कोण का स्वामी गुरु है। इस दिशा में दोष होने पर पूजा में मन नहीं लगता, आय में कमी आती है, धन संग्रह नहीं हो पाता, बच्चों के विवाह में व नव-विवाहित को संतान प्राप्त होने में देरी हो जाती है। परिवार के सदस्यों को उदर-विकार, कान के रोग, कब्ज, अनिद्रा आदि से कष्ट हो सकता है।
उपाय:
1. गुरु यंत्र या सरस्वती यंत्र की स्थापना ईशान दिशा में करें।
2. इस दिशा को स्वच्छ व हल्का रखें।
3. पूजा घर भी इस दिशा में बना सकते हैं दक्षिण-पूर्व (आग्नेय) दिशा इस दिशा का स्वामी शुक्र है। इस कोण में दोष होने पर पति-पत्नी के संबंधों में कड़वाहट आ जाती है। प्रेम में सफलता नहीं मिलती है। वाहन ठीक नहीं रहते हैं। किरायेदारों से संबंध अच्छे नहीं रहते हैं, घर में बार-बार छोटी-मोटी आग लग जाती है। परिवार के सदस्यों को मधुमेह, हर्निया, भुज व धातु संबंधी रोग या गर्भाशय से संबंधित रोग हो सकते हैं।
उपाय:
1. इस दिशा में शुक्र यंत्र की स्थापना करें।
2. गुलाब का पौधा भी इस दिशा में लगाया जा सकता है।
3. घरेलू उपकरणों का रख-रखाव निरंतर रखें। दक्षिण-पश्चिम (नैर्ऋत्य) दिशा: इस दिशा के स्वामी राहु हैं। इस दिशा में दोष होने पर दादा व नाना पक्ष से परेशानी रहती है। इस कोण में जिसका वास होता है, घर में उसी की चलती है। अतः मास्टर बेडरूम इस दिशा में बनाना चाहिए। यह दिशा खुली या नीची हो तो घर मंे अक्सर चोरी होती रहती है। परिवार के सदस्यों को त्वचा रोग, रक्त विकार, मस्तिष्क रोग, चेचक, हैजा जैसी बीमारी हो सकती है।
उपाय:
1. इस दिशा में राहु यंत्र की स्थापना करें।
2. भूरे रंग के कुत्ते को बिस्कुट खिलायें।
3. इस दिशा में भारी सामान रखें। उत्तर-पश्चिम (वायव्य) दिशा इस दिशा के स्वामी चंद्र हैं। इस दिशा में दोष होने से माता से संबंध ठीक नहीं रहते हैं। कन्या के विवाह में भी विलंब हो सकता है। पड़ोसियों से झगड़े का कारण भी इस दिशा में दोष होता है। परिवार के सदस्यों को मानसिक परेशानी, अनिद्रा, सर्दी-जुकाम, मूत्र रोग, पथरी, निमोनिया आदि रोग हो सकते हैं।
उपाय:
1. चंद्र यंत्र या नव दुर्गा यंत्र की स्थापना इस दिशा में करें।
2. पंचमुखी रुद्राक्ष की माला पहनें।
3. माता से संबंध अच्छे बनायें। ब्रह्म स्थल: स्वयं ब्रह्मा ही इस स्थान के स्वामी हैं। घर का मध्य भाग ब्रह्म स्थान कहलाता है। इसके दूषित होने पर हर कार्य में रूकावट आती है। परिवार के सदस्य मानसिक दबाव महसूस करते हैं। सकारात्मक ऊर्जा की कमी रहती है। नकारात्मक ऊर्जा के कारण मन बोझिल रहता है।
उपाय:
1. पूर्व दिशा की दीवार पर वास्तु दोष निवारण यंत्र की स्थापना करें।
2. ब्रह्म स्थान को हल्का रखें।
3. घर में गायत्री मंत्र का जप रोजाना करें।
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