वास्तु शास्त्र एवं धर्म
वास्तु शास्त्र एवं धर्म

वास्तु शास्त्र एवं धर्म  

बाबुलाल शास्त्री
व्यूस : 5184 | दिसम्बर 2015

एक आर्किटेक्ट एक उत्तम भवन तो बना सकता है परंतु उसमें रहने वाले प्राणी के सुखी जीवन की गारंटी नहीं दे सकता। वास्तु विधा इस बात की गारंटी देती है। संसार में जितनी भी मानव सभ्यताएं है उनमें भवन निर्माण को एक सांसारिक कृत्य माना गया है जबकि भारत मंे भवन-निर्माण एक धार्मिक कृत्य है।

भारत में भवन निर्माण का हेतु पुरूषार्थ चतुष्टय की सिद्धि है। जब तक हम इस धार्मिक रहस्य को समझ नहीं पायेंगे तब तक वास्तु के रहस्य को कभी नहीं जान पायेंगे। यदि भवन निर्माण कला में से वास्तु विज्ञान को निकाल दिया जाय तो उसकी कीमत शून्य है।

यह केवल ईंट, पत्थर, लोहे, सीमेंट का ढेर है और कुछ भी नहीं। भवन निर्माण एक धार्मिक कृत्य है जिसमें पुरुषार्थ चातुष्टय की सिद्धि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के रहस्य को समझना भी आवश्यक है।

1. धर्म: व्यक्ति को धर्म लाभ होना चाहिये। भवन में निवास करने वाले प्राणी को आध्यात्मिक व आत्मिक सुख मिलना चाहिये। उसमें निवास करने वाले व्यक्ति को आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक त्रिविध दोषों से मुक्ति मिलनी चाहिये। भवन में निवास करने वाले प्राणी को देखते ही आम आदमी का सिर श्रद्धा एवं विश्वास से स्वतः ही उनके चरणांे में झुक जाना चाहिये। घर में कभी किसी से झगड़ा न हो, कलह न हो। नैसर्गिक वैर भाव न हो। प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों के आश्रम क्षेत्र में आते ही हिंसक प्राणी अपना नैसर्गिक वैर भाव भूल जाते थे। शेर व बकरी एक साथ, सांप व नेवला एक साथ बैठे होते थे। यह वास्तु के धार्मिक लाभ का प्रत्यक्ष उदाहरण है।

2. अर्थ: गृह प्रवेश के साथ ही धन बढ़ना चाहिये। व्यक्ति का स्तर ऊंचा उठना चाहिये। ऐसा नहीं हो कि व्यक्ति ने मकान बनाया और कर्ज में दबता चला गया। व्यक्ति आर्थिक रूप से दिवालिया हो जाये तो समझें भवन का वास्तु खराब है। इसके विपरीत उसके आय के स्रोत बढ़ने चाहिए, उसकी मार्केट वैल्यू, उसकी साख, उसकी प्रतिष्ठा में भारी वृद्धि होनी चाहिये तभी भवन निर्माण की सार्थकता है।

3. काम: व्यक्ति को पत्नी का पूर्ण सुख मिलना चाहिये। पुत्र-पौत्र की वृद्धि होनी चाहिये, उसके सुख, ऐश्वर्य एवं सांसारिक सुखों में वृद्धि होनी चाहिये। ऐसा न हो कि भवन बनाते ही घर में कुटुंब में कलह शुरू हो जाय, कोर्ट केस हो जाय। व्यक्ति मानसिक तनाव में जकड़ जाय तो समझें कि भवन का वास्तु खराब है। इसके विपरीत पत्नी, उसकी संतति, उसके कुटुंबी उसकी आज्ञा में रहंे, उसका आदर करें तभी भवन की सार्थकता है।

4. मोक्ष: उसे मोक्ष की प्राप्ति होनी चाहिये। सद्गृहस्थ की सद्व्यवहार के कारण सद्गति होनी चाहिये। वास्तु शास्त्र इन चारों सिद्धियों को प्राप्त करने में मनुष्य की सहायता करता है। इसलिये इसकी उपयोगिता अनिर्वचनीय है। धर्मानुसार यज्ञोपवीत का दृष्टांत ज्यादा उपयुक्त है। द्विज मात्र में यज्ञोपवीत संस्कार होता है। लाखांे-हजारों रुपये खर्च होते हैं। किंतु यज्ञोपवीत जीवन में एक बार ही होता है कहा भी है-

जन्मना जायते शुद्र, संस्कारात् द्विज उच्यते।

वेदपाठी भवेद् विप्रः ब्रह्मा जानाति ब्रह्ममाण।।

यज्ञोपवीत संस्कार से व्यक्ति का इस लोक में दूसरा जन्म होता है, उसको देवत्व की प्राप्ति होती है। यज्ञोपवीत में से यदि वह धार्मिकता निकाल दी जाय तो वह मात्र सूत का धागा है। अतः स्पष्ट है कि वास्तु भवन कला में से धार्मिक पक्ष को निकाल दिया जाय तो वह लोहे, सीमेंट के ढेर के अतिरिक्त कुछ नहीं, वह शून्य है।

जीवन में जरूरत है ज्योतिषीय मार्गदर्शन की? अभी बात करें फ्यूचर पॉइंट ज्योतिषियों से!



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.