दक्षिण-पूर्व दिशा के मकान/भूखंड यदि किसी भूखंड में पूर्व एवं दक्षिण की ओर सड़कें हों तो इसे दक्षिण-पूर्व खंड का मकान कहा जाता है। इस तरह के दक्षिण-पूर्व खंड के अनेक प्रकार होते हैं तथा इनमें से अध्किांश की चर्चा हम यहां पर करेंगे। दक्षिण-पूर्व कोने को अग्नि कोना अथवा आग्नेय कोण कहा जाता है। जिस भूखंड के पूर्व एवं दक्षिण में सड़कें हों उन्हें दक्षिण-पूर्व खंड कहा जाता है। सामान्यतः ऐसे खंड के मकानों में महिला सदस्यों एवं बच्चों पर तथा दूसरे संतान पर अध्कि प्रभाव रहता है।
दूसरे अन्य सभी खंडों में वास्तु के अनुसार सबसे कम ऊर्जा एवं क्षमता मानी जाती है। अग्नि अति शु( है, अपने संपर्क में आने वाले सभी चीजों को अग्नि शु( कर देती है। इसमें सभी चीजों को बर्बाद कर देने की भी ऊर्जा है। दक्षिण-पूर्व दिशा के स्वामी अग्नि देव हैं तथा ये सबसे शक्तिशाली हैं।
ये आसानी से क्रोध्ति हो जाते हैं तथा कम समय में ही अच्छा या बुरा परिणाम दे देते हैं। गांव अथवा शहर के दक्षिण-पूर्व हिस्से के लोग आर्थिक एवं शारीरिक रूप से दूसरे खंडों में रहने वाले लोगों की तुलना में पिछड़े हुए होते हैं तथा इनका स्वास्थ्य खराब रहता है तथा आर्थिक एवं सामाजिक रूप से भी ये कष्ट का अनुभव करते हैं।
किंतु यदि इन बातों पर ध्यान न देकर दक्षिण-पूर्व खंड का निर्माण भी वास्तु के नियमों का पालन करते हुए किया जाय तथा इसमें आवश्यक संशोध्न करके मकान का निर्माण किया जाय तो ये भी अच्छे पफल देने में सक्षम हैं। यदि दक्षिण-पूर्व खंड में कई मकानें हों तो उस खंड के पूर्वी हिस्से का मकान छोटा होना चाहिए। अतः यहां द्वार दक्षिणी दक्षिण-पूर्व में होना आवश्यक हो जाता है यद्यपि कि इसके अतिरिक्त एक द्वार पूर्व दिशा में भी हो सकता है।
आवागमन के लिए दक्षिणी दक्षिण-पूर्व के द्वार का उपयोग अध्कि होना चाहिए। हालांकि दक्षिण-पूर्व खंड में निर्माण से पूर्व अनेक सावधनियां बरतनी आवश्यक हैं तभी इससे अच्छे परिणाम लिये जा सकते हैं। दक्षिण-पश्चिम दिशा के मकान/भूखंड दक्षिण-पश्चिम दिशा को नैर्ऋत्य कोण भी कहा जाता है।
इस दिशा की ओर अध्कि सावधनी एवं सतर्कता बरतने की आवश्यकता है, इसकी अवहेलना बिल्कुल नहीं करनी चाहिए क्योंकि थोड़े समय में ही यह पूरी जिंदगी को बदलकर रख सकता है। आगे चित्रा में किसी बड़े भूखंड का दक्षिण-पश्चिम खंड है। इस भूखंड के दक्षिण एवं पश्चिम में सड़कें हैं इसलिए इस भूखंड को दक्षिण-पश्चिम भूखंड कहा गया।
कुछ भूखंड में कुछ गुण मौजूद नहीं होते, हम आगे अनेक बातों की चर्चा करेंगे। यह अति महत्वपूर्ण एवं शक्तिशाली दिशा है। यहां ध्यान दीजिए कि सात दिशाओं का अध्पिति सात देवताओं को बनाया गया है जबकि इस दिशा का अध्पिति एक राक्षस है।
यह इस दिशा के महत्व एवं महानता को दर्शाता है। इस दिशा में किसी प्रकार का दोष दूसरे दिशाओं की तुलना में कापफी तेजी से अनहोनी एवं अवांछित घटनाएं लायेगा। इस दिशा के अधिपति नैर्ऋति हैं ये असुरों के भी देवता हैं। ये दूसरे अध्पितियों की तुलना में अध्कि शक्तिशाली हैं तथा निवासियों को अच्छे अथवा बुरे परिणाम कापफी तेजी से प्रदान करते हैं।
चूंकि ये एक असुर हैं अतः ये आसानी से क्रोध्ति हो जाते हैं तथा दुश्मनों को क्षणभर में नेस्तनाबूद कर देते हैं। ये अच्छा अथवा बुरा परिणाम पल भर में दे देते हैं जिसका किसी के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इनका चरित्रा लालची, हठी, वर्चस्वशाली, क्रूर इत्यादि है, अतः हमें इस दिशा को सावधनी से संभालना चाहिए।
शास्त्रों में कहा गया है कि इनके एक मुख तथा दो भुजाएं हैं। इनके दाएं हाथ में एक तलवार एवं बाएं हाथ में एक बड़ा ढाल है। यह प्रदर्शित करता ै कि ये हमेशा लड़ाई के लिए तथा दुश्मनों के विनाश के लिए तत्पर रहते हैं। इनकी देवी अथवा पत्नी कलिका हैं। अपने आवागमन के लिए इनकी सवारी एक मनुष्य है। ये कच्चा मांस खाते हैं तथा जीवों के खून पीते हैं।
यदि यह दिशा दोषपूर्ण होता है तो ये निवासियों को कापफी हानि पहुंचाते हैं। इस दिशा में किसी प्रकार की वृ(ि अथवा अध्कि खुला स्थान नहीं होना चाहिए। इस दिशा में कोई भी कुआं, गड्ढा अथवा तालाब नहीं होना चाहिए। ऐसा होने से निवासियों पर इसका प्रभाव कापफी घातक पड़ता है। इससे आत्मसम्मान एवं ध्न की हानि होती है तथा आत्महत्या की प्रवृत्ति होती है।
दक्षिण-पश्चिम दिशा में दोष के कारण ड्रग लेने की आदत, शराब की लत, जुआ खेलने की लत आदि तथा परिवार का पूर्ण विनाश हो जाता है। पुरुषों का चरित्रा खराब हो जाता है। इन्हें घातक बीमारियां जैसे कैन्सर, टीबी., एड्स इत्यादि हो जाते हैं। जो लोग इस प्रकार के मकान में निवास करते हैं उनके अनेक शत्राु होते हैं।
इनके शत्राु कापफी सक्रिय रहते हैं। यदि इस दिशा में वृ(ि रहती है तो घर की लड़कियां मर्यादा का उल्लंघन कर सकती हैं तथा घर से भाग सकती हैं। उनका सतीत्व खतरे में पड़ सकता है। पुरुष रखैलों के चक्कर में पड़ सकते हैं। गलत लोगों का साहचर्य छोड़े नहीं छूटता। यह दिशा किसी भी तरह से कटा हुआ अथवा बढ़ा हुआ नहीं होना चाहिए। इस दिशा में सेप्टिक टैंक अथवा वाटर टैंक आदि नहीं होना चाहिए। इसका भी कापफी घातक परिणाम होता है। इस ओर से बहने वाली वायु निवासियों को अनेक रोग प्रदान करती है।
अतः इस दिशा को जितना संभव हो सके बंद कर देना चाहिए। इस दिशा में निर्माण के द्वारा इसको बंद करना चाहिए। सभी दिशाओं से इस दिशा की ऊंचाई अध्कि रखनी चाहिए। यदि इस दिशा का सही उपयोग किया जाता है तो इससे शत्राुओं पर विजय प्राप्त होती है, ध्न, यश आदि में अचानक एवं कम समय में ही वृ(ि होती है।
इसे राक्षसों का कोना भी कहा जाता है क्योंकि लड़कियों का चरित्रा भी इस दिशा से निर्मित होता है। दक्षिण-पश्चिम कोने पर निर्माण उत्तर-पूर्व एवं दक्षिण-पूर्व के साथ लंबवत् करना चाहिए तथा इस कोने पर अध्कितम भार डालना चाहिए। इससे ध्न एवं स्वास्थ्य में कामध्ेनु गाय की तरह वृ(ि होगी।
यदि भूखंड के दक्षिण एवं पश्चिम दिशा में सड़कें हों तो इसे दक्षिण-पश्चिम भूखंड/मकान/पफैक्ट्री/ कोना कहा जाएगा। किसी बड़े भूखंड के पश्चिम एवं उत्तर दिशा में सड़कें हों तो वह उत्तर-पश्चिम खंड कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि यदि उचित उत्तर-पूर्व जन्म देता है तो अनुचित दक्षिण-पश्चिम मृत्यु देता है। दक्षिण-पश्चिम खंड का गृह स्वामी, उसकी पत्नी एवं सबसे बड़े बेटे पर सर्वाध्कि प्रभाव पड़ता है।
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