सत्यभामा, गरुड़, सुदर्शन चक्र का किया गर्व भंग
सत्यभामा, गरुड़, सुदर्शन चक्र का किया गर्व भंग

सत्यभामा, गरुड़, सुदर्शन चक्र का किया गर्व भंग  

बाबुलाल शास्त्री
व्यूस : 5118 | आगस्त 2016

भगवान विष्णु जगत के पालक हैं, जब भी भूलोक में नकारात्मक शक्तियां उत्पन्न होकर भक्तों को कष्ट देती हैं, तब उनके नाश के लिए श्री हरी अपनी योग माया शेषनाग के साथ अवतार लेते हैं व सहायक के रूप में गरूड़ और सुदर्शन चक्र सदैव विद्यमान रहते हैं। भगवान विष्णु ने जितने भी अवतार लिये हैं वे सभी किसी एक चरित्र अथवा भूमिका में बंधे हुये रहे जैसे भगवान श्री राम मर्यादा पुरूषोत्तम कहलाये। किंतु श्री कृष्ण का चरित्र ऐसा है जो किसी भूमिका या लीला में नहीं बांधा जा सकता।

भगवान श्री कृष्ण एक श्रेष्ठ योद्ध ा, सौंदर्य की प्रतिमूर्ति,श्रेष्ठ राजनीतिज्ञ, प्रेमपूर्ति उपदेशक सखा, सारथी न जाने कितने गुणों से पहचाने गये। श्री कृष्ण स्वभाव से ही गर्वहारी रहे, अपने भक्तों व आश्रितों में तो अभिमान की गंदगी नहीं आने दी। एक बार श्री कृष्ण को सत्यभामा, गरुड़, सुदर्शन चक्र में गर्व होने का अहसास हुआ। कृष्ण ने गर्व भंग करने के लिए एक दिन गरुड़ को आज्ञा दी कि तुम गंधमादन पर जाकर श्री हनुमान जी को ले जाओ, उनसे कहना कि उनके आराध्य ने बुलाया। गरुड़ के जाते ही चक्र को आज्ञा दी कि तुम द्वार पर रहो तथा किसी को भी अंदर मत आने देना। सत्यभामा से कहा कि महारानी रूक्मिणी से कहो कि वो श्री जानकी का रूप बनाकर मेरे समीप बैठें। मैने पवन पुत्र को बुलाया है जिसके सामने मुझे भी श्री राम का रूप धारण करना है। सत्यभामा ने कहा ‘‘क्या मैं सीता से कम सुंदर हूँ, उसके समान वस्त्राभूषण ही तो बदलने हैं। ये मैं अभी किये देती हूँ।’’ श्री कृष्ण ने हंसकर कहा यह तुम जानो।

गरुड़ जी गंधमादन पर पहुंचे तो हनुमान जी श्री राम भक्ति में तल्लीन थे। गरुड़ जी ने हनुमान जी से कहा द्वारिका चलिये आपके आराध्य ने बुलाया है। मेरी पीठ पर बैठ जाइये, मुझे साथ ले जाने की आज्ञा है। हनुमान जी ने कहा आप चलो मैं आपके पहले पहुंच जाउंगा। गरूड़ ने सगर्व कहा आपको मेरे वेग की कल्पना भी नहीं है। मेरी गति आपके पिता वायुदेव से भी तेज है। मेरी गति की त्रिभुवन में कोई तुलना नहीं है। मेरी शक्ति अतुलनीय है, सुर-असुर मिलकर भी मेरे पराक्रम के समान नहीं हो पाते। आप नहीं चलेंगे तो मुझे बलपूर्वक ले जाना पड़ेगा, तब हनुमान जी को समझने में देर नहीं लगी कि उनके पास उनके आराध्य प्रभु ने क्यों गरुड़ को उनके पास भेजा है।

उन्होंने गरुड़ की पूंछ पकड़ी और घुमाकर उन्हें फेंक दिया। गरुड़ जी तीव्र वेग से फेंके जाने के कारण द्वारिका के पास समुद्र में गिरे एवं गहराई में डूबते चले गये। हनुमान जी भी द्वारिका के लिए रवाना हुये। द्वारिका भवन के बहिद्वार पर पहुंचे तो सुदर्शन चक्र ने उन्हें अंदर प्रवेश के लिए रोक दिया और कहा कि किसी को भी अंदर जाने की आज्ञा नहीं है। हनुमान जी ने कहा मुझे त्रेता युग में श्री राम के द्वारा दशग्रीव -विजय के अवसर पर अयोध्या आने पर प्रभु ने कहा था कि हनुमान तुम्हारे लिये अंतःपुर के एकांत में भी आने में कोई अवरोध किसी भी समय नहीं है। सुदर्शन चक्र ने क्रोधित होकर कहा त्रेता में किसी वानर को दी गई अनुमति को मैं मानने के लिए बाध्य नहीं हूं।

हनुमान जी तो गरुड़ जी के मिलते ही समझ गये थे कि उनके स्वामी आज क्या लीला कर रहे हैं, जिन्होंने बाल्यकाल में सूर्यदेव को मुख में रख लिया था उन्हें सुदर्शन चक्र की ज्वाला की क्या चिंता होगी। सुदर्शन चक्र को उन्हांेने उठाकर मुख के अंदर बायंे गाल में दबा लिया तथा भवन में प्रवेश किया जहां सिंहासन पर द्विभुज दंडधारी बने श्री कृष्ण आसीन थे। हनुमान जी ने प्रभु को दंडवत प्रणाम किया। श्री कृष्ण ने बड़े स्नेह से उठाया तब हनुमान जी चरणों के समीप ऐसे बैठ गये जैसे अयोध्या के सिंहासन के समीप ही बैठे हों। सत्यभामा को प्रभु के समीप बैठे देखकर हनुमान जी ने सिर झुकाये हुए कहा कि आज मां अंबा के दर्शन नहीं हुये। प्रभु सर्व समर्थ हैं किंतु उनके स्थान पर आज किसी दासी को स्थान देकर प्रभु ने सत्कृत किया है।

यह सुनकर सत्यभामा का मुख लज्जा से लाल हो गया और वे उठकर अंदर चली गईं। रूक्मिणी जी को जाकर कहा कि बहिन तुम ही जाओ तुम्हारा पुत्र वानर आया है, मुझे दासी ही समझता है। सत्यभामा जी रो पड़ीं। रूक्मिणी जी आईं तो हनुमान जी ने उठकर उनके पाद पद्मों में मस्तक धर दिया तथा वंदना की। श्री कृष्ण ने हनुमान से पूछा तुम्हंे किसी ने रोका तो नहीं। श्री मारूति ने कहा द्वार पर एक खिलौना मिल गया था। तब सुदर्शन चक्र को मुख से बाहर निकाल कर छोड़ दिया और कहा कि इसको इतना पता नहीं कि मुझे आपने श्री चरणों में पहुंचने की अबाध अनुमति दे रखी है। उसी समय गरूड़ जी समुद्र जल से भीगे आये। उनको देखकर हनुमंत ने कहा कि आप ने इस दुर्बल मंद गति पक्षी को वाहन बना लिया यह तो धृष्ट हो गया है, जब कभी शीघ्र गमन आवश्यक हो तो इस सेवक को स्मरण कर लिया करें। रूक्मिणी जी ने कहा कि हनुमान तुम्हें देखने की बहुत इच्छा थी।

माता को स्नेह भाजन सुत को देखने की इच्छा हो, प्रभु ने हनुमान जी को क्यों बुलाया यह गरुड़ जी, सुदर्शन चक्र व सत्यभामा जी की समझ में आया एवं समझ लिया कि शक्ति गति सौंदर्य सद्गुण के नित्यधाम तो श्री द्वारिकाधीश ही हैं जिस पर वो कृपा करें वही इनसे संपन्न रहता है। इस प्रकार इन तीनों का श्री कृष्ण ने गर्व भंग किया।



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