ज्योतिष भविष्य का दर्पण
ज्योतिष भविष्य का दर्पण

ज्योतिष भविष्य का दर्पण  

बाबुलाल शास्त्री
व्यूस : 11190 | अप्रैल 2010

संसार के सभी कार्य किरणों पर आधारित हैं। आज के वैज्ञानिक युग में साइंस ने सिद्ध कर दिया है कि किरणों ही सब कुछ है। टी.वी. रिमोट कंट्रोल, वायरलेस, रेडियों, टेलीफोन आदि के पीछे किरणों की प्रक्रिया छिपी है। जैसे हम एक खास जगह को पकड़ने के लिए एक खास किरण का बटन दबाते हैं। जिससे ध्वनि का संचार होकर क्रियान्विति होती है। ठीक उसी तरह नाक्षाक्षर का भी यही कार्य है, आकाश मंडल में सभी नक्षत्र राशियों एवं ग्रह विद्यमान हैं। हर राशि एवं नाम के अक्षर नक्षत्रों एवं ग्रह की खास ध्वनि से जुड़े होते हैं। हमारे मुंह से शबद निकलने पर एक खास किरण निकलकर आकाश के वातावरण में जुड़ जाती है। जिहस पर नक्षत्र एवं ग्रह अपने-अपने गुणो की अलग-अलग विशेषता रखते हुए उन्हीं गुणों एवं दोषों का अच्छा एवं बुरा प्रभाव डालते हैं।

प्रत्येक वस्तु पर समय द्वरा ब्रह्मांड का प्रभाव पाया जाता है। अतः वस्तु का स्वरूप ब्रह्मांड के अनुरूप ही होता है। तभी तो यतिपिन्डे तद् ब्रह्मांडे का सिद्धांत ज्योतिष एवं अध्यात्क दोनों द्वारा स्वीकृत हुआ है। ज्योतिष शास्त्र मौलिक सिद्धांत यह है कि कोई भी वस्तु चाहे वह स्थावर हो अथवा जगम इस विस्तृत ब्रह्मांड में जहां जिन शक्ति के अनुरूप दूसरे पदार्थों पर अपना प्रभाव डाल रही है। वहां वह स्वयं भी अन्य वस्तुओं से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकती है। जब कोई जीव माता के उदर से बाहर आता है, उसी क्षण ब्रह्मांड के प्रभाव की छाया उस जीव पर पड़ जाती है। उस अवधि में जातक अपने व्यक्तित्व में वही गुण-दोष पता है जो ब्रह्मांड के ग्रहों से प्रभावित हुए हैं। वे गुण उस जातक के जीवन में नेगेटिव फिल्म की तरह रहेंगे और अनुकूल समय पर पाॅजेटिव में प्रकट होकर अपना प्रभाव प्रकट करेंगे।

ज्योतिष शास्त्र यानि फलित ज्योतिष का विषय यदापि बहुत गंभर एवं विस्तृत तकनीकि है। आज का मानव अर्थ के पीछे दौड़ रहा है। एवं भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए प्रयत्यनशील है। अतः वर्तमान समय की जानकारी से अनभिज्ञ है। जन्म समय की कुंडली जीवनमयी एक्स-रे की काॅपी है जिससे वह ज्ञात हो सकता है कि जीवन में क्या घटित होगा? क्या अवधि होगी? जातक को सचेत होकर आने वाली घटनाओं से सतर्क एवं संघर्ष करने की जानकारी मिल सकती है। जैसे डाॅक्टर को पता होता है कि मरीज की हालत गंभीर है फिर भी वह अंतिम क्षण तक इलाज करने में प्रयत्नशील रहता है। उसी प्रकार मानव अपने जीवन में अंतिक्ष तक प्रयास करता है। कोई व्यक्ति रेल के नीचे जाक मरने का प्रयास करता है तो दूसरा उसको खींच कर बचा लेता है।

जिंदगी का एक क्षण ही मौत एवं जिंदगी का होता है। मानव के साथ घटनाएं घटित होने के बाद ही उत्सुकता रहती है कि भविष्य में क्या होगा? अतः ज्योतिष भविष्य का दर्पण है जिसमें घटित होने वाली घटनाओं एवं विकास का शुभ-अशुभ योग प्रदर्शित होताह ै। जब सब कुछ इंसान के जीवन में लिखा है। जो कुछ होताह ै ग्रहों के कारण होता है। अगर यही बात है तो भाग्य को क्यों कौसा जाता है? इंसान इधर-उधर क्यों भटकता है? इसके लिए ईश्वर इतना ही कहते हैं कि कारण भी मैं हूं कर्ता भी में हूं। कर्म के अनुसार मैंने मानव को अधिकार दिए हैं जो ग्रहों के अनुसार प्रभावित करते हैं एवं नियमोनुसार उनके प्रभाव से मैं भी ग्रसित रहता हूं। मानव के जीवन के सभी पहलू महत्वपूर्ण होते हैं।

स्वास्थ्य व्यक्तित्व परिवार शिक्षा व्यवसाय सभी कुछ जीवन से जुड़ा है किंतु विवाह एवं आय भी जीवन के महत्वपूर्ण अंग हैं। जीव-जंतु जड़-जगम, पशु-पक्षी सभी में विकास प्रक्रिया स्वभाव से ही कायम रहती है पर मानव के विकास में स्त्री-पुरुष का चयन करना पड़ता है। उसके साथ सामाजिक नियम एवं बंधन जुड़े हुए हैं। मानव अनभिज्ञ होते हुए संघर्षमयी रहता है। अगर वास्तविकता की जानकारी हो तो सही कदम उठाते हुए मानव प्रत्यनशील रहे एवं ग्रहों की विपरीत दशा में ग्रहों की शांति पाठ जप कराकर डाॅक्टर रूपरी इलाज करें जिससे पीड़ा का निवारण हो सके। उदाहरण के तौर पर एक जातिका की जन्म कुंडली अनुसार शादी 40 वर्ष की उम्र होने के बाद भी नहीं हो सकी एवं कुटुंब भी नहीं बसा पाई, स्वयं का परिवार भी ग्रसित रहा।

कुंडली अनुसार- लग्न-मिथुन राशि मंगल स्थित द्वितीय कुटुंब भाव-सूर्य स्थित तृतीय पराक्रम भाव-केतु शुक्र स्थित। चतुर्थ मातृ भाव-शनि स्थिति कुटुंब भाव-बुध स्थित नवम् भाग्य भाव-चंद्र राहु स्थित दशम कर्म भाव-गुरु स्थित। सप्तमेश गुरु दशम भाव मीन राशि में स्वग्रही है एवं लाभेश शनि मंगल केंद्रीय प्रभाव में हैं। किंतु फिर भी विवाह नहीं हो पाया एवं स्वयं का घर या कुटंुब भी नहीं बसा। कुंडली अनुसार कारण सामने है। द्वितीय कुटुंब भाव का स्वामी एवं मात कारक चंद्र सिंह राशि में किसी स्त्री के श्राप का घोतम है। चतुर्थ मातृभाव में शनि की उपस्थिति एंव मंगल की चतुर्थ दृष्टि माता को कष्ट एवं त्याग दर्शा रही है। तृतीयेश एवं पिता कारक सूर्य केतू व शुक्र के मलीन प्रभाव को लेकर कुटुंब भाव में स्त्री के अभिशाप को जाता रहा है।

एवं पिता को पीड़ा दे रहा है राहु की पंचम भाव पर नवी दृष्टि है एवं केतु की लाभ पर नवी दृष्टि पड़ रही है अतः यह योग बड़ी बहन एवं छोटी बहन को घेरे हुए है। जातिका के माता से व पिता से ही बाधा चली आ रही है। व संतान पर भी भाव प्रकट होते हैं। जन्म समय उक्त बाधाओं की जानकारी होने पर गृह शांति स्त्री श्राप दोष पीड़ा दोश निवारण के (जिस प्रकार चिकित्सक द्वाररा मरीज के रेाग का निदान होता सब्जी की भगुनी की भाव ढक्कन से ढकने पर उसका ताप कम होता है उसी प्रकार) उपाय एवं उपचार कराने शुभ फल की प्राप्ति होती है। विवाह दांपत्य सुख का कारक गुरु स्वग्रही होने से व लग्नेश बुध पर गुरु की जो पंचम दृष्टि पड़ रही है के योग से विवाह योग पक्ष निर्बल न होकर सबल होता है किंतु शनि की सप्तम दृष्टि व मंगल का केंद्रीय अशुभ प्रभाव है व सप्तम भाव पर मंगल की दृष्टि है, मानव को जीवन में कुछ प्राप्त करने के कलिए कुछ खोना पड़ता है।

जिसके लिए सर्वप्रािम है अर्थ का त्याग। अर्थ त्योग से जीवन में सभी कुद प्राप्त होना संभव है किंतु मानव विकास का आधार समय काल चक्र एवं योग है। जन्म समय से घटित समय जो गुजर गया वो जीवन में पुन‘ लौटकर नहीं आता अतः समय का प्रत्येक क्षण अमूल्य है। वह अपने फल का शुभ अशुभ योग उसकी दशा महादशा में व भावांे में दैनिक गोचर अनुसार देते हैं। सौभाग्य एवं समृद्धि के लिए शक्ति ऊर्जा प्रदान कर आकर्षित करती है, उसके लिए वायु, जल, अग्रि, काष्ठ एवं पृथ्वी का उŸाम सामजस्य आवश्यक है। वासतु जीवन जीने का कार्य स्थल है। जिसका संबंध ग्रह नक्षत्रों एवं धर्म से होता है। पुराणों में वास्तु देव पूजा निर्माण समय नियमो की पालन वास्तु दोष निवारण करने का उल्लेख है। यंत्र उनका बाह्य स्वरूप शरीर है। जिनमें प्राण प्रतिष्ट एवं सिद्ध यंत्रों की स्थापना से लाभ मिलता है, यंत्र धारण्ण में नियमों एवं संयम का पालन आवश्यक है।



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