आज के दौर में होटल एवं रेस्तरां लोगों के लिए आराम, बदलाव एवं मनोरंजन के केंद्र स्थल बन गए हैं। वी. आई. पी ही नहीं अपितु हर वर्ग एवं आयु के लोग होटल एवं रेस्तरां में जाना पसंद करने लगे हैं तथा उनकी यह इच्छा होती है कि वहां उनका स्टे सुखद एवं आनंददायक साबित हो। कुछ बड़े होटलों में काफी खुशनुमा माहौल परिलक्षित होता है तथा वे काफी अच्छा व्यवसाय एवं लाभ कमाने में सक्षम होते हैं।
किंतु उसी स्तर के अन्य होटल अच्छा व्यवसाय नहीं कर पाते तथा असफल एवं घाटा उठाने वाले होटल साबित होते हैं। ऐसी स्थिति में बाध्य होकर इन होटलों को बंद करना पड़ता है अथवा उनके मालिक ऋणग्रस्तता के शिकार हो जाते हैं। ऐसी स्थिति वास्तु दोष के कारण उत्पन्न होती है। अतः यह अनिवार्य है कि होटल निर्माण से पूर्व वास्तु सलाह ली जाय तथा वास्तु सिद्धांतों के अनुरूप निर्माण कार्य किया जाय।
होटल यदि घाटे में चल रहा होता है तो लोग सोचते हैं कि इसका कारण व्यवस्था में गड़बड़ी अथवा देखरेख एवं मेन्टेनेंस में कमी है। किंतु इसका प्रमुख कारण वास्तु दोष भी हो सकता है। अतः निर्माण से पूर्व वास्तु सलाह लेकर नक्शा बनवाएं ताकि निर्माण किए जाने वाले कमरे, किचन, काॅरीडोर, खुले स्थान, स्विमिंग पूल, फंक्शन हाॅल, रिसेप्शन, स्टाॅक रूम एवं सेमीनार हाॅल आदि उचित एवं वास्तु सम्मत स्थान पर बनें।
यदि इन निर्देशों का सही-सही पालन किया जाय तो होटल निश्चित रूप से सफल व्यवसाय करेगा तथा आगन्तुकों के लिए स्वर्ग के समान साबित होगा। मुख्य प्रवेश द्वार किसी भी होटल के मुख्य प्रवेश द्वार का महत्व शरीर में हृदय की भांति है। प्रवेश द्वार के निर्माण में सावधानी बरतने की आवश्यकता है। अनेक मेहमान होटल में प्रवेश के पूर्व मुख्य द्वार को देखते हैं तब निश्चित करते हैं कि अंदर जाना है अथवा नहीं। अतः होटल मैनेजमेंट मुख्य प्रवेश द्वार को काफी सजाकर प्रदर्शनीय बनाती है।
मुख्य प्रवेश द्वार 81 पद ग्रिड में से अनुशंसित ग्रिड के अनुसार ही बनाना चाहिए। ग्रिड में से भी उत्तर तथा पूर्व की ओर मुख्य प्रवेश द्वार बनाना अधिक प्रचलित एवं अनुशंसित है। वास्तु सिद्धांतों के अनुरूप होटल निर्माण के लिए निम्नलिखित आवश्यक एवं महत्वपूर्ण तथ्यों पर ध्यान देना आवश्यक है:
1. मुख्य भवन: होटल के मुख्य भवन का निर्माण दक्षिण-पश्चिम (नैर्ऋत्य) कोण में करना चाहिए तथा पूर्व एवं उत्तर दिशा में अत्यधिक खाली स्थान छोड़ना चाहिए।
2. भारी सामान: भारी वजन वाले सामानों का स्टोरेज दक्षिण-पश्चिम (नैर्ऋत्य) हिस्से में करना चाहिए।
3. किचन: होटल में किचन का निर्माण दक्षिण-पूर्व (आग्नेय) हिस्से में करना चाहिए। विकल्प के तौर पर उत्तर-पश्चिम (वायव्य) हिस्से में भी किचन का निर्माण कर सकते हैं।
4. लाॅन, स्विमिंग पूल, फ्लावर बेड: उत्तर-पूर्व (ईशान्य) कोण में किसी भी प्रकार का भारी निर्माण वास्तु के दृष्टिकोण से निषिद्ध है। इस कोण में अथवा उत्तर या पूर्व दिशा में लाॅन, स्विमिंग पूल तथा फ्लावर बेड का निर्माण तथा अन्य जल से संबंधित गतिविधियां वास्तु के दृष्टिकोण से सुख-समृद्धि बढ़ाने वाली मानी जाती हंै।
5. बड़े वृक्ष: बड़े एवं भारी वृक्ष संपूर्ण दक्षिण-पश्चिम (नैर्ऋत्य), दक्षिण एवं पश्चिम क्षेत्रों में लगाये जा सकते हैं। आस-पास के क्षेत्रों का अवलोकन करने के उपरांत यदि आवश्यकता हो तो उत्तर-पश्चिम (वायव्य) एवं दक्षिण-पूर्व (आग्नेय) कोने पर भी उपयुक्त वृक्ष लगाये जा सकते हैं। हरियाली भी ग्राहकों को आकर्षित करती है। इसलिए हरियाली की उचित देखभाल के लिए आजकल बड़े होटलों में अलग से कर्मचारी रखे जाते हैं।
6. कमरों के दरवाजे: होटल के कमरों के दरवाजे वास्तु सिद्धांतों के अनुरूप पूर्व, पश्चिम, उत्तर-पूर्व-उत्तर, दक्षिण-पूर्व-दक्षिण, उत्तर-पश्चिम-पश्चिम दिशाओं में श्रेष्ठ माने जाते हैं।
7. स्विमिंग पूल: स्विमिंग पूल के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान उत्तर-पूर्व, उत्तर अथवा पूर्व है। किसी भी परिस्थिति में स्विमिंग पूल पश्चिम, दक्षिण एवं दक्षिण-पश्चिम में नहीं होना चाहिए। ब्रह्म स्थान भी स्विमिंग पूल के लिए वर्जित क्षेत्र है। ब्रह्म स्थान में स्विमिंग पूल होने पर मालिक दिवालिया हो सकता है।
8. सार्वजनिक शौचालय: आमजनों एवं होटल स्टाफ के लिए टाॅयलेट अथवा शौचालय उत्तर-पश्चिम (वायव्य) दिशा में बनाना सर्वश्रेष्ठ है।
9. रिसेप्शन काउंटर: आगन्तुकों का पहला ध्यान रिजर्व लाॅबी एवं रिसेप्शन काउंटर पर जाता है। अतः इन क्षेत्रों को वास्तु के अनुरूप बनाना एवं सजाना आवश्यक है। वहां बैठने की व्यवस्था, कलर स्कीम, वाॅल पेपर अथवा वाॅल डेकोरेशन में वास्तुनुरूप प्रभावी रंगों का व्यवहार अच्छा एवं खुशनुमा माहौल पैदा करने के लिए आवश्यक है।
10. जेनरेटर एवं इलेक्ट्रिकल फिटिंग्स: जेनरेटर होटल की प्रमुख आवश्यकताओं में से एक है। जेनरेटर, इलेक्ट्रिकल संसाधन, मेन स्विच बोर्ड, एयर कंडीशनिंग प्लांट, ग्रिन्डर आदि होटल भवन के दक्षिण-पूर्व हिस्से में लगाना सर्वाधिक उपयुक्त एवं आवश्यक है। डिश वाशर उत्तर-पश्चिम हिस्से अथवा किचन के समीप रखना चाहिए।
11. जल की व्यवस्था: होटलों में सदैव पानी की उपलब्धता एक बड़ी चुनौती होती है। पानी के स्टोरेज के लिए हौज उत्तर-पूर्व, उत्तर एवं पूर्व के हिस्से में बनाना उपयुक्त है। ओवरहेड वाटर टैंक होटल भवन के दक्षिण हिस्से के दक्षिण-पश्चिम, दक्षिण एवं पश्चिम भाग में लगाना वास्तुनुरूप है।
12. पूजा स्थल: पूजा के लिए मूर्ति की स्थापना अथवा पूजा के लिए स्थान उत्तर-पूर्व क्षेत्र में निर्धारित करना चाहिए। भगवान की फोटो उत्तर-पूर्व-पूर्व दीवार पर लगायी जा सकती है जिससे कि पूजा करने वाले का मुंह पूर्व की ओर तथा भगवान का मुख पश्चिम दिशा की ओर रहे।
13. कैश बाॅक्श: कैश बाॅक्स उत्तर की ओर खुलना चाहिए। कैशियर एवं हेड एकाउन्टेंट को उत्तरमुखी बैठना चाहिए। यदि उत्तर की ओर मुंह करके बैठना संभव न हो तो पूर्व की ओर भी मुंह रखना उत्तम है।
14. स्पा एवं हेल्थ क्लब: स्पा एवं हेल्थ क्लब उत्तर-पश्चिम एवं पश्चिम हिस्से में बनाना चाहिए।
15. बरामदा एवं बाल्कनी: बरामदा एवं बाल्कनी उत्तर-पूर्व, उत्तर अथवा पूर्व दिशा में बनाना उपयुक्त है।
16. बड़ी खिड़कियां: होटल में बड़े साइज की खिड़कियां उत्तर एवं पूर्व दिशा में बनानी चाहिए।
17. मेजेनाइन फ्लोर: होटलों में आजकल मेजेनाइन फ्लोर निर्मित करने का प्रचलन बढ़ा है। इसका निर्माण हाॅल के पश्चिमी अथवा दक्षिणी हिस्से में करवाना चाहिए। भूलकर भी इसका निर्माण उत्तर अथवा पूर्व दिशा में नहीं करना चाहिए। मेजेनाइन की सीढ़ियां उत्तर अथवा पूर्व की दीवार को छूनी नहीं चाहिए। दीवारों से कुछ दूरी अवश्य रहनी चाहिए। सीढ़ियां उत्तर से दक्षिण अथवा पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर होनी चाहिए। इसे दक्षिण से उत्तर अथवा पश्चिम से पूर्व दिशा में निर्मित नहीं होनी चाहिए।
18. चेयरमैन, एम. डी. आदि के लिए व्यवस्था: होटल के चेयरमैन, एम. डी., महत्वपूर्ण अधिकारियों, मालिक अथवा प्रबंध निदेशक आदि के लिए बैठने, प्रशासकीय कार्यालय अथवा केबिन आदि की व्यवस्था संपूर्ण भूखंड के दक्षिण-पश्चिम हिस्से में होनी चाहिए।
होटल हेतु कुछ अन्य उपयोगी वास्तु टिप्स :
- अच्छे व्यवसाय एवं आमदनी के लिए होटल का निर्माण आयताकार अथवा वर्गाकार भूखंड में करना चाहिए।
- होटल के लिए भूखंड ऐसा चुनना चाहिए कि भूखंड के चारों ओर रोड हो अथवा कम से कम उत्तर एवं पूर्व में तो हो ही।
- होटल के भूखंड की ढलान उत्तर-पूर्व की तरफ होनी चाहिए।
- होटल भवन की डिजाइन ऐसी होनी चाहिए जिसमें उत्तर एवं पूर्व हिस्सा हमेशा खुला रहे।
- ग्राउंड फ्लोर रिसेप्शन, किचन एवं भोजन क्षेत्र के लिए उपयुक्त माना जाता है।
- होटल में काॅन्फ्रेंस रूम भी बनाना अनिवार्य है। इसकी व्यवस्था पहली मंजिल पर की जानी चाहिए।
- आगन्तुक मेहमानों के सुखद एवं आरामदायक अहसास एवं अनुभव के लिए होटल के कमरों को ज्यादातर दक्षिण-पश्चिम में बनवाने की कोशिश करें। कमरों में बेड कमरे के दक्षिण-पश्चिम भाग में लगवाएं जिसमें पलंग का सिरहाना दक्षिण दिशा की ओर रहे।
- यदि स्टोर रूम का निर्माण करना हो तो इसे बिल्डिंग के दक्षिण, पश्चिम अथवा दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में बनवाएं।
- यदि मेहमानों को आकर्षित करने के लिए फाउंटेन आदि लगाना चाहें तो इसके लिए सही स्थिति उत्तर, पूर्व अथवा उत्तर-पूर्व दिशा है।
- इस बात का ध्यान रखें कि होटल परिसर में बड़ा और खुला ग्राउंड रहे।
- बेसमेंट भी आज होटल की अनिवार्य आवश्यकता बन गई है। बेसमेंट होटल बिल्डिंग में उत्तर-पूर्व में बनाना श्रेयस्कर है।
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