प्र.-शैक्षणिक संस्थान शहर के किस ओर बनाना अत्यधिक लाभप्रद होता है ?
उ.- शैक्षणिक संस्थान को शहर या काॅलोनी के उत्तर या उत्तर-पूर्व की ओर बनाना लाभप्रद होता है क्योंकि उत्तर-पूर्व का स्वामी ज्ञान एवं शिक्षा का कारक ग्रह बृहस्पति तथा उत्तर दिशा का स्वामी मनस चेतना का कारक ग्रह बुध है जिसके फलस्वरूप इस स्थान पर अध्ययन करने वालों की ख्याति देश-विदेश में तथा शिक्षण-संस्थान की लोकप्रियता राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर होती है।
प्र.-शैक्षणिक संस्थान की प्रगति के लिए क्या-क्या करना लाभप्रद होता है ?
उ.- शिक्षण संस्थान के लिए भूखंड का चयन प्रथम आवश्यकता है। भूखंड आयताकार एवं वर्गाकार होनी चाहिए। भूखंड के सभी कोने 900 का होना चाहिए। ईशान्य वृद्धि भूखंड भी शिक्षण संस्थान के लिए लाभप्रद होता है। भूखंड के उत्तर-पूर्व में नदी, तालाब या झरना नैसर्गिक रूप से विद्यमान रहने पर इसकी ख्याति शीघ्रातिशीघ्र होती है। भूखंड के दक्षिण-पश्चिम में घनी आबादी, पेड़-पौधा या ऊँची-ऊँची इमारतों का होना तथा उत्तर-पूर्व में अधिक से अधिक खुला स्थान होना शैक्षणिक संस्थान के विकास में मददगार होता है। भवन के चारांे ओर चारदीवारी अवश्य बनाना चाहिए।
इससे सकारात्मक ऊर्जा एवं विद्युत चुंबकीय लहरांे का निर्माण होता है। जिस भूखंड में सकारात्मक ऊर्जा एवं विद्युत चुंबकीय लहरों का निर्माण होता है उसपर कार्य करने वाले सुख-शांति एवं समृद्धि पूर्वक जीवन व्यतीत करते हैं। दक्षिण-पश्चिम में ऊँचा एवं मजबूत दीवार रखना चाहिए। साथ ही भूखंड की ढलान उत्तर एवं पूर्व की ओर रखना चाहिए। इससे शिक्षण संस्थान की लोकप्रियता में वृद्धि होती है तथा समृद्धि बनी रहती है। भूखंड के उत्तर, पूर्व या पश्चिम में रोड रहनी चाहिए। शैक्षणिक संस्थान में मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व, उत्तर या ईशान्य क्षेत्र से रखना लाभप्रद होता है। इसे दक्षिण या दक्षिण-पश्चिम कोने की तरफ से नहीं रखना चाहिए। शिक्षण संस्थान इस तरह बनाना चाहिए कि उसका आगे का हिस्सा पूर्वाभिमुखी हो। पूर्व दिशा से सूर्य की प्रथम किरणों का उदय होता है।
साथ ही जीवनदायिनी ऊर्जा का संचार भी उत्तर-पूर्व दिशा से होता है। अध्यापक प्रभावशाली तरीके से शिक्षण कार्य करते हैं, जिसके फलस्वरूप विद्यार्थियों के नतीजे प्रशंसनीय होते हैं। भवन का निर्माण एक खण्ड में होने पर पूर्व-पश्चिम या उत्तर-दक्षिण में करना चाहिए। यदि भवन का निर्माण दो या तीन खण्डों में करना हो तो पूर्व और उत्तर को खुला छोड़ते हुए भवन का निर्माण करना चाहिए। दक्षिण और पश्चिम को खुला नहीं रखना चाहिए। शिक्षण संस्थान में भूखंड के चारांे ओर निर्माण कार्य किया जा सकता है। लेकिन ऐसी स्थिति में ब्रह्म स्थान खुला रखना चाहिए। ब्रह्म स्थान में कोई भी पार्टीशन, कील और भारी वस्तु न रखें। ब्रह्म स्थान को हमेशा खाली और साफ-सुथरा रखें।
प्र.-शैक्षणिक संस्थान का आन्तरिक बनावट किस तरह का रखना लाभप्रद होता है ?
उ.- भवन में अध्ययन कक्ष पूर्व, उत्तर, उत्तर-पूर्व और पश्चिम में बनाना चाहिए। उत्तर दिशा पर मनस चेतना का कारक ग्रह बुध, ईशान्य क्षेत्र पर ज्ञान के ग्रह गुरू, पूर्व पर आत्म कारक सूर्य एवं पश्चिम दिशा पर विद्या की देवी माँ सरस्वती का अधिकार होता है। अतः इन क्षेत्रों में अध्ययन कक्ष रखने से बच्चों के अध्ययन में काफी लाभ मिलता है। क्लास रूम में ब्लैकबोर्ड को उत्तर या पूर्व की दीवार पर रखें। बच्चों का पढ़ाई करते वक्त मुँह उत्तर या पूर्व की तरफ होना चाहिए, इससे बच्चे विलक्षण प्रतिभा के धनी एवं ज्ञानवान होते हैं।
बच्चों के लिए क्लास रूम आयताकार एवं वर्गाकार बनाना चाहिए। क्लास रूम में प्रकाश की समुचित व्यवस्था रखनी चाहिए। शिक्षण संस्थान में प्रधानाचार्य, कुलपति या मुख्य व्यक्ति का कार्यालय दक्षिण-पश्चिम के क्षेत्र में बनाना चाहिए। उपप्रधानाचार्य या उपकुलपति का कार्यालय दक्षिण क्षेत्र में बनाना श्रेष्ठ होता है। प्रशासनिक कार्यालय, जिस स्थान से पूरे शिक्षण संस्थान की प्रशासकीय गतिविधियां संचालित होती हंै उसे पूर्व दिशा की ओर रखना चाहिए। लेखा विभाग उत्तर दिशा में होनी चाहिए। वित्तीय कार्यों के लिए खासतौर पर उत्तर की दिशा लाभप्रद होती है।
इससे शिक्षण संस्थान की संपन्नता बनी रहती है। मुख्य खजांची या अंकेक्षक को उत्तर दिशा की ओर मुँह कर बैठना चाहिए। यदि खजांची का मुंह पूर्व की तरफ हो तो कैश काउंटर उसके दाहिनी ओर रखनी चाहिए तथा खजांची का मुँह उत्तर की तरफ हो तो कैश काउंटर उसके बाईं तरफ रखनी चाहिए। परीक्षा विभाग पश्चिम में बनाना सर्वश्रेष्ठ होता है। शिक्षण संस्थान मंे पुस्तकालय भूखंड के उत्तर या पूर्व क्षेत्र में बनाना लाभप्रद होता है। प्रयोगशाला, भवन के पश्चिम में बनाना चाहिए। स्टाफ रूम की व्यवस्था वायव्य के क्षेत्र में करना चाहिए।
मनोरंजन कक्ष तथा कैंटीन की व्यवस्था आग्नेय क्षेत्र में करना चाहिए। शिक्षण संस्थान में खेल का मैदान उत्तर या ईशान्य क्षेत्र में करना शुभफलप्रद होता है। छात्रावास उत्तर और ईशान्य के क्षेत्र में बनाना चाहिए। आवश्यकता पड़ने पर छात्रावास पूर्व और दक्षिण दिशा में भी बनाया जा सकता है। वेधशाला उत्तर दिशा में बनाना चाहिए। सामूहिक प्रार्थना स्थल ब्रह्य स्थान में बनाना चाहिए।
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