संतान योग: कितने फलदायक
संतान योग: कितने फलदायक

संतान योग: कितने फलदायक  

संजय बुद्धिराजा
व्यूस : 6038 | अकतूबर 2016

पहले संयुक्त परिवारों में बड़े बुजुर्ग अपने बेटे बहुओं को वंशवृद्धि के लिये ‘दूधो नहाओ पूतों फलो’ का आशीर्वाद देते थे लेकिन आज नजरिया बदल गया है। आज ‘डबल इन्कम एंड नो किड्स’ का चलन फैल रहा है। कामयाबी व प्रगति हेतु आज के युवा अपनी संतान को ही अपनी विकास की राह में बाधा या बंधन मानने लगे हैं। ऐशो-आराम पाने की हवश में इन लोगों के लिये संतान सुख कोई मायने नहीं रखता। संयुक्त परिवारों के ह्रास व एकल परिवार प्रणाली ने इस चलन में और वृद्धि की है।

वर्तमान के युवा संतान के झंझट व जिम्मेदारियों के चक्र में उलझ कर अपने हाथों से अपने सुनहरे सपनों का गला नहीं घोटना चाहते। ये लोग शायद उन लोगों की पीड़ा व दर्द को नहीं महसूस करते जो किसी कारण से संतान सुख से हमेशा के लिये वंचित रहते हैं तो ये वे लोग हैं जिनके भाग्य में संतान सुख होने पर भी वे संतान का सुख नहीं ले पाते। ज्योतिष शास्त्रों में बताया गया है कि जब जन्म कुंडली में संतान सुख का योग मौजूद हो, संतान सुख देने वाले ग्रहों की उचित समय दशांतर्दशा हो और गोचर में भी ग्रह नक्षत्रों का उचित योग बनता है तो संतान की प्राप्ति होती है।

परंतु कभी-कभी तो सभी उचित योग, दशा व गोचर होने पर भी संतान सुख नहीं मिलता। इसके विपरीत जन्म कुंडली में कुछ ऐसे योग भी होते हैं जिनके कारण संतान सुख के योग मौजूद न होने पर भी जातक को संतान का सुख लेते देखा गया है। ऐसा किस कारण से होता है, इनका विवरण भी जन्म कुंडली में स्थित अन्य ग्रहों, योगों या फिर जातक के कर्मों पर भी निर्भर करता है। आईये इन सब बातों का विश्लेषण कर के देखते हैं। किसी भी जन्म कुंडली में संतान सुख जानने के लिये निम्न बातों को ध्यान में रखा जाता है


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- पंचम भाव यहां कौन-कौन से ग्रह स्थित हैं, वो शुभ हैं या अशुभ और यहां किन-किन ग्रहों की शुभ या अशुभ दृष्टि पड़ रही है। पंचमेश किस शुभाशुभ भाव में स्थित है, इस पर किन-किन शुभाशुभ ग्रहों की दृष्टि है, इसकी युति किन-किन शुभाशुभ ग्रहों के साथ है। कारक गुरू किस शुभाशुभ भाव में स्थित है, इस पर किन-किन शुभाशुभ ग्रहों की दृष्टि है, इसकी युति किन-किन शुभाशुभ ग्रहों के साथ है। विभिन्न ज्योतिष ग्रंथों में संतान सुख से संबंधित कुछ योग बताये गये हैं जिनके कारण जातक को संतान का सुख मिलता है।

वहीं जन्म कुंडली के कुछ अन्य योगों के कारण संतान सुख में कमी या संतान का अभाव भी हो जाता है। इसी तरह से शास्त्रानुसार जिन योगों के कारण जातक को संतान सुख नहीं मिलना चाहिये, उसे कुंडली के कुछ अन्य शुभ योगों के कारण संतान सुख मिल जाता है। आईये कुछ उदाहरण लेकर इस विषय पर चर्चा करते हैं -

1. शास्त्रानुसार जन्मलग्न से पंचम भाव का स्वामी व गुरु शुभ स्थान केंद्र या त्रिकोण में स्थित हों तो जातक को अवश्य ही संतान सुख मिलता है। परंतु यदि पंचम भाव या पंचमेश पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव होगा तो संतान सुख में कुछ कमी भी आ जाती है। लग्न कुंडली 24.12.1959, 12.00, मुंबइ उदाहरण के लिये कुंभ लग्न की प्रस्तुत कुंडली पंचम भाव का स्वामी बुध व गुरु शुभ स्थान दशम भाव में है, जिस कारण जातक की दो स्वस्थ संतान हैं परंतु यहां हम देखते हैं कि पंचम भाव पर सूर्य, शनि व मंगल की दृष्टि है और पंचमेश बुध की युति मंगल के साथ है और बुध पर केतु की भी दृष्टि है जिस कारण से जातक की दोनों संतानें जातक से दूर विदेशों में निवास करती हैं।

2. शास्त्रानुसार पंचम भाव में कोई ग्रह न हो तथा राहु या शनि की दृष्टि पंचम भाव पर हो तो जातक को संतान का सुख नहीं मिलता। परंतु यदि पंचम भाव या पंचमेश किसी भी प्रकार से शुभ प्रभाव में हों तो जातक को संतान सुख मिलने के योग बन जाते हैं। लग्न कुंडली 11.12.1922, 11.15, पेशावर उदाहरण के लिये प्रस्तुत मकर लग्न की कुंडली में पंचम भाव में कोई ग्रह नहीं है और राहु की दृष्टि पंचम भाव पर है। इसके अतिरिक्त अष्टमेश सूर्य की दृष्टि भी पंचम भाव पर है। इसी कारण जातक के कोई भी संतान नहीं थी। परंतु पंचम भाव व पंचमेश शुक्र पर नवमेश बुध का प्रभाव है तथा पंचम भाव अपने ही भावेश से भी दृष्ट है जिस कारण जातक ने अपने दूर के रिश्तेदार की मृत्यु हो जाने के कारण उस रिश्तेदार की संतान को गोद ले लिया।


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3. शास्त्रानुसार पंचम भाव या पंचमेश पर राहु का प्रभाव होने पर संतान सुख में बाधा आती है। परंतु यदि पंचमेश व राहु की युति शुभ स्थान में हो तो राहु की अंतर्दशा में संतान सुख मिलता है। लग्न कुंडली 24.11.1979, 00.30, दिल्ली उदाहरण के लिये सिंह लग्न की कुंडली में पंचम भाव में द्वादशेश चंद्र व अकारक शक्र स्थित है और पंचम भाव पर अशुभ ग्रह राहु की भी दृष्टि है जिस कारण से जातिका को संतान सुख नहीं मिलना चाहिये। परंतु पंचमेश गुरु की अपनी ही राशि पर दृष्टि है और पंचमेश गुरु व राहु की युति शुभ भाव लग्न में है जिस कारण जातिका को 1 मार्च 2006 को राहु की दशा में कन्या संतान की प्राप्ति हुई।

4. शास्त्रानुसार पंचम भाव पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो व गुरु नीच का हो तो जातक को संतान सुख का अभाव रहता है। परंतु यदि पंचमेश उच्च का होकर लग्नस्थ हो तो जातक को संतान सुख मिल जाता है। लग्न कुंडली 10.08.1985, 11.12, दिल्ली उदाहरण के लिये तुला लग्न की कुंडली में पंचम भाव पर केतु व मंगल का प्रभाव है तथा गुरु भी नीच का है जिस कारण जातक के विवाह के 4 साल तक भी कोई संतान नहीं हुई। परंतु पंचमेश शनि उच्च का है और लग्न में भी स्थित है जिस कारण उचित ईलाज मिलने पर जातक को 3 मार्च 2014 को राहु में केतु की दशा में कन्या संतान का सुख मिला।

5. शास्त्रानुसार पंचमेश 6, 8, 12 भाव में हो, पंचम भाव पर राहु या शनि की दृष्टि हो तो जातक को संतान सुख नहीं मिलता। परंतु पंचम भाव या पंचमेश पर शुभ गुरु व किसी अन्य शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो जातक को संतान सुख मिल भी जाता है। लग्न कुंडली 24.10.1978, 05.55, बल्लभगढ उदाहरण के लिये कन्या लग्न की कुंडली में पंचमेश शनि द्वादश भाव में है तथा पंचम भाव पर राहु व मंगल की भी दृष्टि है जिस कारण से जातिका को संतान सुख नहीं मिलना चाहिये था। परंतु जातिका की दो स्वस्थ संतान है। इसका कारण है कि इस कुंडली में स्वगृही चंद्रमा व उच्च के गुरु की दृष्टि पंचम भाव पर है।

6. शास्त्रानुसार लग्नेश पंचमस्थ हो व लग्नेश पर गुरु की शुभ दृष्टि हो तो जातक को संतान सुख अवश्य मिलता है। परंतु पंचम भाव या पंचमेश पर कोई अशुभ प्रभाव इस योग को काट भी सकता है जिस कारण संतान सुख से वंचित भी रह सकते हैं। लग्न कुंडली 30.12.1971, 05.20, सोहना उदाहरण के लिये वृश्चिक लग्न की कुंडली में लग्नेश मंगल पंचम भाव में है और पंचमेश गुरु लग्नस्थ होकर लग्नेश मंगल पर शुभ दृष्टि भी डाल रहा है। अतः जातिका को संतान सुख मिलना चाहिये था। परंतु जातिका के विवाह को 20 साल होने पर भी संतान का सुख नहीं मिल पाया है। इसका कारण है कि अष्टमेश बुध की युति पंचमेश गुरु के साथ लग्न में है और केतु की दृष्टि भी पंचम भाव व पंचमेश गुरु पर है।

संतान सुख हेतु उपाय - निम्नलिखित उपाय करने से संतान सुख से वंचित दंपत्ति को अवश्य ही लाभ मिलता है:-


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ƒ षष्ठी देवी का व्रत - षष्ठी देवी का व्रत करने से उत्तम संतान की प्राप्ति होती है। स्कंदपुराण में इसे संतान प्राप्ति और संतान की पीड़ाओं का शमन करने वाला व्रत बताया गया है जो शीघ्र फलदायक और शुभत्व प्रदान करने वाला है। यदि संतान को किसी प्रकार का कष्ट, रोग, संकट हो तो यह व्रत विधानपूर्वक करने से उससे बचाव होता है।

यह व्रत शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को किया जाता है। वर्ष के किसी भी मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को यह व्रत आरंभ किया जा सकता है। चैत्र मास की षष्ठी को इस व्रत को आरंभ करने का प्रचलन अधिक है। घर के ईशान कोण में पूर्वाभिमुख या उŸाराभिमुख बैठकर अपने सामने तुलसी के गमले में पीले सूती कपड़े पर शालिग्राम जी की प्रतिमा रखें। तुलसी के पौधे के समीप ही कार्तिकेय का चित्र और तांबे का लोटा पीले कपड़े पर रख दें। लोटे पर नारियल भी रखें। सर्वप्रथम घी डालकर दीपक जला लें।

फिर व्रत पूजन तथा मंत्र जप का संकल्प करें। कलश पर गणपति का ध्यान करते हुए ‘ऊं गं गणपतये नमः’ मंत्र से उनका पूजन करें। फिर शालिग्राम का ‘ऊं नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र से और ‘ऊं श्री विष्णुप्रियायै नमः’ मंत्र से तुलसी के पौधे का पूजन करें। अब कार्तिकेय के चित्र का ‘ऊं स्कंदाय नमः’ मंत्र से पूजन करें। कलश पर स्थित नारियल पर ‘ऊं ह्रीं षष्ठी देव्यै स्वाहा’ मंत्र से षष्ठी देवी का पूजन करें। फल, मिठाई, मेवा, लौंग, इलायची आदि अवश्य चढ़ाएं।

षष्ठी देवी के उक्त मंत्र का कम से कम 108 बार जप अवश्य करें। नित्य पूजन करके दीपक जलाएं तथा प्रत्येक षष्ठी को विस्तृत पूजन करें। भगवान नारायण द्वारा बताए गए ‘षष्ठी देव्यास्तोत्रम्’ का पाठ भी अवश्य करें। इसके प्रभाव से निःसंतान को संतान की प्राप्ति होती है।

ƒ पंचमेश ग्रह को बलवान करने के लिये पंचमेश का रत्न शुभ मुहूर्त में धारण करना चाहिये।

ƒ पंचम भाव पर होने वाले अशुभ ग्रहों की शांति के लिये उचित दानादि करना चाहिये।

ƒ कारक गुरू को शुभता प्रदान करने के लिये हवनादि करवाना चाहिये।

ƒ संतान गोपाल यंत्र के सम्मुख संतान गोपाल मंत्र का रोजाना जाप करना चाहिये।


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