रावण को रामायण, अग्निपुराण, शिवपुराण आदि में महापंडित कहा गया है। रावण एक अति बुद्धिमान ब्राह्मण तथा शंकर भगवान का बहुत बड़ा भक्त था। वह महा तेजस्वी, प्रतापी, पराक्रमी, रूपवान तथा विद्वान था। वाल्मीकि उसके गुणों को निष्पक्षता के साथ स्वीकार करते हुये उसे चारों वेदों का विश्वविख्यात ज्ञाता और महान विद्वान बताते हैं। रावण जहाँ दुष्ट और पापी था वहीं उसमें शिष्टाचार और ऊँचे आदर्श वाली मर्यादायें भी थीं। राम के वियोग में दुःखी सीता से रावण ने कहा है, ‘हे सीते, यदि तुम मेरे प्रति कामभाव नहीं रखती तो मैं तुझे स्पर्श नहीं कर सकता।’ शास्त्रों के अनुसार बन्ध्या, रजस्वला, अकामा आदि स्त्री को स्पर्श करने का निषेध है अतः अपने प्रति अकामा सीता को स्पर्श न करके रावण मर्यादा का परम आचरण करता है। रामायण और रामचरितमानस दोनों ही ग्रंथों में रावण को बहुत महत्त्व दिया गया है। राक्षसी माता और ऋषि पिता की सन्तान होने के कारण सदैव दो परस्पर विरोधी तत्व रावण के अन्तःकरण को मथते रहते हैं। संगीत के क्षेत्र में भी रावण की विद्वत्ता अपने समय में अद्वितीय मानी जाती है। वीणा बजाने में रावण सिद्धहस्त था।
शास्त्र क्या कहते हैं रावण जन्म पर पद्मपुराण, श्रीमद्भागवत पुराण, कूर्मपुराण, रामायण, महाभारत, आनन्द रामायण, दशावतारचरित आदि ग्रंथों में रावण का उल्लेख हुआ है। रावण के उदय के विषय में भिन्न-भिन्न ग्रंथों में भिन्न-भिन्न प्रकार के उल्लेख मिलते हैं। पद्मपुराण तथा श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार हिरण्याक्ष एवं हिरण्यकशिपु दूसरे जन्म में रावण और कुम्भकर्ण के रूप में पैदा हुए। वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण पुलस्त्य मुनि का पोता था अर्थात् उनके पुत्र विश्वश्रवा का पुत्र था। विश्वश्रवा की वरवर्णिनी और कैकसी नामक दो पत्नियां थीं। वरवर्णिनी के कुबेर को जन्म देने पर सौतिया डाह वश कैकसी ने कुबेला (अशुभ समय - कु-बेला) में गर्भ धारण किया। इसी कारण से उसके गर्भ से रावण तथा कुम्भकर्ण जैसे क्रूर स्वभाव वाले भयंकर राक्षस उत्पन्न हुये। तुलसीदास जी के रामचरितमानस के अनुसार रावण का जन्म शाप के कारण हुआ था। वे नारद एवं प्रतापभानु की कथाओं को रावण के जन्म का कारण बताते हैं।
महापंडित रावण है अप्रतिम
1. रावण की मां का नाम कैकसी था और पिता ऋषि विश्वश्रवा थे। कैकसी दैत्य कन्या थीं। रावण के भाई विभीषण, कुंभकर्ण और बहन सूर्पणखा के साथ ही देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर देव भी रावण के भाई हैं।
2. एक बार रावण ने अपनी शक्ति के मद में शिवजी के कैलाश पर्वत को ही उठा लिया था। उस समय भोलेनाथ ने मात्र अपने पैर के अंगूठे से ही कैलाश पर्वत का भार बढ़ा दिया और रावण उसे अधिक समय तक उठा नहीं सका। इस दौरान रावण का हाथ पर्वत के नीचे फंस गया। बहुत प्रयत्न के बाद भी रावण अपना हाथ वहां से नहीं निकाल सका। तब रावण ने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए उसी समय शिव तांडव स्तोत्र रच दिया। शिवजी इस स्तोत्र से बहुत प्रसन्न हो गए।
3. रावण बहुत विद्वान, चारों वेदों का ज्ञाता और ज्योतिष विद्या में पारंगत था। उसके जैसी तीक्ष्ण बुद्धि वाला कोई भी प्राणी पृथ्वी पर नहीं हुआ। इंसान के मस्तिष्क में बुद्धि और ज्ञान का भंडार होता है, जिसके बल पर वह जो चाहे हासिल कर सकता है। रावण के तो दस सिर यानी दस मस्तिष्क थे। कहते हैं, रावण की विद्वत्ता से प्रभावित होकर भगवान शंकर ने अपने घर की वास्तुशांति हेतु आचार्य पंडित के रूप में दशानन को निमंत्रण दिया था।
4. रावण भगवान शंकर का उपासक था। कुछ कथाओं के अनुसार- सेतु निर्माण के समय रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना की गई, तो उसके पूजन के लिए किसी विद्वान की खोज शुरू हुई। उस वक्त सबसे योग्य विद्वान रावण ही था, इसलिए उससे शिवलिंग पूजन का आग्रह किया गया और शिवभक्त रावण ने शत्रुओं के आमंत्रण को स्वीकारा था।
5. रावण महातपस्वी था। अपने तप के बल पर ही उसने सभी देवों और ग्रहों को अपने पक्ष में कर लिया था। कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने रावण को अमरता और विद्वत्ता का वरदान दिया था।
6. रावण को रसायन शास्त्र का ज्ञान था। उसे कई अचूक शक्तियां हासिल थीं, जिनके बल पर उसने अनेक चमत्कारिक कार्य सम्पन्न किए। अग्निबाण, ब्रह्मास्त्र आदि इनमें गिने जा सकते हैं।
7. वेदों की ऋचाओं पर अनुसंधान कर रावण ने विज्ञान के अनेक क्षेत्रों में उल्लेखनीय सफलता हासिल की। वह आयुर्वेद की जानकारी भी रखता था। रावण एक महान कवि भी था। उसका यह कौशल शिव तांडव स्तोत्र में नजर आता है। यही नहीं, वह वीणा बजाने में भी सिद्धहस्त था।
8. रावण जब किसी भी कार्य को हाथ में लेता, तो उसे पूरी निष्पक्षता और कर्तव्यभाव से पूर्ण करता। शिव के प्रति भक्ति की अनन्य लगनशीलता के कारण तांडव स्तोत्र की रचना की थी। इसी के बल पर रावण ने शिव को प्रसन्न कर वरदान पा लिया। अपनी सच्ची लगनशीलता के कारण दिव्य अस्त्र-शस्त्र, मंत्र-तंत्र की सिद्धियां प्राप्त कर रावण विश्वविख्यात बना।
9. रावण निर्भीक था। वह किसी भी व्यक्ति के सामने अपना पक्ष पूर्ण तर्क और दम-खम के साथ रखता था। युद्ध के मैदान में राम, लक्ष्मण, हनुमान जैसे योद्धाओं को सामने देख वह तनिक भी विचलित नहीं हुआ। स्वयं राम ने रावण की बुद्धि और बल की प्रशंसा की, इसलिए जब रावण मृत्यु-शैय्या पर था, तब राम ने लक्ष्मण को रावण से सीख लेने के लिए कहा।
10. आसुरी गुणों के कारण रावण विष्णु अवतारी श्रीराम के हाथों मृत्यु को प्राप्त हुआ अन्यथा वह अपने पांडित्य की बदौलत अपने काल में श्रद्धा का पात्र भी था। एक ही अवगुण अहंकार! महाज्ञानी एवं अनेक गुणों का स्वामी होने के बावजूद भी रावण अत्यन्त अभिमानी था। यही कारण है कि रावण को बुराई के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। इसका मात्र एक ही कारण है कि रावण बेहद अहंकारी था। सत्ता के मद में उच्छृंखल होकर वह देवताओं, ऋषियों, यक्षों और गन्धर्वों पर नाना प्रकार के अत्याचार करता था। इसी के चलते उसने सीता जी का अपहरण किया और उसका सर्वनाश हो गया। अंततः गलती और अवगुण के चलते युगों-युगों तक उसे बुराई का प्रतीक माना जाता है। इसीलिये श्री राम ने उसका वध करके उसके अत्याचार का अन्त किया। रामायण हमें यह सीख देती है कि चाहे असत्य और बुरी ताकतें कितनी भी ज्यादा हो जाएं, पर अच्छाई के सामने उनका वजूद एक न एक दिन मिट ही जाता है। सच और अच्छाई ने हमेशा सही व्यक्ति का साथ दिया है। दशहरा पर्व दस प्रकार के पाप यथा काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है।
दशानन (रावण) के दश अद्भुत रहस्य
1. वाल्मीकि रामायण के मुताबिक सभी योद्धाओं के रथ में अच्छी नस्ल के घोड़े होते थे लेकिन रावण के रथ में गधे हुआ करते थे। वे बहुत तेजी से चलते थे।
2. रावण संगीत का बहुत बड़ा जानकार था, सरस्वती के हाथ में जो वीणा है उसका आविष्कार भी रावण ने किया था।
3. रावण ज्योतिषी तो था ही तंत्र, मंत्र और आयुर्वेद का भी विशेषज्ञ था।
4. रावण ने शिव से युद्ध में हारकर उन्हें अपना गुरु बनाया था।
5. बाली ने रावण को अपनी बाजू में दबा कर चार समुद्रों की परिक्रमा की थी।
6. रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास लिखते हैं कि रावण के दरबार में सारे देवता और दिग्पाल हाथ जोड़कर खड़े रहते थे।
7. रावण के महल में जो अशोक वाटिका थी उसमें अशोक के एक लाख से ज्यादा वृक्ष थे। इस वाटिका में सिवाय रावण के किसी अन्य पुरुष को जाने की अनुमति नहीं थी।
8. रावण जब पाताल के राजा बलि से युद्ध करने पहुंचा तो बलि के महल में खेल रहे बच्चों ने ही उसे पकड़कर अस्तबल में घोड़ों के साथ बांध दिया था।
9. रावण जब भी युद्ध करने निकलता तो खुद बहुत आगे चलता था और बाकी सेना पीछे होती थी। उसने कई युद्ध तो अकेले ही जीते थे।
10. रावण ने यमपुरी जाकर यमराज को भी युद्ध में हरा दिया था और नर्क की सजा भुगत रही जीवात्माओं को मुक्त कराकर अपनी सेना में शामिल किया था।