निःसंतान योग- ज्योतिषीय विश्लेषण
निःसंतान योग- ज्योतिषीय विश्लेषण

निःसंतान योग- ज्योतिषीय विश्लेषण  

संजय बुद्धिराजा
व्यूस : 8592 | जनवरी 2014

भारतवर्ष में विवाह के पश्चात संतान उत्पत्ति विशेषकर पुत्र का जन्म वंश को चलाने के लिये अनिवार्य सा माना जाता है। किसी भी कारण से यदि संतान की उत्पत्ति हो तो वैवाहिक जीवन नीरस सा हो जाता है। ईश्वर की कृपा व ग्रहों के आशीर्वाद के बिना संतान का होना संभव नहीं होता। ज्योतिष के विद्वान ‘‘महर्षि पराशर’’ ने कहा है कि निःसंतान होने के मुख्यतः निम्न तीन योग होते हैं -

1. लग्नेश का निर्बल होना

2. पंचमेश का निर्बल होना

3. संतान कारक गुरु का निर्बल होना बाकी सभी नियम इन्हीं तीन नियमों के ही विभिन्न योग हैं।

उदाहरण के लिये -

1. यदि राहु पंचमस्थ हो और मंगल द्वारा दृष्ट हो तो संतान की क्षति होती है।

2. यदि पंचमेश राहु हो व शनि के साथ पंचमस्थ हो और उन पर चंद्रमा की दृष्टि हो तो संतान हीनता का योग बनता है।

3. यदि पंचमेश निर्बल हो व गुरु ग्रह राहु के साथ हो तो सर्प शाप के कारण संतान का नाश होता है। ‘‘फलदीपिका’’ में निम्न योगों को निःसंतान योग कहा गया है -

1 . यदि लग्न या चंद्रमा या गुरु से पंचमेश 6ः8ः12वें स्थान में हो।

2. यदि लग्न या चंद्रमा या गुरु से पंचम भाव में पाप ग्रह स्थित हो या दृष्ट हो और उस पर कोई शुभ प्रभाव न हो।

3. यदि लग्न या चंद्रमा या गुरु से पंचम भाव पापकर्तरी योग में हो।

4. यदि चंद्रमा पंचम भाव में विषम राशि में हो और उस पर सूर्य की दृष्टि हो।

5. यदि लग्न में पाप ग्रह हो, लग्नेश पंचमस्थ हो, पंचमेश तृतीयस्थ हो और चंद्रमा चतुर्थ भाव में हो।


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‘‘सारावली’’ में कहा गया है कि यदि चंद्रमा किसी भाव से छठे भाव में हो तो उस भाव के कारकत्व का नाश करता है जिससे वह छठा है अथवा उस भाव से जिस संबंध का संकेत होता है, उसकी आयु को क्षीण करता है। अर्थात चंद्रमा यदि पंचम भाव से छठे भाव यानि दशम भाव में हो तो पंचम भाव के कारकत्व यानि संतान का नाश करता है या उसकी आयु को क्षीण करता है। ‘‘सर्वार्थ चिंतामणि’’ में भी कहा गया है कि यदि चंद्रमा दशम भाव (पंचम से छठा भाव) में हो, शुक्र यदि सप्तम भाव में हो और चतुर्थ भाव में पाप ग्रह हो तथा लग्नेश बुध के साथ हो तो परिवार की वृद्धि नहीं होती। ‘‘पाप ग्रह’’ -

1. यदि 12वें (पंचम से आठवां भाव) में हो तो संतान की आयु कम होती है या संतान ही नहीं होती।

2. यदि 8वें भाव में हो तो द्वितीय भाव यानि कुटुंब भाव पर पाप दृष्टि के कारण संतान का नाश होता है।

3. यदि चतुर्थ भाव (पंचम से द्वादश) में हो तो पंचम के कारकत्व यानि संतान का नाश करता है। उदाहरण कुंडलियां - प्रस्तुत शोध में कुछ महिलाओं की कुंडलियों में ऊपर वर्णित योगों को परखा जायेगा जो ये बतायेंगे कि जातकों को संतान नाश का सामना क्यों करना पडा। उदाहरण 1ः 9 मई 1965, 11ः00 कानपुर विश्लेषण -

1. लग्न पर केतु की दृष्टि है।

2. पंचम भाव में केतु स्थित है।

3. शनि अष्टम भाव में है और पंचमेश मंगल व लग्नेश चंद्रमा पर दृष्टि डाल रहा है।

4. चंद्रमा से पंचमेश व संतान कारक गुरु, राहु केतु अक्ष पर है।

5. गुरु से पंचमेश बुध नीच का हो गया है। उदाहरण 2ः 11 अक्तूबर 1963, 19ः00, शिमला विश्लेषण -

1. लग्नेश मंगल पर शनि व राहू की दृष्टि है।

2. पंचमेश सूर्य अशुभ बुध के साथ छटे स्थान में है और उस पर द्वादशेश गुरु की दृष्टि भी है।

3. कारक गुरु द्वादस्थ है और उस पर तृतीयेश व षष्टेश बुध तथा शनि की दृष्टि है।

4. दशम भाव में शनि स्थित है।

5. चंद्रमा से पंचमेश मंगल पर राहू व शनि की दृष्टि है।

6. गुरु से पंचमेश चंद्रमा पर शनि की दृष्टि है। उदाहरण 3ः 3 फरवरी 1971, 02ः00, पटना विश्लेषण -

1. लग्नेश मंगल षष्ठेश भी है।

2. लग्न व गुरु से पंचमेश व संतान कारक गुरु ही है जो षष्ठेश मंगल से युति कर रहा है।

3. चतुर्थ भाव में राहु स्थित हैं।

4. द्वितीय कुटुंब भाव पर केतु की दृष्टि है।

5. चंद्रमा से पंचमेश सूर्य पर शनि की दृष्टि है। उदाहरण 4ः 2 जनवरी 1964, 05ः35, गुडगांव विश्लेषण -

1. लग्नेश मंगल अष्टमेश बुध के साथ व राहु-केतु के प्रभाव में है।

2. पंचमेश व संतान कारक गुरु पर षष्ठेश मंगल की पाप दृष्टि है।

3. अष्टम भाव में राहु स्थित हैं।

4. पंचम भाव पर तृतीयेश शनि व षष्ठेश मंगल की दृष्टि है। 5. चंद्रमा से पंचमेश मंगल अष्टमेश बुध के साथ व राहु-केतु के प्रभाव में है। 6. गुरु से पंचमेश चंद्रमा पर शनि की दृष्टि है। उदाहरण 5ः 22 मई 1969, 15ः20, पूना विश्लेषण -

1. लग्नेश बुध द्वादशेश सूर्य के साथ है व अष्टमेश मंगल से दृष्ट है।

2. लग्न व गुरु से पंचमेश शनि अष्टम भाव में नीच का है।

3. अष्टम भाव में शनि स्थित हैं।

4. संतान कारक गुरु, राहु केतु की पकड़ में है।

5. चंद्रमा से पंचमेश मंगल पर राहु की दृष्टि है। निष्कर्ष: उपरोक्त कुंडलियों के विश्लेषण से स्पष्ट हो जाता है कि प्रस्तुत शोध में जिन योगों को परखा गया है, उनमें से अधिकतर योग इन कुंडलियों में विद्यमान हैं जो स्पष्ट संकेत देेते हैं कि संतान नाश के लिये ये योग उल्लेखनीय भूमिका अदा करते हैं। इन योगों में से दो या अधिक कारणों से जातक निःसंतान रह जाता है या उसके संतान नाश का भय रहता है।

अतः किसी जातक की जन्म कुंडली में यदि उपरोक्त योग दिखाई देते हैं तो निःसंकोच जातक को संतान नाश के प्रति सावधान हो जाना चाहिये ताकि उचित उपाय करके अपने जीवन को संतान की खुशी से वंचित होने से बचा सके। संतान गोपाल मंत्र का विधिवत पाठ करना ही ऐसे जातकों के लिये सर्वोत्तम उपाय है।


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