अंक शास्त्र में कुंडली मिलान व स्वास्थ्य डॉ. संजय बुद्धिराजा अंक ज्योतिष में मुखय रूप से मूलांक (केवल जन्म तिथि का योग), भाग्यांक (जन्म तिथि, माह व वर्ष के अंकों का योग) व नामांक (नाम के अंग्रेजी अक्षरों का सांखियक योग) को आधार मानकर फलादेश किया जाता है। विवाह के संदर्भ में वर व वधु के नामांकों को देखा जाता है। जन्मतिथि के आधार पर मूलांक व भाग्यांक ज्ञात करके भी दोनो के स्वभाव व भविष्य का तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकता है। मुखय रूप से दोनो के नामों के अनुसार दोनो का नामांक ज्ञात किया जाता है जो यह बताता है
कि भविष्य में दोनो के बीच में कैसे संबंध रहेंगें। उदाहरण के लिये यदि वर का नामांक 1 हो तथा वधु का नामांक 9 हो तो अंकशास्त्र के नियमानुसार दोनो का वैवाहिक जीवन सुखमय रहेगा। अंकशास्त्र के अन्य नियमो के अनुसार, वर व वध ु के विभिन्न नामाकांें का परस्पर संबंध लेख में दी गयी तालिका से जाना जा सकता है :- यदि दोनो जातकों की जन्मतिथि में कोई एक अंक दो से अधिक बार आ रहा है तो उन दोनो का मिलान ठीक नहीं कहा जा सकता।
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अंक व स्वास्थ्य :- अंकों का जातक के स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पडता है। यदि जातक की जन्मतिथि में किसी खास अंक का अभाव है तो जातक को उस अंक से संबंधित स्वास्थ्य-परेशानी हो सकती है। तब उस अंक से संबंधित ग्रह के दानादि व मंत्र जाप से लाभ मिलता है। लेख में दी गयी स्वास्थ्य तालिका से अंक के आधार पर स्वास्थ्य व उसके उपचार के बारे में जाना जा सकता है-
जन्मतिथि में अंकों की अधिकता या कमी का होना :- यदि किसी जातक की जन्मतिथि में कोई अंक दो से अधिक बार आता है तो वह अंक व उसका स्वामी ग्रह अपना मूल स्वभाव छोडकर अपने विपरीत अंक व उसके स्वामी ग्रह का स्वभाव अपना लेता है। उदाहरण के लिये अंकशास्त्र के अनुसार अंक 8, जिसका स्वामी ग्रह शनि है, वाले जातक शनि के कारण अंतरमुखी होते हैं। परंतु यदि किसी जातक की जन्म तिथि 28 अगस्त 1988 है तो वह बहिर्मुखी होगा क्योंकि उसकी जन्मतिथि में 8 अंक दो से अधिक बार आया है जिसकारण यह 8 अंक अपने विपरीत अंक 4 व उसके स्वामी ग्रह राहू का मूल स्वभाव बहिर्मुखी को अपना लेता है।
इसी प्रकार से जिस अंक की जन्मअंक तिथि में कमी होती है, जातक के जीवन में उसी से संबंधित कमियां व परेशानियां आ जाती हैं और यदि जातक को उस अंक के गुण-धर्म चाहियें तो उस अंक से संबंधित निम्न उपाय किये जा सकते हैं :-
अंक 1 हेतु :- अंक 1 की कमी होने से जातक को जीवन में आगे बढने के लिये दूसरों के सहारा या परामर्श की आवश्यकता पड़ती है। यह अंक जल तत्व से संबंधित है। अतः सूर्य को ताम्र पात्र से अर्ध्य दें। एक्वेरियम घर में रखें। उत्तर दिशा में फव्वारा रखें। प्यासे व्यक्तियों को पानी पिलायें।
अंक 2, 5 व 8 हेतु :- अंक 2, 5 व 8 भूमि तत्व के अंक हैं। अत : शयनकक्ष दक्षिण-पश्चिम में बनायें। चकोर डायनिंग टेबल का प्रयोग करें। घर के मध्य में पीला बल्ब लगायें। एक रूद्राक्ष की माला पहनें। दक्षिण-पश्चिम में पहाडों के चित्र लगायें।
अंक 3 व 4 हेतु :- अंक 3 व 4 काष्ठ तत्व के अंक हैं। अतः पूर्व या दक्षिण-पूर्व में हरे पौधे या हरियाली वाले चित्र लगायें, हरा बल्ब लगायें। मुखय द्वार पर विंड चाइम्स लगायें।
अंक 6 व 7 हेतु :- अंक 6 व 7 धातु तत्व के अंक हैं। अतः पश्चिम या उ. प. दिशा में धातु की मूर्तियां रखें या पीले रंग की विंड चाईम्स लगायें। पीले रंग का पिरामिड रखें। दायें हाथ में सोना पहनें।
अंक 9 हेतु :- अंक 9 अग्नि तत्व का अंक है। अतः द. पू. दिशा में तंदूर या ओवन या माइक्रोवेव रखें। द. पू. में लाल रंग का बल्ब लगायें। बैठक में फूलों के पौधे लगायें।
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