दीपावली प्रकाश पर्व है। यह अंधकार पर प्रकाश की विजय का द्योतक है। अमावस्या की रात्रि में दीपमालाओं की रोशनी अंधकार के प्रति प्रकाश के संघर्ष एवं विजय का संकेत है। दीपावली को ‘कालरात्रि’ एवं ‘महानिशा’ की संज्ञा भी दी गई है। दीपावली पर्व पंच दिवसीय पर्व है। इसका आरंभ धनत्रयोदशी से हो जाता है और भाई दूज तक चलता है। प्रथम दिवस पंच दिवसात्मक दीपावली पर्व का पहला दिन कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनत्रयोदशी अथवा धनतेरस के रूप में मनाया जाता है।
इस दिन जहां भगवान धन्वन्तरी व धन के दाता कुबेर की पूजा हेाती है वहीं यमराज के निमित्त दीपदान का नियम है। समुद्र मंथन के दौरान हाथों में अमृत का कलश लिए धन्वन्तरी जी का प्राकट्य इसी दिन हुआ था। धन्वंतरी आयुर्वेद के जनक हैं। धनतेरस के दिन धनाध्यक्ष कुबेर की पूजा होती है। इस दिन धातु के बर्तन खरीदना समृद्धिदायक एवं शुभ माना जाता है। इस दिन किसी को भी उधार नहीं देना चाहिए। कुबेर का पूजन करने से घर में धन की वृद्धि होती है।
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कुबेर यंत्र का पूजन विशेष कर चांदी का बर्तन व सिक्के का पूजन जरूर करें। धनत्रयोदशी के दिन सायंकाल मुख्यद्वार के दोनों ओर यम के निमित्त दीपदान करें। इससे यमराज प्रसन्न रहते हैं। अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। द्वितीय दिवस इस दिवस को कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी, नरक चतुर्दशी या रूप चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है। इसे छोटी दीपावली भी कहते हैं। इस दिन सूर्योदय से पहले उबटन लगाकर शीतल जल से स्नान करने का विधान है। ऐसा करने से नरक में जाने का भय नहीं रहता। इस दिन तेल से शरीर पर मालिश करें क्योंकि इस दिन तेल में लक्ष्मी का और जल में गंगा माता का निवास माना जाता है। इस दिन विशेष रूप से हनुमान जयंती का पर्व मनाया जाता है। हनुमान जी के निमित्त हवन, पूजन व उनकी उपासना की जाती है। भगवान श्री कृष्ण जी ने इसी दिन नरकासुर को मारकर उसके आतंक से सबको मुक्त किया था। तृतीय दिवस कार्तिक अमावस्या दीपावली पर्व के रूप में मनाई जाती है। इस दिन मां लक्ष्मी का जन्म दिवस है।
कमला जयंती होने के कारण इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा उपासना का महत्व है। भगवान श्रीराम इस दिन 14 वर्ष का वनवास भोगकर लौटै थे। दीपावली रात्रि को महानिशा की संज्ञा दी गई है। दीपावली की रात में जागरण कर मां लक्ष्मी का स्वागत करना चाहिए। मां लक्ष्मी का विशेष पूजन वृष लग्न या सिंह लग्न में करने का विधान है। प्रदोष काल भी श्रेष्ठ है। व्यापारी अपने स्थल पर पूजा करते हैं। तुला, बहीखाते, लेखनी, दवात, कुबेर, मंा सरस्वती का पूजन, मां लक्ष्मीजी के साथ श्री गणेश, कलश, नवग्रह महाकाली, महासरस्वती के पूजन का विधान है। दूध, दही, शहद, गंगाजल से मां लक्ष्मी को स्नान करायें, खील, बताशे का भोग लगायें। इसी दिन मां लक्ष्मी समुद्र से प्रगट हुईं यह दिवस मां लक्ष्मी जी का जन्मदिवस भी है। अखंड दीपक जलाकर मां लक्ष्मी की पूरी रात उपासना करें। हो सके तो दिन रात व्रत करें। मां लक्ष्मी को खीर का भोग लगाएं। श्री यंत्र, कनक धारा यंत्र, कुबेर यंत्र की पूजा करें। चतुर्थ दिवस कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को ‘गोवर्धन पूजा’ और अन्नकूट पर्व के रूप में मनाया जाता है।
नंद बाबा इंद्र की पूजा करवाते थे लेकिन भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र की पूजा बंद करवाई व प्रकृति की पूजा का संदेश दिया। श्री कृष्ण ने गोवर्धन की पूजा शुरू करवाई। इंद्र ने सात दिन तक घनघोर वर्षा की। श्री कृष्ण जी ने गोवर्धन पर्वत उंगली पर उठाकर सबकी रक्षा की। इंद्र को भगवान की शरण में आना पड़ा। इंद्र का अहंकार समाप्त हुआ। इस दिन मंदिरों में या घरों में गोवर्धन गोबर से बनाकर पूजन किया जाता है। नैवेद्य का भोग लगाया जाता है। साथ में श्री कृष्ण जी की पूजा की जाती है। इस दिन 56 भोग का विधान है। मंदिरों में अन्नकूट महोत्सव मनाया जाता है। गोवर्धन को गो दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन रात मंे राजा बलि की पूजा की जाती है। पंचम दिवस कार्तिक शुक्ल द्वितीया को ‘भाई दूज’ यम द्वितीया के रूप मंे मनाई जाती है। इस दिन भाई अपनी बहन के घर जाकर भोजन करते हैं। यम की बहन यमी के द्वारा इस दिन यम को बुलाकर भोजन करवाया गया था। भोजन के बाद टीका भी किया था।
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यम ने प्रसन्न होकर अपनी बहन को अनेक प्रकार के उपहार भेंट किये। यमराज ने यमी से कहा जो बहन इस दिन अपने भाई को भोजन करायेगी टीका करेगी उसकी रक्षा होगी, उसे यम का भय नहीं रहेगा। इस पर्व को ‘‘यम द्वितीया’’ कहा जाता है। इस दिन चित्रगुप्त जी और विश्वकर्मा जी की पूजा भी की जाती है। दीपावली का महत्व दीपावली के संबंध में सर्वाधिक प्रचलित मान्यता यह है कि इस दिन समुद्र मंथन के दौरान माता लक्ष्मी का प्रादुर्भाव हुआ था और उन्होंने भगवान विष्णु का वरण किया। इसी कारण वे वैष्णवी हंै। दीपावली की रात मां लक्ष्मी विचरण करती हैं तथा घर-घर जाकर भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। मां लक्ष्मी के स्वागत में सभी लोग दीप जलाकर मां लक्ष्मी का स्वागत व पूजन करते हैं।
दानवीर बलि को वरदान वामनावतार में भगवान श्री विष्णु ने राजा बलि को वरदान दिया था कि प्रति वर्ष कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से कार्तिक कृष्ण अमावस्या तक पृथ्वी पर उसका राज रहेगा और पृथ्वीवासी दीपोत्सव मनाते हुए दीपदान करेंगे। राम पहंुचे थे अयोध्या श्री राम, माता सीता जी सहित इसी दिन लंका विजय के बाद 14 वर्ष का बनवास समाप्त करके अयोध्या लौटे थे। अयोध्या वासियों ने नगर को दीपमालिका से जगमगा दिया था तभी से दीपावली मनाई जाने लगी। पांडव व दीपावली ः भगवान श्री कृष्ण ने कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को अत्याचारी असुर नरकासुर का वध कर 16100 राजकन्याओं को मुक्त करवा उनका उद्धार किया था। इसके दूसरे दिन कार्तिक कृष्ण अमावस्या को श्री कृष्ण के अभिनंदन के लिये दीपमालिका सजाई।
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