अष्टकवर्ग विद्या की अचूकता व सटीकता का प्रतिशत सबसे अधिक है। सभी ग्रहों के अष्टकवर्ग के फलकथन के क्रम में इस बार शनि के अष्टकवर्ग के फल कथन की बारी है जिससे कर्म, नौकर, मजदूर, मेहनत, रोग बाधा, न्यायालय, आयु आदि विषय में विचार किया जाता है। भारतीय ज्योतिष में फलकथन हेतु अष्टकवर्ग विद्या की अचूकता व सटीकता का प्रतिशत सबसे अधिक है। अष्टकवर्ग विद्या में लग्न और सात ग्रहों -सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि को गणना में सम्मिलित किया जाता है। शनि ग्रह द्वारा विभिन्न भावों या राशियों को दिये गये शुभ बिंदु तथा शनि का ‘शोध्यपिंड’ - ये दोनों ‘शनि अष्टकवर्ग’ से किये गये फलकथन का आधार होते हैं।
अष्टकवर्ग विद्या में नियम है कि कोई भी ग्रह चाहे वह स्वराषि या उच्च का ही क्यों न हो, तभी अच्छा फल दे सकता है जब वह अपने अष्टकवर्ग में 5 या अधिक बिंदुओं के साथ हो क्योंकि तब वह ग्रह बली माना जाता है। अतः यदि शनि ग्रह शनि अष्टकवर्ग में 5 या इससे अधिक बिंदुओं के साथ है तथा सर्वाष्टक वर्ग में भी 28 या अधिक बिंदुओं के साथ है तो शनि से संबंधित भावों के शुभ फल प्राप्त होते हैं। यदि सर्वाष्टकवर्ग में 28 से अधिक बिंदु व शनि अष्टकवर्ग में 4 से भी कम बिंदु हैं तो फल सम आता है। यदि दोनों ही वर्गाें में कम बिंदु हैं तो ग्रह के अषुभ फल प्राप्त होते हैं।
कारकत्व के अनुसार शनि से कर्म, नौकर, मजदूर, मेहनत, रोग, बाधा, न्यायालय, आयु आदि का विचार किया जाता है। शनि अष्टकवर्ग: शनि अष्टकवर्ग से संबंधित कुछ नियम इस प्रकार से हैं:-
1. शनि के अष्टकवर्ग में लग्न से आरंभ कर शनि राषि तक और शनि राषि से आरंभ कर लग्न तक, आये सभी बिंदुओं के योग तुल्य वर्षों में व्याधि तथा कष्ट की प्राप्ति होती है। दोनों योगों के योग तुल्य वर्ष में मृत्यु तुल्य कष्ट और उसी समय यदि मारक दषा हो तो मृत्यु भी हो सकती है। उदाहरण के लिए विष्वनाथ, एक वकील (25.03.1952, 11ः55, गुड़गांव) की कुंडली में शनि चतुर्थ भाव में कन्या राषि में है। लग्न से कन्या राषि तक के बिंदुओं का योग 14 आता है और कन्या राषि से लग्न तक के बिंदुओं का योग 30 आता है।
जातक को भी 14 वें साल में जनवरी 1966 में अष्टमेश शनि में द्वादश्ेाश शुक्र के साथ बैठे राहु की दशा में टायफाईड हुआ था। इसके अतिरिक्त नवंबर 1981 में जब वे 30 वें साल की उम्र से गुजर रहे थे तो वाहन कारक बुध की महादशा में व अकारक राहु की अंर्तदशा में जातक का एक कार से एक्सीडेंट हुआ था जिसमें उसकी टांग की हड्डी टूट गई थी। फरवरी 1996 में जब जातक 44 वर्ष के होने को थे तो जातक को द्वादशेश शुक्र की महादशा में राहु संग बैठे शुक्र की अंर्तदशा में हार्ट अटैक हुआ था जिसमें वे मरते-मरते बचे थे।
2. षनि के अष्टकवर्ग में शनि से अष्टम या लग्न से अष्टम राषि में आए बिंदुओं को शनि के शोध्यपिंड से गुणा कर दें, तब 27 का भाग दें, जो संख्या शेष आये उस तुल्य नक्षत्र में जब गोचर का शनि आये तो जातक का अनिष्ट हो सकता है बषर्ते मारक ग्रह की दषा चल रही हो। राशि पिंड ग्रह पिंड शोध्य पिंड सूर्य 116 56 172 चंद्र 91 50 141 मंगल 39 21 60 बुध 77 52 129 गुरु 130 90 220 शुक्र 110 59 169 शनि 150 78 228 उदाहरण के लिए माधव राव सिंधिया (09.03.1945, 24ः00, ग्वालियर) की कुंडली को देखें तो पाते हैं कि: शनि का शोध्य पिंड 228 है।
लग्न से अष्टम तक के बिंदुओं का योग 29 है। इनका गुणनफल 6612 है तथा इसे 27 से भाग देने पर शेषफल 24 आता है जिसका तुल्य नक्षत्र शतभिषा है। इसके त्रिकोण नक्षत्र आद्र्रा व स्वाती हैं। सिंधिया की मृत्यु जब 23.12.2004 को हुई तो शनि का गोचर पुर्नवसु नक्षत्र मंे था यानि आद्र्रा से अभी निकला ही था जब यह अनिष्ट हुआ।
3. उपचय भावों 3-6-10-11 में यदि शनि कम से कम 3 बिंदु के साथ भी बैठा हो तो भाग्य उदय, राज्य से लाभ, पिता का सहयोग, पराक्रम से लाभ, शत्रु विजयी और धन लाभ देता है। उदाहरण: राहुल बजाज (01.06.1938, 05ः10, कलकता) जातक एक बड़ा व्यवसायी है। उनकी वृष लग्न की कुंडली में शनि एकादष भाव में स्थित है और शनि के अष्टकवर्ग में इसके पास 4 शुभ बिंदु हैं जिस कारण जातक को पिता का चला चलाया व्यवसाय मिला, उनका सहयोग मिला और प्रचुर मात्रा में धन लाभ भी मिला।
4. अस्त और नीच का शनि जब 4 या अधिक बिंदु के साथ हो तो वह अशुभ नहीं शुभ हो जाता है। संपन्नता, नौकर, चाकर आदि देता है। जातिका बाॅलीवुड की एक बड़ी अदाकारा थी। उनकी कुंडली में शनि ग्रह नीच का तथा अस्त है। शनि के अष्टकवर्ग में शनि के पास 5 शुभ बिंदु भी हैं। अतः उनका शनि अशुभ न रहकर शुभ हो जाता है जिस कारण जातिका के पास नौकर, चाकर की कोई कमी नहीं रही और धन संपन्न भी रहीं।
5. यदि विष योग के जनक शनि व चंद्र दोनों लग्न में 4 या अधिक बिंदु के साथ हों तो यह एक दरिद्र योग बन जाता है। लेकिन अन्य केंद्रों में हो तो संपन्नता व राजयोग देता है।
उदाहरण 1: रज्जाक खान (24.08.1973, 02ः29, दिल्ली) जातक एक मजदूर है। उसकी कुंडली में शनि व चंद्र लग्न में स्थित हैं तथा शनि के अष्टकवर्ग में उनके पास 5 बिंदु हैं जिस कारण ये एक दरिद्र योग बना और जातक गरीबी में दिन काट रहा है।
उदाहरण 2: पृथ्वी सिंह (10.09.1974, 19ः28, दिल्ली) जातक एक राजनेता का बेटा है जिसकी कुंडली में शनि व चंद्र एक साथ केंद्र में हैं और शनि के अष्टकवर्ग में भी उनके पास 6 शुभ बिंदु हैं जिस कारण ये एक राजयोग बना और जातक एक संपन्न व सुखी आदमी है।
उदाहरण: जवाहर लाल नेहरु (14.11.1889, 23ः06, ईलाहाबाद) राशि पिंड ग्रह पिंड शोध्य पिंड सूर्य 134 71 205 चंद्र 91 67 158 मंगल 101 40 141 बुध 97 70 167 गुरु 95 67 162 शुक्र 88 68 156 शनि 82 76 158 7. शनि के शोध्य पिंड को सूर्य राषि में शुभ बिंदुओं की संख्या से गुणा करके 12 से भाग करें तो शेषफल तुल्य राषि में या इसकी त्रिकोण राशियों में जब भी सूर्य का गोचर होगा तो जातक के लिए मारक हो सकता है।
शनि का शोध्यपिंड = 158 सूर्य के बिंदु = 3 इसलिये 158 गुणा 3 = 474 भाग 12 शेषफल 6 अर्थात कन्या राषि है और इसकी त्रिकोण राषियां हैं मकर व वृष। नेहरु की मृत्यु के समय 27.05.1964 को भी सूर्य वृष राषि में था। 8. जन्मकुंडली में जिस भाव में शनि के अष्टकवर्ग में सबसे अधिक बिंदु हों, वहां से शनि का गोचर कृषि कार्य के लिये शुभ समय होता है।