क्या आप बाधक दोष से ग्रस्त हैं ?
क्या आप बाधक दोष से ग्रस्त हैं ?

क्या आप बाधक दोष से ग्रस्त हैं ?  

संजय बुद्धिराजा
व्यूस : 21092 | अकतूबर 2013

आइये जानते हैं कि ’’बाधक’’ क्या है ? किसी कार्य में बाधा या रुकावट उत्पन्न करने वाला ग्रह ’’बाधक’’ कहलाता है। जन्म कुंडली के अध्ययन के समय यदि कोई ग्रह देखने में तो योगकारी, और लाभकारी प्रतीत होता है, परंतु वास्तव में जातक के जीवन में वह ग्रह अनिष्ट कर रहा होता है, तब ऐसे ग्रह की अवस्था ’’बाधक’’ कहलाती है और यह दोष ’’बाधक दोष’’ कहलाता है। जन्मलग्न में यदि चर स्वभाव की राशि (मेष, कर्क, तुला, या मकर) हो तो एकादश भाव को बाधक भाव कहते हैं और एकादशेश व एकादश भाव में स्थित ग्रहों को बाधक ग्रह कहते हैं।

इसी प्रकार से जन्मलग्न में स्थिर स्वभाव की राशि (वृष, सिंह, वृश्चिक या कंुभ) हो तो नवम स्थान, उसका स्वामी और उसमें स्थित ग्रह और जन्मलग्न में द्विस्वभाव राशि (मिथुन, कन्या, धनु या मीन) हो तो सप्तम स्थान, उसके स्वामी ग्रह और उसमें स्थित ग्रह बाधाकारी होते हैं। बाधक ग्रह अपनी दशा-अंतर्दशा में रोग, शोक, हानि, अपयश और दुःख देते हैं।

इनकी दशा में विदेश भी जाना पड़ता है यानि परिवार से वियोग होता है। कुछ ज्योतिष विद्व ानों का एक विचार यह भी है कि बाधक ग्रह का दोष तब प्रकट होता है, जब वह षष्ठेश से युक्त हो। ऐसी अवस्था में जातक शत्रुओं के द्वारा आर्थिक, दैहिक, सामाजिक रूप से कष्ट भोगता है। क्या आप बाधक दोष से ग्रस्त हैं ? डाॅ. संजय बुद्धिराजा, फरीदाबाद बाधक दोष जन्म कुंडली में केवल जन्मलग्न के लिए ही नहीं होता है, बल्कि यह प्रत्येक भाव के लिए होता है।


अपनी कुंडली में राजयोगों की जानकारी पाएं बृहत कुंडली रिपोर्ट में


जैसे, मेष लग्न की कुंडली में लग्न में चर स्वभाव की मेषराशि के लिए बाधक स्थान एकादश भाव होता है। उसी प्रकार से इसी मेष लग्न की कुंडली में द्वि तीय भाव (यहां स्थिर स्वभाव की वृष राशि है) के लिए बाधक स्थान द्वितीय से नवम स्थान होगा यानि दशम भाव होगा और तृतीय भाव (यहां द्विस्वभाव की मिथुन राशि है) के बाधक स्थान तृतीय से सप्तम स्थान होता है यानि नवम भाव होता है। भारतीय ज्योतिष ग्रंथों में बाधक दोष का विस्तृत वर्णन नहीं है, इसलिए यह एक शोध का विषय है।

अब प्रश्न उठता है कि बाधक स्थान के स्वामी के लिए कुंडली में कौन सा स्थान उपयुक्त होता है ? जैसा कि हम जानते हैं कि कुंडली में केंद्र और त्रिकोण भाव शुभ स्थान हैं, मगर 3-6-8-12 भाव अशुभ स्थान हैं। इस कारण केंद्र और त्रिकोण के स्वामी की बलवान अवस्था और 3-6-8-12 भाव के स्वामी की निर्बल अवस्था अच्छी कही जाती है। अतः बाधक स्थान के स्वामी की अपने भाव से केंद्र या त्रिकोण स्थान में स्थिति उसे बलवान करेगी और ऐसी अवस्था में उसका बाधक दोष बढ़ जाएगा, किंतु अपने भाव से 3-6-8-12 भाव में स्थिति में वह कमजोर होकर बाधक दोष से मुक्त होगा और जातक अपने सुकर्मों से बाधाओं पर विजय प्राप्त कर सकता है।

आइये कुछ उदाहरणों से बाधक दोष व बाधक ग्रह के बारे में और जानते हैं - उदाहरण 1: एक टी वी कलाकार (13 नवंबर 1967, 02ः00, लुधियाना) की जन्मकुंडली के सिंह लग्न में गुरु हैं। स्थिर सिंह राशि के लिए नवम भाव, नवमेश मंगल और उसमें स्थित ग्रह राहु बाधक होंगे। अतः मंगल व राहु की दशा-अंर्तदशा में जातक को बाधक दोष के कारण दुख, रोग व तनाव मिलेगा। 1998 में राहू की अंर्तदशा में जातक को पिता की मृत्यु का दुख भेागना पडा और व्यवसाय के सिलसिले में लंबी यात्राओं के कारण शारीरिक कष्ट भी सहना पड़ा।

इसी प्रकार तृतीय भावगत चर तुला राशि के लिए तृतीय से एकादश स्थान अर्थात् लग्न भाव, लग्नेश सूर्य और इसमें स्थित गुरू ग्रह बाधक होंगे जिसकी दशा या अंतर्दशा में तृतीय भाव के फल प्राप्ति में बाधा उत्पन्न होगी। फरवरी 2006 में सूर्य की अंर्तदशा में जातक को अपनी छोटी बहन की बीमारी के कारण काफी दौड़ धूप करनी पडी और लाखों रुपये भी खर्च हुये। उदाहरण 2: दक्षिण के एक कलाकार की जन्मकुंडली (05 जून 1921, रात 8 बजे, करीमनगर) के लग्न में द्वि स्वभाव राशि धनु है। अतः सप्तम भाव और सप्तमेश बुध बाधक हैं।


जीवन की सभी समस्याओं से मुक्ति प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करें !


स्वगृही और भद्रयोग होने के कारण इस बुध को हम शुभ मानते हैं, किंतु वास्तव में ऐसा नहीं था। धनु और मीन लग्न वालों के लिए स्वगृही बुध की दशा या अंतर्दशा में शुभ फल नहीं मिलते। ज्योतिषी और जातक दोनों चिंतित होते हैं कि ऐसे बलवान ग्रह के फल क्यों नहीं मिलते ? कारण - बाधक दोष। बुध की अ ंर्तदशा में 1945 में होने वाला विवाह केवल एक ही साल में अगस्त 1946 में विवाहेत्तर संबंधों के कारण टूट गया। उदाहरण 3: प्रसिद्ध राजनेता सुश्री जयललिता (24 फरवरी 1948, 15ः00 बजे, मैसूर) की जन्मकुडली के लग्न में द्विस्वभाव मिथुन राशि है। अतः सप्तम भाव और सप्तमेश बृहस्पति बाधक हैं।

सप्तम भावगत बृहस्पति अपनी राशि में होने के कारण हंस योग बना रहा है, अतः कहना चाहिये कि वैवाहिक सुख मिलेगा परंतु इस योग के बनने पर भी इसका सर्वाधिक असर वैवाहिक सुख पर पड़ा है। जिस कारण बाधक बृहस्पति ने उनका विवाह नहीं होने दिया। अर्थात शुभ योगों को फल देने में भी बाधक ग्रह बाधा डालते हैं। उदाहरण 4: धीरुभाई अंबानी की कुंडली (28 दिसंबर 1932, सुबह 06ः37, चोडवाड, गुजरात) में द्विस्वभाव धनु राशि है। अतः बाधक ग्रह सप्तमेश होगा। यह बुध अपने बाध् ाक स्थान सप्तम भाव से छठे भाव में मौजूद होने के कारण बलहीन है। धीरुभाई का जन्म शुक्र की महादशा में हुआ और ताउम्र उन्हें बाधक बुध की महादशा का सामना नहीं करना पड़ा।

जिस कारण व्यापार भाव के स्वामी सप्तमेश व दशमेश बुध ने उन्हें परेशान तो नहीं किया लेकिन अपनी अंतर्दशाओं में व्यापारिक क्षेत्र में बाधाओं का भी लाता रहा परंतु ऐसी बाधाओं की उम्र क्षणिक ही रही। अपनी मेहनत व काबिलियत के बल बाधक बुध द्वारा प्रस्तुत बाधाओं पर विजय प्राप्त कर धीरुभाई ने व्यापार जगत में अपनी पहचान बनाई। बाधक ग्रह विदेश भी भेजता है और द्वादशस्थ बुध ने भी उन्हें विदेश यात्रायें करवाई जो उनके लिये व्यापारिक दृष्टि से शुभ रहीं।

अतः बाधक ग्रह का समुचित उपचार कर अपने सुकर्मों से जातक बाधाओं पर विजय प्राप्त कर सकता है। उदाहरण 5: लता मंगेशकर (28 सितंबर 1929, 23ः00 बजे, मुंबई) की वृष लग्न की कुंडली है। यहां वृष राशि स्थिर राशि हैं। अतः बाधक भाव नवम भाव होगा। बाधक ग्रह नवमेश शनि नवम से द्वादश स्थान पर धनु राशिस्थ है जिस कारण बाधक ग्रह शनि बलहीन हो जाता है। आयु भाव में बलहीन बाधक ग्रह आयु कम नहीं कर सकता। आज लता जी की आयु 84 वर्ष से अधिक है और उन्होंने अपने जीवन में बहुत यश, धन एवं संपŸिा एकत्र की है।


For Immediate Problem Solving and Queries, Talk to Astrologer Now


उनके जीवन में अनेक बार शनि की अंतर्दशा आने पर भी उन्हें कोई हानि नहीं हुई। 2 गु. 28.10.1929, 23.00, मुंबई रा. 1 12 11 10 9 श. 8 7 मं.के. 6 सू.बु. 5 शु. 4 चं. 3 4 श. 3 2 के. 1 शु. 12 शु. 11 बु.सू. 10 मं. 9 चं. 8 रा. 7 6 5 उदाहरण 6: रामवीर की जन्मकुंडली में कर्क लग्न है। चर राशि का लग्न होने के कारण एकादश स्थान और इसका स्वामी शुक्र बाधक दोष से युक्त है। इस प्रकार एकादश भाव स्थित केतु भी बाधक है। इस कुंडली के लिए शुक्र बाधक होकर दुःखदायक है।

जातक के जीवन में शुक्र की महादशा फरवरी 1980 में आई। शुक्र-राहु की दशा में इस व्यक्ति को धन हानि होने लगी क्योंकि शुक्र आय भाव का स्वामी है। बाधक केतु की प्रत्यंतर दशा तो और भी कष्टदायक रही। जातक को संतान के इलाज के लिये लाखों रुपये खर्च करने पडे। शुक्र संतान भाव से मारकेश है और केतु संतान भाव के लिये मारक भाव में स्थित है। निष्कर्ष: किसी जातक के जीवन काल में घटित हेाने वाली सुखद या दुखद घटनाओं के सटीक विश्लेषण के लिये बाधक भाव व बाधक ग्रहों की जानकारी अति आवश्यक है।

जातक के शुभ प्रतीत होने वाले ग्रहों की दशा काल में भी जातक को शुभ फल न मिले तो उसका एकमात्र कारण बाधक ग्रह भी हो सकते हैं। इन बाधक ग्रहों का उचित अध्ययन कर उचित उपाय करके जातक के जीवन में आने वाली परेशानियों व दुखों से छुटकारा पाया जा सकता है।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.