कस्पल पद्धति बर्थ टाईम रेक्टीफिकेशन पार्ट-2
कस्पल पद्धति बर्थ टाईम रेक्टीफिकेशन पार्ट-2

कस्पल पद्धति बर्थ टाईम रेक्टीफिकेशन पार्ट-2  

आर.एस. चानी
व्यूस : 4626 | अकतूबर 2016

पिछले लेख में रुलिंग प्लैनेट्स की सहायता से कुंडली को ठीक (करेक्ट) करने का तरीका प्रस्तुत किया गया था। अब इसी विचार को आगे बढ़ाते हुए किसी भी कस्पल कुण्डली का बर्थ टाईम रेक्टीफाई किस प्रकार इवेंट वैरीफिकेशन की सहायता से किया जाए, इसे समझने का प्रयास करेंगे। इवेंट वैरीफिकेशन का तात्पर्य है कि जातक के अपने जीवन काल में जो-जो घटनाएं या दुर्घटनाएं घटित हुई हैं उस विशिष्ट घटना के दिन और समय के आधार पर कुण्डली का समय मिनट और सेकंड लेवल तक करेक्ट करना । अगर किसी विशिष्ट दिन कोई विशिष्ट इवेंट जातक के जीवन में फलित या घटित होता है तो जातक की कुंडली को उस विशिष्ट दिन, उस विशिष्ट घटना को दर्शाना आवश्यक है। अगर जातक की कुण्डली उस विशिष्ट घटना या दुर्घटना को नहीं दर्शाती है तो निश्चित मानिए कि जातक की कुंडली में जन्म समय को शुद्ध करना आवश्यक है और कस्पल ज्योतिष में इवेंट वेरीफिकेशन के लिए सुदृढ़ नियम बनाये गए हैं जो मान्य और तर्कसंगत हैं। विवाह, बच्चे का जन्म इत्यादि इवेंट को चेक करने के लिए दशा, भुक्ति, अंतरा, सूक्ष्म और प्राणदशा के अलावा उस विशिष्ट दिवस के गोचर में गुरु, सूर्य, चन्द्र इत्यादि ग्रहों के गोचर का भी अध्ययन किया जाता है। इसके साथ-साथ उस विशिष्ट दिन ग्रहों तथा लग्न और मूल भाव की प्रोगे्रस्ड पोजीशन का भी अध्ययन किया जाता है। विवाह, बच्चे के जन्म इत्यादि इवेंट में दशा स्वामी ग्रह का कम से कम न्यूट्रल होना अनिवार्य है। भुक्ति स्वामी ग्रह का मूल भाव का सिग्नीफिकेटर बनना अनिवार्य है। अंतरा, सूक्ष्म तथा प्राणदशा स्वामी ग्रह प्रासंगिक भावों के फल प्रदान करने में सक्षम हों। इवेंट वेरीफिकेशन का एक सशक्त माध्यम है मृत्यु का इवेंट।

मृत्यु किसी सगे-संबंधी जैसे माता, पिता या दादा इत्यादि और मृत्यु के इवेंट को अप्लाई (लागू) करने के लिए भी कुछ नियम बनाये गए हैं जैसे कि -

1. दशा स्वामी ग्रह का लग्न या आठवें या बाधक भाव में को-रुल करना या इन भावों में में से किसी भाव में बैठना ।

2. दशा स्वामी ग्रह का आठवें भाव के सब-सब लाॅर्ड के साथ संबंध स्थापित करना ।

3. दशा स्वामी ग्रह का लग्न और आठवें भाव का मारक और बाधक भावों के साथ सिग्निफिकेटर बनना।

4. मृत्यु वाले दिन गोचर में शनि का किसी ऐसी राशि में गोचर करना जिस राशि स्वामी का संबंध आठवें भाव के सब-सब लाॅर्ड या बाधक भाव के सब-सब लाॅर्ड से स्थापित हो और वह राशि स्वामी ग्रह मृत्यु देने वाले भावों का फल प्रदान करने में भी सक्षम हो।


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5. मृत्यु वाले दिन चन्द्र किसी ऐसे नक्षत्र में गोचर करे जो नक्षत्र स्वामी ग्रह भी आठवें भाव या बाधक भाव के सब-सब लाॅर्ड से संबंध स्थापित करे तथा नक्षत्र स्वामी ग्रह का भी मृत्यु देने वाले भावों का सिग्निफिकेटर बनना अनिवार्य है।

6. गोचरीय शनि, गुरु, सूर्य और चन्द्र के बाकी बचे को-रुलिंग ग्रह भी लग्न में या मारक में या बाधक भाव में या आठवें भाव को को-रुल करें या इन भावों में बैठें हों तथा साथ में वे सभी ग्रह भी मृत्यु देने वाले भावों के सिग्निफिकेटर बनें। भुक्ति स्वामी ग्रह, अन्तरा स्वामी ग्रह, सूक्ष्म और प्राण स्वामी ग्रह भी मृत्यु देने वाले भावों के फल प्रदान करने में सक्षम हों।

ऊपरलिखित 6 कंडीशन एक साथ लागू होनी चाहिए, यही कंडीशन माता की, पिता की, दादा की तथा अन्य रिश्तों के लिए भी मान्य है। अब एक उदाहरण के साथ इन सभी नियमों को लागू करने का प्रयास करते हैं। इस बार आपके सम्मुख एक रेक्टीफाईड कुंडली का उदाहरण प्रस्तुत किया जा रहा है ताकि आप इन नियमों को लागू करना समझ पायें। अगले अंक में एक उदाहरण के सहयोग से जातक के जीवन काल में घटित हुए इवेंट की सहायता से कुंडली की बर्थ टाईम रेक्टीफिकेशन करना सिखाया जायेगा। प्रस्तुत उदाहरण कुंडली रेक्टीफाईड कुंडली है। इस जातक के पिता जी का देहांत 19.9.1979 को सायं 20ः 30 बजे हुआ तथा इनकी माता का देहांत 5 अगस्त 2003 को 21ः 55 बजे हुआ। जब इनके पिता का देहांत हुआ उस समय जातक की राहु-चन्द्र-गुरु- शनि-चन्द्र की दशा चल रही थी यानि कि राहु की दशा, चन्द्र की भुक्ति, गुरु की अंतरा, शनि की सूक्ष्म दशा और चन्द्र की प्राण दशा चल रही थी तथा उस समय गोचर में शनि सिंह राशि में, शुक्र के नक्षत्र में, बुध के सब और चन्द्र के सब-सब में गोचर कर रहे थे। गुरु सिंह राशि में केतु के नक्षत्र, चन्द्र के सब और बुध के सब-सब में, सूर्य कन्या राशि में सूर्य के नक्षत्र, गुरु के सब और चन्द्र के सब-सब में गोचर कर रहे थे और चन्द्र सिंह राशि में केतु के नक्षत्र में, बुध के सब में और शनि के सब-सब में गोचर कर रहे थे।

जब इस जातक की माता जी की मृत्यु 5 अगस्त 2003 को रात 21ः55 बजे हुई उस समय इस जातक की शनि की दशा, केतु की भुक्ति, शुक्र की अंतरा, चन्द्र की सूक्ष्म दशा और गुरु की प्राण दशा चल रही थी तथा गोचर में शनि बुध की राशि में, राहु के नक्षत्र में, बुध के सब और गुरु के सब-सब में गोचर कर रहे थे। गोचर में गुरु सिंह राशि में केतु के नक्षत्र में, शुक्र के सब और चन्द्र के सब-सब में, सूर्य कर्क राशि में, बुध के नक्षत्र में, केतु के सब और राहु के सब-सब में तथा गोचर में चन्द्र, तुला राशि में, गुरु के नक्षत्र में, शनि के सब में और गुरु के सब-सब में गोचर कर रहे थे। अब इस जातक के पिता की मृत्यु का विस्तार में अध्ययन करते हैं और मृत्यु होने के लिए जो कंडीशन और नियम ऊपर प्रस्तुत किए गए हैं उनको हम यहां एक-एक करके लागू करते हैं। मृत्यु होने के लिए पहली कंडीशन है कि दशा स्वामी ग्रह लग्न या आठवें या बाधक भाव को को रुल करे या इन भावों में बैठे हों। पिता की मृत्यु के समय जातक की राहु की दशा चल रही थी। दशा स्वामी ग्रह राहु चैथे कस्प में यानि पिता के अष्टम भाव में को-रुल कर रहा है। पहली कंडीशन पूर्ण हुई। दूसरी कंडीशन दशा स्वामी ग्रह का आठवें भाव के सब-सब लाॅर्ड से संबंध स्थापित होना।


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दशा स्वामी राहु है और चैथे भाव (पिता के लिए आठवां) का सब-सब लाॅर्ड भी राहु है। इस प्रकार दशा स्वामी ग्रह का आठवें भाव के सब-सब लाॅर्ड से संबंध स्थापित हो जाता है। तीसरी कंडीशन दशा स्वामी ग्रह का लग्न और आठवें भाव का स्ट्रांैग सिग्निफिकेटर, मारक और बाधक भावों के साथ बनना। दशा स्वामी राहु, सूर्य के नक्षत्र में और शुक्र के सब में है। सूर्य पिता के लिए दोनों मारक भावों (दो और सात) यानि कि दसवें और तीसरे तथा सातवें (बाधक) कस्प में प्रकट हो रहा है। सूर्य चैथे भाव में बैठा भी है और शुक्र नवें भाव (पिता का लग्न भाव), दसवें कस्प में प्रकट हो मारक, बाधक और आठवें भाव को सूर्य के माध्यम से इनवोल्व कर तथा शुक्र के माध्यम से नवें और दसवें भाव के साथ कमिटमेंट कर लग्न और आठवें भाव का फल प्रदान करने में मारक और बाधक भावों के साथ सक्षम हो जाता है। दशा स्वामी राहु का सब-सब लाॅर्ड राहु चैथे कस्प में प्रकट हो अनिवार्य कंडीशन को पूरा करता है। भुक्ति स्वामी चन्द्र, सूर्य के नक्षत्र, चन्द्र के सब और राहु के सब-सब में है।

सूर्य हमने देखा कि दसवें, तीसरे और सातवें कस्प में प्रकट हो इन्वोल्वमेंट कर रहा है और चन्द्र तीसरे और सातवंे कस्प में प्रकट हो कमिटमेंट कर भुक्ति स्वामी चन्द्र को मृत्यु देने वाले भावों का सिग्निफिकेटर भी बनाता है तथा अन्त में राहु चैथे कस्प में प्रकट हो अनिवार्य कंडीशन को पूरा करता है। अंतरा स्वामी गुरु, शुक्र के नक्षत्र, शनि के सब और शनि के ही सब-सब में है। शुक्र नवें, दसवें और सातवें भाव में प्रकट हो इन्वोल्वमेंट कर रहा है तथा शनि तीसरे (मारक), चैथे (आठवां), नवें (लग्न), दसवें (मारक) कस्पों में प्रकट हो कमिटमेंट और फाईनल कन्फर्मेशन कर अंतरा स्वामी गुरु को मृत्यु देने में सक्षम बनाते हैं। सूक्ष्म स्वामी शनि, शुक्र के नक्षत्र में, राहु के सब में और बुध के सब-सब में है। शुक्र हमने ऊपर देखा कि नवें, दसवें और सातवें कस्पों में प्रकट हो इन्वोल्वमेंट कर रहा है तथा राहु चैथे कस्प में प्रकट हो प्रासंगिक भावों के साथ कमिटमेंट कर रहा है तथा शनि सूक्ष्म स्वामी का सब-सब बुध तीसरी कस्पल पोजीशन में प्रकट हो अनिवार्य कंडीशन को भी पूरा करता है। प्राण स्वामी ग्रह चन्द्र का अध्ययन हम ऊपर कर ही चुके हैं। ऊपर हमने दशा स्वामी ग्रह की तीनों ही कंडीशन को लागू किया है तथा अब हम चैथी कंडीशन जो कि गोचर में शनि की है, मृत्यु वाले दिन शनि को किसी ऐसी राशि में गोचर करना अनिवार्य है जिसका राशि स्वामी ग्रह आठवें भाव या बाधक भाव के सब-सब लाॅर्ड से संबंध स्थापित करे तथा वह राशि स्वामी मृत्यु देने वाले भावों का फल प्रदान करने में भी सक्षम हो।

जातक के पिता की मृत्यु वाले दिन यानि कि 19.9.1979 को रात 20ः30 बजे शनि सिंह राशि में गोचर कर रहा था तथा अब सिंह राशि के स्वामी सूर्य को चैथे या सातवें (बाधक) भाव के सब-सब लाॅर्ड से संबंध स्थापित करना है। सूर्य तो चैथे भाव में बैठकर इस कंडीशन को पूर्ण करता है। आईये अब देखें क्या सूर्य मृत्यु देने वाले भावों का सिग्निफिकेटर भी बनता है या नहीं। इस कुण्डली में सूर्य, शनि के नक्षत्र में केतु के सब में और राहु के सब-सब में है। शनि नवें (लग्न), दसवें (मारक), तीसरे (मारक), चैथे (आठवें) भाव में प्रकट हो इन्वोल्वमेंट कर रहा है तथा केतु चैथे भाव में पोजीशनल स्टेटस के साथ बैठकर सूर्य को मृत्यु देने वाले भावों का प्रबल तौर पर सिग्निफिकेटर भी बनाता है तथा अंतिम पुष्टिकरण राहु द्वारा चैथे कस्प का सब-सब लाॅर्ड बन पूर्ण करता है। पांचवां नियम है कि मृत्यु वाले दिन चन्द्र किसी ऐसे नक्षत्र में गोचर करे जिसका स्वामी भी आठवें या बाधक भाव से संबंध स्थापित करे तथा वह मृत्यु देने वाले भावों का सिग्निफिकेटर भी बने। इस जातक के पिता की मृत्यु वाले दिन चन्द्र, केतु के नक्षत्र में गोचर कर रहा था।


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केतु तो चैथे (पिता के लिए आठवें) भाव में बैठकर संबंध स्थापित करता है तथा केतु इन्वोल्वमेंट, कमिटमेंट और फाईनल कन्फर्मेशन के माध्यम से इनके पिता को मृत्यु देने में सक्षम भी बनता है। छठा नियम है कि गोचरीय शनि, गुरु, सूर्य और चन्द्र के बाकी बचे सभी को-रुलिंग ग्रह या तो लग्न में या मारक या बाधक या आठवें कस्प/भाव में प्रकट हो तथा साथ में वे सभी ग्रह मृत्यु देने (जातक के जिस भी संबंधी की मृत्यु को आंका जा रहा है) वाले भावों के प्रबल तौर पर सिग्निफिकेटर भी बनें। गोचरीय शनि, गुरु, सूर्य और चन्द्र के बाकी बचे सभी को रुलिंग ग्रह प्रासंगिक भावों में प्रकट हो रहे हैं तथा साथ में जातक के पिता को मृत्यु देने में भी सक्षम हैं। जिस प्रकार ऊपर हमने इस जातक के पिता की मृत्यु का अध्ययन किया ठीक उसी प्रकार से हम इस जातक की माता जी की मृत्यु का भी अध्ययन कर सकते हैं। बस इनके माता के केस में भाव बदल जाएंगे। माता का लग्न (चैथे भाव से), माता के लिए आठवें भाव को (ग्यारहवें भाव से) अध्ययन करना होगा तथा पांचवां और दसवां भाव माता के लिए मारक (2, 7) बनेंगे। माता का बाधक इस कुंडली का बारहवां भाव होगा क्योंकि चैथे भाव में स्थिर राशि कुंभ उदित है।



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