कुंडली का लग्न भाव जीवन के सभी शुभ व अशुभ फलों का आश्रय होता है। लग्न एक साथ केंद्र व त्रिकोण भाव होने से लग्नेश योगकारक जैसा शुभफल दायक होता है। लग्न भाव का बल लग्नेश के बलानुसार होता है। इनका सापेक्षिक बल व्यक्ति के भाग्य, सुख, धन, आयु आदि शुभ फलों के प्रचुर मात्रा में भोग को दर्शाता है। अतः धन-समृद्धि प्राप्ति के लिए सर्वप्रथम व्यक्ति की कुंडली में लग्न भाव व लग्नेश का बलवान तथा शुभ प्रभावी होना आवश्यक होता है। साथ ही कुंडली के धन द्योतक भाव-द्वितीय (धन) भाव, पंचम व नवम (लक्ष्मी स्थान) भाव तथा एकादश (लाभ) भाव व उनके भावेशों का आपसी संबंध शुभ भाव, केंद्र व त्रिकोण में होने पर अधिक धन प्राप्ति में सहायक होता है। लग्न और चंद्र दोनों से आकलन सटीक रहता है।
श्री रामानुजाचार्य द्वारा रचित ‘‘भावार्थ रत्नाकर’’ ग्रंथ के धन योग’ अध्याय अनुसार: धनेशे पंचमस्थे च पंचमेशो धने यदि। धनपे लाभगे वापि लाभेशो धनगो यदि। पंचमेशो पंचमे वा भाग्ये भाग्याधिपे यदि। विशेष धनयोगाश्चेत्याहुर्जातक को विदाः।। 1, 2।। अर्थात्, ‘‘यदि द्वितीयेश और पंचमेश का स्थान परिवर्तन हो या द्वितीयेश लाभ भाव में हो या लाभेश द्वितीय भाव में स्थित हो या पंचमेश और नवमेश अपने भाव में हों तो जातक को विशेष धन की प्राप्ति होती है। उपरोक्त योगों की अधिकाधिक उपस्थिति उत्तरोत्तर धनाढ्य बनाती है।
उपरोक्त श्लोक कुछ महत्वपूर्ण सूत्र प्रतिपादित करता है:
1. धन के द्योतक भाव व भावेशों का आपसी संबंध विशेष धनदायक होता है, जैसे धनेश के लाभ भाव में होने से और लाभेश के धन भाव में होने पर विशेष धन की प्राप्ति होती है। इसी प्रकार धनेश और लाभेश दोनों की शुभ लग्न भाव में युति प्रचुर धनदायक होती है।
2. धनेश और पंचमेश का राशि परिवर्तन धनप्रद कहा गया है, परंतु धनेश व नवमेश के राशि परिवर्तन का कोई उल्लेख नहीं है। इसका मूल कारण है कि इनका राशि परिवर्तन होने पर द्वितीयेश निज द्वितीय भाव से अष्टमस्थ होकर धन प्राप्ति को कम करेगा तथा नवमेश भी अपने नवम भाव से षष्ठस्थ होकर भाग्य में कमी करेगा। अतः इनका परिवर्तन शुभ फलदायी नहीं बताया गया है।
3. श्लोक के अंतिम भाग में तीसरा सूत्र यह है कि एक से अधिक धन-द्योतक भावेशों की अपने-अपने भाव में स्थिति भी उनके साझे गुण की वृद्धि करती है, अर्थात प्रचुर मात्रा में धन देती है।
4. अगले श्लोक में गं्रथकार ने स्पष्ट कर दिया है कि ग्रहों की धन-सादृश्यता न होने पर पारस्परिक योग विशेष धनदायक नहीं होता है।
धन लाभाधिपत्योश्च व्ययेशेन सहस्थितिः। संबन्धो यदि विद्यते धनाधिक्यं न विद्यते।। अर्थात् ‘‘यदि द्वितीयेश और लाभेश की युति व्ययेश के साथ हो तो जातक धनी नहीं होगा।’’ इसी प्रकार षष्ठेश व अष्टमेश की धनेश व लाभेशों से युति भी धन की न्यूनता करेगी। साथ ही धन-द्योतक भावेशों की अशुभ (षष्ठ, अष्टम व द्वादश) भाव में स्थिति धन के नाश द्वारा निर्धनता देगी। केमद्रुम योग: (चंद्रमा के दोनांे ओर कोई ग्रह न होने पर) भी जातक धन-हानि भोगता है।
उपरोक्त ज्योतिष सूत्रों को दर्शाती देश के कुछ प्रमुख उद्योगपतियों की जन्मकुंडलियों का विश्लेषण इस प्रकार है:
उदाहरण कुंडली नं. 1 जातक टाटा ग्रुप उद्योग का स्वामी और देश विदेश में प्रसिद्ध धनाढ्य उद्योगपति हैं। उनकी जन्मकुंडली के विशेष योग इस प्रकार हैं- लग्नेश बृहस्पति द्वितीय भाव में नीचस्थ है परंतु स्वनवांश में होने से बलवान है।’ वह एकादश भाव में स्थित चंद्रमा के साथ गजकेसरी योग बना रहा है। दोनों धनदायक ग्रह हैं। लाभेश शुक्र स्वनवांश का होकर लग्न में स्थित है। पंचमेश मंगल भी उच्च नवांश में है और उसकी जन्म लग्न से नवम व दशम भाव पर दृष्टि है। नवमेश सूर्य, दशमेश बुध और एकादशेश शुक्र लग्न में स्थित हैं जो भाग्य और कर्म द्वारा धन लाभ को दर्शाता है। द्वितीयेश शनि और चतुर्थेश बृहस्पति का शुभ राशि विनिमय है। लग्न से चतुर्थ भाव तक 6 ग्रहों की स्थिति भाग्यशाली योग बना रही है।
उदाहरण कुंडली 2: जातक बजाज स्कूटर व मोटर साईकिल इंडस्ट्रीज का स्वामी और देश का एक प्रमुख उद्योगपति है। लग्नेश शुक्र द्वितीय भाव में है। द्वितीयेश व पंचमेश बुध और चतुर्थेश सूर्य के साथ लग्न में स्थित होने से बलवान धन योग बना रहे हैं। यह योग पूर्व जन्म के पुण्य से अपने प्रयास द्वारा इस जीवन में विशेष सफलता देता है। नवमेश और दशमेश योगकारक शनि एकादश (लाभ) मित्र भाव में है तथा लाभेश बृहस्पति की दशमस्थ स्थिति शुभ राशि विनिमय है जो भाग्य से प्रगति और धन लाभ दर्शाता है। शनि और बृहस्पति स्वनवांश में होने से बलवान हैं। अपने भाग्य और प्रयास द्वारा उन्होंने विशेष स्थान बनाया है।
उदाहरण कुंडली 3: जातक बिरला ग्रुप का स्वामी और देश का एक धनाढ्य उद्योगपति है। उसका संसार के युवा करोड़पति उद्योगपतियों में आठवां स्थान है। उनकी कुंडली के विशेष धन कारक योग इस प्रकार हैं- लग्नेश चंद्रमा द्वितीय भाव में है। चंद्रमा अपने नवांश में स्थित होकर बलवान है। द्वितीयेश सूर्य लाभ भाव में है और लाभेश शुक्र, उच्चस्थ धनकारक और नवमेश बृहस्पति के साथ, लग्न में है। यह एक विशेष धनकारक और वैभवशाली योग है। नवमेश बृहस्पति की पंचम भाव तथा स्वराशि नवम भाव पर और नवम भाव स्थित शनि पर दृष्टि है, जो बृहस्पति की दृष्टि को एकादश भाव स्थित सूर्य तक पहुंचा रहा है। पंचमेश और दशमेश योगकारक मंगल की नवम भाव तथा स्वराशि दशम भाव पर दृष्टि है। एकादश भाव से तृतीय भाव तक धन कारक ‘शुभ मालिका योग’ है।