अष्टकवर्ग का नियम है कि कोई भी ग्रह स्वराद्गिा या उच्च का क्यों न हो, तभी अच्छा फल दे सकता है जब वह अपने अष्टकवर्ग में 5 या 5 इससे अधिक बिंदुओं के साथ हो क्योंकि तब वह ग्रह बली माना जाता है। अतः यदि बुध ग्रह बुधाष्टकवर्ग में 5 या इससे अधिक बिंदुओं के साथ तथा सर्वाष्टक वर्ग में भी 28 या अधिक बिंदुओं के साथ हो तो उससे संबंधित भावों के शुभ फल प्राप्त होते हैं। यदि सर्वाष्टकवर्ग में 28 से अधिक बिंदु व बुधाष्टकवर्ग में 4 से भी कम बिंदु हों तो फल सम आता है। यदि दोनों ही वर्गों में कम बिंदु हों तो ग्रह के अद्गाुभ फल प्राप्त होते हैं। कारकत्व के अनुसार बुध से बुद्धि, मामा, मित्र, कुटुंब आदि का विचार किया जाता है। भारतीय ज्योतिष में फलकथन हेतु अष्टकवर्ग विद्या की अचूकता व सटीकता का प्रतिशत सबसे अधिक है। अष्टकवर्ग विद्या में लग्न और सात ग्रहों (सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि) को गणना में सम्मिलित किया जाता है। बुध ग्रह द्वारा विभिन्न भावों व राशियों को दिए गए शुभ बिंदु तथा बुध का ‘शोध्यपिंड’ - ये ‘ बुधाष्टकवर्ग’ से किए गए फलकथन का आधार होते हैं। (बुधाष्टकवर्ग जैसे अनेक वर्ग व शोध्यपिंड की गणना कंप्यूटर में आसानी से की जा सकती है)।
अष्टकवर्ग विद्या में नियम है कि कोई भी ग्रह चाहे वह स्वराषि या उच्च का ही क्यों न हो, तभी अच्छा फल दे सकता है जब वह अपने अष्टकवर्ग में 5 या इससे अधिक बिंदुओं के साथ हो क्योंकि तब वह ग्रह बली माना जाता है। अतः यदि बुध ग्रह बुधाष्टकवर्ग में 5 या इससे अधिक बिंदुओं के साथ तथा सर्वाष्टक वर्ग में भी 28 या अधिक बिंदुओं के साथ तो उससे संबंधित भावों के शुभ फल प्राप्त होते हैं। यदि सर्वाष्टकवर्ग में 28 से अधिक बिंदु व बुधाष्टकवर्ग में 4 से भी कम बिंदु हों तो फल सम आता है। यदि दोनों ही वर्गाें में कम बिंदु हों तो ग्रह के अषुभ फल प्राप्त होते हैं। कारकत्व के अनुसार बुध से बुद्धि, मामा, मित्र, कुटुंब आदि का विचार किया जाता है। बुधाष्टकवर्ग: यदि कुंडलियों में बुधाष्टकवर्ग का उपयोग कर फलकथन हेतु निम्न सिद्धांतों या नियमों को अपनाया जाए तो अधिक सटीक परिणाम सामने आते हैं -
1. जिस राषि में बुधाष्टक वर्ग में अधिक बिंदु हों, उसमें गोचरवश बुध के आने पर कुटुंब, मित्र तथा मामा तीनों के शुभफल कहना चाहिए। उदाहरण: ईषा कत्याल, (16.5.1995, 15ः45, फरीदाबाद) जातका के बुधाष्टकवर्ग में मेष व कन्या राषि में 7-7 शुभ बिंदु हैं। अप्रैल 2002 में जब बुध का गोचर मेष राषि से था तो जातका के मामा ने उच्च षिक्षा बहुत अच्छे अंकों से उत्तीर्ण की थी।
2. बुधाष्टकवर्ग में शोधन से पूर्व बुध की राषि से चैथे स्थान के बिंदुओं को बुध के शोध्य पिंड से गुणाकर 27 से भाग देने पर जो शेष आए, उस तुल्य नक्षत्र या उससे त्रिकोण नक्षत्र में शनि के आने पर कुटुंबादि को कष्ट समझना चाहिए। जातका के बुधाष्टकवर्ग में बुध से चैथे स्थान में 4 बिंदु हैं और बुध का शोध्यपिंड 135 है। अतः 4 ब्135 = 540 » 27 शेषफल त्र 0 या 27 सत्ताईसवां नक्षत्र रेवती है और रेवती के त्रिकोण नक्षत्र आष्लेषा और ज्येष्ठा हैं। अक्तूबर 1997 में जब शनि का गोचर रेवती नक्षत्र से हो रहा था तो जातका के मामा को टाइफाइड के कारण एक महीने परेषानी उठानी पड़ी।
3. बुधाष्टकवर्ग में शोधन से पूर्व बुध की राषि से चैथे स्थान के बिंदुओं को बुध के शोध्य पिंड से गुणाकर 12 से भाग देने पर जो शेष आए, उसके तुल्य राषि या उससे त्रिकोण राषि में शनि के आने पर कुटुंबादि को कष्ट समझना चाहिए। जातका के बुधाष्टकवर्ग में बुध से चैथे स्थान में 4 बिंदु हैं और बुध का शोध्यपिंड 135 है। अतः 4 ब् 135 = 540 » 12 शेषफल त्र 0 या 12 बाहरवीं राषि मीन है और इसकी त्रिकोण राषियां वृष्चिक और कर्क हैं। अक्तूबर 1997 में जब शनि का गोचर मीन राषि से हो रहा था तो जातका के मामा एक महीने तक टाइफाइड से ग्रस्त रहे।
4. बुध के अष्टकवर्ग में बुध जिस राषि में हो, उससे चैथी राषि में जितने शुभ बिंदु होंगे, उतने ही मामा या बंधु जातक के हांेगे। जातका के बुधाष्टकवर्ग में बुध से चैथे स्थान सिंह राषि में 4 बिंदु हैं और जिन चार ग्रहों के कारण ये चार बिंदु मिले हैं, वे हैं चंद्र, मंगल, शुक्र और शनि। इनमें से चंद्र नीच राषि में और शुक्र शत्रु राषि में है। अतः इन दोनों ग्रहों से प्राप्त बिंदुओं को हटाने पर शेष 2 बिंदु रह जाते हंै। जातका के 2 ही मामा हैं।
5. महापुरुष राजयोग में अगर बुध 5 या 5 से अधिक बिंदु के साथ हो, तो जातक धनवान, कलाकार और बुद्धिमान होता है। उदाहरण: लियेंडर पेस(17.06.1973, 12.00, कोलकाता) जातक की कंुडली में भद्र महापुरुष राजयोग है क्योंकि बुध अपनी राषि मिथुन में स्थित होकर केंद्र में बैठा है। बुधाष्टकवर्ग में बुध के पास 6 शुभ बिंदु भी है। जिस कारण जातक अति धनवान, टेनिस खेल का कलाकार व बुद्धिमान भी है।
6. बुध अगर मंगल या गुरु के साथ 5 या 5 से अधिक ंिबंदु लेकर बैठा हो, तो जातक वैज्ञानिक होता है। उदाहरणः जे. केप्लर, (27.4.1571, 22.06, वील, जर्मनी) जातक की कुंडली में बुध ग्रह मंगल के साथ बैठा है और उसके बुधाष्टकवर्ग में 6 शुभ बिंदु भी हैं। इस स्थिति के फलस्वरूप जातक एक विष्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक बना।
7. बुध से दूसरे घर में यदि 4 या 4 से अधिक बिंदु हों तो जातक अच्छा वक्ता होता है। अगर अषुभ ग्रह ने बिंदु दिए हों तो जातक झूठे वायदे करने वाला व हांकने वाला होता है। अगर गुरु ने बिंदु दिए हैं तो वह आध्यात्मिक वक्ता होता है। शुक्र ने बिंदु दिए हों तो कला से संबंधित व सत्य बोलने वाला होता है। बुध के कारण हाजिर जवाब व विनोदपूर्ण वक्ता होता है। चंद्र के प्रभाव के कारण प्रफुल्लित मन का और सूर्य का प्रभाव हो तो उत्साह बढाने वाला होता है।
1. हरिवंषराय बच्चन (27.11.1907, 05.23, इलाहाबाद) कुंडली में बुधाष्टकवर्ग में बुध से दूसरे भाव में 4 शुभ बिंदु हैं जिनमें से शुक्र के प्राप्त बिंदु भी हैं जिस कारण जातक एक कवि हृदय के कुषल वक्ता थे।
2. महात्मा गांधी (02.10.1869, 07ः11, पोरबंदर) कुंडली में तुला लग्न है व बुध लग्न में ही स्थित है। बुधाष्टकवर्ग में बुध से दूसरे भाव अर्थात वृष्चिक राषि में 5 शुभ बिंदु हैं जो कि गुरु, शुक्र जैसे शुभ ग्रहों के भी दिए हुए हैं। इसी कारण वे अपने जीवन में सत्यवादी, कुषल आध्यात्मिक वक्ता रहे।
3. सद्दाम हुसैन, (28.4.1937, 08.15, टिकरित, ईराक) कंुडली में बुधाष्टकवर्ग में बुध से दूसरे भाव में 6 शुभ बिंदु हैं जो कि शनि, मंगल जैसे अषुभ ग्रहों के साथ-साथ गुरु, शुक्र जैसे शुभ ग्रहों ने भी दिए हैं। इसी कारण जातक के बोलने की कला में विविधता थी। जहां उसने अपने वाक चातुर्य से ईराक की जनता व सेना पर एक छत्र राज किया वहीं वह एक कोमल हृदय का कवि व लेखक भी था।
8. साहित्यिक उपलब्धि के लिए बुध से पांचवां भाव देखा जाता है। उदाहरण के लिए स्वामी विवेकानंद (12.01.1863, 06ः23) की कुंडली में बुध के अष्टकवर्ग में बुध से पंाचवें भाव में 7 बिंदु हैं जिसके फलस्वरूप वह एक महान साहित्यकार बने।
9. बुध का राषि स्वामी अगर केंद्र या त्रिकोण में 4 या 4 से अधिक बिंदु के साथ हो तो यष, षिक्षा व ज्ञान की प्राप्ति होती है। उदाहरण के लिए स्वामी विवेकानंद की कुंडली में बुध राषि का स्वामी शनि केंद्र में 5 बिंदुओं के साथ है। अतः वह षिक्षा और ज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी रहे।
10. बुध के अष्टकवर्ग में यदि 5 बिंदु के साथ बुध, शनि से चैथे, छठे या दसवें घर में हो तथा 3 बिंदु के साथ केतु पांचवें घर में हो या पंचमेष के साथ हो तो जातक एक ज्योतिषी होता है।
11. बुध के अष्टकवर्ग में जिस राषि को 4 या 4 से अधिक बिंदु प्राप्त हों तथा उस पर गुरु की दृष्टि भी हो तो उस राषि से बुध का गोचर विद्यारंभ का श्रेष्ठ समय होता है। उदाहरण: वंदना (25.03.1969, 12ः05, गुड़गांव) बुधाष्टकवर्ग में मकर राषि में 5 बिंदु हैं और उस पर गुरु की दृष्टि भी है। फरवरी 1973 के पहले सप्ताह में जब जातका की पढाई आरंभ हुई तो उस समय का बुध मकर राषि में ही गोचर कर रहा था। उसके बाद तो जातका ने डबल एम. ए. व बी. एड. तक की परीक्षा भी उत्तीर्ण की।
12. बुध के अष्टकवर्ग में शोधन से पूर्व उससे दसवें भाव में बिंदुओं की संख्या को उसके शोध्य पिंड से गुणा करके 27 का भाग देने पर जो संख्या शेष आए उससे जुड़े नक्षत्र के ऊपर शनि का गोचर आजीविका में व्यवधान व निराषा देता है। उदाहरण: इंदर सहगल (20.06.1967, 01ः12, रोहतक) जातक का बुध मिथुन राषि में है। बुध के अष्टकवर्ग में उससे दसवें भाव में शोधन से पूर्व 5 बिंदु हैं और बुध का शोध्य पिंड 138 है। अतः 5 को 138 का गुणा कर 27 का भाग देने पर 15 शेष बचता है। 15वां नक्षत्र है स्वाति और इसके त्रिकोण नक्षत्र हैं- शतभिषा व आद्र्रा। जून 2003 में जब जातक का चला चलाया काम ठप्प हो गया और उसे नौकरी भी नहीं मिल रही थी, उस समय शनि का गोचर आद्र्रा नक्षत्र से हो रहा था।
13. बुध के अष्टकवर्ग में शोधन से पूर्व उससे दूसरे भाव में बिंदुओं की संख्या को बुध के शोध्य पिंड से गुणा करके 12 का भाग देने पर जो संख्या शेष आए उससे जुड़ी राषि या बुध स्थित राषि से उतनी ही संख्या आगे की राषि या इनसे त्रिकोण राषि के ऊपर गुरु का गोचर शुभ फल देता है। जातक का बुध मिथुन राषि में है। बुध के अष्टकवर्ग में उससे दूसरे भाव में शोधन से पूर्व 2 बिंदु हों और बुध का शोध्य पिंड 138 है। अतः 2 को 138 का गुणा कर 276 मिला। इसे 12 का भाग देने पर 12 शेष बचता है। 12वीं राषि मीन है व मीन से त्रिकोण राषियां हैं - वृष्चिक व कर्क। इसके अतिरिक्त बुध की मिथुन राषि से यदि 12 राषि आगे गिनें तो वृष राषि आती है और वृष की त्रिकोण राषियां कन्या व मकर हैं। इन राषियों से गुरु का गोचर जातक के लिए शुभ होना चाहिए। अगस्त 2005 में जब जातक की नौकरी लगी, उस समय गुरु का गोचर कन्या राषि से हो रहा था।
14. बुधाष्टकवर्ग में बुध की राषि से अगली राषि में यदि बिंदुओं की संख्या: Û शून्य हो तो व्यक्ति अपनी बात कहने में असमर्थ होता है। Û शून्य या एक हो तो व्यक्ति गूंगा होता है। Û दो या तीन हों तो चंचल व वाचाल होता है। Û चार हों तो दूसरे की बात का समर्थन करने वाला होता है। Û पांच या छह हों तो प्रिय, औचित्ययुक्त व न्यायसंगत बोली बोलता है।े Û सात या आठ हों तो तर्कसम्मत व लोकप्रिय बात कहता है।