फिदेल कास्त्रो
फिदेल कास्त्रो

फिदेल कास्त्रो  

शरद त्रिपाठी
व्यूस : 5094 | अकतूबर 2016

कास्त्रो की कुंडली है तुला लग्न की व नवांश है वृश्चिक लग्न की। लग्न के स्वामी शुक्र व नवांश के स्वामी मंगल दोनों ही क्रमशः लग्न व नवांश में दशम भाव में बैठकर लग्न को बलवान बना रहे हैं। सुखेश व पंचमेश शनि लग्न में उच्चस्थ होकर ‘शश’ नामक महापुरूष योग बना रहे हैं। उनका जन्म एक जमींदार परिवार में हुआ था। उन्हें अपने परिवार में सभी सुख-सुविधाएं प्राप्त थीं। उनके पिता जमींदार थे पर वे अपने खेतों में काम करने वाले मजदूरों के सुख-दुख का सदैव ध्यान रखते थे। अपने पिता का यह गुण फिदेल को विरासत में मिला था। साथ ही शनि जब उच्चस्थ होकर लग्न में विराजमान हो और तृतीय पराक्रम व दशम कर्म भाव पर पूर्ण दृष्टि डाल रहे हों तो निश्चित रूप से जातक कमजोर वर्ण के अधिकारों को लेकर विचारशील होता है। ऐसा ही कुछ फिदेल के साथ भी था। वे अन्याय बर्दाश्त नहीं करते थे। शनि को दंडाधिकारी कहा गया है।

शनि का यह गुण फिदेल को प्राप्त हुआ। चतुर्थ भाव प्रजा का भाव है और दशम भाव शासक वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है। फिदेल ने अन्याय कभी भी बर्दाश्त नहीं किया। जब वे पांचवीं कक्षा में पढ़ते थे तो एक बार उनकी गलती न होने पर भी वार्डेन ने उन्हें मारा। इस पर फिदेल उन पर उल्टा झपट पड़े। बड़ी मुश्किल से उन्हें वार्डेन से अलग किया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि उन्हें व उनके भाइयों को विद्यालय से निकाल दिया गया। अन्याय के खिलाफ फिदेल का यह बड़ा विद्रोह था और आगे जाकर यह उनके व्यक्तित्व की एक प्रमुख विशेषता बन गया। चतुर्थ भाव प्राथमिक शिक्षा का भाव है। चतुर्थेश शनि यद्यपि लग्न में उच्चस्थ है किंतु चतुर्थ के व्ययेश बृहस्पति चतुर्थ में बैठे हैं। यही कारण है कि प्रारंभिक शिक्षा काफी अवरोधों के बाद पूर्ण हुई। 1941 में फिदेल ने काॅलेज में प्रवेश किया किंतु वहां भी उन्हें ऐसी परिस्थितियां मिलीं जिसके कारण उन्हें अपने विरोधियों का सामना करने के लिए हथियार भी उठाना पड़ा।


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फिदेल के लग्नेश शुक्र पराक्रमेश बृहस्पति के नक्षत्र और राहु के उपनक्षत्र में है। लग्न पर मंगल की पूर्ण दृष्टि है, मंगल स्वराशिस्थ है और दो मारक भावों के स्वामी भी हैं। लग्न में बैठे हुए शनि जो कि पंचमेश भी है पराक्रमेश बृहस्पति के नक्षत्र और शुक्र के उपनक्षत्र में है। यही कारण था कि फिदेल अन्याय को बर्दाश्त नहीं कर पाते थे और उसके विरोध में पूरी शक्ति लगा देते थे। फिदेल की आक्रामकता व लड़ाई सिर्फ बुराई के खिलाफ थी। फिदेल का कहना था कि अन्याय के खिलाफ मेरी लड़ाई में सम्मान, नैतिकता तथा सच्चाई मेरे सबसे बड़े हथियार हैं। फिदेल का राजनैतिक सफर उनके काॅलेज से ही शुरू हो गया था। उन पर क्यूबा के महान क्रांतिकारी जोंसमार्ती, क्यूबा के एक प्रमुख नेता चिबास तथा माक्र्सवादी साहित्य का काफी प्रभाव पड़ा था। फिदेल को बचपन से महादशाएं भी अनुकूल ही प्राप्त हुईं। जन्म के तीन माह बाद मंगल की महादशा प्रारंभ हुई।

मंगल मारकेश है साथ ही आक्रामकता व आवेग मंगल का गुण है। उसके बाद 18 वर्ष की राहु की महादशा। राहु पराक्रमेश बृहस्पति के नक्षत्र में और लग्नस्थ शनि के उपनक्षत्र में अपनी उच्च राशि में नवमस्थ है। शनि तुला लग्न में योगकारक होते हैं। शनि पर राहु की पूर्ण दृष्टि है और शनि के उपनक्षत्र में होने के कारण राहु ने पूरा योगकारी प्रभाव ग्रहण कर लिया है। काॅलेज की राजनीति के बाद फिदेल की लड़ाई शुरू हुई देश के भ्रष्ट राजनेताओं के साथ। दशम भाव में लग्नेश, भाग्येश तथा लाभेश अर्थात शुक्र, बुध तथा सूर्य की युति दशम भाव को मजबूत कर रही है। इस पर चतुर्थेश शनि जो कि उच्चस्थ भी है की पूर्ण दृष्टि शुभता को बढ़ा रही है जिसके कारण फिदेल को अपने संघर्ष में विजय प्राप्त हुई। साथ ही बुध व्ययेश भी है और लाभेश सूर्य अपने से व्यय भाव दशम में है और कर्मेश चंद्रमा व्यय भाव में है। शुभ योगों के साथ ही अशुभ योग भी निश्चित रूप से अपना प्रभाव दिखाते हैं।

यही कारण है कि फिदेल को अपने विरोधियों को परास्त करने में काफी संयम का परिचय देना पड़ा। वे कई बार परास्त हुए, कई बार मरते-मरते बचे लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी क्योंकि उन्हें अपनी सच्चाई पर भरोसा था। 1951 में उनकी बृहस्पति की महादशा प्रारंभ हुई। बृहस्पति पराक्रमेश और षष्ठेश है। बृहस्पति मारकेश मंगल के नक्षत्र और योगकारक शनि के उपनक्षत्र में चतुर्थ भाव में बैठकर नीचभंग राजयोग निर्मित कर रहे हैं। ‘‘नीचे यस्तस्थ नीचोच्चमेशौ द्वावेक एव वा केन्द्रस्थश्र्चच्चक्रवर्ती भूपः स्याद् भूपवन्दितः।। 30 ।। फलदीपिका, सप्तम अध्याय यदि कोई ग्रह नीच राशि में हो और उस नीच राशि का स्वामी और नीच ग्रह जिस राशि में उच्च का होता है उसका स्वामी वह एक या दोनों लग्न से केंद्र में हो तो नीचभंग राजयोग होता है। बृहस्पति के नीच नाथ शनि लग्न में केंद्रस्थ है। इसके कारण बृहस्पति जो कि पराक्रमेश और षष्ठेश हैं, नीच भंग राजयोग बना रहे हैं। चतुर्थ भाव प्रजा का भाव है।


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इसी कारण कास्त्रो ने गरीब व उपेक्षित वर्ग व जनता की जरूरतों व अधिकारों के लिए संघर्ष में अपना पूरा जीवन लगा दिया। दशम भाव सत्ता का होता है। दशम भाव में भाग्येश बुध व लाभेश सूर्य ने बैठकर उनके कर्मक्षेत्र को मजबूत किया। 1959 मंे वे क्यूबा के प्रधानमंत्री बने। दशा चल रही थी नीचभंग राजयोग बनाने वाले बृहस्पति की जिनकी पूर्ण दृष्टि दशम भाव पर है। अमेरिका व सोवियत संघ जैसे बड़े देशों ने काफी प्रयास किया कास्त्रो के क्रांतिकारी विचारों को दबाने पर किंतु कास्त्रो ने अन्याय का सदैव विरोध करना सीखा था और वे उसमें सफल भी हुए। कहा जाता है सी. ई. ए. ने उन्हें 638 बार मरवाने की कोशिश की जो असफल रहीं। कास्त्रो कहते हैं हत्याओं की साजिशों से बचने का यदि ओलम्पिक में कोई इनाम होता तो उन्हें गोल्ड मेडल जरूर मिलता। कास्त्रो ने अपने शासन काल में 10 हजार से भी ज्यादा नये स्कूल खोले, परिणामस्वरूप क्यूबा में साक्षरता दर 98 प्रतिशत तक पहुंच गई है।

वहां नवजात शिशुओं की मृत्यु दर मात्र 1.1 प्रतिशत है जिससे विकसित सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं का पता चलता है। सार्वजनिक जीवन के बाद अब हम बात करेंगे फिदेल के व्यक्तिगत जीवन की। फिदेल के सप्तमेश मंगल सप्तमस्थ हैं। मंगल शुक्र के नक्षत्र और शुक्र के ही उपनक्षत्र में है। मंगल पर चतुर्थेश व पंचमेश शनि की पूर्ण दृष्टि भी है। फिदेल का विवाह एक अभिजात्य वर्ग की महिला से 1948 में हुआ था। महादशा चल रही थी राहु की। राहु की दशा विवाह की नैसर्गिक कारक कही जाती है। फिदेल की आयु उस समय मात्र 22 वर्ष की थी। सप्तमेश सप्तम में स्वराशिस्थ है और योगकारक शनि से दृष्ट है। यह शीघ्र विवाह का उत्तम योग है। पंचमेश लग्न में बैठकर सप्तम व सप्तमेश को देख रहे हैं जिस कारण उनका विवाह भी शीघ्र हुआ और पुत्र संतान की प्राप्ति भी हुई।

किंतु सप्तमेश मंगल बृहस्पति के नक्षत्र में बैठे हैं जिसके कारण उनका यह विवाह मात्र 7 वर्ष चला और तलाक हो गया। बृहस्पति षष्ठेश है जो कि सप्तम का व्यय भाव है। सप्तम और पंचम का घनिष्ठ संबंध है जिसके कारण उनके कई प्रेम प्रसंगों की चर्चा भी सुनाई पड़ती है। शनि पंचमेश होने के साथ ही पंचम के व्यय भाव चतुर्थ के स्वामी भी हैं। इस कारण उनके प्रेम प्रसंग भी टिकाऊ नहीं रहे। यद्यपि उनके प्रथम विवाह के अलावा किसी भी संबंध का कोई ठोस प्रमाण नहीं है। 19 फरवरी 2008 को अपने खराब स्वास्थ्य के कारण कास्त्रो ने क्यूबा का राष्ट्रपति पद त्याग दिया। आजकल शासन की बागडोर उनके छोटे भाई राउल संभाल रहे हैं।


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वे क्रांति के दिनों से उनके निकट सहयोगी रहे हैं। कारण स्पष्ट है क्योंकि छोटे भाई का भाव है तृतीय और तृतीयेश बृहस्पति का शुभ प्रभाव फिदेल की कुंडली में सर्वत्र दृष्टिगोचर हो रहा है। 2008 में दशा भी केतु की चल रही थी जो कि तृतीयस्थ है। फिदेल कास्त्रो का जीवन सभी के लिए सदैव प्रेरणादायक रहेगा। उन्होंने आत्मसम्मान, नैतिकता तथा सच्चाई जैसे हथियारों के बल पर अपने संघर्ष में विजय प्राप्त कर ली और स्वयं को दुनिया के लिए मिसाल बना दिया।



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