ज्योतिष में उच्च शिक्षा योग
ज्योतिष में उच्च शिक्षा योग

ज्योतिष में उच्च शिक्षा योग  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 10850 | जून 2014

प्रश्न: ज्योतिष में उच्च शिक्षा (पीएच. डी) प्राप्त करने के क्या योग हैं? उदाहरण सहित सविस्तार वर्णन करें। वर्तमान युग में शिक्षा के महत्व एवं अनिवार्यता से कोई अनभिज्ञ नहीं है। शिक्षा के बिना जीवन अधूरा है। आज न केवल पारिवारिक उत्तरदायित्वों का वहन करने के लिए वरन राजकीय सेवाओं, उद्योगों, व्यवसायों, घरेलू उद्यमों इत्यादि में सफलता प्राप्त करने तथा राजयोगों का स्वयं लाभ प्राप्त करने के लिए शिक्षा अपरिहार्य है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी भी प्रकार की शिक्षा का विचार करने के लिए निम्नलिखित सूत्रों का अध्ययन करना अत्यावश्यक है-


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1. लग्न व लग्नेश

2. द्वितीय व द्वितीयेश

3. तृतीय व तृतीयेश,

4. चतुर्थ व चतुर्थेश,

5. पंचम व पंचमेश,

6. नवम व नवमेश,

7. चंद्र, बुध व गुरु। शिक्षा से संबंधित भावों के विषय में प्राचीन विद्वानों में मतभेद रहा है।

आचार्य वाराहमिहिर, महर्षि पाराशर इत्यादि ने बुद्धि एवं विद्या का विचार पंचम भाव से माना है। रामानुजाचार्य एवं मंत्रेश्वर ने शिक्षा का विचार द्वि तीय, तृतीय एवं पंचम भावों से किया है। सर्वार्थचिंतामणि के रचयिता श्रीमदप्ययसुत वेंकटेश शर्मा तथा जातक पारिजात के रचनाकार दैवज्ञ वैद्यनाथ के अनुसार क्रमशः तृतीय एवं पंचम भाव (सर्वार्थ चिंतामणि) तथा चतुर्थ भाव (जातक पारिजात) से शिक्षा का विचार किया है।

भी प्रकार की शिक्षा के लिए तीन बातों की आवश्यकता होती है- विवेकशक्ति, बुद्धि, प्रतिभा एवं स्मरण शक्ति (पंचम भाव), शिक्षा की प्रक्रिया (चतुर्थ भाव) तथा विद्या (द्वितीय भाव)। दक्षिण भारत में चतुर्थ भाव को व उत्तर भारत में पंचम भाव को प्राथमिकता प्रदान की जाती है। बुध विवेकशक्ति, बुद्धि, स्मरणशक्ति का कारक है।

गुरु ज्ञान का नैसर्गिक कारक है तथा चंद्र लग्न स्वरूप मन का कारक है। शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्वस्थ मन की आवश्यकता होती है। अतः बुध, गुरु व चंद्र की स्थिति का अध्ययन करना आवश्यक है। यदि उपरोक्त सभी सूत्र बली तथा शुभ प्रभावित हों तो जातक उच्च स्मरण शक्ति युक्त तथा उच्च शिक्षित होता है। शिक्षा का विचार पुरूष जातक एवं स्त्री जातक की जन्मकुंडलियों में समान प्रकार से किया जाता है।

शिक्षा के अनेक प्रकार होते हैं। गणित, विज्ञान, भूगोल, वेद-पुराण, संगीत, काव्य संगीत, चित्रकला, अभिनय, वाद्य, साहित्य, विधि, व्याकरण, अध्यात्म, दर्शनशास्त्र, ज्योतिष आदि। सूर्य से वेदांत, चंद्र से वैधक, मंगल से मुख्यतः न्याय एवं गणित आदि का बुध से आयुर्वेद, कंप्यूटर, गणित, संगीत, सांख्यिकी, कला की प्रखरता, ज्योतिष और गान की दिव्यता आदि का ज्ञान होता है। गुरु से वेदांग ज्योतिष, वेद-पुराण, अध्यात्म इत्यादि का विचार किया जाता है। शुक्र से व्याख्यान शक्ति, साहित्य, गायन, आर्किटेक्चर, साज-सज्जा, चित्रकारी इत्यादि का ज्ञान होता है। राहु और शनि से विदेशी विद्या या भाषा का ज्ञान प्राप्त होता है।

बुध और शुक्र की स्थिति से विद्वत्ता तथा पांडित्य एवं कल्पना शक्ति का अनुमान होता है। द्वितीय भाव एवं नवम भाव से भी बौद्धिक स्तर, बुद्धि की प्रखरता, स्मरण शक्ति, रूचि, अरूचि और अभिरूचि का स्तर पता चलता है। ज्ञातव्य है कि लग्न के अतिरिक्त गुरु से भी द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, नवम स्थान से भी विद्यार्जन का अभिज्ञान होता है। विशेषतः यदि गुरु से बुध या बुध से गुरु दृष्ट हो अथवा संयुक्त हो। शिक्षा एवं स्मरण शक्ति से संबंधित योग गुरु और चंद्र में राशि परिवर्तन योग हो। -पंचम भाव व पंचमेश शुभ मध्यत्व में हो।

-गुरु, बुध व शुक्र केंद्र या त्रिकोण में हो तथा बली हो। -पंचमेश उच्च राशिस्थ हो।

-दशमेश पंचम में हो, बुध केंद्र में हो तथा बलवान सूर्य सिंह राशि में हो। -बली पंचमेश केंद्र या त्रिकोण में हो।

- चतुर्थेश व पंचमेश में राशि परिवर्तन हो तथा बुध बली हो। -पंचमेश नवमस्थ हो तथा शुभ ग्रह की दृष्टि हो।

-द्वितीयेश व चतुर्थेश में राशि परिवर्तन हो तथा गुरु बली हो। -पंचम में बुध हो तथा पंचमेश बलवान हो।

-लग्नेश व पंचमेश में राशि परिवर्तन हो। -पंचम में गुरु हो तथा पंचमेश बुध बली हो।

-नवमेश केंद्र या त्रिकोण में हो।

- द्वितीयेश व गुरु केंद्र या त्रिकोण में हों।

-पंचमेश नवम में हो तथा पंचमेश गुरु शुभ ग्रह के मध्यत्व में हो।

-पंचमेश दशम या एकादश में हो।

-द्वितीयेश व पंचमेश में राशि परिवर्तन हो या दोनों की युति हो।

-चंद्र से त्रिकोण में गुरु तथा बुध से त्रिकोण में मंगल हो।

-पंचमेश की नवांश राशि के स्वामी पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तथा पंचमेश शुभ ग्रह हो।

- बुध पंचमेश (कुंभ या वृषभ लग्न) हो तथा उस पर किसी केंद्र या त्रिकोण से गुरु की दृष्टि हो।

-बुध की नवांश राशि का स्वामी केंद्र या त्रिकोण में हो तथा उस पर पंचमेश की दृष्टि हो।

-बुध बलवान हो तथा पंचमेश शुभ दृष्ट हो अथवा पंचम में शुभ ग्रह हो।

-पंचम भाव की राशि व नवांश राशि के स्वामी शुभ ग्रह हों तथा पंचम में गुरु शुभ मध्यत्व में हो।

-गुरु और बुध में युति या दृष्टि संबंध हो तथा दोनों में से किसी एक का संबंध तृतीय या नवम् भाव से हो।

इन योगों में जातक बुद्धिमान, प्रतिभाशाली, तीव्र स्मरणशक्ति युक्त तथा शिक्षित होता है। विवेक, बुद्धि एवं स्मरणशक्ति से संबंधित जो योग ऊपर दिए गए हैं उसमें उत्पन्न जातक बुद्धिमान, प्रतिभाशाली, तीव्र स्मरण शक्ति युक्त तथा शिक्षित होता है। उपरोक्तानुसार योग जातक की शिक्षा के आधार स्तंभ हैं।

किसी भी जातक की कुंडली में उपरोक्त योगों में से एकाधिक योग हों तो जातक को उच्च सामान्य शिक्षा अथवा विशिष्ट शिक्षा प्राप्त करने में सफलता प्राप्त होती है। उपरोक्त योगों के साथ-साथ ग्रहों के पारस्परिक संबंधों के कारण जातक विभिन्न प्रकार की शिक्षा की ओर आकर्षित होता है तथा रूचि लेने लगता है। उपरोक्त रूचि एवं लक्ष्य के अनुरूप ही उसकी शिक्षा होती है।

प्राचीन काल से हमारे ऋषि-मुनिगण अपने अनुभवों के आधार पर ग्रहयोगों को देखकर भविष्यवाणियां करते रहे हैं। बहुत से हमारे पथप्रदर्शक मर्मज्ञ ज्योतिर्विद् पाराशर, भृगु, जैमिनी, कृष्णमूर्ति, पंडित व्यास इत्यादि ने इस ज्ञान को बढ़ाने में अपना योगदान दिया है। जो ग्रह योग हमारे आचार्यों ने दिए इन्हीं को आधार मानकर आगे लोग ज्योतिष ज्ञान अर्जित कर व्यावसायिक व पारिवारिक व्यवसाय के रूप में बढ़ाकर ज्योतिषी जाने जाते रहे हैं।

समय बदलता गया और इसी बदलते समय के अनुसार ज्योतिषीगण ग्रह समीकरण अगली पीढ़ी को देते गये। यह एक ऐसा ज्ञान व व्यवसाय के रूप में उभरकर आया है जिसका संबंध मानव जीवन से सतत बना हुआ है। जिज्ञासा ज्ञान अर्जन करने की जननी होने के कारण गूढ़ ज्ञानों को प्राप्त करने की लालसा पढे़-लिखे लोगों तक पहुंची और इस गूढ़ विद्या को ज्यादा से ज्यादा अपनाकर लोगों ने ज्योतिषी वर्ग में अपना नाम अर्जित किया है।

जातक का शिक्षित होना एक अलग विषय है जबकि जातक के प्रतिभावान, योग्य और किसी विशेष दिशा में गुणवान होने हेतु शिक्षा की अनिवार्यता नहीं है। विज्ञान का अध्ययन तो सभी विज्ञान के छात्र करते हैं परंतु आइंस्टीन, न्यूटन के समान वही वैज्ञानिक पहुंच सकता है जिसकी जन्मकुंडलियों में अतुलनीय वैज्ञानिक बनने के अद्भुत योग हों।

ज्योतिष शास्त्र का अध्ययन करने से कोई वाराहमिहिर या पाराशर नहीं बन सकता। अतः इन ग्रह योगों का अध्ययन अपेक्षित है जो जातक को दिशा विशेष में प्रतिभा और गति प्रदान करते हैं। सर्वप्रथम आवश्यक है कि जन्मकुंडली में पंचम भाव अथवा पंचमेश के बली होने पर तथा किसी भी प्रकार से पापाक्रांत न होने पर ही जातक विद्वान बनता है।


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इसी बात को ध्यान में रखते हुए इस तर्कशील समाज में ग्रहों का विस्तृत विवेचन कर इस विचार-गोष्ठी में लाया गया है, कि कौन से ग्रह, योग, भावेशों से संबंध, ग्रह गोचर, दशाएं, नक्षत्र योग होने पर ही जातक ज्योतिष में उच्च शिक्षा (पीएच.डी) में प्रवीणता प्राप्त कर सकता है। ज्योतिषी बनने तथा इस शास्त्र में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के कुछ ग्रहयोगों का विवरण प्रस्तुत है जो गहन अनुसंधान के उपरांत पाए गए हैंः

-द्वितीय तथा तृतीय भाव में बुध शुक्र हों तो (अ) द्वितीय में उच्च राशिगत गुरु हो तो (ब) एकादश में, केंद्र या त्रिकोण में बुध हो और द्वितीयेश बलवान हो तो जातक ज्योतिषियों के मध्य में श्रेष्ठ होता हैै।

- बुद्धि व ज्ञान का कारक ग्रह गुरु बलवान होकर बली चंद्र के साथ गजकेसरी योग, लग्न, पंचम, अष्टम व नवम भावों में बनने पर जातक ज्योतिषी एवं हस्त रेखा विशेषज्ञ होता है।

-पंचम अथवा सप्तम भाव में बुध शुक्र की युति हो तो जातक ज्योतिषी होता है।

-जन्मकुंडली में बुध गुरु की युति हो या उनमें दृष्टि संबंध होकर अष्टम भाव से संबंधित हो जाये तो जातक गूढ़ विद्याओं का ज्योतिषी होता है।

-बुध केंद्र में हो, गुरु बली हो, शुक्र द्वितीय भाव में हो तथा तृतीय भाव में कोई शुभ ग्रह हो या द्वितीय भाव शुक्र ही उच्चस्थ हो तो जातक श्रेष्ठ ज्योतिषी होता है।

- दशम स्थान में बुध$गुरु $लग्न ेश$प ंचम ेश$अष्टम ेश$नवम ेश इत्यादि जितने भी अधिकाधिक ग्रह होंगे जातक उतना ही सफल ज्योतिषी होगा।

-शुक्ल पक्ष की पंचमी से लेकर कृष्ण पक्ष की पंचमी तक का चंद्र पूर्ण बली होकर गुरु, बुध व सूर्य से संबंध बनाए एवं इनपर दशमेश अथवा एकादशेश की दृष्टि हो।

- शुक्र द्वितीयेश स्थान में और बुध या गुरु तृतीयस्थ हो अथवा द्वितीय स्थान में शुक्र उच्चस्थ हो तथा द्वितीय गुरु बली होकर केंद्र या त्रिकोणगत हो तो जातक ज्योतिषशास्त्र का ज्ञाता होता है। ऐसे जातक को ज्योतिष शास्त्र, हस्तरेखा शास्त्र या भविष्य कथन से संबंधित अन्य पक्षों का अध्ययन करना चाहिए।

-पंचम या नवम मंे गुरु तथा केंद्रस्थ बुध के साथ-साथ बली द्वितीयेश जातक को सफल ज्योतिषी बनाते हैं। ऐसे जातक को ज्योतिष विद्या या भविष्यकथन से संबंधित किसी भी विद्या का अध्ययन करना चाहिए।

-द्वितीय स्थान वाणी का है। इस स्थान में यदि पंचमेश या बुध अथवा गुरु अष्टमेश के साथ युति करें तो जातक गूढ़ विद्या एवं पूर्व जन्म की बातें बताने वाला भविष्यवक्ता होता है।

- चतुर्थ स्थान में बुध हो तो जातक का झुकाव ज्योतिष शास्त्र के अध्ययन की ओर होता है। यदि गुरु भी त्रिकोणगत हो तो जातक ज्योतिष शास्त्र का विशिष्ट विद्वान होता है।

-कंद्र या त्रिकोण में बुद्धिकारक ग्रह हो और वह शुभ ग्रहों के नवांश में हो एवं बुध व शुक्र से युक्त व दृष्ट हो तो उक्त योग में जन्मा जातक भविष्यवक्ता होता है। ऐसा होरा शास्त्र वेत्ताओं ने कहा है।

-अष्टमेश पंचमेश के साथ लग्न में स्थित होकर द्वितीयेश एवं एकादशेश से दृष्ट हों या अन्य संबंध हों तो भी जातक ज्योतिष विज्ञान में सफल होता है।

- बुध या गुरु केंद्र या त्रिकोण में हो और वहां पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो जातक श्रेष्ठ ज्योतिषी होता है।

- बुध और गुरु का परस्पर राशि परिवर्तन हो तथा साथ ही पंचमेश व नवमेश की इन दोनों ग्रह से युति या दृष्टि संबंध हो तो जातक ज्योतिष क्षेत्र में अपार सफलता प्राप्त करता है।

- सूर्य या मंगल द्वितीयेश हों और वह गुरु से या शुक्र से दृष्ट हों तो जातक फलित ज्योतिष का ज्ञाता होता है। इसी प्रकार द्वितीय स्थान में कर्क राशि में गुरु हो तो भी जातक की शिक्षा उपरोक्तानुसार होता है।

-लग्न, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम या दशम स्थान में बुध हो तो जातक फलित ज्योतिष का ज्ञाता होता है। इन्हीं भावों में गुरु के होने से यही फल प्राप्त होता है।

-गुरु स्वराशि के नवांश मंे हो तथा कारकांश कुंडली के पंचम भाव में बुध या गुरु की स्थिति हो तो भी जातक फलित विशेषज्ञ होता है।

- पंचम या नवम स्थान में गुरु-चंद्र की युति होने पर जातक ज्योतिषी, सामुद्रिकवेत्ता या कवि होता है। विज्ञान का अर्थ है किसी भी क्षेत्र से संबंधित ज्ञान। मुख्यतः जीव विज्ञान भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान व वनस्पति विज्ञान को ही वास्तविक विज्ञान समझा जाता है

जबकि ज्योतिष शास्त्र भी एक विज्ञान है और इसे विज्ञान की श्रेणी में सम्मिलित किया जाना ही पर्याप्त तर्क संगत है ताकि ज्योतिष शास्त्र में समस्त विश्व लाभान्वित होने हेतु आश्वस्त हो सके। ज्योतिष शास्त्र में पीएच. डी. (शोध) करने वाले जातकों को भी वैज्ञानिकों की श्रेणी में रखना चाहिए। जब कोई शोधकर्ता संबंधित शोध को सिद्ध करने के उपरांत सिद्धांत प्रतिपादित करने में सफल होता है उसे संतान जन्म के सुख के समान आनंद की अनुभूति होती है।

शोध कार्यों को परिणाम तक पहुंचने में एक गहन साधना, सर्वांग चिन्तन, संदर्भित स्थितियों का तार्किक विवेचन और विश्लेषण सम्मिलित होता है। यहां पर हम उन विशेष ग्रहयोगों तथा स्थितियों का विश्लेषण करेंगे जिनके जन्मपत्रिका में होने पर जातक एक सफल शोधकत्र्ता (पीएच. डी.) के रूप में प्रशंसित और प्रतिष्ठित होता है।

इस विचार-गोष्ठी में हम वेद-चक्षु ज्योतिष के प्रकाश में शोधकर्ताओं के जन्मांगों का अध्ययन और ग्रह योगों की चर्चा कर रहे हैं जिनमें जातक ज्योतिष शास्त्र के अतिरिक्त अन्य शास्त्रों का भी शोधकर्ता होता है।

सूत्र क्र. 1: बुध एवं गुरु का संबंध पंचम स्थान तथा दशम स्थान से होना चाहिए।

सूत्र क्र. 2: लग्न और पंचम स्थान का बलशाली होना अपेक्षित है। यदि नवम स्थान बलवान है तो जातक को शोध के उपरांत यश, कीर्ति और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है।


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सूत्र क्र. 3: इसी प्रकार द्वितीय स्थान तथा एकादश स्थान के बलशाली होेने पर उनके अधिपतियों के अनुकूल स्थिति पंचमेश और नवमेश के साथ संबद्ध होने पर जातक शोधकर्ता होने के साथ-साथ अत्यधिक धन इकट्ठा करने में भी सफल होता है।

सूत्र क्र . 4: शोधकर्ता जातक के जन्मांग में मंगल की अवहेलना नहीं की जा सकती है क्योंकि मंगल कठोर मेहनत, तलस्पर्शी चिंतन तथा गणना का कारक ग्रह है।



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