’’सपने जेहि सन होई लराई,
जागे समुझत मन सकुचाई।’’
जो यथार्थ में नहीं है, अवास्तविक
है उसे सच की भांति साकार रूप में
देखने का नाम स्वप्न है अर्थात जो
अपना नहीं है, उसे निद्रा में आंखों
के सामने देखना सपना है। नहीं को
सही में देखना ही तो स्वप्न कहलाता
है।
आधुनिक विज्ञानियों ने स्वप्न विषयक
जिन तथ्यों का पता लगाया, उनमें
से अधिकांश ऋषियों के निष्कर्षों से
मेल खाते पाए गए हैं। बृहदारण्यक
में जागृत एवं सुषुप्त अवस्था के
समान मानव के मन की तीसरी
अवस्था स्वप्न अवस्था मानी गई है।
जिस प्रकार मनुष्य के संस्कार उसे
जागृतावस्था में आत्मिक संतोष और
प्रसन्नता प्रदान करते हैं, उसी प्रकार
जो भी स्वप्न आएंगे वे उज्ज्वल
भविष्य की संभावनाओं के प्रतिबिंब
ही होंगे।
शिकागो विश्वविद्यालय के दो छात्रों
नेपोलियन क्लीरमां तथा सूजोन
ऐसेटिस्की जब इस संबंध में शोध
करने बैठे तो उन दोनों का शोध
कार्य तो पूर्ण नहीं हो सका पर स्वप्न
से संबंधित कई नये तथ्य सामने
आए। उन्होंने पाया, कि जब कोई
स्वप्न देखता है, तो उसकी आंखों की
पुतलियां ठीक उसी प्रकार घूमती हैं
जिस प्रकार जागृतावस्था में कोई भी
दृश्य आदि देखते समय घूमती हैं।
अर्थात आंखंे उस समय बंद रहते हुए
भी देखती हैं।
जागते हुए जो दिवा स्वप्न हम
देखते हैं वे मात्र कल्पनाएं ही होती
हैं पर सुषुप्तावस्था में जो कल्पनाएं
की जाती हैं उन्हें स्वप्न कहते हैं।
निरर्थक, असंगत स्वप्न उथली नींद
में ही आते हैं जो उद्विग्न करने
वाले होते हैं। वस्तुतः मनुष्य निरंतर
जागता नहीं रह सकता। यदि किसी
को सोने ही न दिया जाए तो वह मर
जाएगा। मनुष्य अपने जीवन का एक
तिहाई भाग निद्रा में व्यतीत करता है
और निद्रा का अधिकांश भाग स्वप्नों
से आच्छादित रहता है।
भारतीय शास्त्रादि स्वप्न को दृश्य और अदृश्य के बीच की द्वार अर्थात संधि द्वार कहते हैं मनुष्य इस द्वार से इस लोक को भी देख सकता है और परलोक को भी। इस लोक को सन्धि स्थान व स्वप्न स्थान कहते हैं।
स्वप्नों का संबंध मन व आत्मा से
होता है तो इनका संबंध चंद्र और
सूर्य की युति से लगाते हैं। गोविंद
राज विरचित रामायण भूषण के
स्वप्नाध्याय का वचन है कि जो स्त्री
या पुरुष स्वप्न में अपने दोनों हाथों
से सूर्यमंडल अथवा चंद्र मंडल को
छू लेता है, उसे विशाल राज्य की
प्राप्ति होती है। अतः स्पष्टतया किसी
भी व्यक्ति को शुभ समय की सूचना
देने वाले स्वप्नों से यह पूर्वानुमान
किया जा सकता है। चंद्र की स्थिति
व दशाएं शुभ होने पर एवं सूर्य की
स्थिति व दशाएं आदि कारक होने
पर शुभ स्वप्न दिखाई पड़ेंगे अन्यथा
अशुभ। प्रत्यक्ष रूप में देखा जाए तो
स्वप्न का आने या न आने का कारण
सूर्य व चंद्र ग्रह ही होते हैं क्योंकि
सूर्य का संबंध आत्मा से और चंद्र
का संबंध मनुष्य के मन से होता है।
दुःखद या दुःस्वप्नों के आने का
कारण हमारा मोह और पापी मन
ही है। यही बात अथर्ववेद में भी
आती है।
‘यस्त्वा स्वप्नेन तमसा मोहयित्वा
निपद्यते’
अर्थात मनुष्य को अपने अज्ञान और
पापी मन के कारण ही विपत्तिसूचक
दुःस्वप्न आते रहते हैं। इनके
निराकरण का उपाय बतलाते हुए
ऋषि पिप्यलाद कहते हैं कि यदि
स्वप्नावस्था में हमें बुरे भाव आते
हों तो ऐसे दुःस्वप्नों को पाप-ताप,
मोह-अज्ञान एवं विपत्ति जन्य जानकर
उनके निराकरण के लिए ब्रह्म की
उपासना शुरू कर देनी चाहिए
ताकि हमारी दुर्भावनाएं, दुर्जनाएं,
दुष्प्रवृत्तियां शांत हो जाएं जिससे
मन में सद्प्रवृत्तियों, सदाचरणों,
सद्गुणों की अभिवृद्धि हो और शुभ
स्वप्न दिखाई देने लगे और आत्मा
की अनुभूति होने लगे। वाल्मीकि
रामायण के प्रसंगों से स्पष्ट है कि
पापी ग्रह मंगल, शनि, राहु तथा केतु
की दशा, अंतर्दशा तथा गोचर से
अशुभ स्थानों में होने पर बुरे स्वप्न
दिखाई देते हैं जो जीवन में आने
वाली दुरवस्था का मनुष्य को बोध
कराते हैं। साथ ही शुभ ग्रहों की दशा
अंतर्दशा में शुभ ग्रहों के शुभ स्थान
पर गोचर में अच्छे स्वप्न दिखाई देते
हैं। आकाश में ऊपर उठना उन्नति
तथा अभ्युदय का द्योतक है जबकि
ऊपर से नीचे गिरना अवनति व कष्ट
का परिचायक है।
बुरे स्वप्न आना तभी संभव है जब
लग्न को, चतुर्थ एवं पंचम भाव को
प्रभावित करता हुआ ग्रहण योग
(राहु+चंद्र, केतु+सूर्य, राहु+सूर्य,
केतु+चंद्र) और चांडाल योग (गुरु
व राहु की युति) वाली ग्रह स्थिति
निर्मित हो या इसी के समकक्ष
दशाओं, गोचरीय ग्रहों का दुर्योग बन
जाए। इसके विपरीत लग्न, चतुर्थ/
पंचम भाव को प्रभावित करते हुए शुभ
ग्रहों के संयोग के समय अच्छे स्वप्न
आने की कल्पना की जा सकती है।
जब हमें कोई अच्छे सुखद स्वप्न
दिखाई देते हैं, तो हमारा मन
पुलकित हो जाता है, हमें सुख की
अनुभूति होने लगती और हम प्रसन्न
हो जाते हैं। परंतु जब हमें बुरे स्वप्न
दिखते हैं तो मन घबरा जाता है,
हमें एक अदृश्य भय सताने लगता
है और हम दुखी हो जाते हैं। विद्व
ानों के अनुभवों से हमें यह बात ज्ञात
होती है कि इस तरह के बुरे, डरावने
स्वप्न दिखाई देने पर यदि नींद खुल
जाए तो हमें पुनः सो जाना चाहिए।
स्वप्नों के स्वरूप
फलित ज्योतिष में स्वप्नों को
विश्लेषणों के आधार पर सात भागों
में बांटा जाता है- दृष्ट स्वप्न, शृत
स्वप्न, अनुभूत स्वप्न, प्रार्थित स्वप्न,
सम्मोहन या हिप्नेगोगिया स्वप्न,
भाविक स्वप्न और काल्पनिक स्वप्न।
दृष्ट स्वप्न
दिन प्रतिदिन के क्रिया कलापों
को सोते समय स्वप्न रूप में देखे
जाने वाले सपनों को दृष्ट स्वप्न
कहा जाता है। ये सपने कार्य क्षेत्र
में अत्यधिक दबाव और किसी वस्तु
या कार्य में अत्यधिक लिप्तता के
कारण या मन के चिंताग्रस्त होने
पर दिखाई देते हैं। इसलिए इनका
कोई फल नहीं होता। कभी सोने से
पूर्व किसी प्रकरण पर विचार विमर्श
किया गया हो और किसी बात ने
मन को प्रभावित या उद्वेलित किया
हो, तो भी मनुष्य सपनों के संसार में
विचरण करता है।
शृत स्वप्न
भयावह फिल्म देखकर या उपन्यास
पढ़कर सपनों में भयभीत होने वालों
की संख्या कम नहीं है। इन सपनों
को शृत स्वप्न कहा जाता है। ये
सपने भी बाह्य कारणों से दिखाई देने
के कारण निष्फल होते हैं।
अनुभूत स्वप्न
जागृत अवस्था में कोई बात कभी
मन को छू जाए या किसी विशेष
घटना का मन पर प्रभाव पड़ा हो
और उस घटना की स्वप्न रूप में
पुनरावृत्ति हो जाए, तो ऐसा स्वप्न
अनुभूत सपनों की श्रेणी में आता है।
इनका भी कोई फल नहीं होता।
प्रार्थित स्वप्न
जागृत अवस्था में देवी देवता से
की गई प्रार्थना, उनके सम्मुख की
गई पूजा-अर्चना या इच्छा सपने में
दिखाई दे, तो ऐसा स्वप्न प्रार्थित
स्वप्न कहा जाता है। इन सपनों का
भी कोई फल नहीं होता।
काल्पनिक स्वप्न
जागृत अवस्था में की गई कल्पना
सपने में साकार हो सकती है किंतु
यथार्थ जीवन में नहीं और इस प्रकार के सपनों की गणना भी फलहीन
सपनों में की जाती है।
सम्मोहन या हिप्नेगोगिया स्वप्न
मनुष्य रोगों से पीड़ित होने पर, वात,
पित्त या कफ बिगड़ने पर जो स्वप्न
देखता है, वे भी निष्फल ही होते हैं।
नींद की वह अवस्था, जिसे मेडिकल
साइंस की भाषा में हिप्नेगोगिया और
भारतीय भाषा में सम्मोहन कहा जाता
है। इसमें व्यक्ति न तो पूरी तरह
से सोया रहता है और न पूरी तरह
से जागा। इसमें देखे गए सपने भी
निष्फल होते हैं।
इस तरह ऊपर वर्णित सभी छः
प्रकार के सपने निष्फल होते हैं। ये
सभी असंयमित जीवन जीने वालों के
सपने हैं। विश्व में 99.9 प्रतिशत लोग
असंयमित जीवन ही अधिक जीते हैं।
यही कारण है कि ये लोग स्वप्न की
भाषा नहीं समझकर स्वप्न विज्ञान
की, स्वप्न ज्योतिष की खिल्लियां
उड़ाते रहते हैं। स्वप्न के बारे में
इनकी धारणाएं नकारात्मक सोच
वाली ही होती हैं।
भाविक स्वप्न
जो स्वप्न कभी देखे न गए हों, कभी
सुने न गए हों, अजीबोगरीब हों, जो
भविष्य की घटनाओं का पूर्वाभास
कराएं, वे भाविक स्वप्न ही फलदायी
होते हैं। पाप रहित मंत्र साधना
द्वारा देखे गए स्वप्न भी घटनाओं
का पूर्वाभास कराते हैं। मानव का
प्रयोजन इसी प्रकार के स्वप्नों से है।
जन्मकालीन या गोचरीय कालसर्प
योग वाली ग्रह स्थिति अर्थात
राहु-केतु के मुख में सभी ग्रहों के
समा जाने वाली स्थिति के निर्मित हो
जाने पर भगवान शंकर के कंठहार
पंचमी तिथि के देवता स्वप्न में आकर
मनुष्यों के दिल को दहला देते हैं।
ऐसा सपना देखकर मनुष्य का मन
मस्तिष्क विचलित हो उठता है।
अरिष्टप्रद सूर्य, चंद्र, राहु और केतु के
मंत्र जप व स्तोत्र पाठ से तथा दान,
शांति कर्म के उपायों को अपनाकर
व्यक्ति दुखद स्वप्नों के अनिष्टों से
बचने में समर्थ हो सकता है।
स्वप्न फल विचार
जब भी किसी व्यक्ति के जीवन में
कोई असाधारण परिस्थिति होती है,
स्वप्न आते हैं। कुछ विशिष्ट स्वप्न
याद भी रहते हैं। ब्रह्म मुहूर्त के स्वप्न
अक्सर सच भी होते हैं। रात के
प्रथम, द्वितीय अथवा तृतीय प्रहर में
दिखने वाले स्वप्न लंबे समय के बाद
सच होते हुए पाए जाते हैं।
स्वप्नों के विषय में कुछ प्रतीकों को
हमारी लोक संस्कृति में मान्यता प्राप्त
है, जो इस प्रकार हैं।
- किसी की मृत्यु देखना -उसकी
लंबी आयु होना
- सीढ़ी चढ़ना - उन्नति
- आकाश में उड़ना - उन्नति
- सर्प अथवा जल देखना - धन
की प्राप्ति
- बीमार व्यक्ति द्वारा काला सर्प
देखना - मृत्यु
- सिर मुंड़ा देखना - मृत्यु
- स्वप्न में भोजन करना - बीमारी
- दायां बाजू कटा देखना - बड़े
भाई की मृत्यु
- बायां बाजू कटा देखना - छोटे
भाई की मृत्यु
- पहाड़ से नीचे गिरना - अवनति
- स्वयं को पर्वतों पर चढ़ता
देखना- सफलता
- विद्यार्थी का स्वयं को फेल होते
देखना - सफलता
- कमल के पत्तों पर खीर खाते हुए
देखना - राजा के समान सुख
- अतिथि आता दिखाई देना -
अचानक विपत्ति
- अंधेरा ही अंधेरा दिखाई देना -
कष्ट या मानहानि
- स्वयं को मृत देखना - आयु
वृद्धि
- आत्म हत्या करना - दीर्घायु
- उल्लू दिखाई देना - रोग व
शोक
- आग जलाकर उसे पकड़ता हुआ
देखना - अनावश्यक व्यय
- आपरेशन होता दिखाई देना -
किसी बीमारी का सूचक
- इमारत बनती दिखाई देना - धन
लाभ व तरक्की