भगवान् दत्तात्रेय का उपासना तंत्र शीघ्र कामना की सिद्धि करने वाला माना जाता है। भगवान् दत्तात्रेय को अवतार की संज्ञा दी गयी है। कलियुग में अमर और प्रत्यक्ष देवता के रूप में भगवान् दत्तात्रेय सदा प्रशंसित एवं प्रतिष्ठित रहेंगे। दत्तात्रेय तंत्र देवाधिदेव महादेव शंकर के साथ महर्षि दत्तात्रेय का एक संवाद पत्र है।
मोहन प्रयोग
तुलसी-बीजचूर्ण तु सहदेव्य रसेन सह।
रवौ यस्तिलकं कुर्यान्मोहयेत् सकलं जगत्।।
तुलसी के बीज के चूर्ण को सहदेवी के रस में पीस कर तिलक के रूप में उसे ललाट पर लगाएं। उससे उसको देखने वाले मोहित हो जाते हैं।
हरितालं चाश्वगन्धां पेषयेत् कदलीरसे।
गोरोचनेन संयुक्तं तिलके लोकमोहनम्।।
हरताल और असगन्ध को केले के रस में पीस कर उसमें गोरोचन मिलाएं तथा उसका मस्तक पर तिलक लगाएं तो उसको देखने से सभी लोग मोहित हो जाते हैं।
श्रृङ्गि-चन्दन-संयुक्तो वचा-कुष्ठ समन्वितः।
धूपौ गेहे तथा वस्त्रे मुखे चैव विशेषतः।।
राजा प्रजा पशु-पक्षि दर्शनान्मोहकारकः।
गृहीत्वा मूलमाम्बूलं तिलकं लोकमोहनम्।।
काकडा सिंगी, चंदन, वच और कुष्ठ इनका चूर्ण बनाकर अपने शरीर तथा वस्त्रों पर धूप देने तथा इसी चूर्ण से तिलक लगाने पर राजा, प्रजा, पशु और पक्षी उसे देखने मात्र से मोहित हो जाते हैं। इसी प्रकार ताम्बूल की जड़ को घिस कर उसका तिलक करने से लोगों का मोहन होता है।
सिन्दूरं कुङ्कुमं चैव गोरोचन समन्वितम्।
धात्रीरसेन सम्पिष्टं तिलकं लोकमोहनम्।।
सिन्दूर, केशर, और गोरोचन इन तीनों को आंवले के रस में पीसकर तिलक लगाने से लोग मोहित हो जाते हैं।
सिन्दूरं च श्वेत वचा ताम्बूल रस पेषिता।
अनेनैव तु मन्त्रेण तिलकं लोकनोहनम्।।
सिन्दूर और सफेद वच को पान के रस में पीस कर आगे उद्धृत किये मंत्र से तिलक करें तो लोग मोहित हो जाते हैं।
अपामार्गों भृङ्गराजो लाजा च सहदेविका।
एभिस्तु तिलकं कृत्वा त्रैलोक्यं मोहयेन्नरः।।
अपामार्ग-ओंगा, भांगरा, लाजा, धान की खोल और सहदेवी इनको पीस कर उसका तिलक करने से व्यक्ति तीनों लोकों को मोहित कर लेता है।
श्वेतदूर्वा गृहीता तु हरितालं च पेषयेत्।
एभिस्तु तिलकं कृत्वा त्रैलोक्यं मोहयेन्नरः।।
सफेद दूर्वा और हरताल को पीसकर उसका तिलक करने से मनुष्य तीनों लोकों को मोह लेता है।
मनःशिला च कर्पूरं पेषयेत् कदलीरसे।
तिलकं मोहनं नृणां नान्यथा मम भाषितम्।।
मैनसिल और कपूर को केले के रस में पीस कर तिलक करने से वह मनुष्यों को मोहित करता है।
अथ कज्जल विधानम् गृहीत्वौदुम्बरं पुष्पं वर्ति कृत्वा विचक्षणैः।
नवनीतेन प्रज्वाल्य कज्जलं कारयेन्निशि।।
कज्जलं चांजयेन्नेत्रे मोहयेत् सकलं जगत्।
यस्मै कस्मै न दातव्यं देवानामपि दुर्लभम्।।
बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि गूलर के पुष्प से कपास रूई के साथ बत्ती बनाए और उस बत्ती को नवनीत से प्रज्वलित कर जलती हुई ज्वाला से काजल निकाले तथा उस काजल को रात में अपनी आंखों में लगा लें। इस काजल के लगाने से वह समस्त जगत को मोहित कर लेता है। ऐसा सिद्ध किया हुआ काजल किसी भी व्यक्ति को नहीं दें।
अथ लेपविधानम्
श्वेत-गुंजारसे पेष्यं ब्रह्मदण्डीय-मूलकम्।
शरीरे लेपमात्रेण मोहयेत् सर्वतो जगत्।।
श्वेतगुंजा सफेद घूंघची के रस में बह्मदण्डी की जड़ को पीस लें और उसका शरीर में लेप करें तो उससे समस्त जगत् मोहित हो जाता है।
पंचांगदाडिमी पिष्ट्वा श्वेत गुंजा समन्विताम्।
एभिस्तु तिलकं कृत्वा मोहयेत् सकलं जगत्।।
अनार के पंचांग (जड़, पत्ते फल, पुष्प और टहनी) को पीसकर उसमें सफेद घुंघुची मिलाकर तिलक लगाएं। इस तिलक के प्रभाव से व्यक्ति समस्त जगत को मोहित कर लेता है।
मन्त्रस्तु - इन प्रयोगों की सिद्धि के लिए अग्रिम दिए हुए मंत्रों के दस हजार जप करने से लाभ होता है।
” ऊँ नमो भगवते रुद्राय सर्वजगन्मोहनं
कुरु कुरु स्वाहा।“
अथवा
” ऊँ नमो भगवते कामदेवाय यस्य यस्य दृश्यो भवामि
यश्य यश्य मम मुखं पश्यति तं तं मोहयतु स्वाहा।।
आकर्षण प्रयोग
कृष्ण धत्तूरपत्राणां रसं रोचनसंयुतम्।
श्वेतकर्वीर लेखन्या भूर्जपत्रे लिखेत् ततः।।
मन्त्रं नाम लिखेन्मध्ये तापयेत् खदिराग्निना।
शतयोजनगो वापि शीघ्रमायाति नान्यथा।
काले धतूरे के पत्रों से रस निकालकर उसमें गोरोचन मिलाएं और स्याही बना लें। फिर सफेद कनेर की कलम से भोजपत्र पर जिसका आकर्षण करना हो उसका नाम लिखें और उसके चारों ओर मंत्र लिखें। फिर उसको खैर की लकड़ी से बनी आग पर तपाएं, इससे जिसके लिए प्रयोग किया हो, वह सौ योजन दूर गया हो तो भी शीघ्र ही वापस आ जाता है।
अनामिकाया रक्तेन लिखेन्मन्त्रं च भूर्जके।
यस्य नाम लिखन्मध्ये मधुमध्ये च निक्षिपेत्।।
तेन स्यादाकर्षणं च सिद्धयोग उदाहृतः।
यस्मै कस्मै न दातव्यं नान्यथा मम भाषितम्।।
अनामिका अंगुली के रक्त से भोजपत्र पर मंत्र लिखें और मध् य में अभीष्ट व्यक्ति का नाम लिख कर मधु में डाल दें, इसमें जिसका नाम लिखा हुआ होगा उसका आकर्षण हो जाएगा। यह सिद्ध योग कहा गया है।
अथाकर्षण मंत्र
” ऊँ नम आदिपुरुषाय अमुकस्याकर्षणं कुरु कुरु स्वाहा।“
एकलक्षजपान्मन्त्रः सिद्धो भवति सर्वथा।
अष्टोत्तरशतजपादग्रे प्रयोगोऽस्य विधीयते।।
इस मंत्र का एक लाख बार जप करने से यह मंत्र पूर्ण रूप से सिद्ध हो जाता है। तदंतर प्रयोग से पूर्व इस मंत्र का 108 बार जप करके इसका प्रयोग किया जाता है।
सर्वजन वशीकरण प्रयोग
ब्रह्मदण्डी वचाकुष्ठ चूर्ण ताम्बूल मध्यतः।
पाययेद् यं रवौ वारे सोवश्यो वर्तते सदा।।
ब्रह्मदण्डी, वच और कुठ के चूर्ण को रविवार के दिन पान में डालकर खिला दें। जिसको खिलाया जाए वह सदैव के लिए वश में हो जाता है।
गृहीत्वा वटमूलं च जलेन सह घर्षयेत्।
विभूत्या संयुतं शाले तिलकं लोकवश्यकृत।।
बड़ के पेड़ की जड़ को पानी में घिस कर उसमें भस्म मिलाएं और उसका तिलक लगाएं तो उसे देखने वाले लोग वशीभूत हो जाते हैं।
पुष्ये पुनर्नवामूलं करे सप्ताभिमन्त्रितम्।
बुद्ध्वा सर्वत्र पूज्येत सर्वलोक वशङ्करः।।
पुष्य नक्षत्र के दिन पुनर्नवा की जड़ को लाकर उसे वशीकरण मंत्र से सात बार अभिमंत्रित करें और हाथ में बांधे तो वह सर्वत्र पूजित होता है तथा सभी लोग उसके वशीभूत हो जाते हैं।
पिष्ट्वाऽपामार्गमूलं तु कपिला पयसा युतम्।
ललाटे तिलकं कृत्वा वशीकुयोज्जगत्त्रयम्।।
कपिला गाय के दूध में अपामार्ग आंधी झाड़ा की जड़ को पीस कर ललाट पर तिलक करने से त्रिलोक को भी वश में किया जा सकता है।
गृहीत्वा सहदेवीं च छायाशुष्कां च कारयेत्।
ताम्बूलेन च तच्चूर्ण सर्वलोकवशंकरः।।
सहदेवी को छाया में सुखाकर उसका चूर्ण बना लें तथा उसे पान में डाल कर खिलाएं तो सभी का वशीकरण हो जाता है।
रोचना सहदेवीभ्यां तिलकं लोकवश्यकृत्।
गोरोचन और सहदेवी को मिलाकर उसका तिलक करने वाला सब को वश में कर लेता है।
गृहीत्वौदुम्बरं मूलं ललाटे तिलकं चरेत्।
प्रियो भवति सर्वेषां दृष्टमात्रो न संशयः।।
उदुम्बर की जड़ को घिस कर उससे जो तिलक लगाता है, उस पर जिसकी दृष्टि पड़ती है, वह उसके वश में हो जाता है। इसमें कोई संशय नहीं है।
ताम्बूलेन प्रदातव्यं सर्वलोक वशङ्करम्।
यदि गूलर की जड़ का चूर्ण पान में डालकर खिलाया जाए तो उससे वह वश में हो जाता है जिसे यह खिलाया जाता है।
सिद्धार्थ देवदाल्योश्च गुटिकां कारयेद् बुधः।
मुखे निक्षिप्य भाषेत सर्वलोक वशङ्करम्।।
सरसों और देवदाली के चूर्ण की गोली बनाकर उसे मुंह में रखकर बातचीत करने से जिससे बात करता है, वह वश में हो जाता है।
कुङ्कुमं नागरं कुष्ठं हरितालं मनःशिलाम्।
अनामिकाया रक्तेन तिलकं सर्ववश्यकृत।।
केशर, सोंठ, कुठ, हरताल और मैनसिल का चूर्ण करके उसमें अपनी अनामिका अंगुली का रक्त मिलाकर तिलक लगाने से सभी लोग वश में हो जाते हैं।
गोरोचनं पद्मपत्रं प्रियङ्गुं रक्तचन्दनम्।
एषां तु तिलकं भाले सर्वलोक वशङ्करम्।।
गोरोचन, कमल का पत्र, कांगनी और लाल चंदन इनका ललाट पर तिलक करने से व्यक्ति वश में हो जाते हैं।
गृहीत्वा श्वेतगुंजां च छयाशुष्कां तु कारयेत्।
कपिला पयसा सार्द्ध तिलकं लोकवश्यकृत्।।
सफेद घुंघुची को छाया में सुखा कर कपिला गाय के दूध में घिस कर तिलक करने से सर्वजन वश में हो जाते हैं।
श्वेतार्क च गृहीत्वा च छायाशुष्कं तु कारयेत्।
कपिला पयसा सार्द्ध तिलकं लोकवश्यकृत्।।
सफेद मदार (आक) को छाया में सुखा कर कपिला गाय के दूध में घिस कर तिलक करने से सर्वजन वश में हो जाते हैं।
श्वेतार्क च गृहीत्वा च कपिला दुग्ध मिश्रिताम्।
लेपमात्रं शरीरे तु सर्वलोक वशङ्करम्।।
सफेद दूर्वा को कपिला गाय के दूध में मिलाकर शरीर में लेप करने मात्र से सभी जन वश में हो जाते हैं।
बिल्वपत्राणि संगृहय मातुलुंगं तथैव च।
अजादुग्धेन तिलकं सर्वलोक वशङ्करम्।।
बिल्व पत्र और बिजोरा नीबू को बकरी के दूध में पीसकर तिलक करने से सर्वजन वश में हो जाते हैं।
कुमारी मूलमादाय विजया बीज संयुतम्।
तलकं मस्तके कुर्यात् सर्वलोक वशङ्करम्।।
घी कुंवारी की जड़ और भांग के बीज, दोनों को मिलाकर मस्तक पर तिलक करने से सर्वजन वश में हो जाते हैं।
हरितालं चाश्वगन्धा सिन्दूरं कदली रसः।
एषां तु तिलकं भाले सर्वलोक वशङ्करम्।।
हरताल और असगन्ध को सिन्दूर तथा केले के रस म मिलाकर ललाट पर तिलक करने से सर्वजन वश में हो जाते हैं।
अपामार्गस्य बीजानि छागदुग्धेन पेषयेत्।
अनेन तिलकं भाले सर्वलोक वशङ्करम।।
अपामार्ग के बीजों को बकरी के दूध में पीसकर उसका कपाल में तिलक लगाने से समस्त जन वश में होते हैं।
ताम्बूलं तुलसी पत्रं कपिलादुग्धेन पेषितम्।
अनेन तिलकं भाले सर्वलोक वशङ्करम्।।
नागरबेल का पान और तुलसी पत्र को कपिला गाय के दूध में पीस कर उसका मस्तक पर तिलक लगाने से समस्त जन वश में हो जाते हैं।
धात्रीफलरसैर्भाव्यमश्वगन्धा मनः शिला।
अनेन तिलकं भाले सर्वलोक वशङ्करम्।।
आंवले के रस में मैनसिल और असगंध को मिलाकर ललाट पर तिलक करने से समस्त जन वश में हो जाते हैं।
अथ वशीकरण मंत्र
इन उपर्युक्त वस्तुओं को अभिमंत्रित करने का मंत्र इस प्रकार है-
” ऊँ नमो नारायणाय सर्वलोकान् मम वशं कुरु कुरु स्वाहा।“
इसकी प्रयोगात्मक सफलता के लिए
एकलक्षजपान्मन्त्रः सिद्धो भवति नान्यथा।
अष्टोत्तरशतजपात् प्रयोगे सिद्धिरुत्तमा।।
एक लाख जप से यह मंत्र सिद्ध होता है और प्रयोग के समय इस मंत्र का 108 बार जप करके प्रयोग करने से सफलता मिलती है।
युवक एवं युवती वशीकरण प्रयोग
रविवारे गृहीत्वा तु कृष्णधत्तूरपुष्पकम्।
शाखां लतां गृहीत्वा तु पत्रं मूलं तथैव च।।
पिष्ट्वा कर्पूरसंयुक्तं कुङ्कुमं रोचनां तथा।
तिलकैः स्त्रीवशीभूता यदि साक्षादरुन्धती।।
रविवार के दिन काले धतूरे के पुष्प, शाखा, लता और जड़ लेकर उनमें कपूर, केशर और गोरोचन पीसकर मिला दें और तिलक बना लें। इस तिलक को मस्तक पर लगाने से स्त्री चाहे वह साक्षात् अरुंधती जैसी भी हो, तो भी वश में हो जाती है।
काकजङ्घा व तगरं कुङ्कुमं तु मनःशिलाम्।।
चूर्ण स्त्रीशिरसि क्षिप्तं वशीकरणमद्भुतम्।।
काकजङ्घा, तगर, केशर और मैनशिल का चूर्ण बनाकर उसे स्त्री के सिर पर डाले तो वह वश में हो जाती है। यह उत्तम वशीकरण है।
ब्रह्मदण्डीं समादाय पुष्यार्केण तु चूर्णयेत्।
कामार्ता कामिनीं दृष्ट्वा उत्तमाङ्गे विनिक्षिपेत्।।
पृष्ठतः सा समायाति नान्यथा मम भाषितम्।
रवि पुष्य के दिन ब्रह्मदंडी को लाकर उसको पीस लें। तदनंतर जिस काम पीड़ित कामिनी के मस्तक पर वह चूर्ण डाला जाए वह स्त्री ऐसी आकर्षक हो जाती है कि प्रयोग करने वाले पुरुष के पीछे-पीछे वह चली आती है।
राजवशीकरण प्रयोग
कुङ्कुमं चन्दनं चैव कर्पूरं तुलसीदलम्।
गवां क्षीरेण तिलकं राजवश्यकरं परम्।।
केशर, चंदन, कपूर और तुलसी पत्र को गाय के दूध में पीस कर तिलक करने से राजा का वशीकरण हो जाता है।
करे सुदर्शनं मूलं बद्ध्वा राजप्रियो भवेत्।
सुदर्शन जामुन की जड़ को हाथ में बांधकर मनुष्य राजा का अथवा अपने बड़े अधिकारी का प्रिय हो जाता है।
हरितालं चाश्वगन्धां कर्पूरं च मनःशिलाम्।
अजाक्षीरेण तिलकं राजवश्यकरं परम्।।
हरताल, असगंध, कपूर तथा मैनसिल को बकरी के दूध म पीस कर तिलक लगाने से राजा का वशीकरण होता है।
हरेत् सुदर्शनं मूलं पुष्यभे रविवासरे।
कर्पूरं तुलसीपत्रं पिष्ट्वा तु वस्त्रलेपने।।
विष्णुक्रान्तस्य बीजानां तैले प्रज्वाल्य दीपके।
कज्जलं पातयेद रात्रौ शुचिपूर्व समाहितः।।
कज्जलं चांजयेन्नेत्रे राजवश्यकरं परम्।।
जामुन की जड़ को रविपुष्य के दिन लाए और कपूर तथा तुलसीपत्र के साथ पीस कर एक वस्त्र के ऊपर लपेट लें। तदनंतर अपराजिता के बीजों के तेल से दीपक जलाएं। दीपक से रात्रि में पवित्रता और सावधानी से काजल बनाएं और उसे अपने दोनों नेत्रों में लगा लें। ऐसा करने से राजा का वशीकरण होता है।
भौमवारे दर्शदिने कृत्वा नित्यक्रियां शुचिः।
वने गत्वा हयपामार्गवृक्षं पश्येदुदङ् मुखः।।
तत्र विप्रं समाहूय पूजां कृत्वा यथा विधि।
कर्षमेकं सुवर्ण च दद्यात् तस्मै द्विजन्मने।।
तस्य हस्तेन गृहीणीयादपामार्गस्य बीजकम्।
कृत्वा निस्तुषबीजानि मौनी गच्छेन्निजं गृहम्।।
रमेशं हृदये ध्यात्वा राजानं खादयेच्च तान्।
येनकेनाप्युपायेन यावज्जीवं वशं भवेत्।।
मंगलवार के दिन वाली अमावस्या को अपना नित्यकर्म करके पवित्रता पूर्वक वन में चला जाए और वहां उत्तर की ओर मुंह करके खड़ा हो, अपामार्ग वृक्ष को देखे। फिर वहां ब्राह्मण को बुलाकर विधिपूर्वक उसकी पूजा करके उसे 16 माशा सुवर्ण दान दें और उसके हाथ से अपामार्ग के बीजों को साफ करके हृदय में भगवान विष्णु का ध्यान करें और जैसे भी बने वे बीज राजा को खिला दें। इस प्रकार प्रयोग करने से राजा जन्म भर के लिए दास बन जाता है।
तालीस, कुठ और तगर को एक साथ पीस कर लेप बना लें। फिर नर कपाल में सरसों का तेल डालकर रेशमी वस्त्र की बत्ती जलाएं तथा काजल बनाएं। उस काजल को आंखों में लगा लें। इसमें जो भी देखने में आता है वह वश में हो जाता है। यह प्रयोग तीनों लोकों को वश में करने वाला है।
अपामार्गस्य बीजं तु गृहीत्वा पुष्य भास्करे।
खाने पाने प्रदातव्यं राजवश्यकरं परम्।।
रविपुष्य के दिन अपामार्ग के बीज लाकर उन्हें भोजन में अथवा पानी में मिलाकर यदि राजा को खिला दिया जाए तो वह वश में हो जाता है।
थ वशीकरण मंत्र
” ऊँ नमो भास्कराय त्रिलोकात्मने अमुकं महीपतिं वशं कुरु कुरु स्वाहा।“
इसका विधान इस प्रकार है –
एकलक्षजपादस्य सिद्धिर्भवति नान्यथा।
अष्टोत्तरशतजपादस्य प्रयोगे सिद्धिरुत्तमा।।
प्रथम पुरश्चरण के रूप में उपर्युक्त मंत्र का एक लाख बार जप कर लें। इससे निश्चित सिद्धि होती है और प्रयोग करने का अवसर आने पर एक सौ आठ बार जप करके प्रयोग करें तो उसमें पूर्ण सफलता प्राप्त होती है।