रहस्यमय तपोभूमि कैलाश मानसरोवर
रहस्यमय तपोभूमि कैलाश मानसरोवर

रहस्यमय तपोभूमि कैलाश मानसरोवर  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 12646 | अप्रैल 2010

रहस्यमय तपोभूमि कैलाश-मानसरोवर फ्यूचर पॉइंट के सौजन्य से हिमालय भारतीय प्रायद्वीप का ताज और अध्यात्म तथा तप का केंद्र है। इसकी कंदराओं और गुफाओं में आज भी तपस्वीगण तपस्यारत हैं। कैलाश पर्वत इसी हिमालय का एक अति उत्तुंग पर्वत शिखर है,

जिसका नाम सुनते ही मन में इसके दर्शन की लालसा जग उठती है। यह पश्चिमी तिब्बत का 22, 028 फुट ऊंचा एक अद्भुत पर्वत शिखर है। बर्फ की चादरों से ढके काले पत्थर के इस पर्वत का आकार हीरे जैसा है। इसकी पूजा हिंदू, बौद्ध, जैन तथा स्थानीय तिब्बती सब करते हैं। संस्कृत के कई ग्रंथों में उल्लेख है कि भगवान शिव वैकुंठ से भ्रमण करते हुए पृथ्वी पर उतरे और इस पवित्र पर्वत शिखर कैलाश को अपना वासस्थान बना लिया। स्कंद पुराण में कहा गया है कि अति वेगवती पवित्र नदी गंगा कमल के फूल के क्षीण तंतु की तरह भगवान विष्णु के चरणों से निकली और यहां विराजमान देवों के देव महादेव की जटाओं में समा गई, जहां उसका वेग कम हुआ और तब वह धरा पर उतरी।

इस पावन पर्वत शिखर के तल में महावीर हनुमान विराजमान हैं। यहां अनेकानेक अल्पज्ञात देवी-देवताओं, यक्षों, किन्नरों, गंधर्वों, अप्सराओं, मुनि महात्माओं, सिद्धों आदि का वास भी है। कैलाश पर्वत के आसपास का भूभाग ऊबड़-खाबड़ और सूखा है किंतु इसके बीच से स्फटिक की तरह साफ नीले जल की धाराएं प्रबहमान हैं। यहां से लगभग 20 मील दूर तिब्बती पठार में लगभग 30 मील चलने के बाद पर्वतों से घिरे दो विशाल सरोवर मिलते हैं - राक्षसताल और मानसरोवर। कलकल करता पवित्र मानसरोवर विश्व का सबसे ऊंचा स्वच्छ जल का स्रोत है। दूसरे सरोवर राक्षसताल का भी अपना पौराणिक महत्व है। इन सरोवरों के बीच एक पर्वतीय भूखंड है, जिसके कारण ये दोनों एक दूसरे से पृथक हैं। मानसरोवर के निर्मल जल में तैरते हंसों को देखना अपने आप में एक सुखद अनुभूति है। कहा जाता है कि भगवान ब्रह्मा के मानसपुत्र इस सरोवर का पता महाराजा मांधाता ने लगाया।

उन्होंने विशाल पर्वतों के तल में स्थित इस सरोवर के किनारे तप किया। इसके किनारे वृक्षों की सात कतारें थीं और तलहटी में एक विशाल प्रासाद था, जहां नागवंश के राजा नागदेवता का महल था। सरोवर की धनुषाकार सतह पर कभी एक वृक्ष था। कुछ पालि तथा बौद्ध ग्रंथों में इस सरोवर का उल्लेख अनोतत्त या अनवातप्त के रूप में हुआ है, जिसका अर्थ होता है तापमुक्त सरोवर। अन्य ग्रंथों की भांति बौद्ध ग्रंथों में भी इस सरोवर की व्यापक चर्चा मिलती है। कुछ बौद्धों का मानना है कि इसके केंद्र में एक वृक्ष है, जिसके फल दिव्य औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं।


अपनी कुंडली में राजयोगों की जानकारी पाएं बृहत कुंडली रिपोर्ट में


मान्यता है कि इन फलों के सेवन से शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति मिल सकती है। इन्हें पाने की चाह देवी-देवता, यक्ष, गंधर्व, मनुष्य सबको रहती है। इस कल्पवृक्ष के फलों के गिरने से 'जम' की आवाज होती है, इसीलिए इसे जंबु-लिंग या जंबु-द्वीप की संज्ञा दी गई। देवाधिदेव महादेव का साधनास्थल कैलाश पृथ्वी का स्वर्ग है। हर वर्ष हजारों की तायदाद में तीर्थयात्री यहां आते हैं, इसकी परिक्रमा करते हैं और भगवान शिव की कृपा प्राप्त कर लौट जाते हैं। कैसे जाएं कहां ठहरें कैलाश-मानसरोवर की यात्रा के मुखयतः तीन मार्ग हैं। पहला मार्ग पूर्वोत्तर रेलवे के टनकपुर स्टेशन से होकर जाता है। टनकपुर तक रेलयात्रा के बाद बस से पिथौरागढ़ और फिर वहां से पैदल यात्रा करनी पड़ती है। दूसरा मार्ग पूर्वोत्तर रेलवे के ही काठगोदाम स्टेशन से होकर जाता है। स्टेशन से बस द्वारा अल्मोड़ा के कपकोट और फिर पैदल 'ऊटा', 'जयंती' तथा 'कुंगरीविंगरी' घाटियों को पार करके जाना पड़ता है।

तीसरा मार्ग उत्तर रेलवे के ऋषिकेश स्टेशन से होकर जाता है। ऋषिकेश से जोशीमठ तक बस से और फिर पैदल यात्रा करनी पड़ती है। इन तीनों ही मार्गों में यात्रियों को भारतीय सीमा का अंतिम बाजार मिलता है, जहां उन्हें ठहरने का स्थान, भोजन का सामान, बर्तन आदि सुविधापूर्वक मिल जाते हैं। जोशीमठ वाला मार्ग सर्वोत्तम है। इसमें यात्री हरिद्वार, ऋषिकेश, देवप्रयाग तथा बदरीनाथ के मार्ग के अन्य तीर्थों की यात्रा का लाभ भी उठा सकते हैं। भारतीय सीमा के अंतिम बाजार के बाद दुभाषिए गाइड की जरूरत पड़ती है, क्योंकि तिब्बत में हिंदी या अंग्रेजी जानने वाले नहीं मिलते। तिब्बत में रहने के लिए भोजन, मसाले आदि सभी भारतीय अंतिम बाजार से लेने पड़ते हैं। सावधानियां तिब्बत एक अत्यंत ही ठंडा देश है।

यहां हर समय चारों तरफ बर्फ फैली रहती है। इसलिए तीर्थयात्रियों को अपने साथ पर्याप्त गर्म कपड़ रखने चाहिए। साथ ही सुबह और शाम चेहरे एवं हाथों पर वैसलिन तथा अन्य त्वचारक्षक पदार्थ अच्छी तरह लगाते रहने चाहिए अन्यथा त्वचा फट सकती है और नाक में घाव भी हो सकते हैं।

बर्फ पर चलने के लिए विशेष किस्म के जूते पहनने चाहिए। लगभग डेढ़-दो महीने की यह यात्रा अत्यंत ही कठिन है। लगभग साढ़े चार सौ मील की यात्रा पैदल और घोड़े, याक आदि की पीठ पर करनी पड़ती है। इसलिए वृद्धों और छोटे बच्चों को यह यात्रा नहीं करनी चाहिए।


Expert Vedic astrologers at Future Point could guide you on how to perform Navratri Poojas based on a detailed horoscope analysis




Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.