ग्रहों के पक्के घरों को जानने के बाद ग्रहों की आपस में शत्रुता एवं मित्रता को निम्न तालिका द्वारा जाने- इस तालिका में ग्रहों के पारस्परिक संबधों के बारे में बताया गया है। परंतु लाल-किताब पद्धति में इसके अतिरिक्त भी मित्रता एवं शत्रुता की एक विशेष स्थिति के बारे में बताया गया है जो कि कुंडली के फलित में अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
विशेष स्थिति
1. चन्द्र शुक्र बराबर हैं पर चन्द्र दुश्मनी करता है शुक्र से।
2. बृहस्पति शुक्र बराबर हैं पर शुक्र दुश्मनी करता है बृहस्पति से।
3. मंगल शनि बराबर हैं पर मंगल दुश्मनी करता है शनि से।
4. बुध और चंद्र दोस्त हैं पर चन्द्र दुश्मनी करता है बुध से।
5. बुध बृहस्पति का दुश्मन है व चन्द्र बुध का, मगर भाव नं. 2 या 4 में बैठा हुआ बृहस्पति+बुध या चन्द्र+बुध दुश्मनी की बजाय आपस मे पूरी पूरी मदद करेगें। आर्थिक सहायता के लिए।
1. चन्द्र शुक्र बराबर हैं पर चन्द्र दुश्मनी करता है शुक्र से। उपरोक्त स्थिति को उदाहरण द्वारा समझें। उपरोक्त उदाहरण कुंडली नं.1 में चन्द्र पहले घरों (भाव नं. 1 से 6 तक पहले घर कहलातें हैं) में तथा बाद के घरों (भाव नं. 7 से 10 तक बाद के घर कहलातें हैं) में शुक्र के होने से चन्द्र अपनी शत्रुता के कारण शुक्र के फल को खराब करेगा जिसका सीधा अर्थ यह है कि जातक का विवाह 28 वर्ष से पूर्व होने पर जातक का वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं रह पाता। माता और पत्नी के बीच तनाव रहता है या किसी एक का स्वास्थ्य खराब रहता है। इसके साथ साथ आर्थिक परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है।
परन्तु उदाहरण नं 2 में शुक्र का पहले भावों में होना और चन्द्र का बाद के भावों में होने से शुक्र चन्द्र के फलों को खराब नहीं करेगा जिसके फलस्वरुप जातक की पत्नी भाग्यशाली होती है एवं विवाह के उपरान्त आर्थिक प्रगति होती है। बाकी स्थितियों का भी इसी प्रकार विवेचन करेगें। ग्रह, राशि का आपसी संबंध निम्न तालिका में राशि, राशि का स्वामी ग्रह, उसमें होने वाले उच्च-नीच ग्रह आदि को दर्शाया गया है। इसके साथ साथ ग्रहों के पक्के घर, किस्मत को जगाने वाले ग्रह तथा कौन से भाव में ग्रह, ग्रह फल व राशि फल का होगा बताया गया है। यह विवरण लाल-किताब पद्धति से फलित देखने में अत्यन्त सहायक रहेगा। लाल किताब पद्धति के अनुसार जो ग्रह, ग्रह-फल का हो जाये उसका उपाय नहीं करते, केवल राशि फल के ग्रहों का उपाय करते हैं। अतः इस तालिका का अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है।
व्याखया : 1. भाव नं. 2 (बृष) राशि में कोई ग्रह नीच नहीं होता। लाल-किताब पद्धति में इस भाव को राहु व केतु की बैठक माना है तथा इस भाव में कोई भी ग्रह राशि फल का नहीं होता अर्थात इस भाव में आया हुआ ग्रह अपना अपना या अपने अपने कर्मों (अपनी जान से संबंधित पाप-पुण्य) के करने-कराने के स्वयं अधिकारी हैं।
2. भाव नं. 5 (िसह राशि) में कोई भी ग्रह ऊॅंच-नीच नहीं होता। इस भाव में स्थित ग्रह स्वयं अर्जित आय/सन्तान की किस्मत का स्वामी होता है।
3. भाव नं. 11 (कुंभ राशि) में भी कोई उच्च नहीं है। यह भाव तथा इसमें स्थित ग्रह/ग्रहों का संबंध आम दुनिया से किस्मत के लेन-देन से संबंधित है।
4. भाव नं. 8 (वृश्चिक राशि) में कोई ग्रह उच्च नहीं होता।
5. भाव नं. 12 राहु का पक्का घर लिखा है तथा नीच भी माना है इसी तरह भाव नं. 6 केतु का पक्का घर भी हैं एवं केतु को यहां नीच भी माना है। राहु जब बृहस्पति के घर भाव नं. 12 में हो तो नीच होगा वैसे तो बृहस्पति व राहु आपस में दुश्मन न हो कर बराबर के अर्थात सम हैं। राहु को आसमान (भाव नं. 12) व नीला रंग माना है बृहस्पति को हवा। हवा को जब आसमान का साथ मिले या ज्यु-ज्युं हवा आसमान की तरफ ऊंची होती जायेगी हल्की होती जायेगी और सांस लेने के संबंध में निकम्मी होती जायेगी। यही हवा नीचे की तरफ होती जायेगी तो हर एक की मददगार होगी अर्थात राहु को जब बुध का साथ मिले तो नेक असर देगा।
राहु है भी बुध का दोस्त इसलिए दोनो के आपस में साथ से दोनो का फल उत्तम होगा। दोनो ही भाव नं. 6 में ऊंच फल के हैं और दोनों एक ही भाव नं. 12 में मन्दे फल के होगें। इसी तरह केतु जब बुध के साथ हो या बुध के घर भाव नं. 6 में हो तो नीच होगा लेकिन केतु को जब बृहस्पति का साथ मिल जाये तो केतु ऊंच फल का होगा। केतु व बृहस्पति बराबर का फल देंगे। राहु-केतु चूकिं अपने से सातवें देखने के उसूल के ग्रह हैं इसलिए राहु अगर 3-6 में ऊंच हुआ तो केतु वहां नीच होगा और केतु अगर 9-12 में ऊंच हुआ तो राहु वहां नीच होगा। गरज यह कि राहु-केतु को अपने दायरा में चलाने वाला बुध है।
व्याखयाः- लाल-किताब के लेखक का यह अपना ही दर्शन है। लेखक का कहना है कि राहु तथा बुध भाव नं. 6 (जो कि बुध की अपनी राशि है) में ऊंचे फल के हैं एवं भाव नं. 12 में नीच फल के होते हैं। केतु जो कि बुध की राशि नं. 6 में नीच फल का हुआ तो भाव नं. 12 में ऊॅंच फल का हुआ। लेखक कहता है कि राहु और केतु दोनो का ऊंच-नीच का संबध बुध की राशि से है। इसलिए ये दोनो ग्रह बुध के प्रभाव में अपना असर देते हैं अर्थात् राहु-केतु को अपने दायरे में चलाने वाला बुध है।