ज्योतिष में विद्या प्राप्ति व उच्चशिक्षा के योग डॉ. महेश मोहन झा किसी जातक की कुंडली के चतुर्थ स्थान से विद्या का और पंचम से बुद्धि का विचार किया जाता है। विद्या और बुद्धि में घनिष्ठ संबंध है। दशम भाव से विद्या जनित यश का विचार किया जाता है। कुंडली में बुध तथा शुक्र की स्थिति से विद्वत्ता तथा कल्पना शक्ति का और बृहस्पति से विद्या विकास का विचार किया जाता है। द्वितीय भाव से विद्या में निपुणता, प्रवीणता इत्यादि का विचार किया जाता है। सर्वार्थ चिंतामणि गं्रथ में लिखा है
कि यदि विद्या कारक बृहस्पति और बुद्धि कारक बुध दोनों एक साथ हों, तो जातक शिक्षा और बुद्धिमत्ता उच्च कोटि की होती है और उसे समाज मान-प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है। इसी प्रकार चतुर्थ स्थान का स्वामी लग्न में अथवा लग्न का स्वामी चतुर्थ भाव में हो या बुध लग्नस्थ हो और चतुर्थ स्थान बली हो और उस पर पाप ग्रह की दृष्टि न हो, तो जातक उच्च शिक्षा प्राप्त करता है। यदि बुध, बृहस्पति और शुक्र नवम स्थान में हों, तो जातक की शिक्षा उच्च कोटि की होती है। यदि बुध और गुरु के साथ शनि नवम स्थान में हो, तो जातक उच्च कोटि का विद्वान होता है। उच्च विद्या के लिए बुध एवं गुरु का बलवान होना जरूरी है। द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ और नवम भावों का संबंध बुध से हो, तो शिक्षा उत्कृष्ट होती है। ज्ञान का विचार शनि, नवम और द्वादश भाव की स्थिति के आधार पर किया जाता है।
शनि की स्थिति से विदेशी भाषा की शिक्षा का विचार किया जाता हेै। चंद्र लग्न एवं जन्म लग्न से पंचम स्थान के स्वामी की बुध, गुरु या शुक्र के साथ केंद्र, त्रिकोण या एकादश में स्थिति से यह पता लगाया जा सकता है कि जातक की रुचि किस प्रकार की शिक्षा में होगी। यदि चतुर्थ भाव का स्वामी छठे, आठवें या 12वें भाव में हो या नीच राशिस्थ, अस्त अथवा शत्रु राशिस्थ हो व कारक ग्रह चंद्र पीड़ित हो तो जातक का पढ़ाई में मन नहीं लगता है। जन्म कुंडली का नवम भाव धर्म त्रिकोण स्थान है, जिसका स्वामी बृहस्पति है। यह भाव उच्च शिक्षा तथा उसके स्तर को दर्शाता है।
यदि इसका संबंध पंचम भाव से हो, तो जातक की शिक्षा अच्छी होती है। कुंडली में निम्नोक्त योग होने की स्थिति में शिक्षा उच्च कोटि की होती है। द्वितीयेश या गुरु की केंद्र या त्रिकोण में स्थिति। बुध की पंचम में स्थिति अथवा उस पर दृष्टि या गुरु और शुक्र की युति। पंचमेश की पंचम भाव में गुरु या शुक्र के साथ युति। गुरु, शुक्र या बुध की केंद्र या त्रिकोण में स्थिति। किंतु कभी-कभी ऐसा भी देखने में आता है कि कुंडली में उच्च शिक्षा का योग होने पर भी जातक उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाता। ऐसा राहु के दशाकाल के कारण होता है।
कुंडली में उच्च शिक्षा का योग हो, किंतु विद्याभ्यास के समय यदि राहु की महादशा चल रही हो तो पढ़ाई में रुकावट आती है। यदि चतुर्थेश पाप राशिस्थ हो, अथवा भाव 6, 8 या 12 में हो या किसी पाप ग्रह के साथ अथवा उससे दृष्ट हो, तो जातक शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाता है अथवा उसके विद्याध्ययन में बाधा आती है। चतुर्थेश बृहस्पति अथवा बुध भाव 3, 6, 8 या 12 में हो अथवा शत्रुगृही हो, तो शिक्षा में बाधा करता उत्पन्न करता है।
अगर कुंडली में उच्च शिक्षा का योग हो, किंतु विद्याध्ययन के समय राहु महादशा चल रही हो, तो शनिवार को राहु यंत्र प्राण प्रतिष्ठा करके स्थापित करें एवं उसके सामने क्क रां राहवे नमः मंत्र का 72000 जप करके 7200 हवन दूर्वा, घृत, मधु, मिश्री से करें। बच्चे के गर्भ से निकलने के बाद उसकी जीभ पर चांदी की शलाका मधु में डुबाकर उससे 'ऐं' मंत्र लिख देने से बच्चा विद्वान होता है।
अगर जन्म के समय ऐसा संभव नहीं हो, तो प्रत्येक बुधवार या पंचमी को यह क्रिया करें। बच्चे को पढ़ते समय पूर्वाभिमुख होकर बैठना चाहिए और टेबल पर आगे में एजुकेशन टावर तथा छोटा ग्लोब रखना चाहिए। जिस जातक का लग्न वृष या कुंभ हो, उसे सोने की अंगूठी में सवा 6 या सवा 7 रत्ती का पन्ना बुधवार को कनिष्ठिका में धारण करना चाहिए। उच्च शिक्षा के लिए मेष लग्न के जातक माणिक्य, मिथुन के हीरा, कर्क के मूंगा, सिंह के पुखराज, कन्या के नीलम, तुला के नीलम, वृश्चिक के पुखराज, धनु के मूंगा, मकर के हीरा और मीन के जातक मोती धारण कर सकते हैं।
बच्चे को परीक्षा में मनोनुकूल फल नहीं मिलता हो या वह असफल रहता हो, तो किसी मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी से अगले कृष्ण पक्ष की पंचमी तक गणेश जी को क्क गं गणेशाय नमः पढते हुए 108 बार बारी-बारी से दूर्वा चढ़ाएं। परीक्षा के दिन यही दूर्वा अपनी दाहिनी तरफ लेकर जाएं, सफलता मिलेगी। विद्यार्थी को प्रातःकाल निम्नोक्त श्लोक का पाठ कर गणेश जी का ध्यान करके अध्ययन करना चाहिए।
शुक्लाम्बरं धरंदेव शशिवर्णं चतुर्भुजम। प्रसन्नवदनं ध्यायेत सर्वाविघ्नोपशान्तये॥ सुमुखश्चैक दन्तश्च कपिलो गजकर्णकः। लंबोदरश्च विकटो विघ्न नाशो विनायकः॥ धूम्र केतुर्गणाध्यक्षो भाल चंद्रो गजाननः। द्वादशैतानि नामानियः पठेच्छुणयादडिप॥ गणेश चतुर्थी को गणेश जी की पूजा करके क्क गं गणेशाय नमः या क्क गं गणेपतये नमः मंत्र का 108 बार जप करें। वसंत पंचमी के दिन सरस्वती जी की पूजा करने के बाद स्फटिक माला पर क्क ऐं सरस्वत्यै नमः मंत्र का 1008 बार जप करें।
किसी मास के प्रथम शुक्रवार को हरा हकीक पर क्क ऐं ऐं क्क मंत्र 51 बार पढ़कर हरा वस्त्र में लपेटकर मजार पर चढ़ा देने से शिक्षा में आने वाली बाधा दूर हो जाती है। गुरुवार को धर्म स्थान में धार्मिक पुस्तक दान करें। घर में सरस्वती यंत्र प्राण-प्रतिष्ठित करके स्थापित करने से शिक्षा सुचारु रूप से चलती है।