कहते हैं रिश्ते ऊपर वाला बनाता है। मानवीय प्रयास तो केवल औपचारिकता मात्र ही होते हैं। कई बार रिश्तों में ऐसी कड़वाहट आ जाती है कि इन्सान चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता। यह कथा है रितेश और रागिनी की। रितेश ने एक अच्छे संस्थान से इंजीनियरिंग की थी और एक एम. एन. सी. में अच्छे पद पर कार्य कर रहा था जब उसके माता-पिता ने उसके विवाह की बात रागिनी से चलाई। रागिनी एक सुसंस्कृत परिवार से थी और वह भी एक अच्छी नौकरी करती थी। रितेश और रागिनी दोनों ने एक दूसरे को पसंद किया और दोनों ने ही विवाह के लिए अपनी रजामंदी दे दी। दोनों का विवाह खूब धूम-धाम से हुआ।
विवाह के पश्चात रागिनी गुड़गांव चली गई और उसने अपनी नौकरी छोड़ दी। रितेश ने तो उसे दोबारा काम करने के लिए कहा भी पर उसने बाहर काम करने में कोई उत्साह नहीं दिखाया। कुछ ही दिन में रितेश को उसकी कंपनी ने न्यूजीलैंड भेजने का निर्णय लिया तो रागिनी बहुत खुश हो गई, उसे घूमना फिरना, नई-नई जगह देखना बहुत पसंद था। वह अपनी कल्पना की दुनिया में खो गई और रोज नित नये ख्वाब सजाने लगी कि शायद वह तो परियों का देश होगा और वहां जाकर वह बहुत मस्ती करेगी और सभी इच्छाओं की पूर्ति कर लेगी।
कुछ दिन बाद दोनों न्यूजीलैंड चले गये। वहां पर रितेश को नये कार्यालय में बड़े पद पर बड़ी जिम्मेदारी का काम सौंपा गया जिसमें वह काफी व्यस्त रहता, सुबह आॅफिस जाकर कब शाम हो जाती उसे पता नहीं चलता और घर पहुंच कर उसे यही इच्छा होती थी कि रागिनी अच्छा सा खाना खिलाए और उसकी मीठी-मीठी बातों में वह आॅफिस की सारी थकान मिटा दे। इधर रागिनी को अपने सारे सपने चूर होते दिख रहे थे। वह हवा में उड़ना चाहती थी, सब जगह घूमना चाहती थी वहां उसे घर पर रहना पड़ता था और रितेश के आने का इंतजार करना पड़ता था। धीरे-धीरे रागिनी इस जिंदगी से उबने लगी। उसे सबने काम करने के लिए कहा भी पर उसे काम करने बाहर जाना अच्छा नहीं लगता था। अपना गुस्सा वह रितेश पर निकालने लगी। वह उससे खिंची-खिंची रहती और उसका मन खाना बनाने को भी न करता। रितेश कुछ कहता तो बाहर जाने की जिद करती। दो बार तो रितेश उसे बाहर ले गया और उसने रागिनी को समझाने की कोशिश भी की। अभी उन्हें अपना परिवार बढ़ाना है और घर सेट करना है तो पैसे को देख कर खर्च करना होगा और कार्यालय में भी उसे अपने को साबित करना था इसलिए वह ज्यादा छुट्टी भी नहीं लेना चाहता था पर रागिनी को लगता था कि रितेश उसकी अहमियत नहीं समझता और उसे इग्नोर करता है। और उसे उसकी ख्वाहिशों को पूरा करने में कोई खुशी नहीं मिलती और शायद वह उसके लिए कुछ भी नहीं।
इसी उधेड़बुन के चलते रागिनी को पता चला कि वह मां बनने वाली है। यह जान कर रितेश भी बहुत खुश हुआ कि शायद अब रागिनी के स्वभाव में परिवर्तन आ जाएगा और वह अब खुश रहेगी। लेकिन भगवान को कुछ और ही मंजूर था। तीन चार महीने बाद अचानक रागिनी का गर्भापात हो गया और रागिनी को अंदर तक हिला गया। रागिनी अब अपने आप को बहुत अकेला महसूस करने लगी और बच्चे खोने का कसूर अपनी सास और रितेश के सर मंढ़ने लगी कि सास ने भारत से उसकी खोज खबर नहीं ली और उसकी परवाह नहीं की। दोनों के बीच खाई निरंतर बढ़ने लगी। रितेश ने भी अपने आप को कार्यालय में समेट लिया वह घर से कार्यालय जाता और आने के बाद बस अपने में रहता। उसने भी रागिनी के दुख को समझने की चेष्टा नहीं की। दोनों को लगने लगा था कि शायद अब वे दोनों साथ खुश नहीं रह पाएंगे। इसलिए दोनों ने कुछ समय के लिए अलग होना ही ठीक समझा और रागिनी वापिस अपने माता-पिता के घर आ गई।
आज रागिनी को वापिस आए लगभग 10 महीने हो गये हैं और रितेश वहीं न्यूजीलैंड में रह रहा है। न ता रागिनी अपने सास ससुर से बात करना चाहती है और न ही रितेश से। वह जाना तो चाहती है पर अपनी शर्तों पर उधर रितेश भी उसे अपनी शर्तों पर ही बुलाना चाहता है।
रितेश की कुंडली के अनुसार उनकी अग्नि तत्व राशि है और लग्न में शनि राहु मंगल की गुरु के साथ युति है। लग्नेश सूर्य अष्टम भाव में चले गये हैं। पंचमेश गुरु, चतुर्थेश एवं भाग्येश मंगल व सप्तमेश शनि की प्रथम भाव में युति है और धनेश एवं लाभेश बुध से उनका परस्पर संबंध भी बन रहा है इसीलिए रितेश ने एक अच्छे संस्थान से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और उन्हें एक उच्च पद की प्रतिष्ठित नौकरी भी प्राप्त हुई।
लेकिन लग्नेश की अष्टम स्थिति के होने एवं उस पर मंगल की दृष्टि के कारण इनके व्यक्तित्व पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है और इसीलिए अपनी पत्नी की इच्छाओं और भावनाओं की कद्र करने में नाकाम रहे। चंद्रमा व्ययेश होकर कर्म स्थान में अपनी मूल त्रिकोण राशि में स्थित है जिसके कारण नौकरी में अधिक समय व्यतीत करना पड़ रहा है। कर्मेश शुक्र भाग्य स्थान में स्थित होकर बृहस्पति से दृष्ट होने से इन्हें अपने कार्य क्षेत्र में खूब मान-सम्मान व तरक्की मिल रही है।
सप्तमेश शनि वक्रावस्था में राहु व मंगल के साथ शत्रु राशि में लग्न में स्थित होने से रागिनी इनके प्रति कठोर रवैया अपनाए हुए है लेकिन साथ ही सप्तम स्थान में बुध की स्थिति तथा पत्नी कारक शुक्र की शुभ स्थिति के कारण रितेश का विवाह पढ़ी लिखी एवं सुशिक्षित लड़की से हुआ। रतेश की कुंडली में सप्तम भाव पर सभी क्रूर ग्रहों का प्रभाव होने व लग्नेश के अष्टमस्थ होने के कारण वैवाहिक जीवन में सामंजस्य स्थापित करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
रागिनी की मकर लग्न की जन्मकुंडली है। लग्नेश शनि केंद्र में दशम भाव में अपनी उच्च राशि में स्थित है। इसके अतिरिक्त उसके एकादश भाव में चतुग्र्रही योग बनने से रागिनी बहुत महत्त्वाकांक्षी हो गयी है और वह अपना जीवन राजसी ठाठ-बाट से बिताना चाहती है। लेकिन त्रिक भावों के स्वामी होने के कारण ये ग्रह रागिनी के पारिवारिक जीवन को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर रहे हैं।
लाभेश मंगल की भाग्य स्थान में कर्मेश शुक्र के साथ युति से इसमें भौतिक सुख सुविधाओं के प्रति चाह व मौज मस्ती से जीवन यापन करने की प्रवृत्ति भी है और इन्हें अपने जीवन में प्राप्त भी होगा। पति स्थान का स्वामी चंद्रमा छठे स्थान में होने से तथा चंद्रमा की बारहवें स्थान पर दृष्टि होने से यह अपने पति के साथ विदेश तो चली गई किंतु सप्तमेश की अपने से द्वादश स्थान में स्थिति तथा शनि की सप्तम भाव पर दशम दृष्टि ने रागिनी के ख्वाबों को पूरा नहीं होने दिया और पति से मनोवांछित सुख में बाधाएं आयीं।
पंचम भाव में राहु की स्थिति जातक को प्रेम के प्रति विशेष उत्साहित व उत्कंठित बनाता है लेकिन प्रेम संबंधों में अक्सर निराशा, असफलता व कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। ऐसी स्थिति अधिक कठिनाइयां उत्पन्न करती हैं। उस समय पर जब जीवनसाथी की कुंडली में भी सप्तम भाव पर क्रूर ग्रहों का प्रभाव पड़ रहा है। रितेश की कुंडली में स्थिति अधिक गंभीर है क्योंकि सप्तमस्थ बुध पर पाप ग्रहों का प्रभाव होने से वह और अधिक पापी हो गया है। बुध को सप्तम भाव में काम सुख में न्यूनता देने वाला माना ही जाता है।
संभवतः दोनों एक दूसरे के पूरक नहीं बन पा रहे हैं। दोनों की जन्मकुंडली का मिलान करें तो चंद्रमा दोनों की पत्री में द्विद्र्वादश स्थिति में है। ऐसी स्थिति में आपस में मानसिक मतभेद रहते हैं। साथ ही चूंकि रागिनी की राशि रितेश की राशि से दूसरी है इसलिए पारिवारिक सुख में कमी आ रही है। वर्तमान समय में रागिनी की शनि में शनि की अंतर्दशा चल रही है। चूंकि शनि की दशम दृष्टि सप्तम स्थान पर है और उधर रितेश की भी गुरु में शुक्र की दशा चल रही थी इसलिए दोनों के जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा और दोनों की छोटी-छोटी बातों पर अनबन होने से दोनों में अलगाव की स्थिति आ गई। लेकिन यह स्थिति जल्द ही बदलनी चाहिए।
अक्तूबर 2014 में शनि में शनि की अंतर्दशा समाप्त होने पर और गोचर में शनि के वृश्चिक राशि में आने के बाद इनकी वापस रितेश के पास आने की पूर्ण संभावना बन रही है। लेकिन कुंडली में प्रेम व वैवाहिक सुख की दृष्टि से श्रेष्ठ मिलान न होने के अभाव में वैवाहिक जीवन में फिर से पीड़ा हो सकती है। ऐसी अवस्था में यदि रागिनी किसी कार्य में लग्न हो जाए या कोई व्यापार या किसी कार्यालय में काम करने लगे तो स्वतः ही यह उपाय का कार्य करेगा और धन का आगमन एक और उसकी इच्छाओं की पूर्ति करेगा वहीं उसकी मनोस्थिति भी ठीक होगी और रितेश की दशाओं के अनुसार भी यह दर्शाता है कि उसे अपनी पत्नी से आर्थिक सहयोग प्राप्त होगा।