वैवाहिक जीवन : दोष एवं निवारण प्रश्नः किन योगों के कारण विवाह में विलंब या वैवाहिक जीवन में क्लेश, तनाव, मानसिक पीड़ा और तलाक जैसी स्थिति उत्पन्न होती है। इन स्थितियों से बचाव के लिए किए जाने वाले उपायों का वर्णन। विवाह संस्कार भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण संस्कार है। यह मनुष्य को परमात्मा का एक वरदान है। कहते हैं, जोड़ियां परमात्मा द्वारा पहले से ही तय होती हैं।
पूर्व जन्म में किए गए पाप एवं पुण्य कर्मों के अनुसार ही जीवन साथी मिलता है और उन्हीं के अनुरूप वैवाहिक जीवन दुखमय या सुखमय होता है। कुंडली में विवाह का विचार मुखयतः सप्तम भाव से ही किया जाता है। इस भाव से विवाह के अलावा वैवाहिक या दाम्पत्य जीवन के सुख-दुख, जीवन साथी अर्थात पति एवं पत्नी, काम (भोग विलास), विवाह से पूर्व एवं पश्चात यौन संबंध, साझेदारी आदि का विचार किया जाता है। यदि कोई भाव, उसका स्वामी तथा उसका कारक पाप ग्रहों के मध्य में स्थित हों, प्रबल पापी ग्रहों से युक्त हों, निर्बल हों, शुभग्रह न उनसे युत हों न उन्हें देखते हों, इन तीनों से नवम, चतुर्थ, अष्टम, पंचम तथा द्वादश स्थानों में पाप ग्रह हों, भाव नवांश, भावेश नवांश तथा भाव कारक नवांश के स्वामी भी शत्रु राशि में, नीच राशि में अस्त अथवा युद्ध में पराजित हों तो उस भाव से संबंधित वस्तुओं की हानि होती है।
(उत्तर कालामृत) वैवाहिक जीवन के अशुभ योग यदि सप्तमेश शुभ युक्त न होकर षष्ठ, अष्टम या द्वादश भावस्थ हो और नीच या अस्त हो, तो जातक या जातका के विवाह में बाधा आती है। यदि षष्ठेश, अष्टमेश या द्वादशेश सप्तम भाव में विराजमान हो, उस पर किसी ग्रह की शुभ दृष्टि न हो या किसी ग्रह से उसका शुभ योग न हो, तो वैवाहिक सुख में बाधा आती है। सप्तम भाव में क्रूर ग्रह हो, सप्तमेश पर क्रूर ग्रह की दृष्टि हो तथा द्वादश भाव में भी क्रूर ग्रह हो, तो वैवाहिक सुख में बाधा आती है। सप्तमेश व कारक शुक्र बलवान हो, तो जातक को वियोग दुख भोगना पड़ता है। यदि शुक्र सप्तमेश हो (मेष या वृश्चिक लग्न) और पाप ग्रहों के साथ अथवा उनसे दृष्ट हो, या शुक्र नीच व शत्रु नवांश का या षष्ठांश में हो, तो जातक स्त्री कठोर चित्त वाली, कुमार्गगामिनी और कुलटा होती है। फलतः उसका वैवाहिक जीवन नारकीय हो जाता है।
यदि शनि सप्तमेश हो, पाप ग्रहों क साथ व नीच नवांश में हो अथवा नीच राशिस्थ हो और पाप ग्रहों से दृष्ट हो, तो जीवन साथी के दुष्ट स्वभाव के कारण वैवाहिक जीवन क्लेशमय होता है। राहु अथवा केतु सप्तम भाव में हो व उसकी क्रूर ग्रहों से युति बनती हो या उस पर पाप दृष्टि हो, तो वैवाहिक जीवन अक्सर तनावपूर्ण रहता है। यदि सप्तमेश निर्बल हो और भाव 6, 8 या 12 में स्थित हो तथा कारक शुक्र कमजोर हो, तो जीवन साथी की निम्न सोच के कारण वैवाहिक जीवन क्लेशमय रहता है। सूर्य लग्न में व स्वगृही शनि सप्तम भाव में विराजमान हो, तो विवाह में बाधा आती आती है या विवाह विलंब से होता है। सप्तमेश वक्री हो व शनि की दृष्टि सप्तमेश व सप्तम भाव पर पड़ती हो, तो विवाह में विलंब होता है। सप्तम भाव व सप्तमेश पाप कर्तरी योग में हो, तो विवाह में बाधा आती है। शुक्र शत्रुराशि में स्थित हो और सप्तमेश निर्बल हो, तो विवाह विलंब से होता है।
शनि सूर्य या चंद्र से युत या दृष्ट हो, लग्न या सप्तम भाव में स्थित हो, सप्तमेश कमजोर हो, तो विवाह में बाधा आती है। शुक्र कर्क या सिंह राशि में स्थित होकर सूर्य और चंद्र के मध्य हो और शनि की दृष्टि शुक्र पर हो, तो विवाह नहीं होता है। शनि की सूर्य या चंद्र पर दृष्टि हो, शुक्र शनि की राशि या नक्षत्र में में हो और लग्नेश तथा सप्तमेश निर्बल हों, तो विवाह में बाधा निश्चित रूप से आती है। वैवाहिक जीवन में क्लेश सप्तम भाव, सप्तमेश और द्वितीय भाव पर क्रूर ग्रहों का प्रभाव वैवाहिक जीवन में क्लेश उत्पन्न करता है। लग्न, सप्तम भाव, सप्तमेश की कारक शुक्र, राहु, केतु या मंगल से दृष्टि या युति के फलस्वरूप दाम्पत्य जीवन में क्लेश पैदा होता है। यदि जातक व जातका का कुंडली मिलान (अष्टकूट) सही न हो, तो दाम्पत्य जीवन में वैचारिक मतभेद रहता है। यदि जातक व जातका की राशियों में षडाष्टक भकूट दोष हो, तो दोनों के जीवन में शत्रुता, विवाद, कलह अक्सर होते रहते हैं। यदि जातक व जातका के मध्य द्विर्द्वादश भकूट दोष हो, तो खर्चे व दोनों परिवारों में वैमनस्यता आती है जिसके फलस्वरूप दोनों के मध्य क्लेश रहता है।
यदि पति-पत्नी के ग्रहों में मित्रता न हो, तो दोनों के बीच वैचारिक मतभेद रहता है। जैसे यदि ज्ञान, धर्म, रीति-रिवाज, परंपराओं, प्रतिष्ठा और स्वाभिमान के कारक गुरु तथा सौंदर्य, भौतिकता और ऐंद्रिय सुख के कारक शुक्र के जातक और जातका की मानसिकता, सोच और जीवन शैली बिल्कुल विपरीत होती है।
पति-पत्नी के गुणों (अर्थात स्वभाव) में मिलान सही न होने पर आपसी तनाव की संभावना बनती है। अर्थात पति-पत्नी के मध्य अष्टकूट मिलान बहुत महत्वपूर्ण है, जिस पर गंभीरतापूर्वक विचार कर लेना चाहिए। मंगल दोष भी पति-पत्नी के मध्य तनाव का कारक होता है। स्वभाव से गर्म व क्रूर मंगल यदि प्रथम (अपना), द्वितीय (कुटुंब, पत्नी या पति की आयु), चतुर्थ (सुख व मन), सप्तम (पति या पत्नी, जननेंद्रिय और दाम्पत्य), अष्टम (पति या पत्नी का परिवार और आयु) या द्वादश (शय्या सुख, भोगविलास, खर्च का भाव) भाव में स्थित हो या उस पर दृष्टि प्रभाव से क्रूरता या गर्म प्रभाव डाले, तो पति-पत्नी के मध्य मनमुटाव, क्लेश, तनाव आदि की स्थिति पैदा होती है।
राहु, सूर्य, शनि व द्वादशेश पृथकतावादी ग्रह हैं, जो सप्तम (दाम्पत्य) और द्वितीय (कुटुंब) भावों पर विपरीत प्रभाव डालकर वैवाहिक जीवन को नारकीय बना देते हैं। दृष्टि या युति संबंध से जितना ही विपरीत या शुभ प्रभाव होगा उसी के अनुरूप वैवाहिक जीवन सुखमय या दुखमय होगा। द्वितीय भाव में सूर्य के सप्तम, सप्तमेश, द्वादश और द्वादशेश पर (राहु पृथकतावादी ग्रह) प्रभाव से दाम्पत्य जीवन में क्लेश की, यहां तक कि तलाक की नौबत आ जाती है। उदाहरण कुंडली 1 की विवेचना सप्तमेश व द्वादशेश मंगल से राहु की युति, केतु की दृष्टि। द्वितीय भाव में सूर्य (मंगल राहु का प्रभाव लिए हुए है, क्योंकि सूर्य की राशि में मंगल राहु स्थित हैं) विराजमान। सप्तम भाव पर चंद्र की दृष्टि। सप्तमेश मंगल नवमांश में नीच का है। जातक का दाम्पत्य जीवन अति कष्टमय (पत्नी और पति में तनाव) है। दो तीन बार तलाक की नौबत आ चुकी है। मात्र स्वगृही शुक्र, स्वगृही बुध व भाग्येश स्वगृही शनि के के कारण तलाक नहीं हो रहा है। उदाहरण कुंडली-2 की विवेचना द्वादश भाव में मंगल (कुजदोष) तथा सप्तमेश का पीड़ित होना दाम्पत्य जीवन में तनाव पैदा करता है।
बारहवें भाव में मंगल (कुज दोष), व सप्तम भाव पर मंगल की आठवीं दृष्टि। शनि की सप्तम भाव पर दशम दृष्टि। सप्तमेश बुध और विवाह कारक शुक्र पाप कर्तरी दोष से पीड़ित है। अष्टम और द्वादश भाव में क्रूर व पापी ग्रह जीवन साथी से विछोह कराते हैं। विवाह में बाधक योग सप्तमेश व द्वितीयेश षष्ठ भाव में, सप्तम भाव पर शनि की नीच दृष्टि व षष्ठेश की दृष्टि, केंद्र में शुभ प्रभाव की कमी इन सभी योगों के फलस्वरूप अत्यधिक विवाह बाधा योग अर्थात अविवाहित योग बनता है। मेलापक में योनिकूट की महत्ता आठ तत्वों का विवेचन मेलापक में करते हैं। ये तत्व हैं- वर्ण, वश्य, तारा, योनि, ग्रह मैत्री, गण, भकूट और नाड़ी। मेलापक में आज के युग में योनि कूट का विशेष महत्व है। इससे वर और कन्या के काम पक्ष की जानकारी होती है। आज के इस भौतिकवादी युग में 'मेलापक' पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है, जिससे वैवाहिक जीवन निष्फल हो जाता है। 'योनिकूट' के मेल खाने से वैवाहिक जीवन सुखमय होता है। मानव और जानवर में आहार, निद्रा, भय एवं मैथुन ये चार प्रवृत्तियां समान रूप से विद्यमान रहती हैं। किंतु मैथुन का महत्व आज के युग में अत्यधिक है। हमारे द्रष्टा ऋषियों ने नक्षत्रों का वर्गीकरण लिंग के आधार पर किया है। कन्या हो या वर, जिस नक्षत्र में पैदा होता है, उस नक्षत्र का प्रभाव उस पर पड़ता है। उसका मैथुन स्वभाव तत्संबंधित योनि के अनुरूप होता है। कुंडली मेलापन के समय यदि इस बात पर विचार किया जाए, तो निश्चय ही दोनों का शारीरिक संबंध संतोषजनक रहेगा अन्यथा वैवाहिक जीवन में कटुता पैदा होगी। विवाह हेतु मेलापक में योनिकूट का अपना विशेष महत्व है।
जिन वर और कन्या के योनिकूट पर ध्यान नहीं दिया जाता, उनका वैवाहिक जीवन कष्टमय हो जाता है। दूसरी तरफ, जिनकी कुंडली मिलान में योनिकूट पर गंभीरतापूर्वक विचार किया जाता है, उनका वैवाहिक जीवन आनंदमय रहता है। इस यूरेनियम युग में शुक्र अति शक्तिशाली हो रहा है। इससे भविष्य में सेक्स की प्रधानता रहेगी। ऐसे में योनिकूट का महत्व और अधिक बढ़ गया है, जिस पर ध्यान देना ही चाहिए, ताकि तलाक की स्थिति से बचा जा सके। इसी में नवदम्पति का कल्याण है। पति-सुख की प्राप्ति हेतु मंगल दोष परिहार मंत्र : विवाह में विलंब से बचने के विविध मंत्रों, स्तोत्रों तथा उनकी जप और पाठ विधियों का विवरण इस प्रकार है। मंगल दोष से ग्रस्त जातका को 108 दिनों तक नियमित रूप से एक पंचमुखी दीप प्रज्वलित कर निम्नोक्त श्री मंगल चंडिका स्तोत्र का 7 अथवा 21 बार निष्ठापूर्वक पाठ करना चाहिए।
''रक्ष-रक्ष जगन्मात देवि मंगल चंडिके। हारिके विपदा राशे हर्ष मंगल कारिके॥ हर्ष मंगल दक्षे च हर्ष मंगल दायिके। शुभे मंगलदक्षे च शुभे मंगल चंडिके॥ मंगले मंगलाहे च सर्व मंगल मंगले। यदा मंगलवे देवि सर्वेषा मंगलालये॥'' पति-सुख की प्राप्ति का मंत्र इस मंत्र का 48 दिन तक नित्य 108 बार जप करने से शुभ फल प्राप्त होते हैं। '' सिन्धुर पत्र रतिकामदेह, दिव्याम्बर सिन्धु समीहिताङ्गम॥ सान्ध्यारूण धनुः पंकजपुष्पबाण पंचायुध भुवन मोहन मोक्ष गार्थम्॥ फलै मन्मथाय महाविष्णु स्वरूपाय, महाविष्णु पुत्राय, महापुरुषाय। पति सुखं मोहे शीघ्र देहि देहि॥ विधि : पाठ और जप पीत वस्त्र धारण कर, ललाट पर तिलक लगाकर उत्तर अथवा पूर्व दिशाभिमुख बैठकर करना चाहिए। जप की संपूर्ण अवधि में शुद्ध घी से पीतल अथवा चांदी का दीप प्रज्वलित करना चाहिए। हर बार हाथ में जल लेकर मंत्रोच्चारण कर जल को भूमि पर छोड़ देना चाहिए। किशमिश का प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। कुयोगों को काटने के लिए उक्त पाठ और जप के अतिरिक्त शिव-पार्वती का अनुष्ठान, मां दुर्गा की पूजा-अर्चना, दुर्गा सप्तशती के प्रयोग कारक ग्रहों के रत्न धारण, कुयोगदायक ग्रहों से संबंधित मंत्र का जप, पूजा अनुष्ठान, दाना आदि करना चाहिए। अनुभूत उपाय : उचित समय पर विवाह हेतु कन्या को कम से कम सवा पांच रत्ती का पुखराज सोने की अंगूठी में गुरुवार को बायें हाथ की तर्जनी में और कम से कम सात रत्ती का फीरोजा चांदी की अंगूठी में शुक्रवार को बायें हाथ की कनिष्ठिका में धारण कराना चाहिए। इनके अतिरिक्त उपाय व निवारण में यंत्र की पूजा भी करनी चाएि। यदि कुंडली में वैधव्य योग हो, तो शादी से पहले घट विवाह, अश्वत्थ विवाह, विष्णु प्रतिमा या शालिग्राम विवाह विवाह कराना तथा प्रभु शरण में रहना चाहिए।
वैवाहिक जीवन में सुखानुभूति हेतु सुखमय वैवाहिक जीवन के लिए निम्नलिखित मंत्र का जप विधि विधानपूर्वक करना चाहिए। मंत्र : ऐं श्रीं क्लिम् नमस्ते महामाये महायोगिन्धीश्वरी। सामान्जस्यम सर्वतोपाहि सर्व मंगल कारिणीम्॥ शुक्ल पक्ष के गुरुवार को स्नान करके शाम के समय पूजा प्रारंभ करें। पूजा के समय मुख-पश्चिम की ओर होना चाहिए। दुर्गा जी का चित्र सामने रखकर गाय के घी का दीप जलाएं। समान वजन की सोने की दो अंगूठियां देवी मां के चरणों में अर्पित करें। गुलाब के 108 पुष्प 108 बार मंत्र पढ़कर अर्पित करें। लाल चंदन की माला से 21 दिन तक प्रतिदिन एक माला जप करें। 21 दिन बाद मां के चरणों में अर्पित अंगूठियां लेकर एक किसी योग्य और कर्मनिष्ठ ब्राह्मण को दे दें और दूसरी स्वय पहन लें। यह पूजा-अर्चना निष्ठापूर्वक करें, दाम्पत्य जीवन सुखमय रहेगा। इसके अतिरिक्त श्री दुर्गा-सप्तशती का स्वयं पाठ करें। अष्टकवर्ग के नियमानुसार यदि सर्वाष्टक वर्ग में सातवें विवाह भाव में शुभ बिंदुओं की संखया जितनी कम हो, दाम्पत्य जीवन उतना ही दुखद होता है। वर्ग में बिंदुओं की संखया 25 से कम होने की स्थिति में वैवाहिक जीवन अत्यंत दुखद होता है।
लाल किताब के योग एवं उपाय शुक्र एवं राहु की किसी भी भाव में युति वैवाहिक जीवन के लिए दुखदायी होती है। यह युति पहले भाव 4 या 7 में हो, तो पति-पत्नी में तलाक की नौबत आ जाती है या अकाल मृत्यु की संभावना रहती है। उपाय यदि ऐसा विवाह हो चुका हो, तो चांदी के गोल वर्तन में काजल या बहते दरिया का पानी और शुद्ध चांदी का टुकड़ा डालकर किसी धर्मस्थान में देना चाहिए। साथ ही एक चांदी के बर्तन में गंगाजल या किसी अन्य बहते दरिया का पानी और चांदी का टुकड़ा डालकर अपने पास रखना चाहिए। यह उपाय विवाह से पूर्व या बाद में कर सकते हैं। यदि सातवें भाव में राहु हो, तो विवाह के संकल्प के समय बेटी वाला चांदी का एक टुकड़ा बेटी को दे। इससे बेटी के दाम्पत्य जीवन में क्लेश की संभावना कम रहती है। यह उपाय लग्न में राहु रहने पर भी कर सकते हैं, क्योंकि इस समय राहु की दृष्टि सातवें भाव पर होती है।
यदि भाव 1 या 7 में राहु अकेला या शुक्र के साथ हो, तो 21 वें वर्ष या इससे पूर्व विवाह होने पर वैवाहिक जीवन दुखमय होता है। अतः उपाय के तौर पर विवाह 21 वर्ष के पश्चात ही कुंडली मिलान करके करें। सूर्य और बुध के साथ शुक्र की युति किसी भी भाव में होने पर वैवाहिक जीवन में कुछ न कुछ दोष अवश्य ही उत्पन्न होता है, जिससे दाम्पत्य जीवन दुखमय रहता है। उपाय तांबे के एक लोटे में साबुत मूंग भरकर विवाह के संकल्प के समय हाथ लगाकर रखना चाहिए और इसे जल में प्रवाहित करना चाहिए। यदि यह उपाय विवाह के समय न हो सके, तो जिस वर्ष उक्त तीनों ग्रह लाल किताब के वर्षफलानुसार आठवें भाव में आएं, उस वर्ष कर सकते हैं। शुक्र यदि आठवें भाव में हो, तो जातक की पत्नी सखत स्वभाव की होती है, जिससे आपसी सामंजस्य का अभाव रहता है। इस योग की स्थिति में विवाह 25 वर्ष की उम्र के बाद ही करना चाहिए। इसके पहले विवाह करने पर पत्नी के स्वास्थ्य के साथ-साथ गृहस्थ सुख पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। उपाय आठवें भाव में स्थित शुक्र के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए नीले रंग के फूल घर से बाहर जमीन में दबा दें या गंदे नाले में डाल दें। सर्वजन हितार्थ उपाय जातक या जातका की जन्मपत्री में किसी भी प्रकार का दोष या कुयोग होने के कारण विवाह में बहुत बाधाएं आती हैं। इन बाधाओं के फलस्वरूप न केवल लड़का या लड़की बल्कि समस्त परिवार तनावग्रस्त रहता है।
यहां कुछ उपाय प्रस्तुत हैं, जिनका उपयोग करने से इन बाधाओं से बचाव हो सकता है। ये उपाय जन्मपत्री नहीं होने की स्थिति में भी किए जा सकते हैं। वर प्राप्ति हेतु मंत्र गुरुवार को किसी शुभ योग में उक्त मंत्र का फीरोजा की माला से पांच माला जप करें। यह क्रिया ग्यारह गुरुवार करें, विवाह शीघ्र होगा। सोमवार को पारद शिवलिंग के सम्मुख उक्त मंत्र का 21 माला जप करें। फिर यह जप सात सोमवार को नियमित रूप से करें, शीघ्र विवाह के योग बनेंगे। भुवनेश्वरी यंत्र के सम्मुख उक्त मंत्र का सवा लाख जप करें, शीघ्र विवाह योग बनेंगे। मंत्र : कात्यायनी महामाये महायोगिनी धीश्वरी। नन्द गोपसुतं देवि पतिं ते कुरु ते नमः ।
मां पार्वती के चित्र के सामने, पूजा करने के पश्चात उक्त मंत्र का ग्यारह माला जप करें। यह क्रिया 21 दिनों तक नियमित रूप से करें, मां पार्वती मनोवांछित वर प्रदान करेंगी। गुरुवार का व्रत करें और पीले पुष्प, पीले प्रसाद व पीले फल मां लक्ष्मी व भगवान विष्णु को अर्पित कर उक्त मंत्र का 11 मला जप करें। यह क्रिया हर गुरुवार को करें, विवाह शीघ्र होगा। (नहाते समय जल में तीन चुटकी हल्दी अवश्य मिलाएं) वर वशीकरण यंत्र 115 155 156 132 154 153 127 138 116 151 131 152 126 137 133 134 117 130 125 135 136 139 140 124 118 141 142 143 144 123 145 129 119 146 147 122 148 149 128 150 120 121 ऊपर चित्रित यंत्र को गुरुवार को शुभ योग में अनार की कलम से हल्दी के रस से भोजपत्र पर लिखकर चांदी के ताबीज में कन्या को गले में धारण कराएं, संबंध तय करने या कन्या को देखने जो भी व्यक्ति आएगा, कन्या उसे पसंद आएगी और संबंध तय हो जाएगा। यदि कन्या के विवाह का संयोग न बन पा रहा हो, या विवाह की बात चलाते समय कोई न कोई बाधा सामने आ जाती हो, तो निम्नलिखित यंत्र का उपयोग करें। विधि : यंत्र गुरुवार को शुभ योग में भोजपत्र पर अनार की कलम और हल्दी की स्याही से लिखें। फिर कन्या यंत्र की पूजा करे एवं प्रतिदिन ऊपर वर्णित मंत्र का यंत्र के सामने 1008 बार जप करे।
यह क्रिया गुरुवार से अगले गुरुवार तक करे एवं अगले गुरुवार को यंत्र को तावीज में बंद कर अपनी बांह या गले में धारण करे, शीघ्र विवाह के योग बनेंगे। पत्नी प्राप्ति के लिए मंत्र पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानु सारिणीम्। तारिणीं दुर्ग संसार सागरस्य कुलोद्भवाम॥ (दुर्गा सप्तसती) प्रत्येक शुक्रवार को पवित्र मन से स्फटिक की माला से उक्त मंत्र का 11 माला जप करें। इस प्रकार ग्यारह शुक्रवार जप करें तथा अंतिम शुक्रवार को ग्यारह विवाहित स्त्रियों को यथाशक्ति चूड़ी, बिंदी, सिंदूर, साड़ी या कपड़ा दान करें। यह क्रिया निष्ठापूर्वक करें, शीघ्र ही मनोवांछित पत्नी की प्राप्ति होगी। मंत्र : कामोऽनंगः पंचशराः कन्दर्यो मीन वेतनः। श्री विष्णुतनयो देवः प्रसन्नो भवतु प्रभो॥ शुभ मुहूर्त में उक्त मंत्र का ग्यारह माला जप करें और फिर प्रत्येक शुक्रवार को तीन माला जप करें। ऐसा इक्कीस शुक्रवार तक करें, विवाह शीघ्र होगा। किसी शुभ योग या मुहूर्त में भोजपत्र पर अनार की कलम और अष्टगंध से ऊपर चित्रित यंत्र लिखकर उसे पूजा स्थल पर रखें और प्रतिदिन पूजा करें। पूजा के पश्चात ऊपर वर्णित मंत्र का ग्यारह माला जप करें। इक्कीस दिनों के बाद यंत्र को चांदी के तावीज में धारण करें। कुछ समय के पश्चात धन लक्ष्मी, यश लक्ष्मी व गृह लक्ष्मी (पत्नी) की प्राप्ति होगी। लक्ष्मी यंत्र की पूजा करें। फिर नियमित रूप से यंत्र के सामने कनकधारा स्तोत्र का 11 बार पाठ करें। यह प्रयोग शुक्रवार से तीसरे शुक्रवार तक करें, विवाह शीघ्र होगा। सर्व कामना सिद्धि यंत्र ऊपर चित्रित यंत्र को सर्वार्थ सिद्धि योग में भोजपत्र पर अनार की कलम और अष्टगंध से लिखकर उसे चंदन लगाएं। फिर अगरबत्ती दिखाकर चांदी के तावीज में धारण करें, शीघ्र विवाह के योग बनेंगे। (सीतेत्यभिभाषणमः) मंत्र : स देवि नित्यं परितप्य मानस्त्वामेव दृढ़व्रतो राजसुतो महात्मा तवैव लाभाय कृतप्रयत्नः। इस मंत्र का 3 माला जप तीन महीने तक प्रतिदिन करें अथवा किसी योग्य ब्राह्मण से करएं। जन्म र्जितपाप विघ्वं सनाय ।
पुरुषार्थचतुष्ठयलाभाय च पत्नीं देही कुरु-कुरु स्वाहा॥ सोमवार को व्रत करें और पारद शिव लिंग का दूध, दही, घी, शहद तथा शक्कर से अभिषेक करें। फिर उक्त मंत्र का पांच माला जप करें। यह क्रिया सोलह सोमवार को नियमित रूप से करें, जन्मकुंडली का हर दोष हो दूर होगा व शीघ्र विवाह के योग बनेंगे। पति वशीकरण मंत्र : पत्नी सिद्ध योग में निम्नलिखित मंत्र का 1100 जप कर प्रेमपूर्वक पति को पान खिलाए, पति वश में रहेगा। पत्नी वशीकरण मंत्र : पति सिद्ध योग में निम्नोक्त मंत्र का 1100 बार जाप कर पत्नी को पान खिलाए, पत्नी वश में रहेगी। (पत्नी का नाम) जय जय सर्वव्यान्नमः स्वाहा। डॉल्फिन मछलियां अपने जीवनसाथी को भेंट में देने से वैवाहिक जीवन में मधुरता एवं सद्भाव की वृद्धि होती है। डॉल्फिन मछलियों का चित्र या मूर्ति शयन कक्ष में पूर्व या पश्चिम दिशा में रखनी चाहिए। फेंग शुई के अनुसार मेंडेरियन बत्तख का जोड़ा नवविवाहित जोड़े के शयन कक्ष में रखने से जीवनपर्यंत एक दूसरे के प्रति प्रेम बना रहता है। जिस वर या कन्या की शादी नहीं हो रही हो, उसके शयन कक्ष में दक्षिण-पश्चिम दिशा में लव बर्ड्स (प्रेमी परिंदों) का चित्र या मूर्ति रखें, विवाह शीघ्र होगा।
कन्या की शादी नहीं हो पा रही हो, तो उसके शयन कक्ष की दक्षिण या पश्चिम दिशा में पियोनिया पुष्प की तस्वीर लगाएं, अच्छे रिश्ते आने लगेंगे और विवाह शीघ्र होगा। विवाह योग्य कन्या को पीले या हल्के गुलाबी रंग के कपड़े पहनाने चाहिए। विवाह योग्य लड़के या लड़कियों को अपने कक्षों में जोड़ों में विचरण करते हुये सुंदर पक्षियों के या भगवान शंकर व पार्वती के सुंदर युगल चित्र लगाने चाहिए। कभी-कभी जन्मकुंडली में द्विविवाह योग होता है, जिसके फलस्वरूप जातक या जातका का वैवाहिक जीवन कष्टमय हो जाता है।
ऐसे में दोनों को पुनः छोटे से रूप में पंडित से विवाह रस्म करवाना चाहिए। विवाह शुभ मुहूर्त या लग्न में ही करना चाहिए, अन्यथा दाम्पत्य जीवन के कलहपूर्ण होने की प्रबल संभावना रहती है। यदि ऐसा नहीं हुआ हो अर्थात यदि विवाह शुभ मुहूर्त या शुभ लग्न में नहीं हुआ हो, तो विवाह की तिथि व समय का विद्वान ज्योतिषाचार्य से विश्लेषण करवाना चाहिए और शुभ मुहूर्त या लग्न में पुनः विवाह करना चाहिए। पारिवारिक सुख की प्राप्ति हेतु यदि पति-पत्नी के संबंधों में कटुता आ जाए, तो पति या पत्नी, या संभव हो, तो दोनों, ऊपर वर्णित मंत्र का पांच माला जप इक्कीस दिन तक प्रतिदिन करें। जप निष्ठापूर्वक करें, तनाव दूर होगा और वैवाहिक जीवन में माधुर्य बढ़ेगा। मंगल दोष के कारण वैवाहिक जीवन में कलह या तनाव होने की स्थिति में निम्नोक्त क्रिया करें। पति या पत्नी, या फिर दोनों, मंगलवार का व्रत करें और हनुमान जी को लाल बूंदी, सिंदूर व चोला चढ़ाएं। तंदूर की मीठी रोटी दान करें। मंगलवार को सात बार एक-एक मुट्ठी रेवड़ियां नदी में प्रवाहित करें। गरीबों को मीठा भोजन दान करें। मंगल व केतु के दुष्प्रभाव से मुक्ति हेतु रक्त दान करें।