मां तारा के प्राचीन सिद्धपीठ की महिमा
मां तारा के प्राचीन सिद्धपीठ की महिमा

मां तारा के प्राचीन सिद्धपीठ की महिमा  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 5830 | जुलाई 2010

मां तारा के प्राचीन सिद्धपीठ की महिमा श्रीहरिनन्दनजी ठाकुर बिहार प्रांत के भागलपुर जिले में 'महिषी' नामक गांव है, जो बी. एन. डब्ल्यू. रेलले के सहरसा जंकशन से पश्चिम की ओर प्रायः 8 मील दूर है। प्राचीन प्रदेश विभाग के अनुसार यह स्थान मिथिला में पड़ता है। इसी से मिथिला में इस स्थान का नाम अधिक प्रसिद्ध है। वहां के लोग इसे 'श्रीउग्रतारास्थान' के नाम से जानते हैं। यह स्थान एक प्राचीन शक्तिपीठ माना जाता है।

कहते हैं, इस स्थान पर 'सती' के शय का नेत्रभाग गिरा था। तांत्रिक लोगों का कहना है कि इस स्थान में ब्रह्मर्षि वशिष्ठजी ने द्वितीया महाविद्या श्रीताराजी की आराधना की थी और माता को प्रसन्न कर अभीष्ट फल प्राप्त किया था। नीलतंत्र के महाचीनक्रमान्तर्गत ताराचारदर्शके बाईसवें पटल में इस स्थान का विस्तृत उल्लेख है। यहां पर श्रीतारा, श्रीएकजटा एवं नीलसरस्वती की प्रतिमाएं एक तंत्रोक्त, यंत्र पर स्थित है।

मूर्तियां भीतर से पोली मालूम होती हैं और इनके प्रत्येक अवयव अपने-अपने स्थान में अलग से बनाकर जोड़े हुए मालूम होते हैं। श्रीतारा देवी के शीर्ष स्थान पर 'अक्षोभ्य' गुरु की प्रतिमा भी सुशोभित है तथा उसके ऊपर सर्प का फन बना हुआ है। महाशक्ति के इन तीनों पाषाणविग्रहों में असाधारण कोमलता और कान्ति दिखायी पड़ती है। ये तीनों देवियां यहां पर कुमारी रूप में हैं। इनके अतिरिक्त यहां महषिमर्दिनी दुर्गा, काली, त्रिपुरसुन्दरी देवियां तथा तारकेश्वर और तारानाथ की भी मूर्तियां हैं। तंत्रग्रन्थों के वर्णन से मालूम होता है कि यहां पर और भी देवताओं के स्थान और कुंड आदि थे, किंतु आजकल कुछका तो पता ही नहीं लगता और कुछका भग्नावशेष पड़ा है।

इस स्थान में पहले कोई मंदिर नहीं था; मूर्तियां पेड़ के नीचे ही थीं। किंतु लगभग पौने दो सौ वर्ष पूर्व दरभंगा की महारानी पद्मावती ने यहां पर एक विशाल मंदिर और तालाब बनवा दिया। महारानी का नैहर इसी स्थान में था। उनके पतिदेव को कुष्ठ रोग था। उसी के शमन के लिये उन्होंने माता श्रीतारादेवी की शरण ली और उनकी सेवा में वह तत्पर हुईं। भूकंप के कारण आजकल मंदिर और तालाब दोनों बहुत बुरी दशा में हैं। उनके पुनर्निर्माण की नितांत आवश्यकता है। वहां पर साधकों के रहने योग्य भी कोई स्थान नहीं है। क्या ही अच्छा हो कि हम हिंदुओं का ध्यान ऐसे प्राचीन सिद्धपीठ की ओर आकर्षित हो और उसका शीघ्र जीर्णोंद्वार हो जाय अन्यथा धीरे-धीरे इसके नष्ट हो जाने की ही आशंका है।

पहले ही कहा जा चुका है कि यह एक सिद्धपीठ है और इसकी बड़ी महिमा है। श्रीदेवी के चमत्कार की बातें भी बहुत सुनी जाती हैं। कहते हैं, स्वदरभंगानरेश महाराजाधिराज रामेश्वरसिंहजी भी इस देवी के भक्त थे और यदा कदा इस स्थान में दर्शन तथा पूजा पाठ के लिये आया करते थे। एक बार वह एक काशीजी के विद्वान् पंडित के साथ यहां पर आये। महाराज ने पंडितजी से पूछा- 'इन मूर्तियों के दर्शन करने से आपको कैसा मालूम होता है।' पंडितजी ने चट उत्तर दे डाला- 'ये उसी रात उक्त पंडितजी विक्षिप्तप्राय होकर वहां से भाग निकले और एकदम काशी जा पहुंचे। फिर प्रकृतिस्थ होने पर उन्होंने महाराज को तार दिया कि 'महाशक्ति की महिमामयी मूर्त्तियों के विषय में मेरा मत मान्य नहीं है।

आप स्वयं इस विषय में विचार कर लें। मैं आत्मविस्मृत होकर काशी चला आया।' कहते हैं, पंडितजी कुछ दिनों बाद फिर यहां आये और उन्होंने स्वरचित स्तोत्र सुनाकर श्रीदेवी को प्रसन्न किया। इसी यात्रा में महाराज ने देवियों के पादतलका यंत्र खुदवाना शुरू किया। किंतु अभी थोड़ा ही खोदा गया था कि खोदने वाला अंधा हो गया और उसकी जीभ निकल आयी। महाराजकी भी चित्तवृत्ति कुछ खराब हो गयी। तब वह काम बंद करा दिया गया। भक्तों की कामनाएं पूरी होने की तो बहुत सी घटनाएं सुनी जाती हैं। यह मंदिर बाबू श्री जगदीशनन्दन सिंह जी मधुबनी छोटातरफ दरभंगा की जमींदारी में है। उक्त बाबू साहेब के पितामह योगीराज बाबू दुर्गासिंहजी इसके संस्थापक थे जिनको 104 वर्ष और 6 महीने हुए हैं। यह स्थान अति पवित्र और दर्शनीय है।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.