भारतीय वैदिक ज्योतिष के अनुसार,ब्रह्मांड में सात प्रमुख ग्रह (सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि) तथा दो छाया ग्रह (राहु, केतु) का वर्चस्व एवं प्रभाव स्वीकार किया गया है, जिनका पृथ्वी पर निवास कर रहे प्रत्येक मानव प्राणी पर स्पष्ट प्रभाव पल-पल दृष्टिगोचर होता है। पाश्चात्य ज्योतिष जगत में सात प्रमुख ग्रहों के अतिरिक्त तीन ग्रहों (हर्षल, प्लूटो, नेप्च्यून) का भी प्रचलन है। यदि गहराई से विश्लेषण किया जाये तो इन ग्रहों का भी मानव जगत पर महती प्रभाव पड़ता है। आइये जानते हैं कि इन ग्रहों का जन-जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता हैः-
Û जन्मकुंडली में नेप्च्यून कहीं भी मीन राशि में बैठा है तो उस भाव में शुभत्व दिखाई देगा।
Û यदि नेप्चयून गुरु के साथ हो तो उस भाव के शुभत्व में वृद्धि करेगा।
Û पंचम भाव में यदि नेपच्यून तथा मंगल अथवा नेपच्यून और राहु बैठे हों तो जातक को संतान संबंधी कष्ट रहेगा। स्त्री जातक में यही योग गर्भपात कराता है।
Û सप्तमेश नीच राशि का हो तथा उसके साथ नेप्च्यून भी हो तो दांपत्य सुख खराब हो जाता है अर्थात दांपत्य जीवन कष्टमय रहता है।
Û नेप्च्यून और शनि यदि मकर अथवा कुंभ राशि के होकर दशम भाव में हों तो जातक को कारोबार में बहुत सफलता मिलती है, किंतु यह युति पितृ सुख में कमी लाता है।
Û द्वादश भाव में अकेला नेप्च्यून जातक को कई प्रकार से शुभत्व प्रदान करता है। किंतु यदि पाप ग्रह से ग्रस्त हुआ तो निश्चय ही धन में कमी आती है।
Û किसी भी भाव में नेप्च्यून यदि शुक्र-बुध-चंद्र अथवा शुक्र-चंद्र-गुरु के साथ हो तो निश्चय ही जातक राजयोग का अधिकारी होता है।
Û किसी भी पुरूष की जन्मकुंडली में यदि हर्षल ग्रह चंद्रमा के साथ हो तो वह उसके दांपत्य जीवन को बिगाड़ देता है। विशेष रूप से सातवें घर में यह युति होने पर बहुत ही ज्यादा ऋणात्मक प्रभाव दिखाई देता है।
Û किसी स्त्री की जन्मकुंडली में हर्षल ग्रह सूर्य के साथ हो तो उसे दांपत्य जीवन में बहुत परेशानियांे का सामना करना पड़ता है। यदि यही सप्तम भाव में हो तो ज्यादा ऋणात्मक प्रभाव होता है
। Û शनि $ हर्षल किसी भी भाव में बैठे हों उसकी मान प्रतिष्ठा में कमी आयेगी। यही युति दशम भाव में होने पर जातक को किसी कार्य में अपयश मिलता है।
Û तीसरे या ग्यारहवें स्थान में यदि अकेला हर्षल हो तो जातक को बहुत धन लाभ होता है, उसे भाइयों अथवा परिवार का सुख मिलता है।
Û हर्षल $ मंगल पंचम में स्त्री की कुुंडली में गर्भपात अथवा संतान कष्ट देता है।
Û दशम भाव में अकेला हर्षल मेष को छोड़कर किसी भी राशि में हो तथा 1-4-7 भाव में गुरु हो तो निश्चय ही जातक उच्च पद पाता है अथवा उसे बहुत प्रतिष्ठा मिलती है।
Û शुक्र $ हर्षल किसी भी भाव में हों- पत्नी से संबंध तनाव ग्रस्त रहेगा यही युति अष्टम भाव में होने पर मन-मुटाव के परिणाम स्वरूप अनैतिक संबंध भी दर्शाती है। यह संबंध दृष्टि संबंधों के आधार पर न्यूनाधिक भी होता है।