श्रीमद् भागवत् महापुराण के अनुसार चंद्रमा का जन्म महर्षि अत्री की पत्नी अनुसूइया से हुआ था। मान्यता है कि चंद्रमा प्रत्येक मनुष्य में वास करता है। चंद्रमा की कुल कलाओं की संख्या सोलह है तथा चंद्रमा को इन सभी में निपुणता प्राप्त है। लोकमान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भी चंद्रवंश में ही हुआ था जो कि सोलह कलाओं में पूर्ण पारंगत थे। भगवान ब्रह्मदेव ने चंद्रमा को बीज, औषधि, जल तथा समस्त ज्ञानवान ब्राह्मणों का स्वामित्व प्रदान किया था। ऐसी भी मान्यता है कि चंद्रमा का विवाह दक्षराज की 27 कन्याओं के साथ हुआ। दक्षराज की 27 कन्याओं के चंद्रमा से विवाह के विषय में बहुत ही सुंदर कथा का वर्णन मिलता है। इसके अनुसार राजा दक्ष की सभी कन्याओं में रोहिणी सबसे अधिक रुप और गुणों से परिपूर्ण थी। वह न केवल अत्यंत सुंदर थी अपितु सभी कलाओं में भी निपुण थी। चंद्रमा उसे देखते ही उस पर मुग्ध हो गया और उसके पिता दक्षराज के पास जाकर रोहिणी से विवाह करने की ईच्छा प्रकट की।
इस पर राजा दक्ष ने उसके सम्मुख अपना प्रस्ताव रखा कि यदि वह उनकी अन्य 26 कन्याओं से भी विवाह करेगा तो दक्ष रोहिणी का विवाह उसके साथ कर सकते हैं। उनकी इस शर्त को चंद्रमा ने सहर्ष स्वीकार कर लिया और उसका विवाह राजा दक्ष की 27 कन्याओं के साथ हो गया। किंतु चंद्रमा के मन में तो केवल रोहिणी ही समाई हुई थी। अतः वह अपनी अन्य पत्नियों को छोड़कर केवल रोहिणी के साथ ही रमण करने लगा। इस प्रकार उन दोनों ने एक-दूसरे के प्यार में हजार वर्ष व्यतीत किए तथा अपने इस व्यवहार पर अन्य 26 पत्नियों द्वारा की गई किसी भी प्रकार की आलोचना पर कोई ध्यान नहीं दिया। चंद्रमा के इस व्यवहार से दुखी होकर, उसकी अन्य पत्नियों ने अपने पिता राजा दक्ष से उसकी शिकायत की। दक्षराज ने चन्द्रमा को समझाने का बहुत प्रयास किया किंतु चंद्रमा ने उनकी किसी बात पर ध्यान नहीं दिया तो दक्षराज ने क्रोध में आकर अपने दामाद को श्राप दिया कि वह अपना रुप खोकर काला हो जाएगा और आकाश से चंद्रमा का प्रकाश एकदम लुप्त हो जाएगा।
यह एक बहुत ही सुंदर आख्यान है जो चंद्रमा के स्वभाव के विषय में ही नहीं बल्कि हम सबके विषय में भी बहुत कुछ कहता है। ज्योतिष में चंद्रमा मानव मन की पूर्ण अभिव्यक्ति करता है अर्थात इसमें चेतन, अवचेतन और अचेतन मन के अतिरिक्त कुछ-कुछ मानवता की सामूहिक अवचेतना का भी भाग रहता है। ऐसी मान्यता है कि दक्ष के शाप से पहले रात्रि में पूर्ण चंद्रमा ही आकाश में होता था। अतः चंद्रमा के इस तरह लुप्त हो जाने का प्रभाव केवल दक्ष की 27 कन्याओं पर ही नहीं अपितु समस्त मानव समाज पर पड़ा क्योंकि इससे पहले पूर्ण चंद्र का शुभ और शीतल प्रकाश रात्रि को सुखमय बना देता था। अचानक ही चंद्रमा के लोप हो जाने से उत्पन्न इन अमावस्याओं की काली रातों ने जीवन को कष्टमय कर दिया। इससे चारों ओर बहुत हाहाकार मच गया तथा जीवन के सभी क्षेत्रों से जुड़े हुए लोगों ने राजा दक्ष से अपने श्राप को वापस लेने का अनुरोध किया। राजा दक्ष पहले तो इसके लिए तैयार नहीं हुए किंतु बहुत अनुनय-विनय के बाद उन्होंने लोगों से कहा कि यदि चंद्रमा अपने अपराध को मान ले और भविष्य में ऐसा व्यवहार न करना स्वीकार करे तो वह श्राप को समाप्त तो नहीं कुछ परिवर्तित अवश्य कर सकते हैं।
चंद्रमा अपनी नई परिस्थिति के कारण इतना क्षुब्ध और दुखी था कि वह क्षमा मांगने के लिए तैयार नहीं हुआ। तब साधु-सन्तों के साथ लोकप्रतिनिधियों ने दक्षराज से चंद्रमा को क्षमा करने का पुनः अनुरोध किया। यद्यपि राजा दक्ष अपने जमाता के इस व्यवहार से खुश नहीं थे किंतु लोकहित को देखते हुए उन्होंने अपने श्राप में कुछ संशोधन कर दिया और कहा कि अब चंद्रमा सदा के लिए पूर्ण प्रकाश नहीं देगा किंतु प्रतिदिन उसके प्रकाश में कुछ अंश की वृद्धि होती जायेगी और पूर्ण होते ही पुनः अपना प्रकाश खोना प्रारंभ कर देगा। उसके बाद से ही कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष अस्तित्व में आये। माह में एक बार पूर्णिमा और एक बार अमावस्या होने लगी। ज्योतिष के अनुसार चंद्रमा व्यक्तित्व का द्योतक है। व्यक्तित्व एक बहुआयामी माध्यम है जिससे व्यक्ति अपने आप को विभिन्न रुपों में अभिव्यक्त करता है। उदाहरण के लिए व्यक्ति का व्यवहार अपनी पत्नी अथवा प्रेयसी के साथ बहुत ही प्रेममय होता है।
जबकि अपने कार्यस्थल पर वही व्यक्ति बहुत ही व्यावहारिक बुद्धि के साथ व्यापार करता दिखाई देता है। कठिन परिस्थितियों में व्यक्ति कभी तो दृढ़ता से उनका सामना करता है तथा कभी वहां से भाग खड़ा होता है। व्यक्ति को सदा अपनी परिस्थितियों और परिवेश के अनुसार अपने आप को बदलते रहने की आवश्यकता होती है। चंद्रमा हम सबके सामूहिक अवचेतन का प्रतिनिधित्व करता है तथा वह पूर्णतः अपनी चेतन, अवचेतन तथा अचेतन अवस्था के साथ मानव मन का द्योतक है। ज्योतिष में चंद्रमा मानव मन का प्रतिनिधित्व करता है तथा चंद्रमा से संबंधित उपर्युक्त कथा मन की विभिन्न अवस्थाओं का बहुत ही सुंदर वर्णन करती है। इस कथा का विश्लेषण करने पर हम मन के व्यवहार के विषय में बहुत कुछ जान सकते हैं। यह मान लेने पर कि चंद्रमा मानव मन का द्योतक है चंद्रमा के विभिन्न परिस्थितियों में भिन्न-भिन्न व्यवहार हमें मानव मन के विषय में बहुत कुछ बताते हैं। कथा में हम चंद्रमा को दक्षराज की रुपवान कन्या पर मुग्ध होता देखते हैं जो किसी भी प्रकार उसे पाना चाहता है। इसी प्रकार हम पाते हैं कि मन भी यदि एकाग्रचित हो, किसी काम में लगता है तो वह येन केन प्रकारेण अपने उद्देश्य को पाकर ही रहता है।
दक्ष की कन्याओं से विवाह होते ही चंद्रमा ने अपने मन के अनुसार व्यवहार करना प्रारंभ कर दिया। वह अपनी 26 स्त्रियों में कोई रुचि नहीं रखता था। अतः उसने अपना पूर्ण ध्यान रोहिणी पर ही दिया जो कि उन सब में रूपवान ही नहीं बल्कि प्रेमकला में भी पूर्ण पारंगत थी। प्रेम रस में विभोर होकर दोनांे हजार वर्ष तक एक-दूसरे के प्रेम में डूबे रहे। यह हजार वर्ष की बात अतिशयोक्तिपूर्ण हो सकती है किंतु वह स्पष्ट संकेत देती है कि अच्छाई या बुराई से ग्रसित मन किसी भी सीमा को नहीं मानता। ऐसा ही व्यवहार चन्द्रमा का अपनी अन्य स्त्रियों के प्रति था जब उन्होंने उसके इस व्यवहार की आलोचना की। यदि उसे बुद्धिमानी की बात बताते हुए समझाया जाए तो भी ग्रसित मन उस पर ध्यान नहीं देता। ऐसे ही चंद्रमा ने दक्षराज के समझाने पर ध्यान नहीं दिया।
हालांकि चंद्रमा अपनी गलती को जानता है लेकिन गलती मानने को राजी नहीं होता। इसीलिए चंद्रमा स्वयं दक्षराज से क्षमा मांगने नहीं गया। अन्ततः दक्षराज ने स्वयं अपने श्राप में संशोधन कर चंद्रमा से कहा कि अब वह सदा के लिए पूर्ण नहीं रहेगा किंतु घटता-बढ़ता रहेगा। बढ़ते हुए मास में एक बार पूर्ण होने पर पुनः घटने लगेगा। मन के स्वभाव की एक और विचित्रता यह है कि अपनी गलती के लिए पश्चात्ताप में भी उसे वैसा ही संतोष मिलता है जैसा जीवन के सुख भोग में। मन में शायद अपनी सभी कमजोरियों पर विजय पाने की ईच्छा होती है चाहे वह अपने प्रयास से प्राप्त हो या किसी दूसरे के द्वारा इंगित की जाए। मन सदा पूर्णता को पाने के लिए लगा रहता है और उसका एक ही तरीका है निरंतर प्रयास तथा अपनी गलतियों से शिक्षा लेना। वे आइजक न्यूटन ही थे जिन्होंने सेब के गिरने को देखकर गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत की खोज की। यूं तो बहुत-से लोगों ने पेड़ से सेब गिरते देखे होंगे किंतु न्यूटन ही उसका सूक्ष्म अध्ययन कर यह महान खोज कर सके।
इसी प्रकार चन्द्रमा के घटने-बढ़ने को तो लोग बहुत समय से देखते आ रहे हैं किंतु वे प्राचीन भारतीय मनीषी ही थे जिन्होंने चन्द्रमा और दक्ष की कन्याओं का रूपक दे इतने अर्थपूर्ण ढंग से मानव व्यवहार को समझाने का प्रयास किया। भारतीय महान कथाकार हैं तथा उनके पास विभिन्न ऋतुओं, लोगों, देवताओं आदि के विषय में अनेकानेक कथा-कहानियां हैं। वे सभी कथाएं कुछ प्रकट और गुप्त अर्थों से परिपूर्ण हैं तथा उनका उद्देश्य लोक कल्याण है। राशिचक्र के 27 नक्षत्र ही कथा में चन्द्रमा की 27 स्त्रियों के रूप में चित्रित हैं तथा चंद्रमा प्रत्येक नक्षत्र पर मास में एक बार होता है। इस प्रकार वह पृथ्वी की परिक्रमा लगभग सवा सत्ताइस दिन में पूरी करता है। चंद्रमा वृष राशि के रोहिणी नक्षत्र में पूर्णता को प्राप्त करता है।
अतः इस नक्षत्र में चंद्रमा को उच्च का चंद्र कहा जाता है। ज्योतिष के अनुसार चंद्रमा दूध से सफेद रंग का, सोलह कलाओं का स्वामी होता है। प्रेतात्माओं और पशुओं पर स्वामित्व रखता है। ब्रह्मदेव ने उसे बीजों, औषधियों, जल तथा ब्राह्मणों की जीवनदायिनी शक्ति होने का वरदान दिया था। चंद्रमा चावल, कपूर, चांदी, सफेद वस्त्र, सफेद फूल, शक्कर तथा बैलों पर नियंत्रण रखता है। इससे संबंधित रत्न मोती है। चंद्रमा कर्क राशि का स्वामी है। कर्क राशिचक्र की चैथी राशि है जो माता, सुख, ऐश्वर्य, मकान तथा संपत्ति को दर्शाती है। चंद्रमा हमारे सामूहिक अवचेतन का भी प्रतिनिधित्व करता है। वृष राशि में उच्च का होता है तथा 3 अंश पर उच्चतम अवस्था को प्राप्त करता है। वृश्चिक इसकी नीच की राशि है तथा इसमें भी नीचतम स्थान 3 अंश पर है। यह ध्यान देने योग्य है कि वृष राशि की 0-3 अंश तक वह पूर्ण उच्चता का भोग करता है तथा वृष का शेष तीन से 30 अंश का भाग ही इसका मूल त्रिकोण है।
विभिन्न भावों पर चन्द्रमा का प्रभाव: प्रथम भाव प्रथम भाव का चंद्रमा जातक को विपरीत लिंग के प्रति आकर्षित, रसिक, सभ्य, सौम्य तथा समस्याओं के निराकरण में माहिर बनाता है। वृषभ या कर्क का चन्द्रमा उसे भव्यता, भाग्य व सौम्यता प्रदान करता है। प्रथम भाव का चंद्रमा अध्ययन में अभिरुचि व ख्याति का भी द्योतक है। इस भाव में नीच का चंद्र व्यक्ति को व्यसनों का आदी तथा स्वभाव से कंजूस बनाता है। जीवन के 27वें वर्ष अस्वस्थता व रोग का भय रहता है। द्वितीय भाव द्वितीय भाव का चंद्रमा व्यक्ति को धनवान, अध्ययन का प्रेमी, अच्छा वक्ता, धन व सुख का चाहने वाला तथा किसी विषय का गहरा ज्ञान रखने वाला बनाता है। चंद्रमा पर बुध का प्रभाव उसे पिता की संपत्ति से वंचित रखता है। विदेशों से अच्छा धन कमाता है। किंतु धन की स्थिति हमेशा ऊपर-नीचे होती रहती है। शुभ ग्रहों के प्रभाव से चंद्रमा जातक को किसी विशेष विषय का ज्ञाता, धन व्यय करने का ईच्छुक किंतु बहुत धन कमाने वाला बनाता है। जीवन के 27वें वर्ष में जातक को विशेष लाभ होता है।
तृतीय भाव तृतीय भाव का चंद्रमा व्यक्ति को भ्रातृ प्रेम तथा आर्थिक संपन्नता प्रदान करता है। वह स्वस्थ, बुद्धिमान, कठिन विषयों का ज्ञाता, दूर स्थानों की यात्रा करने वाला, अच्छा लेखक किंतु मनमौजी बनाता है। भाग्योदय जीवन के तीसरे वर्ष में तथा 27 से 30वें वर्ष में यात्राओं से विशेष लाभ होता है। वृश्चिक का चंद्रमा उसे कानों में कष्ट, कंजूस, परपीड़क तथा धर्म की तरफ झुकाव वाला बनाता है। इस स्थान पर शुभ राशि का चंद्रमा व्यक्ति को प्रसिद्ध कवि व लेखक बनाता है। चतुर्थ भाव चतुर्थ भाव का चंद्रमा व्यक्ति को सुखी, प्रसिद्ध, खदानों से लाभ पाने वाला, विवाह के बाद भाग्योदय, अच्छी आय, उत्तम वाहन, माता का सुख, दुष्कर्मों से डरने वाला तथा धनी लोगों का संरक्षण पाने वाला होता है। विपरीत लिंग वालों को आकर्षित करने वाला, राजसी लोगों से लाभ पाने वाला एवं चंद्र-मंगल संयोग होने पर अधिक खाने वाला बनाता है। शुक्र-चंद्रमा से वह भ्रष्ट हो बुरे लोगों की संगत में पड़ता है।
संतान से कष्ट पाता है। जीवन के 22वें वर्ष में भाग्योदय। पंचम भाव पंचम भाव का चंद्रमा जातक को धनवान, भाग्यवान, अध्ययन का प्रेमी, सम्मानित, रहस्यमय विषयों में रुचि वाला, करुण हृदय, दयावान, आनंदित, खुश रहने वाला, आत्मविश्वासी, संतुष्ट तथा ललित कलाओं में रुचि लेने वाला बनाता है। भाग्यवान संतति, जीवन में धन लाभ। यदि वृष या कर्क में चंद्रमा हो तो अधिक कन्याएं पैदा होती हैं। ज्ञानवान, सट्टे व लाटरी से लाभ, अच्छे वस्त्र व भोजन का शौकीन, धर्म में आस्था तथा पूजा पाठ में रुचि लेने वाला बनाता है। शनि से प्रभावित चंद्रमा उसे शरारती, दूसरों की हंसी उड़ाने वाला, मासूमों को सताने वाला बनाता है। जीवन के छठे वर्ष में बिजली व अग्नि से भय रहता है। छठा भाव छठे भाव का चंद्रमा व्यक्ति को स्पष्ट वक्ता, व्ययशील तथा नौकरों-चाकरों से परेशान रखता है। कमजोर या बुरे ग्रहों के प्रभाव में जातक की आयु में हानि होती है किंतु पूर्ण अथवा बढ़ता हुआ चांद उसे दीर्घायु प्रदान करता है।
इस भाव का चंद्रमा अनेक शत्रु, आलस्य, अति कामुकता तथा अम्लीय दोष से पीड़ित रखता है। वृषभ का चंद्रमा गले का कष्ट तथा वृश्चिक का चंद्र बवासीर का कारण होता है। चंद्रमा व शुक्र का योग व्यक्ति को अति कामुक, भाइयों से द्रोह रखने वाला तथा विपरीत लिंगियों पर भारी व्यय करने वाला तथा अदालती मामलों में पराजय पाने वाला बनाता है। जीवन के पांचवें वर्ष में शारीरिक कष्ट की संभावना रहती है। सप्तम भाव सप्तम भाव का चंद्रमा व्यक्ति को करुणामय, विदेश में रहने का अत्यंत ईच्छुक तथा विपरीत लिंगियों से प्रभावित होने वाला बनाता है। व्यापार से लाभ पाने वाला, मीठे का शौकीन, प्रसन्न व प्रसिद्ध बनाता है। गुरु व बुध से युक्त चंद्रमा संपत्तियों का स्वामित्व तथा पत्नी व पुत्रों का सुख प्राप्त करने वाला बनाता है। शनि-चन्द्र की युति विवाह में अशांति की द्योतक है। दूषित चंद्र व्यक्ति को अति कामुक तथा पत्नी से दुख पाने वाला बनाता है। जीवन के 24वें वर्ष में विवाह का योग होता है।
अष्टम भाव अष्टम भाव का चंद्रमा अस्वस्थ देह तथा दूसरों की सुख-संपत्ति से ईष्र्या करने वाला बनाता है। जीवन में पूर्ण सुख का अभाव रहता है। बलवान चंद्रमा विदेश में जीवन व साझेदारी से लाभ प्राप्त कराता है किंतु मन पूर्वाग्रहों व दुर्भावनाओं से ग्रसित रहता है। शुक्र व मंगल के दुष्प्रभाव से अकस्मात मृत्यु की संभावना रहती है तथा माता के स्वास्थ्य की हानि होती है। बृहस्पति के संयोग से जातक की रुचि रहस्यवाद में भी होती है। जीवन के 32वें वर्ष में दुर्घटना का भय रहता है। नवम भाव नवम भाव का चंद्रमा जातक को पितृभक्त, गुणी पुत्र वाला, दानशील, धनवान, धार्मिक व्यक्तियों की सेवा करने वाला तथा अपने अच्छे कामों के लिए जाना जा सकने वाला बनाता है। शुक्र-चंद्रमा का योग इसे नटखट जीवन साथी प्रदान करता है। वह दूसरों के अधीन सेवा करने वाला होता है। इस भाव में चंद्रमा दुर्भाग्य व मानहानि का कारक होता है।
विदेशों से लाभ, 20 वर्ष की आयु में तीर्थयात्रा तथा 24वें वर्ष में भाग्य की देवी उस पर प्रसन्न होती है। दशम भाव दशम भाव का चंद्रमा व्यक्ति को धनवान, भाग्य सुख को भोगने वाला बनाता है। संुदर वस्तुओं का व्यापार करने वाला, संतोषी व्यक्ति, दूसरों की सहायता करने वाला, परिवार में प्रमुख तथा सौम्य स्वभाव वाला होता है। समाज में सम्मानित सरकारी कार्य में कुशल तथा शासन से लाभ पाने वाला होता है। भाग्यवान जीवनसाथी वाला, धनवान स्त्रियों को प्रभावित करने वाला तथा सरकार से सम्मान पाने वाला होता है। दूषित चंद्रमा दमा, विवाह-विच्छेद, आलस्य और दूसरों से अपमान का कारक होता है। चर राशियों का चंद्रमा बहुत से व्यवसाय परिवर्तनों का कारण होता है। मंगल से युति हानि का तथा शनि से युति व्यवसाय में कठिनाइयों का द्योतक है। किंतु जीवन के 24व व 43वें वर्ष में लाभ को भी इंगित करता है।
एकादश भाव एकादश भाव का चंद्रमा व्यक्ति को धनवान, संतान द्वारा भाग्योदय तथा विपरीत लिंगियों द्वारा धन लाभ का कारण होता है। इस भाव का चंद्रमा ज्योतिष व धर्म में रुचि, सेवाभाव व जीवन के सुख भोगों का कारण होता है। वह समाज में ख्याति सहज पा लेता है तथा इतिहास का ज्ञाता होता है किंतु कमजोर व दूषित चंद्रमा उसे अवारा लोगों के प्रति आकर्षित करता है जो बदनामी का कारण होता है तथा संतान से सुख में भी हानि होती है। इसे सामाजिक अपमान का भय रहता है किंतु लाभदायक चंद्रमा 16वें वर्ष में धन व 27वें वर्ष में मान का कारण होता है। द्वादश भाव द्वादश भाव का चन्द्रमा व्यक्ति को विदेशवासी, गुप्त विद्याओं में रुचि रखने वाला, एकान्त प्रिय, संन्यासी वृत्ति वाला, त्यागी, औषधियों का व्यापार करने वाला तथा शुभ अवसरों व कार्यों में व्यय में रुचि लेने वाला बनाता है। इस भाव में दूषित चंद्रमा व्यक्ति को क्रोधी व्यक्तित्व, कुसंगति में रुचि, कंजूस मानसिकता वाला, क्रूर व आलसी बनाता है। सूर्य व मंगल से प्रभावित चंद्रमा, सरकार व शासन के दंड का भागी, कपट करने वाला, समस्याएं पैदा करने वाला, नेत्र विकार से पीड़ित, जुए में हारने वाला व कारागार का भोगी भी बना सकता है।
जीवन के तीसरे वर्ष में अस्वस्थता तथा 45वें वर्ष में जल से भय की संभावना होती है। विभिन्न राशियों में चन्द्रमा का प्रभाव:- मेष जैसा कि हम जानते हैं कि मेष राशि का स्वामी मंगल है तथा चंद्रमा व मंगल में सहज मित्रता है किंतु मेष राशि में चन्द्रमा अत्यंत भावुक व्यवहार करता है। इसका मुख्य कारण है कि चंद्रमा अति गतिशील ग्रह है और मेष एक क्षैतिजिक (चर) राशि होने के कारण उसे पर्याप्त आधार प्रदान नहीं कर पाती। जब तक कि चंद्रमा शुभ ग्रहों से संबद्ध या प्रभावित न हो। इसी कारण से व्यक्ति में चंचलता बनी रहती है तथा वह बहुत कुछ एकसाथ कर लेना चाहता है। वह धार्मिक रुचि वाला, ज्ञानियों का मान करने वाला, देशाटन का प्रेमी, करुण हृदय तथा उथले व्यवहार में विश्वास न रखने वाला होता है। वृष यह चंद्रमा के उच्च का स्थान है यद्यपि उच्चतम शून्य से तीन अंश तक शेष 3 से 30 अंश तक मूल त्रिकोण में माना जाता है। 3 अंश पर यह उच्चतम होता है। वृष राशि का स्वामी शुक्र है तथा चंद्रमा व शुक्र का निकट का संबंध है इसलिए यहां चंद्रमा की गतिविधि में हम विशेष उत्साह के दर्शन करते हैं।
यहां रचनात्मक वृत्ति अपनी पूर्णता मं उपलब्ध है। यदि जातक रचनात्मक क्रियाओं पर ध्यान दे तो वह आश्चर्यजनक परिणाम पा सकता है। इस राशि में चंद्रमा जातक को संपदा, संतान से सुख, भाग्य, शासन से सम्मान व सुखकारी जीवन साथी प्रदान करता है। व्यक्ति को परिवार व वाहन का सुख तथा धार्मिक वृत्ति भी प्रदान करता है। मिथुन बुध मिथुन राशि का स्वामी होने के कारण विशेष महत्व रखता है। बुध व चंद्रमा में अच्छे संबंध के कारण यहां जीवन के उतार-चढ़ाव देखने में आते हैं। इस राशि में चंद्रमा उत्तेजित अवस्थाओं में अपने उतार-चढ़ाव के साथ प्रभावी रहता है। अतः मिथुन में चंद्रमा होने पर जीवन में उदासी के क्षण नहीं होते। कभी-कभी नैसर्गिक बुद्धि बहुत सुंदर परिणाम देती है तथा व्यक्ति शानदार उपायों को व्यक्त करता है जो अपने समय से आगे के जान पड़ते हैं। मिथुन का चंद्रमा व्यक्ति को माता-पिता का भक्त व धार्मिक बनाता है। जीवन में सुख की कोई कमी नहीं होती तथा व्यक्ति को जीवन भर यात्रा करना आनंददायक लगता है।
कर्क चंद्रमा कर्क राशि का स्वामी है। अतः इस राशि में चन्द्रमा सहज ही अच्छे परिणाम देता है। यह व्यक्ति को शांत, एकाग्र तथा अपनी समस्त शक्ति से काम करने वाला बनाता है। संतोषकारी परिणाम होने पर व्यक्ति की रुचि उसी कार्य में बनी रहती है अन्यथा वह अपनी रुचि परिवर्तित कर लेता है। कर्क का चंद्रमा जातक को घर, वाहन व कभी-कभी बहुत संपत्ति प्रदान करता है। नये अध्यावसायों में सफलता, धार्मिक वृत्ति, दानशीलता किंतु गुप्त रोगों से पीड़ा भी संभव होती है। सिंह जैसा कि हम जानते हैं कि यह राशि सूर्य के स्वामित्व में है।
अतः चंद्रमा सिंह राशि में सुख का अनुभव करता है। इस राशि में होने के कारण चंद्रमा कुछ अतिरिक्त उत्साही होता है तथा समय-समय पर अपना प्रभाव दिखाता है। जातक अपनी सामथ्र्य सिद्ध करना चाहता है तथा भारी चुनौतियां स्वीकार करता है। अपने विषय में उसकी राय बहुत ऊंची होती है तथा वह अपनी बड़ाई करने से भी नहीं चूकता। सिंह का चंद्रमा शासन से सम्मान, समाज में प्रतिष्ठा तथा अधिकारिक पद देने वाला होता है। वह अत्यधिक ध्नार्जन करता है किंतु अस्वस्थ व शारीरिक कष्ट का भागी होता है। कन्या कन्या राशि का स्वामी बुध है। अतः चंद्रमा कन्या राशि के जातक को कुशाग्र बुद्धि प्रदान करता है तथा वह तुरंत ही परिणामों को प्राप्त करने में सफल होता है। समस्याओं को वह बहुत व्यावहारिक बुद्धि से देखता है। अतः कुछ भी भाग्य के भरोसे नहीं छोड़ता। तो भी कभी उसके अपनी ही तार्किकता में उलझ जाने की संभावना रहती है। कन्या राशि का चंद्रमा जातक को विपरीत लिंगों से सहवास व समस्त ऐश्वर्य प्रदान करता है।
वह यात्रा का ईच्छुक तथा विदेशों में रहने वाला होता है। धन कमाने की अच्छी क्षमता होती है। वह जल्दबाज, बिना सोचे बोलने वाला तथा गैर कानूनी कामों में रुचि लेने वाला होता है। तुला तुला राशि का स्वामी शुक्र है तथा शुक्र के प्रभाव से चंद्रमा अपने भव्य गुणों को खो बैठता है क्योंकि इस इस राशि में निकृष्ट मानसिक वृत्तियों को बढ़ावा देने की वृत्ति होती है। अतः जातक इन प्रभावों में बह जाता है और दुर्भाग्यकारी गतिविधियों में संलग्न रहता है। वह दुश्चरित्र व्यक्तियों के संपर्क में आता है तथा धन व पद की हानि का भागी होता है। धन की कमी उसके जीवन में विशेष स्थान रखती है। विपरीत लिंगों से संबंध न सुखद होते हैं न लाभदायक। उसमें विवाद की वृत्ति, आत्मविश्वास में कमी, दरिद्रता तथा कभी-कभी हास्यास्पद व्यवहार की वृत्ति रहती है। वृश्चिक वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल है तथा यह चंद्रमा के नीच का स्थान है। 3 अंश पर यह नीचतम होता है। स्वाभाविक ही नीच का ग्रह अपना स्वभाव व प्रभाव खो बैठता है और केवल नीचभंग की दशा में ही प्रभावी होता है। इस राशि में यही चंद्रमा के साथ होता है ।
जातक को अपने प्रयासों में अपमानित होना पड़ता है। दूसरों की सेवा में जाना पड़ता है। अपनों से द्वेष रहता है तथा धन की हानि होती है। उसे शासन से समस्या, उपक्रमों में निराशा व शारीरिक कष्ट होता है। धनु धनु राशि का स्वामी बृहस्पति है। चंद्रमा व बृहस्पति की मित्रता के कारण धनु राशि में चंद्रमा अच्छे परिणाम देता है किंतु अयोग्य विचारों व व्यक्तियों के प्रभाव में आकर परिणामों का बिना विचार किये अति उत्साही रहने की प्रवृत्ति रहती है। वे मेहनती व कार्यकुशल होते हंै किंतु एकाग्रता के अभाव में कुछ भी लाभप्रद नहीं कर पाते और उद्देश्य से भटक जाते हैं। इन्हें पैतृक संपत्ति की हानि, मानसिक व शारीरिक कष्ट तथा शासन द्वारा दंड की आशंका रहती है। इन सभी बाधाओं के होते हुए भी इनका परिश्रम और धैर्य ही इन्हें जीवन में सफलता दिलाता है। मकर चंद्रमा का विभिन्न राशियों से विभिन्न प्रकार का संबंध होता है। इसके दो कारण हैं।
1. चंद्रमा विभिन्न ग्रहों से विभिन्न स्तरों पर संबंध स्थापित करता है।
2. उसी के अनुसार व उसमें सहजता अथवा असहजता का राशि अनुसार अनुभव करता है। मकर राशि का स्वामी शनि ग्रह है। इस राशि में चंद्रमा बहुत ही व्यावहारिक हो जाता है तथा सांसारिक ज्ञान से लाभ लेने का प्रयास करता है। इस राशि का जातक यात्राओं की ईच्छा वाला तथा संतान से सुख पाने वाला होता है। इसके व्यवहार में एक सतत अनिश्चितता रहती है तथा वह अज्ञात चिंताओं से भयभीत रहता है। कुंभ शनि इस राशि का स्वामी भी है किंतु चन्द्रमा का इस राशि से संबंध मकर राशि से कुछ अलग प्रकार का है।
यहां विषयों का एक अंतद्र्वंद्व है जो व्यावहारिक परिणामों की प्राप्ति में बाधक है। यह द्वंद्व की स्थिति व्यक्ति के विकास क्रम के साथ-साथ देखी जा सकती है। वे सार्वभौमिक स्तर पर कार्य करना चाहते हैं किंतु छोटी-छोटी समस्याएं उन्हें घेरे रहती हैं। उन्हें संपत्ति की हानि, दुश्चिंता, कर्ज लेना तथा अनैतिक कार्यों में संलग्न होना पड़ सकता है। उसमें बुरे लोगों की संगत व दुव्र्यसनों की लत पड़ने की संभावना रहती है। मीन इस राशि का स्वामी बृहस्पति है। चंद्रमा का बृहस्पति से विशेष संबंध है जो मीन राशि में चंद्रमा के होने से ही स्पष्ट होता है। चंद्रमा अपनी समस्त योग्यता के साथ यहां प्रकट होता है तथा जातक की कल्पना को एक नई दिशा प्रदान करता है। यहां आकाश को छू लेने की आंतरिक ईच्छा काम करती प्रतीत होती है जो इस नव प्राप्त ख्याति का भाग हो जाना चाहती है। मन रचना की दुनिया में विचरने को आतुर होता है तथा एक के बाद एक रचनात्मक कृतियों के निर्माण में संलग्न रहता है।
व्यक्ति अपने अच्छे कर्मो से धनार्जन करता है, बहिर्मुखी होता है तथा जल से संबंधित उत्पादों में रुचि लेता है और उससे लाभ पाता है। स्त्री व संतान से सुख तथा शत्रुओं का समूल नाश करने में भी जातक सक्षम होता है।