लाल किताब के जरिए ग्रह अशुभता निवारण
लाल किताब के जरिए ग्रह अशुभता निवारण

लाल किताब के जरिए ग्रह अशुभता निवारण  

रुपेन्द्र वर्मा
व्यूस : 12193 | मार्च 2011

लाल किताब में ग्रहों की अशुभता दूर करने के लिए अनूठे उपाय किये जाते हैं जिनसे व्यक्ति संबंधित ग्रह की अशुभता को दूर करके उससे मुक्ति प्राप्त कर सकता है। प्रत्येक उपाय निर्धारित अवधि के लिए करना जरूरी है। प्रत्येक ग्रह के संबंध में विशिष्ट उपायों की व्यवस्था की गयी है।

भविष्य जानने की अनेकानेक विधाओं में से फलित ज्योतिष के कई स्वरूप हैं- हस्तरेखाविज्ञान, अंकशास्त्र पक्षी शास्त्र, रमलशास्त्र, होराशास्त्र आदि न जाने कितनी विधायें कालक्रम में उपजी और अपने चमत्कारिक प्रभाव के कारण लोक प्रिय रहीं।

कहा जाता है मूलरूप में लाल किताब को लंकापति रावण ने सूर्य के सारथी अरुण से प्राप्त किया था, जो बाद में अरब देद्गा पहुंच गयी। जहां इसका अरबी, फारसी भाषाओं में अनुवाद कर इसे नया रूप प्रदान किया गया। यह ग्रन्थ उर्दू अनुवाद में पाकिस्तान के पुस्तकालय में सुरक्षित है। चूंकि इसकी द्गौली रहस्यमयी है इसलिये इसका भावार्थ जल्दी समझ में नहीं आता है। इसमें ज्योतिष के नियम भारतीय ज्योतिष के सिद्धान्तों से कुछ भिन्न है। लाल किताब अपनी दो प्रमुख विद्गोषताओं के कारण सर्वाधिक लोकप्रिय एवं प्रासंगिक है। प्रथम यह कि यह हस्तरेखाओं के आधार पर किसी भी व्यक्ति की जन्मकुण्डली का फलादेश करने में सक्षम हेै। दूसरे, सापेक्षता के सिद्धान्त पर जीवन में प्राप्त होने वाले शुभाशुभ परिणामों का विश्लेषण करके संबंधित ग्रहों का उपचार (टोटके) करके व्यक्ति को वांछनीय परिणाम प्राप्त कराये जा सकते हैं, उसे परेद्गाानियों से मुक्त कराया जा सकता है। लालकिताब द्वारा बतलाये हुये उपायों को करते समय दो बातों का विद्गोष ध्यान रखें –

1. प्रत्येक उपाय निर्धारित दिन या किसी भी दिन सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच ही करें।

2. कोई भी उपाय कम से कम 40दिन और अधिक से अधिक 43 दिन तक ही करें।

लालकिताब के अनुसार किसी भी ग्रह की अद्गाुभता को दूर करने के लिये यहॉं हम कुछ विद्गोष अनुभूत उपायों की चर्चा करते हैं जो सामान्य रूप में किसी भी स्थिति में किये जा सकते हैं। इन उपायों को करके व्यक्ति सम्बन्धित ग्रह की अद्गाशुभता को दूर कर कष्टों से मुक्ति पा सकता है। ये उपाय निम्नानुसार हैं-

सूर्यः

  • बहते पानी में गुड़ प्रवाहित करें
  • किसी भी द्गाशुभ कार्य के आरंम्भ में मुंह अवद्गय मीठा करें, कार्य अतिद्गाशुभता के साथ संपन्न होगा।
  • गेहूं गुड़, तांबा, लाल कपड़ा धर्म स्थान में दान दें ।
  • हरिवंद्गा पुराण का पाठ करें। द्गाशुभ मुहूर्त में माणिक्य रत्न धारण करें।

चंद्रः

  • दूध या पानी से भरा चांदी या तांबे का बर्तन सिरहाने रखें, सुबह उसे बबूल के पेड़ की जड़ में चढ़ा दें।
  • भैरव मंदिर में कम से कम 1.25 लीटर दूध दान दें तथा दूध कभी न बेचें।
  • चांदी का चौकोर टुकड़ा नदी में प्रवाहित करें तथा चावल व चांदी अपने पास रखें।
  • कुल देवी या देवता की उपासना करें। द्गाुभमुहूर्त में मोती रत्न धारण करें।

मंगलः-

  • हनुमानजी के मंदिर में जाकर बूंदी या लड्डू का प्रसाद चढ़ाकर वितरण करें, साथही हनुमान चालीसा का पाठ करें।
  • पवित्र प्रवाह वाले जल में रेवड़ी-बतासे प्रवाहित करें।
  • तंदूर वाली मीठी रोटी, मसूर की दाल और मृगछाला मंदिर या धर्मस्थान में दें।
  • विधि-विधान से मूंगा रत्न धारण करें। मंगल नेक (द्गाशुभ ) हो तो मिठाई या मीठा भोजन दान दें या धर्म स्थान में बांटें।

बुध :

  • फोका कद्दू व बकरी धर्म स्थान में दान दें।
  • बारह साल से छोटी कन्याओं का पूजन करें।
  • नियमितरूप से फिटकरी से दॉंत साफ करें।
  • तांबें के पत्तर(चादर) में छेद करके नदी में प्रवाहित करें।
  • आग में कौड़ियां जलाकर नदी में प्रवाहित करें।

गुरु :

  • अक्षय वृक्षारोपण करें अथवा पीपल का वृक्ष लगायें तथा उसमें जल चढायें।
  • केसर का सेवन करें।
  • उसे नाभि तथा जीभ पर लगायें। नियमित पूजा-अर्चना करें ।
  • विष्णुसहस्रनाम का पाठ तथा हरिवंद्गा पुराण का श्रवण करें।
  • भैरव मंदिर में द्गाराब चढ़ायें।
  • चने की दाल, हल्दी, स्वर्ण तथा वेद ग्रंन्थों का दान धर्म स्थान में दें।

शुक्र :-

  • सफेद गौ दान करें तथा उसे ज्वार या चने का चारा खिलायें।
  • लक्ष्मीजी का श्रद्धापूर्वक पूजन करें, नैवेद्य चढ़ा कर, आरती करें तथा मिश्री का प्रसाद बॉंटें।
  • विधवाओं की सहायता करें, उनसे धन न ले।
  • गरीबों को सूखी सब्जी व रोटी खिलायें तथा यथाद्गाक्ति धन, वस्त्र दान दें।
  • दूध, दही, घी, रूई, कपूर तथा चरी का धर्म स्थान या मंदिर में दान दें।

शनि :

  • कांसे के बर्तन में तेल डालकर उस में अपनी छाया देख कर तेल का दान दे।
  • गेहूं, उड़द, चना, जौ व तिल - इन पॉंचों को चक्की में पिसवाकर गोलियां बनायें तथा मछलियों को खिलायें।
  • भगवान द्गिाव की पूजा करें तथा द्गिाव महिमा स्तोत्र या द्गिाव चालीसा का पाठ सुनायें।
  • आंखों का सुरमा जमीन में गाड़ें या दान करें।
  • श्रद्धापूर्वक उड़द, चना, चकला-बेलन, चिमटा, तिल का तेल व द्यद्गाराब का दान करें।

राहु :-

  • खोटा सिक्का जल में प्रवाहित करें।
  • मूली के पत्ते निकालकर, मूली का दान दें।
  • गौ मूत्र से दांत साफ करें।
  • जल में श्रीफल या कोयला प्रवाहित करें।
  • रोग मुक्ति के लिये यव को गौ-मूत्र से धोकर डिब्बी में डालकर अपने पास रखें।

केतु :-

  • गणेद्गाजी का स्मरण व पूजन करें।
  • देव मंदिर या भैरव मंदिर में काली पताका चढ़ायें।
  • सतनजे की रोटी कुत्ते को खिलायें।
  • तिल व चितकबरे कम्बल का दान मंदिर में करें या गरीबों में दें।
  • कपिला गाय का दान करें।

उपर्युक्त उपायों में से सामर्थ्य के अनुसार एक या एक से अधिक उपायों को करने पर व्यक्ति सम्बन्धित ग्रह की परेद्गाानी से बच सकता है। हर व्यक्ति अपनी राद्गिा के स्वामी ग्रह के अनुसार भी इन उपायों को करेगा तो उसे भी लाभ होगा,

जैसे-मेष तथा वृद्गिचक राद्गिा वाले लोग मंगल से संबंधित, वृष तथा तुला राद्गिा वाले लोग द्गाुक्र से संम्बंधित, मिथुन तथा कन्या राद्गिा वाले लोग बुध से संबंधित, कर्क राद्गिा वाले लोग चंद्र से संबंधित, सिंह राद्गिा वाले लोग सूर्य से संबंधित, धनु तथा मीन राद्गिा वाले लोग गुरु से संबंधित,मकर तथा कुंभ राद्गिा वाले लोग द्गानि से संबंधित उपायों को अपना कर द्गाशुभत्व बढ़ा सकते हैं। एक या एक से अधिक उपायों को करने पर व्यक्ति सम्बन्धित ग्रह की परेद्गाानी से बच सकता है। हर व्यक्ति अपनी राद्गिा के स्वामी ग्रह के अनुसार भी इन उपायों को करेगा तो उसे भी लाभ होगा। सापेक्षता के सिद्धान्त पर जीवन में प्राप्त होने वाले द्गाशुभाद्गाशुभ परिणामों का विद्गलेषण करके संबंधित ग्रहों का उपचार (टोटके) करके व्यक्ति को वांछनीय परिणाम प्राप्त कराये जा सकते हैं।



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