राहु का अन्य ग्रहों पर प्रभाव
राहु का अन्य ग्रहों पर प्रभाव

राहु का अन्य ग्रहों पर प्रभाव  

सीताराम सिंह
व्यूस : 10033 | अप्रैल 2013

राहु-केतु छाया ग्रह हैं, परंतु उनके मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव के आधार पर हमारे तत्ववेत्ता ऋषि-मुनियों ने उन्हें नैसर्गिक पापी ग्रह की संज्ञा दी है। केतु को ‘कुजावत’ तथा राहु को ‘शनिवत्’ कहा गया है। परंतु जहां शनि का प्रभाव धीरे-धीरे होता है, राहु का प्रभाव अचानक और तीव्र गति से होता है। राहु-केतु कुंडली में आमने-सामने 1800 की दूरी पर रहते हैं और सदा वक्र गति से गोचर करते हैं। राहु ‘इहलोक’ (सुख-समृद्धि) तथा केतु ‘परलोक’ (आध्यात्म), से संबंध रखता है। यह कुंडली के तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाव में अच्छा फल देते हैं। सूर्य और चंद्रमा से राहु की परम शत्रुता है। शुभ ग्रहों से युति व दृष्टि संबंध होने पर राहु सभी प्रकार के सांसारिक -शारीरिक, मानसिक और भौतिक -सुख देता है, परंतु अशुभ व पापी ग्रह से संबंध कष्टकारी होता है। फल की प्राप्ति संबंधित ग्रह के बलानुपात में होती है।

राहु से संबंधित अशुभ ग्रह की दशा जितने कष्ट देती है, उससे अधिक कष्टकारी राहु की दशा-भुक्ति होती है। राहु द्वारा ग्रसित होने पर सूर्य अपने कारकत्व - पिता, धन, आदर, सम्मान, नौकरी, दाहिनी आंख, हृदय आदि- संबंधी कष्ट देता है। बहुत मेहनत करने पर भी लाभ नहीं मिलता। साथ ही सूर्य जिस भाव का स्वामी होता है उसके फल की हानि होती है। व्यक्ति के व्यवहार में दिखावा, घमंड व बड़बोलापन अंततः हानिकारक सिद्ध होता है। राहु द्वारा ग्रस्त होने पर चंद्रमा जातक की माता को कष्ट देता है। पारिवारिक शांति भंग होती है। जातक स्वयं छाती, पेट, बाईं आंख के रोग, या मानसिक संताप से ग्रसित होता है। उसे डर, असमंजस और चिंता के कारण नींद नहीं आती और वह बुरी आदतों में लिप्त हो जाता है। चंद्रमा के निर्बल और पीड़ित होने पर जातक हताशा में आत्महत्या तक कर लेता है। राहु द्वारा ग्रसित होने पर मंगल जातक को उग्र व क्रोधी बनाता है।

वह चिड़चिड़ा और आक्रामक बन जाता है तथा समाज और कानून विरोधी कार्य करता है, लड़ाई-झगड़ा, संपत्ति हानि, चोट, फोड़ा-फुंसी, पित्त व रक्त-विकार, बुखार आदि की संभावना बढ़ जाती है। मंगल के स्वामित्व वाले भावों संबंधी कार्यों में अवरोध व हानि होती है। राहु द्वारा शुक्र के ग्रसित होने पर व्यक्ति अपनी सुख-सुविधाओं को अनैतिक रूप से प्राप्त करता है। उसे चेहरा, गला, आंख, किडनी, प्रजनन प्रणाली ओर यौन रोग की संभावना रहती है। व्यक्ति फिजूल-खर्ची करता है। उसके अन्य स्त्रियों से संबंध होते हैं, जो कष्टकारी सिद्ध होता है। राहु द्वारा बुध के ग्रस्त होने पर व्यक्ति के आचार-विचार में विकृति आती है। पढ़ाई में विघ्न तथा विद्या से लाभ नहीं होता। वह झूठ और बेईमानी का सहारा लेता है। उसे छाती, स्नायु, चर्म और पाचन संबंधी रोग होते हैं।

राहु द्वारा बृहस्पति के ग्रस्त होने पर व्यक्ति को पुत्र, विद्या, धन, गुरु, धर्म, आदर, मान तथा सुख-समृद्धि में अवरोध आते हैं। उसे लिवर, मधुमेह, रक्त, हृदय, ट्यूमर, नासिका और चर्बी के रोग होते हैं। बृहस्पति के स्वामित्व वाले भावों संबंधी कार्यों में परेशानियां आती हैं। व्यक्ति की सोच में विकृति आती है। उसके संकुचित और अधार्मिक मार्ग अपनाने से मान-सम्मान में कमी आती है, वह दुखी रहता है। बृहस्पति से संबंध होने पर राहु के दुष्प्रभाव में कमी आती है। इस युति को ‘गुरु’ चंडाल योग’ कहते हैं। राहु द्वारा शनि का ग्रस्त होना सर्वाधिक अनिष्टकारी होता है। व्यक्ति को जीवन में दुख, कष्ट, अवरोध, बीमारी, धन हानि, और तिरस्कार मिलता है। व्यक्ति को सर्दी, जुकाम, पाचन क्रिया, तिल्ली, दांत व हड्डियों के रोग तथा अस्थमा, लकवा और गठिया जैसे दीर्घकालीन रोग होते हैं।

इस प्रकार राहु तथा शनि का संबंध कुंडली के फलों में अनेक प्रकार के अवरोध लाता है। राहु के शनि से अगले भाव में स्थित होने पर जातक बहुत नीचे स्तर पर कार्य आरंभ करता है। उसकी प्रगति में अनेक बाधाएं आती हैं। वह असंतुष्ट रहता है। शिक्षा प्राप्ति की आयु में नैसर्गिक अशुभ ग्रहों से संबंधित राहु की दशा-भुक्ति ध्यान केन्द्रित नहीं होने देती और सफलता कठिनाई से मिलती है। राहु पर शुभ प्रभाव होने से टेकनिकल, इंजीनियरिंग, कंप्यूटर और डाॅक्टरी शिक्षा में सफलता मिलती है। राहु के केंद्र या त्रिकोण भाव में, त्रिकोण व केंद्र के स्वामी के साथ स्थित होने पर उसकी अपनी दशा-अंतर्दशा राजयोगकारी फल प्रदान कर व्यक्ति के जीवन को सुखी व समृद्धशाली बनाती है। इस प्रकार शुभ प्रभाव में राहु अपनी दशा-भुक्ति में शुभ फल तथा अशुभ प्रभाव में कष्ट देता है। अतः कुंडली में राहु के प्रभाव और भाव स्थिति का पूर्ण आकलन कर लेने से भविष्य कथन में परिपक्वता आती है। राहु प्रदत्त कष्ट निवारण के लिए प्रति दिन एक माला राहु मंत्र (ऊँ रां राहुवे नमः) का जप, तथा विशेषकर अमावस्या तिथि को एक, तीन या पांच कोढ़ियों को सरसों के तेल से बनी सब्जी, रोटी व एक गुड़-तिल का लड्डू स्वयं दान कर, साथ में कुछ दक्षिणा भी देना चाहिए।



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