संत देवरहा बाबा
संत देवरहा बाबा

संत देवरहा बाबा  

यशकरन शर्मा
व्यूस : 11512 | अप्रैल 2013

एक भारतीय संत देवरहा बाबा जिनकी मृत्यु 1990 में हुई, एक ऐसे योगी जिन्हें ।हमसमेे ल्वहप माना जाता था। देवरहा बाबा को खेचरी मुद्रा पर सिद्धि थी जिस कारण वे अपनी भूख और आयु पर नियंत्रण प्राप्त कर लेते थे। भारत के पहले राष्ट्रपति डाॅ. राजेंद्र प्रसाद के अनुसार इस बात के पुख्ता सबूत थे कि बाबा की आयु बहुत अधिक थी। इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक बैरिस्टर के अनुसार उनका परिवार 7 पीढ़ियों से बाबा का आशीर्वाद लेता रहा। वह बबूल का पेड़ नहीं मेरा शिष्य है, न कटेगा, न छांटा जायेगा। प्रधानमंत्री का कार्यक्रम टल गया, मगर पेड़ को आंच न आने दी। न उम्र का पता, न इतिहास का, लेकिन हरदिल अजीज रहा दिगम्बर। पूरा जीवन नदी के किनारे मचान पर ही काट दिया। प्रधानमंत्री राजीव गांधी को मथुरा के माठ इलाके में यमुना के किनारे एक साधु के दर्शन करने आना था। एसपीजी के साथ जिला और प्रदेश का सुरक्षा बल तैनात हो गया। प्रधानमंत्री के आगमन और यात्रा के लिए इलाके की मार्किंग कर ली गयी। आला सुरक्षा अफसरों ने हेलीपैड बनाने के लिए वहां लगे एक बबूल के पेड़ की डाल छांटने के निर्देश दिये। भनक लगते ही साधु ने एक बड़े पुलिस अफसर को बुलाया और पूछ लिया- यह पेड़ क्यों छांटोगे। जवाब मिला-पीएम की सुरक्षा के लिए जरूरी है। बाबा- तुम यहां अपने पीएम को लाओगे और प्रशंसा पाओगे, पीएम का भी नाम होगा कि वह साधु संतों के पास जाता है।

लेकिन इसका दंड तो इस बेचारे पेड़ को ही भुगतना होगा। वह मुझसे इस बारे में पूछेगा तो मैं उसे क्या जवाब दूंगा। नहीं, यह पेड़ नहीं छांटा जाएगा। प्रशासन में हडकंप मच गया। अफसरों ने अपनी मजबूरी बतायी कि दिल्ली से आये आला अफसरों ने यह फैसला लिया है, इसलिए इसे छांटा ही जाएगा। अब कुछ नहीं हो सकता। और फिर, पूरा पेड़ तो काटना है नहीं, केवल उसकी कुछ डाल काटी जाएगी। मगर साधु टस से मस नहीं हुआ। बोला - यह पेड़ होगा तुम्हारी निगाह में, मेरा तो सबसे पुराना शिष्य है। दिन रात मुझसे बतियाता है। यह पेड़ नहीं कटेगा। उधर अफसरों की घिग्घी बंधी हुई थी। साधु का दिल पसीज गया। बोले- और अगर यह कार्यक्रम टल जाए तो। तयशुदा कार्यक्रम को टाल पाने में अफसरों ने भी असमर्थता व्यक्त कर दी। आखिरकार साधु बोला- जाओ चिंता मत करो। तुम्हारे पी. एम. का कार्यक्रम मैं कैंसिल करा देता हूं। और, आश्चर्य कि दो घंटे बाद ही पी. एम. आफिस से रेडियोग्राम आ गया कि पी. एम. का प्रोग्राम टल गया है। कुछ हफ्तों बाद राजीव गांधी वहां आये, लेकिन इस बार वह पेड़ नहीं छांटा गया। यह थे देवरहा बाबा। न उम्र का पता और न अंदाजा। न कपड़ा पहनना और ना भोजन करना। उन्हें न तो किसी ने खाते देखा और न ही पानी पीते। शौचादि का तो सवाल ही नहीं। हां, दिन में चार-पांच बार वे नदी में सीधे उतर जाते थे और प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि आधा-आधा घंटा तक वे पानी में रहते थे।

इस पर उठी जिज्ञासाओं पर उन्होंने शिष्यों से कहा मैं जल से ही उत्पन्न हूं। उनके भक्त उन्हें दया का महासमुंद्र बताते हैं। और अपनी यह संपत्ति बाबा ने मुक्त हस्त से लुटाई। जो भी आया, बाबा की भरपूर दया लेकर गया। वितरण में कोई विभेद नहीं। वर्षाजल की भांति बाबा का आशीर्वाद सब पर बरसा और खूब बरसा। मान्यता थी कि बाबा का आशीर्वाद हर मर्ज की दवा है। कहा जाता है कि बाबा देखते ही समझ जाते थे कि सामने वाले का सवाल क्या है। दिव्य दृष्टि के साथ तेज नजर, कड़क आवाज, दिल खोल कर हंसना, खूब बतियाना बाबा की आदत थी। याददाश्त इतनी कि दशकों बाद भी मिले व्यक्ति को पहचान लेते और उसके दादा-परदादा तक का नाम व इतिहास सब बता देते, किसी तेज कंप्यूटर की तरह। हां, बलिष्ठ कदकाठी भी थी। लेकिन देह त्यागने के समय तक वे कमर से आधा झुक कर चलने लगे थे। ख्याति इतनी कि जार्ज पंचम जब भारत आया तो अपने पूरे लाव लश्कर के साथ उनके दर्शन करने देवरिया जिले के दियारा इलाके में मइल गांव तक उनके आश्रम तक पहुंच गया। दरअसल, इंग्लैंड से रवाना होते समय उसने अपने भाई से पूछा था कि क्या वास्तव में इंडिया के साधु संत महान होते हैं। प्रिंस फिलिप ने जवाब दिया- हां, कम से कम देवरहा बाबा से जरूर मिलना। यह सन 1911 की बात है। जार्ज पंचम की यह यात्रा तब विश्वयुद्ध के मंडरा रहे माहौल के चलते भारत के लोगों को बरतानिया हुकूमत के पक्ष में करने की थी।

उससे हुई बातचीत बाबा ने अपने कुछ शिष्यों को बतायी भी थी, लेकिन कोई भी उस बारे में बातचीत करने को आज भी तैयार नहीं। डाक्टर राजेंद्र प्रसाद तब रहे होंगे कोई दो-तीन साल के, जब अपने माता-पिता के साथ वे बाबा के यहां गये थे। बाबा देखते ही बोल पड़े-यह बच्चा तो राजा बनेगा। बाद में राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने बाबा को एक पत्र लिखकर कृतज्ञता प्रकट की और सन 54 के प्रयाग कुंभ में बाकायदा बाबा का सार्वजनिक पूजन भी किया। बाबा के भक्तों में लालबहादुर शास्त्री, जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी जैसी हस्तियां भी थीं। पुरूषोत्तम दास टंडन को तो उन्होंने राजर्षि की उपाधि तक दे डाली। देवरहा बाबा कब, कहां और किसके यहां जन्मे, कोई नहीं जानता। यह भी कोई नहीं जानता कि बाबा ने वस्त्र त्याग कर कब दिगंबर चोला अपनाया। वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी शैलजाकांत मिश्र बताते हैं कि उनकी परदादी के समय तक भी बाबा वैसे ही थे, जैसे सन् 1990 में। हां, दियारा इलाके में रहने के चलते ही शायद उनका नाम देवरहा बाबा पड़ा होगा। लेकिन नर्मदा के अमरकंटक में आंवले के पेड़ होने के नाते वहां उनका नाम अमलहवा बाबा भी पड़ गया। उनका पूरा जीवन मचान मंे ही बीता।

लकड़ी के चार खंभों पर टिकी मचान ही उनका महल था, जहां नीचे से ही लोग उनके दर्शन करते थे। मइल में वे साल में आठ महीना बिताते थे। कुछ दिन बनारस के रामनगर में गंगा के बीच, माघ में प्रयाग, फागुन में मथुरा के माठ के अलावा वे कुछ समय हिमालय में एकांतवास भी करते थे। खुद कभी कुछ नहीं खाया, लेकिन भक्तगण जो कुछ भी लेकर पहुंचे, उसे भक्तों पर ही बरसा दिया। उनका बताशा-मखाना हासिल करने के लिए सैकड़ों लोगों की भीड़ हर जगह जुटती थी और फिर अचानक 11 जून 1990 को उन्होंने दर्शन देना बंद कर दिया। लगा जैसे कुछ अनहोनी होने वाली है। मौसम तक का मिजाज बदल गया। यमुना की लहरें तक बेचैन होने लगीं। मचान पर बाबा त्रिबंध सिद्धासन पर बैठे ही रहे। डाक्टरों की टीम ने थर्मामीटर पर देखा कि पारा अंतिम सीमा को तोड़ निकलने पर आमादा है। 19 तारीख को मंगलवार के दिन योगिनी एकादशी थी। आकाश में काले बादल छा गये, तेज आंधियां तूफान ले आयीं। यमुना जैसे समुंदर को मात करने पर उतावली थी। लहरों का उछाल बाबा की मचान तक पहुंचने लगा और इन्हीं सबके बीच शाम चार बजे बाबा का शरीर स्पंदनरहित हो गया।

भक्तों की अपार भीड़ भी प्रकृति के साथ हाहाकार करने लगी। बर्फ की सिल्लियां लगा कर बाबा के पार्थिव देह को सुरक्षित रखने का प्रयास किया गया। अब तक देश-विदेश तक में बाबा के ब्रह्मलीन हो जाने की खबर फैल चुकी थी। लेकिन अचानक ही बाबा के सिर पर स्पंदन महसूस किया गया कि अचानक ही बाबा का ब्रह्मरंध्र खुल गया। उनके शिष्य देवदास ने उस ब्रह्मरंध्र को भरने के लिए फूलों का सहारा लिया, लेकिन वह भर नहीं पाया। आखिरकार दो दिन बाद बाबा की देह को उसी सिद्धासन-त्रिबंध की स्थिति में यमुना में प्रवाहित कर दिया गया। मथुरा में यमुना तीरे रहने वाले देवरहा बाबा को एक चमत्कारी और अवतारी व्यक्ति के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि जून सन् 1990 में समाधि पर जाने से पहले इस सिद्ध बाबा ने अत्यंत दीर्घ जीवन जीया था। पूरे जीवन निर्वस्त्र रहने वाले बाबा धरती से 12 फुट उंचे लकड़ी से बने बाॅक्स मंे रहते थे। वह नीचे केवल सुबह के समय स्नान करने के लिए आते थे। बाबा देवरहा खुद को भी एक अवतारी व्यक्ति कहते थे। उनका कहना था कि वे किसी महिला के गर्भ से नहीं बल्कि पानी से अवतरित हुए थे। उन्होंने पूरे जीवन कुछ नहीं खाया। कुंभ के समय बाबा नदी किनारे प्रवास करते थे। वहां अपने भक्तों के सिर पर पैर रखकर आशीर्वाद दिया करते थे। देश के पहले राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने कहा था कि उनके पिता जब बच्चे थे तो बाबा के चरणों में पूजा करते थे। उस समय भी बाबा की उम्र काफी अधिक थी। बाबा के भक्तों में राजीव गांधी का नाम भी शुमार था। यमुना के किनारे वृन्दावन में निवास करने वाले बाबा देवरहा 30 मिनट तक पानी में बिना सांस लिए रह सकते थे। उनको जानवरों की भाषा समझ में आती थी। खतरनाक जंगली जानवरों को वह पल भर में काबू कर लेते थे।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.