संवत् प्रवेश कुंडली में दशम भाव में गुरु की स्थिति यह बता रही है कि राष्ट्रपति महोदय महत्वपूर्ण व ऐतिहासिक निर्णय लेने में सक्षम हो सकेंगे। एकादशेश बुध के अष्टम भाव में नीचराशिस्थ होने से संसद, प्रधानमंत्री, कानून व शासन व्यवस्था पूर्व की भांति पंगु रहेगी। राष्ट्र की जनता रोजमर्रा की जिंदगी में असुरक्षा की भावना से ग्रस्त रहेगी। अष्टम और अष्टम से अष्टम भाव पर अधिकाधिक ग्रहों का जमावड़ा कांग्रेस पार्टी के विरूद्ध विद्रोह तथा कांग्रेस राज के पतन का संकेत है।
प्राकृतिक आपदा, आत्महत्या, अपराध व दुर्घटनाओं का प्रकोप विगत वर्षों से कहीं अधिक रहेगा। विश्व में विभिन्न धर्मों में अलग-अलग तिथि व समय को नया वर्ष मनाया जाता है। इसी तरह हिंदू धर्म में नए साल का आरंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी गुड़ी पड़वा से माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन से सृष्टि निर्माण का कार्य प्रारंभ किया था। इस दिन से चैत्र नवरात्रि का प्रारंभ भी होता है। इस तिथि से विक्रमी संवत का प्रांरभ भी होता है। उज्जैन नरेश राजा विक्रमादित्य ने इसी तिथि से कालगणना के लिए विक्रम संवत् का आरंभ किया था जो आज भी हिंदू कालगणना के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। ज्योतिष के अनुसार प्रत्येक संवत् का एक नाम होता है तथा विभिन्न ग्रह इस संवत् के स्वामी, राजा व मंत्री होते हैं जिसका असर वर्षभर जन सामान्य पर दिखाई देता है।
पराभव नामक संवत्सर हिंदू पंचांग के अनुसार इस वर्ष 11 अप्रैल 2013 को विक्रम संवत 2070 का आरंभ होगा। इस वर्ष पराभव नामक संवत्सर रहेगा जिसके स्वामी केतु, राजा गुरु व मंत्री शनि हैं। साथ ही दुर्गेश का पद शुक्र के पास रहेगा। जानिए ज्योतिष की दृष्टि से यह वर्ष कैसा रहेगा। पार्थिवैर्मण्डले शैश्च सामाप्न्तेर्दण्ड नायकेः। क्षुत्पिपासा तुरा लोकाः पीडयन्ते वै पराभवै।। अर्थात् पाराभव संवत्सर में राजा, अधिकारी, राज्य, सरकारों या दंड देने में समर्थ विभागों के द्वारा लोगों को कष्ट होता है। खाद्यान्न व पेय जल की समस्या खड़ी होती है। अग्नि भय, शस्त्र भय, रोग, पीड़ा और शत्रुओं के साथ युद्ध की स्थिति बन सकती है।
आतंकवाद, भूकंप, यान दुर्घटना आदि होने के योग बनने की संभावनाएं रहेंगी। स्वामी केतु का फल: वर्षा कम होती है। चैत्र और वैशाख में अनाज महंगा होगा तथा आंधी तूफान, बादल गरजन, बिजली आदि से भयावह स्थिति रहेगी। ज्येष्ठ में हवाओं और तूफान के कारण क्षति होगी। आषाढ़ में वर्षा कम परंतु श्रावण में अधिक होगी। भाद्रपद में सूखे की स्थिति होगी। आश्विन में अनाज और पेय पदार्थ महंगे होंगे। राजा गुरु का फल: वर्ष का राजा गुरु होने से युद्ध की स्थितियां टल जाएंगी और संवत्सर के अशुभ फल भी कुछ कम होंगे। पौष्टिक पेय, दुग्ध आदि का उत्पादन बढ़ेगा। आम जनता बहुत से धार्मिक अनुष्ठानादि में भाग लेती रहेगी। मंत्री शनि का फल: वर्ष का मंत्री शनि होने से दुष्ट राजा और प्रशासकों के निर्दयी व्यवहार के फलस्वरूप आम जनता की स्थिति सोचनीय बनी रहेगी और असंतोष की भावना बढ़ती रहेगी। जगत लग्न कुंडली में लग्नेश उच्चराशिस्थ है
जिसके फलस्वरूप सब प्रकार की फसलें अच्छी होंगी क्योंकि लग्न पर शुभ ग्रह गुरु की भी दृष्टि है। लेकिन सभी पाप ग्रहों के केंद्रस्थ होने से फसलों के नष्ट होने, सूखा पड़ने और विशेष रूप से महंगाई के बढ़ने के प्रबल संकेत हैं। आषाढ़ और पौष के महीने अशुभ रहेंगे जबकि श्रावण मास शुभ रहेगा। यह वर्ष इंग्लैंड, डेनमार्क, जर्मनी, पोलैंड, फिलीस्तीन, सीरिया, जापान, मद्रास, नेपाल, श्रीलंका, आस्ट्रिया, चीन, तिब्बत, मिश्र, म्यान्मार, अर्जेन्टाइना, कश्मीर, मारवाड़, जापान, अमेरिका और आस्ट्रेलिया आदि में उपद्रव, हिंसा, अराजकता, आतंकवाद व प्राकृतिक आपदाओं का संकेत दे रहा है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का आरंभ 10 अप्रैल 2013 को सायं 03 बजकर 05 मिनट पर हो रहा है
और इसी समय को नवसंवत्सर प्रवेश कुंडली का समय माना जाएगा जिसमें सिंह लग्न उदित हो रहा है। ाुगुइस कुंडली के अनुसार संवत् में बाढ़ के प्रकोप का खतरा है। दक्षिणी राज्यों में अनाज कुछ सस्ता होगा। संवत् के अर्धभाग में सुख समृद्धि बनी रहेगी। पश्चिमी राज्यों में धातु की वस्तुएं और फल बहुत महंगे होंगे। उत्तर में अत्यधिक वर्षा होगी और लोग सुखी रहेंगे। पूर्वी राज्यों में फसलों की पैदावार कम होगी लेकिन अंतिम पांच महीनों में समृद्धि बनी रहेगी। मध्य भारत में इन पांच महीनों में विद्रोह की स्थिति बनेगी। संवत् प्रवेश कुंडली में लग्नेश अष्टमस्थ है तथा सूर्य, मंगल, चंद्रमा, बुध, शुक्र ये सभी अष्टमस्थ हैं जिसके फलस्वरूप राष्ट्र की जनता रोजमर्रा की जिंदगी में असुरक्षा की भावना से ग्रस्त रहेगी। राष्ट्र गौरव की भावना लुप्त होने लगेगी। आंतरिक सुरक्षा के कार्यों को पूरा करने में राष्ट्र सरकार व गृह मंत्रालय पूर्णतया विफल रहेगा। संचार के साधन भी जरूरत पड़ने पर निष्क्रिय रहेंगे। अराजकता जैसी स्थिति बनी रहेगी। एकादशेश बुध के अष्टम भाव में नीचराशिस्थ होने से संसद, प्रधानमंत्री, कानून व शासन व्यवस्था पूर्णतया पंगु रहेगी।
दशम भाव में गुरु की स्थिति यह बता रही है कि राष्ट्रपति महोदय महत्वपूर्ण व ऐतिहासिक निर्णय लेने में सक्षम हो सकेंगे। अष्टम भाव में पांच ग्रहों तथा अष्टम से अष्टम में पाप ग्रहों की स्थिति यह संकेत दे रही है कि इस वर्ष राष्ट्र में प्राकृतिक आपदाओं, आत्महत्याओं, अपराध व दुर्घटनाओं का प्रकोप गत वर्षों से कहीं अधिक रहेगा। जल: वर्षा अल्प मात्रा में होगी। कहीं-कहीं सूखे जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है। कृषि की आवश्यकता के अनुसार वर्षा न होने के कारण किसानों को टयूबवेल आदि पर ही सिंचाई के लिए निर्भर रहना पड़ेगा। तृण: इस वर्ष जड़ी बूटियों की पैदावार कम होगी जिसके कारण औषधि निर्माण हेतु कृत्रिम रसायन आदि पर निर्भर रहना पड़ेगा। पशुओं के लिए हरा चारा या भूसा आदि की पैदावार कम ही रहेगी। अतः पशुओं के लिए गत वर्ष में एकत्रित भूसे पर ही निर्भर रहना पड़ेगा। वायु: इस वर्ष वायु अधिक तीव्रता से बहेगी। कहीं आंधी तो कहीं तूफान के कारण हानि की संभावना भी बनी रहेगी। समुद्री तट पर पहाड़ी क्षेत्रों में हवा का अधिक दबाव बना रहेगा। वायु ऊर्जा द्वारा चलने वाली मशीनों से अधिक कार्य करके लाभ कमाया जा सकता है।
अन्न: इस वर्ष अनाज जैसे गेहूं, जौ, चावल आदि का उत्पादन अधिक रहेगा। जिसके कारण अनाज का आयात नहीं करना पड़ेगा बल्कि निर्यात भी उचित मात्रा में करने की स्थिति बनेगी। सूर्य के आद्र्रा नक्षत्र में प्रवेश के समय चतुर्दशी तिथि पड़ने से अनाज और कपड़ा विशेष महंगा होगा। मिथुन अर्थात् वायुकारक राशि में चतुग्र्रही योग होने व जल तत्व कारक चंद्रमा के जलीय राशि में होने से विषम वर्षा के योग बनेंगे। कुछ क्षेत्रों में अधिक वर्षा व बाढ़ जैसे हालात जबकि कुछ क्षेत्रों में कम वर्षा और सूखे की स्थितियां बनेंगी। रोहिणी का वास समुद्र में होने से भी ऐसे ही संकेत मिल रहे हैं।
22 जून के बाद भारत में व्यापक रूप से मानसून का प्रारंभ हो जाएगा परंतु वायु वेग की कमी के कारण उपयोगी वर्षा की कमी रहेगी। आद्र्रा प्रवेश कुंडली के प्रभाव से इस वर्ष शेयर मार्केट, राजकोष, राष्ट्रीय बैंकों, आयात-निर्यात व अन्य व्यापारिक गतिविधियों में लाभ होने के व्यापक संकेत मिल रहे हैं।