अंक शास्त्र के अनुसार मूलांक अर्थात् 1 से लेकर 9 तक के अंक नवग्रहों के प्रतीक हैं। इसी प्रकार दर्शन शास्त्र ने भी अंकों के संदर्भ में व्याख्या की है। शिकागो के विश्वधर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद से शून्य पर बोलने को कहा गया था। शून्य (0) प्रतीक है निर्गुण निराकार ब्रह्म का और 1 अंक उस ईश्वर का, जो दिखाई तो ब्रह्मा, विष्णु महेश त्रिदेवों के रूप में देता है, लेकिन वास्तव में वह एक ही है।
नाम-रूप का भेद कार्य-भेद से है। 8 अंक में पूरी प्रकृति समाहित है। यथा- भूमिरापोनलोवायुः खं मनोबुद्धि रेव च। अहंकार इतीयं में भिन्नाप्रकृतिरष्टधा।। अर्थात् पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार- यह भगवान की 8 प्रकार की प्रकृति है। 108 द्वारा मनुष्य जीवन में सांसारिक वस्तुओं की प्राप्ति, ईश्वर के दर्शन और ब्रह्म तत्व की अनुभूति - जो भी चाहे कर सकता है। हमारी सांसों की संख्या के आधार पर 108 दानों की माला स्वीकृत की गई है।
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24 घंटों में एक व्यक्ति 21,600 बार सांस लेता है। 12 घंटे दैनिक कार्यों में निकल जाते हैं तो शेष 12 घंटे देव-आराधना के लिए बचते हैं। अर्थात् 10, 800 सांसों का उपयोग अपने इष्टदेव के स्मरण के लिए करना चाहिए। लेकिन इतना समय देना सबके लिए संभव नहीं होता, इसलिए इस संख्या में से अंतिम दो शून्य हटाकर शेष 108 सांस में ही प्रभु स्मरण की मान्यता प्रदान की गई। मान्यता के अनुसार, एक वर्ष में सूर्य दो लाख सोलह हजार कलाएं बदलता है। सूर्य हर छह महीने में उत्तरायण और दक्षिणायन रहता है।
इस प्रकार छह महीने में सूर्य की कुल कलाएं एक लाख आठ हजार होती हैं। अंतिम तीन शून्य हटने पर 108 संख्या मिलती है। इसलिए माला जप में 108 दाने सूर्य की एक-एक कलाओं के प्रतीक हैं, ज्योतिष शास्त्र इन्हें 12 राशियों और 9 ग्रहों से जोड़ता है। 12 राशियों और 9 ग्रहों का गुणनफल 108 आता है अर्थात 108 अंक संपूर्ण जगत की गति का प्रतिनिधित्व करता है।
चैथी मान्यता भारतीय ऋषियों द्वारा 27 नक्षत्रों की खोज पर आधारित है। प्रत्येक नक्षत्र के 4 चरण होते हैं। अतः इनका गुणनफल 108 होता है, जो परम पवित्र माना जाता है।
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