अनादि काल से ही हिंदू धर्म में अनेक प्रकार की मान्यताओं का समावेश रहा है। विचारों की प्रखरता एवं विद्वानों के निरंतर चिंतन से मान्यताओं व आस्थाओं में भी परिवर्तन हुआ। क्या इन मान्यताओं व आस्थाओं का कुछ वैज्ञानिक आधार भी है? यह प्रश्न बारंबार बुद्धिजीवी पाठकों के मन को कचोटता है। धर्मग्रंथों को उद्धृत करके‘ ‘बाबावाक्य प्रमाणम्’ कहने का युग अब समाप्त हो गया है। धार्मिक मान्यताओं पर सम्यक् चिंतन करना आज के युग की अत्यंत आवश्यक पुकार हो चुकी है। प्रश्न: गोदुग्ध पवित्र क्यों है? उत्तर: गौ को माता कहा गया है।
इसका दूध पौष्टिक व सतोगुण प्रधान है। धर्मशास्त्रों में गोदुग्ध शुचि माना गया है। इसका भोग देवताओं को चढ़ता है। गोदुग्ध से बनी मिठाई, बर्फी, कलाकंद एवं पेडे़ देव-पूजा में काम आते हैं। अतः गोदुग्ध पवित्र है। गोदुग्ध के सेवन से अनेक रोग नष्ट हो जाते हैं। गाय का दूध संग्रहणी, शोथ आदि अनेक असाध्य रोगों की अचूक औषधि है। कुशल-स्थूलता एवं मेदा वृद्धि को दूर करने में केवल गोदुग्ध का ही प्रयोग होता है।
पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने अनेक परीक्षण के बाद गोदुग्ध में प्राप्त प्रोटीन एवं विटामिनों का विशेष विश्लेषण करके इसके तत्त्व को खूब समझा है, इसीलिये वे गोदुग्ध के स्थान पर अन्य पशुओं के दुग्ध का सेवन नहीं करते। प्रश्न: गोमूत्र पवित्र क्यों है? उत्तर: गोमूत्र में गंधक और पारद के तात्त्विक अंश प्रचुर मात्रा में होते हैं। यकृत और प्लीहा जैसे रोग गोमूत्र के सेवन में दूर हो जाते हैं। गोमूत्र कैंसर रोगों को ठीक कर देता है तथा संक्रामक रोगों को नष्ट कर देता है।
प्रश्न: गंगाजल पवित्र क्यों है? उत्तर: क्योंकि इसके पानी में कीड़े नहीं लगते, यह देवताओं की नदी है। इसका पानी अमृत तुल्य मीठा है एवं इसका उद्गम स्थल गोमुख से होने के कारण इसका जल पवित्र माना जाता है। प्रश्न: पीपल का वृक्ष पवित्र क्यों माना गया है? उत्तर: क्योंकि इसमें विष्णु भगवान का निवास माना गया है। श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय 10, श्लोक 26 के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं कि मैं सब वृक्षों में पीपल का वृक्ष हूं। इसलिये आस्तिक हिंदू पीपल की रक्षा के लिये अपना सिर भी सहर्ष कटाने को उद्यत हो जाते हैं। स्कंधपुराण नागर 247 श्लोक 41-44 के अनुसार- ‘‘पीपल की जड़ में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में भगवान हरि और फल में सब देवताओं से युक्त अच्युत सदा निवास करते हैं।
यह वृक्ष मूर्तिमान् श्री विष्णुस्वरूप है। महात्मा पुरुष इस वृक्ष के पुण्यमय मूल की सेवा करते हैं। इसका गुणों से युक्त और कामनादायक आश्रय मनुष्यों के हजारों पापों का नाश करने वाला है। प्रश्न: पीपल की पवित्रता का वैज्ञानिक कारण क्या है? उत्तर: वैज्ञानिक अनुसंधानों से पता चला है कि पीपल ही एक मात्र ऐसा वृक्ष है जो रात-दिन प्रचुर मात्रा में जीवनोपयोगी आॅक्सीजन का विसर्जन करता है। इसकी छाया सर्दी में उष्णता प्रदान करती है तथा गर्मी में शीतलता देती है। विष्णु को जगत का पालक कहा गया है। पीपल प्राणवायु प्रदाता है अतः स्वतः ही जगत का पालक सिद्ध है। निरंतर अनुसंधानों द्वारा यह भी सिद्ध हुआ है कि पीपल के पत्तों से संस्पृष्ट वायु के प्रवाह व ध्वनि से बीमारी के संक्रामक कीटाणु धीरे-धीरे नष्ट हो जाते हैं।
वैद्यक ग्रंथों के अनुसार इसके पत्ते, फल, छाल, सभी रोग-नाशक हैं। रक्त-विकार, कफ, पित्त, दाह, वमन, शोथ, अरूचि, विष-दोष, खांसी, विषम-ज्वर, हिचकी, उरःक्षत, नासारोग, विसर्प, कृमि, कुष्ठ, त्वचा, व्रण, अग्निदग्धव्रण, बागी आदि अनेक रोगों में इसका उपयोग होता है।