भारतीय ज्योतिष में किसी भी कुंडली के फलकथन के लिए प्राचीन काल से ही अनेक विद्याओं का प्रयोग किया जाता रहा है। इन्हीं में अष्टकवर्ग भी है जिसके माध्यम से किया जाने वाला फलकथन अन्य किसी भी विद्या के माध्यम से किए जाने वाले फलकथन से अधिक सही माना जाता है। परंतु अधिकतर ज्योतिषीगण इसकी जटिल गणना प्रक्रिया के कारण इसका उपयोग नहीं करते। केवल विंशोत्तरी दशा, जेमिनी दशा, गोचर या वर्षफल के आधार पर ही फलकथन कर दिया जाता है। अष्टकवर्ग पर किए गए शोधों से पता चला है कि यदि फलकथन के लिए प्रयोग किए जाने वाली विद्याओं के साथ अष्टकवर्ग विद्या में प्रयुक्त ‘‘सर्वाष्टकवर्ग’’ का भी उपयोग किया जाए तो फलकथन शतप्रतिशत सही हो सकता है। यही सर्वाष्टकवर्ग का विशद विश्लेषण प्रस्तुत है। अष्टकवर्ग दो शब्दों से मिलकर बना है- अष्टक और वर्ग। अष्टक अर्थात आठ और वर्ग अर्थात समूह, अर्थात् लग्न और सात ग्रहों (सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि) का समूह। ये सातों ग्रह हर समय गतिमान रहकर स्थितियां बदलते रहते हैं।
ये स्थितियां शुभ भी हो सकती हैं और अशुभ भी। प्रत्येक ग्रह एवं लग्न अपनी जन्मकालिक स्थिति से विभिन्न राशियों पर शुभाशुभ प्रभाव डालता है। इन स्थितियों एवं प्रभावों को सूक्ष्म रूप से जानने के लिए ही अष्टकवर्ग की मदद ली जाती है। यदि किसी ग्रह शुभ स्थान व शुभ योगों में होकर भी शुभ फल नहीं देता हो तो इसका कारण अष्टकवर्ग से आसानी से जाना जा सकता है। अष्टकवर्ग के आधार पर फलकथन करने से स्पष्ट हो जाता है कि यदि किसी ग्रह को पर्याप्त ‘शुभ अंक’ प्राप्त नहीं हो तो वह शुभ फल नहीं दे सकता। अष्टकवर्ग पद्धति में ग्रहों व भावों के अंक या बिंदु दिए जाते हैं जो ग्रहों की अशुभता व शुभता को दर्शाते हैं। अगर कोई ग्रह अपनी उच्च राशि में 25 से कम बिंदुओं पर होगा तो अपना शुभ प्रभाव नहीं दे पाएगा। यदि किसी भाव में 28 या ज्यादा बिंदु हों तो समझना चाहिए कि उस भाव से संबंधित विशेष फल जातक को प्राप्त होंगे।
अष्टकवर्ग विद्या में ‘सर्वाष्टकवर्ग’ एक ऐसा वर्ग या कुंडली है जिसकी मदद से फलकथन करना बेहतर व सटीक होता है। ‘सर्वाष्टकवर्ग’ कुंडली कंप्यूटर की मदद से आसानी से बनाई जा सकती है। कुछ कुंडलियों का सर्वाष्टकवर्ग की कसौटी पर विश्लेषण करने पर सर्वाष्टकवर्ग से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य सामने आए जो इस प्रकार हैं। Û सर्वाष्टकवर्ग में यदि नवम, दशम, एकादश व लग्न भाव बली हों अर्थात इनमें 28 से अधिक बिंदु हों, दशम भाव के बिंदुओं की संख्या से एकादश भाव के बिंदुओं की संख्या अधिक हो और व्यय भाव के बिंदुओं की संख्या कम हो तथा लग्न में भी अधिक बिंदु हों तो जातक धन धान्य से संपन्न और हर तरह से समृद्ध होता है। इसके विपरीत लाभ स्थान के बिंदुओं की संख्या व्यय भाव के बिंदुओं की संख्या से कम हो तथा लग्न में भी कम बिंदु हों तो जातक दरिद्र होता है।
उदाहरण 1: रतन टाटा, 28.12.1937, 06ः30, मुंबई जातक एक प्रसिद्ध उद्योगपति है जिनकी धनु लग्न की कुंडली में दसवें भाव के 29 बिंदुओं से ग्यारहवें भाव के 40 बिंदु अधिक हैं। व्यय भाव के 29 बिंदु लाभ भाव के बिंदुओं से कम हैं और फिर लग्न के 32 बिंदु अधिक हैं। नवम भाव भी 32 बिंदुओं से बली है। ऐसा जातक अति धनवान, समृद्ध व खुशहाल होता है।
उदाहरण 2: मार्गरेट थेचर, 13.10.1925, 09ः00 लंदन जातका इंग्लैंड की अति संपन्न, धनी व प्रभावशाली महिला है। उनकी तुला लग्न की कुंडली के पहले भाव में 34, नौवें भाव में 34, दसवें भाव में 38 और ग्यारवें भाव में 31 बिंदु हैं। व्यय भाव में कम 25 बिंदु हैं बिंदुओं की इस स्थिति के फलस्वरूप जातका को धन धान्य, समृद्धि, इज्जत और रुतबे की कोई कमी नहीं है। उदाहरण 3: नुस्ली वाडिया, 15.02.1944, 13ः30, मुंबई जातक एक प्रसिद्ध उद्योगपति है जिसकी वृष लग्न की कुंडली में दसवें भाव के 29 बिंदुओं से ज्यादा ग्यारहवें भाव में 38 बिंदु हैं। ग्यारवें भाव से कम बारहवें भाव में 19 और बारहवें भाव से ज्यादा लग्न में 34 बिंदु हैं जो इन भावों को बली बनाकर जातक को अति धनवान और साधन संपन्न बना रहे हैं।
Û यदि 11वें भाव के बिंदुओं की संख्या 10वें भाव के बिंदुओं से अधिक हो तो कम परिश्रम से अधिक आय होती है और जातक उन्नति करता है। यह अंतर जितना अधिक होता है उतनी ही ज्यादा उन्नति होती है। उदाहरण 1ः माधवराव सिंधिया, 09.03.1945, 23ः59, ग्वालियर जातक की तुला लग्न की कुंडली के दसवें भाव में 29 व ग्यारहवें में 34 बिंदु हैं। बिंदुओं की इस स्थिति के फलस्वरूप जातक को जीवन में उन्नति करने के लिए व संपन्न होने के लिए कम मेहनत करनी पड़ी और आय और धन अधिक मिला।
Û लग्न या शनि से 10वें व 11वें भावों के शुभ बिंदु यदि 28 से अधिक हों तो राजनीति में जाने वाले व्यक्तियों का राजनीतिक जीवन अच्छा रहता है।
उदाहरण 1: अटल बिहारी वाजपेई, 25.12.1924, 03ः00, ग्वालियर जातक की तुला लग्न की कुंडली में लग्न और लग्न में स्थित शनि दोनों से ही दशम भाव में 30 व एकादश में 32 बिंदु हैं। इसी कारण से उनका राजनीतिक जीवन चर्मोत्कर्ष पर रहा। उदाहरण 2: जवाहर लाल नेहरू जातक की कर्क लग्न की कुंडली में लग्न से एकादश में 35 बिंदु थे। सिंह में स्थित शनि से दशम में 35 व एकादश में 30 बिंदु थे। इन्हीं कारणों से उनका राजनीतिक जीवन गौरवमय रहा। उदाहरण 3: ज्योति बसु, 08.07.1914, 11ः00, कलकŸाा जातक की कन्या लग्न की कुंडली में लग्न से दशम में 34 बिंदु हैं। मिथुन में स्थित शनि से दशम में 29 व एकादश में 30 बिंदु हैं। शनि से एकादश भाव के अधिक बली होने के कारण उन्होंने अपने परिश्रम से कार्यक्षेत्र में उन्नति पाई।
Û यदि 10वां भाव बली हो अर्थात वहां 28 से ज्यादा बिंदु हों और 11वां भाव निर्बल हो तो जातक की आजीविका में उतार चढ़ाव आते रहते हंै। उदाहरण 1: अजहर, 09.02.1963, 22ः25, हैदराबाद जातक की कन्या लग्न की कुंडली में दसवें भाव में 32 व 11वें में 27 शुभ बिंदु हैं। इस तरह जातक का दसवां भाव बली है किंतु 11वां भाव उतना बली नहीं है जितना कि दसवां। इसी कारण जातक को जीवन में अपने कर्मों द्वारा अच्छी आय हुई। परंतु जिंदगी के एक मोड़ पर उन्हें इसी आय से महरूम होना पड़ा जब उन पर बदनामी का साया पड़ा। उस मोड़ पर उनकी जिंदगी में एक ठहराव सा आ गया था।
उदाहरण 2: मनोज, 31.08.1967, 09.00, दिल्ली जातक की कन्या लग्न की जन्म कंुडली में दशम भाव में 39 और 11वें भाव में 27 बिंदु हैं। इसी कारण जातक को जीवन में नौकरी करने के अनेक अवसर मिले, परंतु उसने अपनी नासमझी की वजह से सभी अवसरों को गंवा दिया और आज भी बेरोजगार घूम रहा है।
Û यदि 10वां भाव निर्बल भी हो तो 11वें भाव के बल के फलस्वरूप भी उत्थान होता है। उदाहरण: सचिन तेंदुलकर, 21.04.1973, 18.00, मुंबई जातक की कन्या लग्न की जन्म कुंडली में दसवें भाव में केवल 25 परंतु 11वें भाव में 31 बिंदु हैं। इस तरह 11वां भाव बली है। यही कारण है कि जातक को आय की कमी नहीं हैं। दुनिया में उनका नाम है, प्रसिद्धि है और वे और भी ऊंचाइयां छूने की ओर अग्रसर हैं।
Û प्रशासनिक अधिकारियों के लिए सूर्य से 10वें भाव के शुभ बिंदुओं को देखना चाहिए। उदाहरण: रामबीर यादव, 26.05.1941, 09ः41, गुड़गांव जातक एक प्रशासनिक अधिकारी हैं। उनकी कर्क लग्न की कंुडली में सूर्य एकादश भाव में वृष राशि में है। इस सूर्य से 10वें भाव में 32 व एकादश में 40 बिंदु हैं। यही कारण है कि वे इस स्तर तक पहुंच पाए हैं।
Û कुछ कुंडलियांे में पाया गया है कि जातक संपन्न है जबकि उसके 12वें भाव में 11वें भाव से अधिक शुभ बिंदु हैं। यहां अपवाद यह है कि उनकी विदेशों से आय के स्रोत हैं लेकिन उनका व्यय सांसारिक भोगों में अधिक होता है। उदाहरण: रतन टाटा, 28.12.1937, 06ः30, मुंबई जातक की धनु लग्न की कुंडली में 1, 2, 4, 9, 10, 11वें भाव में क्रमशः 32, 22, 25, 27, 23, 33 शुभ बिंदु हैं और इनका कुल योग 184 आता है। यह विŸाीय संख्या 164 से अधिक है अतः जातक धनी, संपन्न और यश्स्वी रहा।
Û सर्वाष्टकवर्ग में यदि लग्न को कम से कम 30 शुभ बिंदु मिलें और कुंडली का नवम् व दशम् भाव ग्रह युक्त हो तो जातक का जीवन सुखी व संपन्न होता है। उदाहरण- नुस्ली वाडिया, 15.02.1944, 13ः30, मुंबई जातक एक प्रसिद्ध उद्योगपति हैं उनकी वृष लग्न की कुंडली के नवम् व दशम् भाव ग्रह युक्त हैं और लग्न में भी 34 शुभ बिंदु हैं। यही कारण है कि जातक अपने जीवन में धनी, संपन्न व सुखी रहे।
Û यदि चतुर्थ भाव में 30 या अधिक शुभ बिंदु हों और चतुर्थ भाव का संबंध शुभ ग्रह से हो तो जातक धन व वाहन का मालिक होता है। उदाहरण: राहुल बजाज (01.06.1938, 05.10, कलकत्ता) जातक एक बड़े उद्योगपति हैं। उनकी वृष लग्न की कुंडली में चतुर्थ भाव में 30 शुभ बिंदु हैं और चतुर्थ भाव पर शुभ ग्रह गुरु दशम भाव से दृष्टि डाल रहा है। इसी कारण जातक अपार धन तथा वाहनों का मालिक है।
Û यदि कुंडली का लाभ भाव पाप प्रभाव से मुक्त हो व उसमें 36 या अधिक शुभ बिंदु हों तो जातक बिना परिश्रम किए श्रेष्ठ धन लाभ पाता है। उदाहरण: धर्मेंद्र, 08.12.1935, 06ः00, दिल्ली जातक की वृश्चिक लग्न की कुंडली में लाभ भाव किसी तरह के अशुभ प्रभाव से मुक्त है और उसमें 43 शुभ बिंदु हैं। इसी कारण जातक को अपने व्यक्तित्व के बल पर कम परिश्रम में ही अपने कैरियर में अधिक धन लाभ हुआ।
Û ऐसा कई कुंडलियों में देखने में आया है कि यदि जातक के जीवन में शुरू से ही कठिन समय चल रहा है तो लग्न की राशि की बिंदु संख्या के समतुल्य आयु के बाद ही जातक को विशेष श्ुाभ प्रभाव मिलने लगते हैं। उदाहरण- देव आनंद, 26.09.1923, 09ः30, गुरदासपुर जातक एक प्रसिद्ध फिल्म कलाकार हैं। बचपन से ही उन्हें फिल्मों में कामयाब होने की तमन्ना थी। शुरू के कुछ वर्षों में संघर्ष करने के बाद 22वें वर्ष से ही उनकी फिल्मों को सफलता मिली क्योंकि लग्न में 21 बिंदु हैं।
Û यदि दूसरे व चैथे स्थान में 28 से कम बिंदु हों तो जातक को पैतृक संपत्ति कम मिलती है। उदाहरण- वरुण शुक्ला, 06.10.1930, 17ः40, जींद जातक एक बड़े व्यवसायी हैं। उनकी मीन लग्न की कुंडली में चतुर्थ भाव में 29 व छठे भाव में 27 बिंदु हैं। इसी कारण उन्हें अपने कारोबार में अपने संबंधियों से विशेषकर मामा से बहुत सहयोग मिला।
Û 6, 8, 12 भावों के शुभ बिंदुओं का योग यदि सर्वाष्टकवर्ग में 76 से कम हो तो आय अधिक व व्यय कम होता है और जातक सुखी रहता है। उदाहरण- अजहर, 09.02.1963, 22ः25, हैदराबाद जातक की कन्या लग्न की कुंडली के 6, 8, 12वें भाव के बिंदुओं का योग 72 है जिसके कारण उनकी विभिन्न स्रोतों से आय अधिक रही और व्यय उस अनुपात में काफी कम रहा।
Û यदि 7वें भाव में 5वें भाव से अधिक शुभ बिंदु हों तो जातक दवंग होता है। उदाहरण- नुस्ली वाडिया, 15.02.1944, 13ः30, मुंबई जातक एक प्रसिद्ध उद्योगपति हैं। उनकी वृष लग्न की जन्म कंुडली के सातवें भाव में 29 और पांचवें भाव में 24 बिंदु हैं। यही कारण है कि जातक का अपने जीवन में व अपने कारोबार में पूरा दबदबा रहा, कोई उनके आगे ऊंची आवाज में बात भी नहीं कर सकता था।
Û विभिन्न भावों में अधिक बिंदु होने के परिणाम इस प्रकार हैं।
Û लग्न में सबसे अधिक शुभ बिंदु होने से जातक प्रतिष्ठावान होता है। वह आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी और स्वस्थ होता है उदाहरणस्वरूप फिल्म कलाकार जुही चावला, (13.11.1967, 12.00, लुधियाना) की मकर लग्न की कुंडली में लग्न में सर्वाधिक 36 बिंदु हैं जिसके कारण उनकी सुंदरता देखते ही बनती है। उनका व्यक्तित्व आकर्षक है और स्वास्थ्य भी अच्छा है।
Û इसी प्रकार से चंद्र राशि में सबसे अधिक शुभ बिंदु होने पर जातक का स्वास्थ्य अच्छा व आयु लंबी होती है। उदाहरण के लिए मशहूर गायिका लता मंगेशकर (28.09.1929, 23ः00, मुबई) की वृष लग्न की कुंडली में चंद्र राशि में सबसे अधिक 35 बिंदु हैं जिस कारण उनकी आयु लंबी व स्वास्थ्य अच्छा है।
Û दूसरा भाव जातक के अच्छा वक्ता और अच्छी आवाज के स्वामी होने का संकेत देता है। उदाहरण के लिए गायिका अलका याज्ञिक (20.03.1963, 19ः02, कलकŸाा) की कन्या लग्न की कुंडली में तीसरे भाव में सर्वाधिक 36 बिंदु हैं जिसके कारण उनकी आवाज मीठी व सुरीली है।
Û पांचवें भाव में अधिक बिंदु होने के कारण जातक विद्वान व तीक्ष्ण बुद्धि वाला होता है। उदाहरण के लिए डा॰ बी॰ वी॰ रमन (08.08.1912, 19ः15, बंगलोर) की कन्या लग्न की कुंडली में पांचवें भाव में सर्वाधिक 33 बिंदु हैं जिसके कारण वह तीक्ष्ण बुद्धि वाले व प्रखर विद्वान हुए।
Û छठे भाव में अधिक बिंदु होने के कारण जातक हमेशा दूसरे के अधीन कार्य करता है। उदाहरण के लिए भगवान दास (09.05.1935, 01ः40, हिसार) की कुंभ लग्न की कुंडली में छठे भाव में सर्वाधिक 33 बिंदु हैं जिसके कारण वह जीवन भर दूसरों के अधीन कार्य करते रहे और अपना व्यवसाय शुरू नहीं कर पाए।
Û आठवें भाव के अधिक बिंदुओं के कारण जातक को अधेड़ अवस्था में प्रतिष्ठा की हानि और बीमारी होती है। उदाहरण के लिए बनवारी लाल (26.09.1933, 13ः34, रिवाड़ी) की धनु लग्न की कुंडली में आठवें भाव में सर्वाधिक 37 बिंदु हैं। वह सारा जीवन सफल व्यवसायी रहे परंतु जीवन के अंतिम सालों में उनके कुछ गलत फैसलों के कारण उनकी इज्जत धूल में मिल गई और फिर मानसिक रोग से उनकी मौत हो गई।
Û दसवें भाव में अधिक बिंदु होने से जातक अपना स्वतंत्र व्यवसाय करता है। उदाहरण के लिए धीरू भाई अंबानी (28.12.1932, 06.37, चोरवाड़) की कुंडली को देखें तो दसवें भाव में सर्वाधिक 38 बिंदु हैं। इसी कारण उन्होंने कपड़ों का अपना स्वतंत्र व्यवसाय किया और जीवन में अपार सफलता पाई।